“यूनिफार्म सिविल कोड़ (UCC),भारत की राजनीति या कोई भी न्यूज डिबेंट या आम जनमानस सभी के बीच यह एक संवाद का विषय बना हुआ हैं। यूसीसी (UCC)को लेकर सरकार का मत क्लियर है, कि वो इसें लागू करने के पक्ष मे है। पर विपक्ष का इस मुद्दे पर अलग रुख है, कोई पार्टी सरकार के समर्थन मे है और कोई विरोध में पर किसी का भी मत क्लियर नजर नहीं आता।
सभी धर्मो के धर्मगुरुओं के इसकों लेकर अलग मत है, कोई इसके पक्ष में कोई नही। किसी को लगता है कि यूसीसी(UCC) के देश में लागू हो जाने से देश के कानूनों मे एकरुपता आयेगी। और किसी को अपने धर्म मे हस्ताक्षेंप। पर यह भी सही है, कि देश को अब ऐसे कानूनों से बाहर आना होगा जो भेदभावपूर्ण और अपमानजनक है, और जो खोंखले हो चुकें है”
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हमारे इस लेख के माध्यम से यूसीसी(UCC) के उन महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर प्रकाश डालने का प्रयास किया जाएगा। जिनके माध्यम से आपकों समझ आये कि यूसीसी(UCC) क्या है, यह क्यो जरुरी है और इसके क्या फायदे और नुकसान हो सकते हैं। तो देखते है, कि इसके महत्वपूर्ण बिन्दु क्या हैं।
यूसीसी (UCC) क्या है?-
जो सभी धर्मो के लिए एक समान कानून की बात करता है। जो यह कहता है कि सभी सामाजिक मामलों से संबधित एक कानून होगा। जो सभीं धर्मों के लोगों के लिये विवाह, तलाक, भरण-पोषण, विरासत व बच्चा गोद लेने आदि मे समान रुप से लागू होगा। यह किसी भी धर्म के निजी कानूनों से ऊपर होता है।
इसकी शुरुआत मूलरुप से ब्रिटिश काल के दौरान हुई। व्यक्तिगत कानून पहली बार ब्रिटिश राज के दौरान मुख्य रुप से हिन्दू और मुस्लिम नागरिकों के लिए बनाए गये थे। अग्रजों को समुदाय के नेताओं के विरोध के डर के कारण वे घरेलू क्षेत्र मे हस्तक्षेप करने से बचते थे।
भारत की आजादी के बाद, हिंदू कोड़ बिल पेश किया गया। जिसने हिंदूओं के साथ, बौद्ध, जैन और सिक्ख के व्यक्तिगत कानूनों को सहिताबद्द किया व उनमें सुधार भी किया। जिससे इन वर्गो को कानूनी अधिकार मिल गयें कि वो अपने अधिकारों के लिए कोर्ट जा सकते है।
यूसीसी (UCC)की आवश्यकता क्यों है?
सविंधान के चौथें भाग राज्य के नीति निर्देशक तत्वों में अनुच्छेद-44 को शामिल किया गया हैं, जो कि देश में समान नागरिक संहिता की बात करता हैं। इसमें लिखा गया है कि भारत के सम्पूर्ण क्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता लागू करना राज्य का कर्तव्य हैं। इसका मतलब है कि- एक देश-एक नियम।
यूसीसी (UCC) कितने देशों में लागू हैं-
समान नागरिक संहिता यूरोपीय पॉवर फ्रांस, इकोनॉमी पावर अमेरिका व इस्लामी गणराज्य तुर्की जैसे देशों में पूरी तरह से लागू हैं। साथ ही साथ अरब देश सऊदी अरब, इंडोनेशिया, नेपाल, अजरबैजान, जर्मनी, जापान और कनाडा में भी यह कानून लागू हैं।
गोवा में पहले से लागू है यूसीसी (UCC) –
गोवा देश का पहला राज्य था जहां यूसीसी (UCC) पहले से लागू हैं। गोवा में यह कानून वहां भारत की आजादी के बाद उसके भारत में विलय के पहले से लागू हैं। गोवा में यह कानून पुर्तगाल सरकार ने यूनिफार्म सिविल कोड लागू किया था। पुर्तगालियों ने गोवा पर 451 वर्षों तक शासन किया था।
अब पूर्णरुप से देश में आजादी के बाद उत्तराखण्ड पहला ऐसा राज्य बन गया हैं। जिसने यूनिफार्म सिविल कोड अपने यहां लागू किया हैं।
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पहला राज्य बना उत्तराखण्ड-
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की मंजूरी के बाद उत्तराखंड में यूसीसी(UCC) लागू हो गया हैं। उत्तराखंड पहला राज्य है जहां यूसीसी (UCC)लागू हो गया हैं।
यूसीसी(UCC) के सभी धर्मों व संप्रदायों के महिला व पुरुषों के लिए एक समान अधिकारों की बात की गई हैं। सभी अनुसूचित जनजातियां इससे बाहर रखी गयीं हैं।
विवाह के लिए लड़को की उम्र 21 वर्ष व लड़कियों की उम्र 18 वर्ष तय की गई हैं। बच्चो के अधिकारों और उनके संरक्षण पर विशेष ध्यान देने की बात की गई हैं।
ब्रिटिशकालीन व्यवस्था-
जब अग्रेज भारत आये तो भारत में धर्मो के हिसाब से कानून काम कर रहे थे। जिसमें प्रमुख रुप से हिंदू और मुस्लिम के कानून थे। जहाँ हिंदूओँ मे कानून का पालन शास्त्रों के हिसाब से होता था, वही मुसलमान शरिया कानून का पालन करते थे।
पहले अग्रजों ने हिंदू और मुसलमानों के सिविल मामलें उनके धर्म के अनुसार चलने दियें। लेकिन इसके बाद धीरे-धीरे कानून मे बदलाव आने शुरु हुये। खासकर हिंदू समाज में ब्रिटिश काल के दौरान कई कानून बनें। जो उस समय हिंदू समाज में फैली कुरीतियों को मिटाने का काम किया। कई कानून को ब्रिटिश शासन ने उस समय पास करायें। जिनमे प्रमुख है।
- “सती विनियमन अधिनियम” जो कि 4 दिसम्बर, 1829 को राजा राम मोहन राय ने गवर्नर जनरल सर विलियम बैटिक की सहायता से पारित कराया।
- “कन्या भ्रूण हत्या” कानून भी विलियम बैटिक ने पारित कराया।
- “विधवा पुनर्विवाह अधिनियम” ईश्वर चन्द्र विघासागर ने उस समय के गवर्नर जनरल डलहौजी की मदद से सन् 1856 में पारित कराया।
- हिंदू महिलाओं को संपत्ति मे अधिकार का कानून 1937 मे पास किया गया।
इसके बाद 1946 मे मसौदा समिति का गठन किया गया। इसमें 7 सदस्य थे। उस समय यूनिफार्म सिविल कोड़ लाने का प्रयास किया गया। ड्राफ्ट में यूसीसी (UCC) अनुच्छेद-35 में था। चर्चा के दौरान मसौदा समिति के सदस्य मोहम्मद इस्माईल ने इस अनुच्छेद-35 में एक नियम जोड़ने को कहा- कि किसी भी कम्यूनिटी के ऊपर अपना पर्सनल कानून छोड़ने का कोई दबाव नहीं होगा। कुछ सदस्यों के अनुसार इसे मूल अधिकारों में जोड़ना चाहिए तथा कुछ ने इसका विरोध किया। बाद में इसे राज्य के नीति-निर्देशक तत्वों में जोड़ दिया गया और जब सविधान लागू हुआ तो इसे अनुच्छेद-44 के रुप में पेश किया गया।
कुछ बदलाव अंग्रेजों के समय मुस्लिमों के लिए भी किए गए-
- मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एप्लीकेशन एक्ट,1937 के तहत, मुस्लिम समाज के लिए शादी, तलाक, विरासत और परिवारिक संबंधों से जुड़े मामले तय किए जाते है। इस अधिनियम के तहत राज्य, व्यक्तिगत विवादों में हस्तक्षेप नहीं करता।
- मुस्लिम विवाह विघटन अधिनियम, 1939 में बना, यह अधिनियम मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एप्लीकेशन एक्ट, 1937 को संदर्भित करता है।
हिन्दू कोड़ बिल-
हिन्दू कोड बिल 1950 के दशक में पारित किए गया था। जिसका उद्देश्य भारत में हिन्दू व्यक्तिगत कानून को सहिताबद्ध करना और सुधार करना था। यह प्रक्रिया को अग्रेजी साम्राज्य के समय शुरु किया गया था। हिन्दू कोड बिल कई अधिनियमों का समूह है, जिसका उद्देश्य-
- सभी संपत्ति कानूनों और प्रक्रियाओं को क्रमबद्ध करना।
- उत्तराधिकार क्रम को बदलना।
- हिंदू विवाह, तलाक और गोद लेने के लिए नए कानून बनाना।
हिंदू कोड को बिल यूसीसी (UCC) की दिशा में एक कदम के रुप में देखा गया था। इसके अन्तर्गत 4 अधिनियम पारित किये गये। ये हिंदू सुमुदाय के भीतर एकरुपता लाने का प्रयास करते हैं।
- हिंदू विवाह अधिनियम-1955
- हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम-1956
- हिंदू अल्पसंख्यक और संरक्षकता अधिनियम-1956
- हिंदू दत्तक और भरण-पोषण अधिनियम-1956
इन कानूनों के अन्दर हिंदू धर्म के साथ- सिख, जैन व बौद्ध सम्प्रदाय भी शामिल हैं।
यूसीसी (UCC) के लाभ क्या हैं-
भारत में विभिन्न धर्म, सम्प्रदाय व वर्ग के लोग निवास करते हैं। भारत की विविधता ही उसकी मूल पहचान हैं। हम अपने सभी धर्मों के रीति रिवाजों का बराबर सम्मान करते हैं। हम एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र हैं। और इस धर्मनिरपेक्षता को बनाए रखने के लिए देश में समान नागरिक संहिता की आवश्यकता हैं।
यूसीसी (UCC) के कई लाभ इस प्रकार हैं-
- यूसीसी (UCC) लागू होने से देश में धर्म, जाति, लिंग और नस्ल के आधार पर भेदभाव खत्म करने में मदद मिलेगीं।
- ये सभी धर्मों में महिलाओं के लिए समान अवसर स्थापित करेगा। महिलाओं के खिलाफ होने वाले अत्याचारों में कमी आयेंगीं।
- महिलाओं को विवाह, तलाक व बच्चे गोद लेने, उत्तराधिकार व सपत्ति के अधिकार में कानूनी संरक्षण मिलेगा।
- इससे देश में सामाजिक समानता आएगीं। और सभी धर्मों के बीच सद्भाव कायम करने में मदद मिलेगीं।
यूसीसी (UCC) के क्या नुकसान हो सकते हैं-
यूसीसी (UCC) के कुछ नुकसान भी हो सकते है। जैसे- कुछ धार्मिक समूहों का विरोध, भारत की विविधता को खतरा आदि..कुछ निम्म कारण इस प्रकार हैं-
- कुछ धर्म ऐसे है जो अपने उन्हीं पुराने ढर्रे पर चलना चाहते हैं। जो नहीं चाहते कि उनके कानूनों में किसी प्रकार का हस्ताक्षेप हो। उन्हें इस बात का डर है कि यूसीसी(UCC) उनके व्यक्तिगत कानून व परम्पराओं को कमजोर करेगा। इसलिए इसे लागू करने से धार्मिक विरोध का भी सामना करना पड़ सकता हैं।
- आदिवासी भी यूसीसी(UCC) कानून को लेकर असंमजस में हैं। उनका मानना है कि इससे उनकी पहचान खतरे में पड़ जाएगी।
- कई राजनीतिक पार्टियां भी इसको लेकर विरोध में हैं। क्योकि कोई भी पार्टी अपने वोट बैंक को नाराज नहीं करना चाहतीं।
शाहबानो केस-
यूसीसी (UCC)कानून में अगर कोई केस बहुत महत्वपूर्ण रखता हैं। तो वो शाहबानो केस। इनका निकाह 1932 में कम उम्र में इंदौर के वकील मो. अहमद खान से हुआ था। इनके पांच बच्चे थें। इसके करीब 14 वर्ष इनके पति ने दूसरा निकाह कर लिया। 1978 में इनके पति ने तीन बार तलाक कहकर इन्हें तलाक दे दिया। तब उसने शाह बानो से कहा था कि वह गुजारा भत्ता देगा। पर उसने नहीं दिया।
ऐसे में शाह बानो ने कोर्ट का रुख किया। यहीं से यह केस चर्चा में आया। मो. खान ने मुस्लिम लॉ के तहत इसे गैरजरुरी बताया। कि वह गुजारा भत्ता देने के लिए बाध्य नहीं है। पर कोर्ट ने इसे नकार दिया। यह मामला बढ़ते हुए सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। जहां इसें पांच जजों की पीठ को सौप दिया गया। जहां यह केस चार साल चला। और कोर्ट ने शाह बानो के पक्ष में फैसला सुनाया। और इसी दौरान सुप्रीम कोर्ट ने यूसीसी (UCC) का जिक्र भी किया। कोर्ट ने अपने बयान में कहा कि यूसीसी(UCC) देश की जरुरत है और सरकार को इस पर विचार करना चाहिए।
राजीव गांधी ने पलटा कोर्ट का फैसला-
यह मामला तब तक तूल पकड़ चुका था। इस मुद्दे पर मुस्लिम पर्सनल लॉ भी कूद चुका था। इसी के तहत नये-नये सत्ता में आये राजीव गांधी ने वोट बैंक की राजनीति के चलते एक विवादित फैसला लेते हुए कोर्ट के फैसले को पलट दिया। गांधी सरकार ने मुस्लिम महिला (अधिकार और तलाक संरक्षण) विधेयक 1946 पास कर दिया। जिससे कोर्ट का फैसला नगण्य हो गया। और विवाह के मामले में शरीयत को फिर से लागू कर दिया गया।
यह एक विवादित फैसला था। जो कि भारत के इतिहास में काले दिन के रुप में दर्ज हो गया।
एस. जयशंकर- भारतीय विदेश नीति के रणनीतिकार
शायरा बानो केस-
शाह बानो केस की तरह ही शायरा बानो का भी केस था। यह केस 2016 में प्रकाश में आया। उन्हें तीन तलाक के मुद्दे पर कोर्ट जाने वाली वह पहली मुस्लिम महिला कहना अतिशोक्ति नहीं होगा। 23 फरवरी 2016 को उन्होंने इसके खिलाफ याचिका दायर की थीं।
उन्होनें ट्रिपल तलाक के निकाह हलाला के मुद्दे को भी कोर्ट के समक्ष उठाया था। और बहुविवाह को भी गलत बताया था। तीन तलाक संविधान के अनुच्चछेद 14 और 15 मे मिले मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।
इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक न्याय करते हुए 22 अगस्त 2017 को अपना फैसला सुना दिया था। माननीय न्यायालय ने तीन तलाक को असंवैधानिक करार दिया था। और केंद्र को 6 महीने के भीतर कानून बनाने को कहा था।
सायरा बानो मूल रुप से उत्तराखण्ड के ऊधमसिंह नगर जिले की रहने वाली है। इनके पति रिजवान ने स्पीड पोस्ट के जरिए उन्हें तलाक का नोटिस भेज दिया था। नोटिस में तलाक-ए-बिद्दत यानि तीन तलाक और बच्चो की कस्टडी का जिक्र था।
तीन तलाक कानून-
भारत सरकार ने 30 जुलाई,2019 को ट्रिपल तलाक को अवैध और असंवैधानिक घोषित कर दिया। और 1 अगस्त 2019 से यह देश मे दड़नीय कृत्य बन गया। इसे मुस्लिम महिला अधिनियम (विवाह अधिकार संरक्षण) 2019 नाम दिया गया। इस कानून के तहत कोई भी मुस्लिम आदमी, मौखिक , लिखित या ईमेल या एसएमएस के माध्यम से तीन तलाक देता है। तो वह असंवैधानिक है।
और इस कानून के तहत उसे तीन साल तक की जेल भुगतना पड़ सकता हैं। इस कानून के अनुसार, पीड़ित महिला अपने बच्चों को लिए भरण-पोषण की मांग भी कर सकती है।
यह कानून यूसीसी के लिए एक रास्ता बनाता हैं। जिसके माध्यम से कई पर्सनल कानूनों में बदलाव करके यूसीसी का रास्ता तय किया जा सकता है।
यूसीसी पर विधि आयोग की विभिन्न रिपोर्ट-
समान नागरिक संहिता पर विधि आयोग ने समय-समय पर विभिन्न रिपोर्टें और सिफारिशें प्रस्तुत की हैं। इन रिपोर्टों में इस मुद्दे के विभिन्न पहलुओं पर विचार किया गया है, जैसे कि इसका संवैधानिक महत्व, सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव, और इसे लागू करने की संभावनाएं। विधि आयोग की राय का विस्तार से वर्णन यहां दिया गया हैः
1. विधि आयोग की रिपोर्ट (1958)
विधि आयोग की प्रारंभिक रिपोर्टों में से एक में समान नागरिक संहिता पर ध्यान केंद्रित किया गया था। इस रिपोर्ट में मुख्य रूप से यह सिफारिश की गई थी कि व्यक्तिगत कानूनों में सुधार की आवश्यकता है और समान नागरिक संहिता को समय के साथ धीरे-धीरे लागू किया जाना चाहिए। इस रिपोर्ट में कहा गया था कि तत्कालीन परिस्थितियों में अचानक से इसे लागू करना संभव नहीं है, लेकिन सामाजिक और कानूनी सुधार की दिशा में कदम उठाए जाने चाहिए।
2. विधि आयोग की रिपोर्ट (2002)
विधि आयोग की 185वीं रिपोर्ट में समान नागरिक संहिता के महत्व और इसे लागू करने के तरीकों पर विचार किया गया था। इस रिपोर्ट में सुझाव दिया गया था कि पहले से मौजूद व्यक्तिगत कानूनों में सुधार किया जाए और समान नागरिक संहिता को एक लंबी अवधि की योजना के तहत लागू किया जाए। इसमें यह भी कहा गया था कि सामाजिक और सांस्कृतिक संवेदनाओं का सम्मान करते हुए इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जाना चाहिए।
3. विधि आयोग की रिपोर्ट (2014)
इस रिपोर्ट में विशेष रूप से मुस्लिम पर्सनल लॉ के संदर्भ में सुधारों पर जोर दिया गया था। विधि आयोग ने यह सिफारिश की थी कि मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए शरीयत कानून में संशोधन किए जाएं। इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि समान नागरिक संहिता के बजाय व्यक्तिगत कानूनों में सुधार अधिक व्यावहारिक हो सकता है।
4. विधि आयोग की रिपोर्ट (2018)
विधि आयोग की इस रिपोर्ट में समान नागरिक संहिता पर गहराई से विचार किया गया था। इस रिपोर्ट में कहा गया था कि तत्कालीन परिस्थितियों में समान नागरिक संहिता को लागू करना व्यावहारिक नहीं है। इसके बजाय, विधि आयोग ने यह सिफारिश की थी कि सभी व्यक्तिगत कानूनों में समानता और न्याय की भावना को बढ़ावा देने के लिए सुधार किए जाएं। रिपोर्ट में कहा गया था कि विभिन्न समुदायों के बीच संवाद और समन्वय के माध्यम से एक संतुलित समाधान की तलाश की जानी चाहिए।
हालिया घटनाएँ-
राजनीतिक और सामाजिक बहस:
हाल के वर्षों में समान नागरिक संहिता को लेकर राजनीतिक और सामाजिक बहस तेज हुई है। विभिन्न अदालतों और सरकारी निकायों ने भी इस पर अपने विचार व्यक्त किए हैं।
संभावित समाधान-
संवाद और बहस:
समान नागरिक संहिता को लागू करने के लिए बहस और संवाद महत्वपूर्ण हैं। विभिन्न धार्मिक और सामाजिक समुदायों की संवेदनाओं का सम्मान करते हुए कानून का मसौदा तैयार किया जा सकता है।
समन्वय और समायोजन:
विभिन्न समुदायों के बीच समन्वय और समायोजन के माध्यम से एक संतुलित और स्वीकार्य समाधान की तलाश की जा सकती है।
निष्कर्ष-
समान नागरिक संहिता को लागू करने की प्रक्रिया में कई विशेष चुनौतियाँ हैं। इनमें विभिन्न धार्मिक और सामाजिक समुदायों के साथ समन्वय, संवाद और समझौते की आवश्यकता है। इसके अलावा, समान नागरिक संहिता के लागू होने की संभावना में विभिन्न राजनीतिक और सामाजिक विरोध भी आ सकते हैं। इन सभी चुनौतियों का समाधान निकालने के लिए समर्पित प्रयास और संवाद की जरूरत होगीं।
इस ब्लांग के माध्यम से हमने समान नागारिक संहिता के विभिन्न बिन्दुओं पर प्रकाश डालने का प्रयास किया हैं। हमें कमेंट के माध्यम से जरुर बताएं कि आपको इस विषय में क्या लगता हैं। क्या यूसीसी लागू होना चाहिए कि नहीं। अगर नहीं तो क्यो। अगर हां तो क्यों। धन्यवाद…
प्रश्न 1: यूनिफार्म सिविल कोड (यूसीसी) क्या है?
उत्तर: यूनिफार्म सिविल कोड (यूसीसी) एक समान कानून है जो सभी धर्मों के लोगों के लिए विवाह, तलाक, भरण-पोषण, विरासत और बच्चा गोद लेने जैसे मामलों में समान रूप से लागू होता है। इसका उद्देश्य विभिन्न धर्मों के बीच समानता स्थापित करना है।
प्रश्न 2: यूसीसी की आवश्यकता क्यों है?
उत्तर: यूसीसी की आवश्यकता इसलिए है ताकि देश में धर्म, जाति, लिंग और नस्ल के आधार पर भेदभाव को समाप्त किया जा सके। यह महिलाओं को कानूनी संरक्षण और समान अधिकार प्रदान करने में मदद करता है और देश में सामाजिक समानता स्थापित करता है।
प्रश्न 3: यूसीसी के लागू होने के क्या लाभ और नुकसान हो सकते हैं?
उत्तर: लाभ:
धर्म, जाति, लिंग और नस्ल के आधार पर भेदभाव खत्म करने में मदद।
महिलाओं को समान अधिकार और कानूनी संरक्षण मिलेगा।
सामाजिक समानता और सद्भाव स्थापित होगा।
नुकसान:
कुछ धार्मिक समूहों का विरोध।
आदिवासी समुदायों की पहचान खतरे में पड़ सकती है।
राजनीतिक पार्टियों का विरोध।