असंभव को संभव बनाना: पैरालंपिक खिलाड़ियों की संघर्ष गाथा- Making the impossible possible: The struggle story of Paralympic players 2024

“पैरालंपिक खेलों का आरम्भ हो चुका हैं। 2024 के ओलंपिक खेलों की सफल मेजबानी करने के बाद फ्रांस की राजधानी पेरिस फिर से तैयार हैं, पैरालंपिक खेलों की मेजबानी के लिए। 28 अगस्त से शुरु हुए इन खेलों में दुनियाभर के 4400 एथलीट भाग ले रहे हैं। जो 11 दिन तक पैरालंपिक के 22 खेलों में 549 पदकों के लिए एक-दूसरे को चुनौती देते नजर आएंगें। भारत की पैरा टीम भी इसी इरादे के साथ नए रिकार्ड बनाने और नया इतिहास रचने पेरिस में प्रवेश कर चुकी हैं। भारत ने इन खेलों में 84 सदस्यीय दल भेजा हैं, जो अब तक इन खेलों के इतिहास का भारत का सबसे बड़ा दल हैं।”

पैरालंपिक खिलाड़ियों की संघर्ष यात्रा का प्रतीकात्मक चित्र
पैरालंपिक खेलों में खिलाड़ियों ने संघर्ष और साहस से कैसे जीती नई चुनौतियाँ

पैरालंपिक खेलों का परिचय-

पैरालंपिक खेल, दुनिया के सबसे बड़े और प्रतिष्ठित खेल आयोजनों में से एक हैं, जो शारीरिक रूप से विकलांग एथलीटों के लिए विशेष रूप से आयोजित किए जाते हैं। इन खेलों का उद्देश्य विकलांगता के बावजूद एथलीटों की क्षमताओं, प्रतिभा और समर्पण को प्रदर्शित करना है, साथ ही समाज में विकलांग लोगों के प्रति जागरूकता और समानता का संदेश फैलाना है।

  • ये खेल किस प्रकार से ओलंपिक से अलग हैं-

पैरालंपिक खेल एक अंतरराष्ट्रीय बहु-खेल आयोजन है जिसमें शारीरिक, बौद्धिक, और दृष्टिहीनता से संबंधित विकलांगता वाले एथलीट भाग लेते हैं। शब्द “पैरालंपिक” का मतलब है “पैरा” जो “पैरालेल” (समानांतर) से लिया गया है, और “ओलंपिक” का सूचक है। 

पैरालंपिक और ओलंपिक खेलों में सबसे बड़ा अंतर यह है कि पैरालंपिक खेलों में केवल विकलांग एथलीट भाग लेते हैं, जबकि ओलंपिक खेलों में सभी प्रकार के एथलीट हिस्सा लेते हैं। दोनों खेलों के नियम, सरंचनाओं और आयोजन में भी कुछ अंतर रहता हैं। यह एक ऐसा मंच होता हैं, जहां यह एथलीट अपनी योग्यता को प्रदर्शित कर सकते हैं।

पैरालंपिक खेलों का इतिहास क्या हैं-

पैरालंपिक खेलों का इतिहास साहस, संकल्प, और विकास की प्रेरणादायक गाथा है। यह इतिहास दर्शाता है कि कैसे विकलांगता के बावजूद एथलीटों ने अपनी प्रतिभा को वैश्विक स्तर पर प्रदर्शित करने के लिए एक मंच का गठन किया। इसकी शुरुआत द्धितीय विश्वयुद्ध के आरम्भ में हुई, जब विकलांगता से जूझ रहे सैनिकों और नागरिकों को खेलों के माध्यम से फिर से पुनर्वासित करने का प्रयास किया गया।

  • प्रारम्भिक चरण-

विकलांग या कहें दिव्यांग खिलाड़ियों के लिए खेलों का यह दौर 100 से अधिक बरस से से चला आ रहा हैं। जर्मनी के बर्लिन शहर में बधिरों के लिए पहला क्लब वर्ष 1888 में बन गया था।

इसकी व्यापक शुरुआत द्धितीय विश्वयुद्ध के दौरान हुई थीं। उस समय युद्ध के कारण कई सैनिक व नागरिक बड़ी सख्या में घायल हुए थें। इसका उद्देश्य उस समय उन्हें शारीरिक व मानसिक रुप से सहायता प्रदान करना था।

इसका पहला विचार ब्रिटिश डाक्टर लुडविग गुट्टमैन के दिमाग में आया। 1944 में उन्होंने ब्रिटिश सरकार के आग्रह पर ब्रिटेन के स्टोक मैंडविले अस्पताल में एक रीढ़ की हड्डी के लिए चोट केन्द्र खोला।

उन्होंने 29 जुलाई, 1948 में इंग्लैंड के स्टोक मैंडविल में एक खेल प्रतियोगिता आयोजित की। यह प्रतियोगिता विकलांग युद्ध सैनिकों के लिए थी, और इसका उद्देश्य उन्हें शारीरिक रूप से सशक्त बनाने के साथ-साथ उन्हें समाज में पुनः स्थापित करना था। इन खेलों में 16 घायल सैनिकों व महिलाओं ने भाग लिया, उन खिलाड़ियों ने तीरंदाजी की प्रतियोगिता में भाग लिया। इस प्रतियोगिता को “स्टोक मैंडविल खेल” कहा गया, और इसमें व्हीलचेयर का उपयोग कर खेलों का आयोजन किया गया। 1952 में इन खेलों में डच के पूर्व सैनिकों ने भी भाग लिया। और यहीं से स्टोक मैंडविले खेल अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मशहूर हुआ।

  • आधुनिक पैरालंपिक खेलों की शुरुआत-

1960 में, रोम में पहली बार पैरालंपिक खेलों का आयोजन किया गया, जिसमें 23 देशों के लगभग 400 एथलीटों ने भाग लिया। यह पहला मौका था जब इस खेल आयोजन को “पैरालंपिक” का नाम मिला, और इसे ओलंपिक खेलों के समानांतर आयोजित किया गया। इस आयोजन ने विकलांग एथलीटों को वैश्विक मंच पर अपनी क्षमता दिखाने का अवसर दिया।

पैरालंपिक खेलों के इतिहास में 1976 में स्वीडन में शीतकालीन खेलों का आयोजन किया गया। और गीष्मकालीन पैरालंपिक खेलों की तरह ही हर चार साल में यह आयोजित होने लगें।

1964 के बाद से पैरालंपिक खेलों को प्रत्येक ओलंपिक खेलों के तुरंत बाद आयोजित किया जाने लगा। 1988 में सियोल ओलंपिक के साथ पैरालंपिक खेलों का आयोजन भी एक ही स्थान पर हुआ, जिससे इन खेलों को एक वैश्विक पहचान और बढ़ावा मिला।

  • समय के साथ पैरालंपिक खेलों की विकास यात्रा-

पैरालंपिक खेलों ने समय के साथ एक लंबी यात्रा तय की है। 1992 में, बार्सिलोना में आयोजित पैरालंपिक खेलों में पहली बार अंतर्राष्ट्रीय पैरालंपिक समिति (IPC) द्वारा खेलों का आयोजन किया गया। इसके बाद से यह संस्था पैरालंपिक खेलों के आयोजन और विकास की देखरेख कर रही है।

समय के साथ-साथ पैरालंपिक खेलों में एथलीटों की संख्या और खेलों की विविधता में वृद्धि हुई है। जहां 1960 में केवल कुछ सौ एथलीटों ने भाग लिया था, वहीं अब हजारों एथलीट इन खेलों में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करते हैं। खेलों की श्रेणियों में भी वृद्धि हुई है, और अब यह आयोजन शारीरिक, बौद्धिक, और दृष्टिहीनता सहित विभिन्न प्रकार की विकलांगताओं वाले एथलीटों के लिए खुला है।

  • पैरालंपिक खेल का महत्व व प्रभाव-

पैरालंपिक खेलों ने न केवल एथलीटों को एक मंच प्रदान किया है, बल्कि उन्होंने समाज में विकलांग लोगों के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इन खेलों ने विकलांगता के बावजूद सफलता की कहानियों को उजागर किया और प्रेरणा का स्रोत बने। इसके अलावा, पैरालंपिक खेलों ने वैश्विक स्तर पर विकलांग लोगों के अधिकारों और समावेश की लड़ाई को भी मजबूती दी है।

यह वैश्चिक इतिहास में बदलाव का एक महत्वपूर्ण सामाजिक बदलाव का कारण हैं। जिसमें खेलों का उपयोग विकलांगता के प्रति समाज की सोच को बदलने और उन्हें समान अधिकार और सम्मान देने के उद्देश्य से किया गया है।

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भारत का अब तक इन खेलों में प्रदर्शन-

इन खेलों में पहली बार भारत ने 1968 में भाग लिया था, तब भारत ने कोई पदक नहीं जीता था। इन खेलों के अबतक 11 संस्करण हो चुके हैं। मुरलीकांत पेटकर ने सबसे पहले 1972 के हीडलबर्ग पैरालंपिक खेलों में पुरुषों की 50 मीटर फ्रीस्टाइल 3 इवेंट में स्वर्ण पदक अपने नाम किया था। उन्होंने 37.33 सेकेंड का विश्व रिकार्ड भी अपने नाम किया था।

भारत इन खेलों में अबतक 31 मेडल जीत चुका हैं, वो ऑलटाइम मेडल टैली में 57 पायदान पर हैं। भारत ने अब तक इन खेलों में 9 गोल्ड, 12 सिल्वर और 10 ब्रांन्ज मेडल अपने नाम किये हैं।

भारत के अब तक के सबसे सफल पैरालंपिक टोक्यो पैरालंपिक रहे हैं। भारत ने टोक्यो में 19 पदक जीते थे। भारत टोक्यो में 78 देशों के बीच 24वें स्थान पर रहा था। इस बार भारत की उम्मीद 25 पदकों की हैं। भारत इस बार 12 खेलों में प्रतिस्पर्धा कर रहा हैं। इस बार भारत ने 84 सदस्यीय अपना अबतक का सबसे बड़ा दल भेजा हैं।

पैरालंपिक खिलाड़ियों की संघर्ष यात्रा का प्रतीकात्मक चित्र
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महान पैरालंपिक एथलीट- भारत व दुनिया में-

पैरालंपिक खेलों ने दुनिया भर में ऐसे अनेक महान एथलीटों को जन्म दिया है, जिन्होंने विकलांगता के बावजूद अपनी उत्कृष्टता, समर्पण, और साहस के बल पर इतिहास रचा। ये एथलीट न केवल खेलों में सफल हुए, बल्कि उन्होंने समाज में विकलांग लोगों के प्रति दृष्टिकोण बदलने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यहां हम, भारत और दुनिया के कुछ महान पैरालंपिक एथलीटों के बारे में बताने जा रहे हैं-

  • भारत के महान पैरालंपिक एथलीट-
  •  देवेंद्र झाझरिया (भाला फेंक)-

देवेंद्र झाझरिया भारत के सबसे सफल पैरालंपिक एथलीटों में से एक हैं। उन्होंने 2004 एथेंस पैरालंपिक और 2016 रियो पैरालंपिक में भाला फेंक (जैवलिन थ्रो) में स्वर्ण पदक जीता। देवेंद्र ने अपने पहले प्रयास में ही ओलंपिक रिकॉर्ड तोड़ा और फिर 2016 में खुद का ही रिकॉर्ड तोड़ते हुए दूसरा स्वर्ण पदक जीता। वे एकमात्र भारतीय एथलीट हैं जिन्होंने पैरालंपिक खेलों में दो स्वर्ण पदक जीते हैं।

  •  मुरलीकांत पेटकर (तैराकी)-

मुरलीकांत पेटकर पहले भारतीय पैरालंपिक स्वर्ण पदक विजेता खिलाड़ी हैं। उन्होंने 1972 के हेडेल्बेर्ग पैरालंपिक खेलों में तैराकी में 50 मीटर फ्रीस्टाइल स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीता और 37.33 सेकंड्स का विश्व रिकॉर्ड भी बनाया। पेटकर का यह रिकॉर्ड पैरालंपिक खेलों में भारत की पहली स्वर्णिम उपलब्धि थी। उन्होंने भाला, सटील भाला फेंक और स्लैलम में भी प्रतिभाग किया। और इन खेलों के अंतिम चरण तक पहुंचे। उन्हें वर्ष 2018 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया।

  •  दीपा मलिक (शॉट पुट और भाला फेंक)-

दीपा मलिक पहली भारतीय महिला एथलीट हैं जिन्होंने पैरालंपिक खेलों में पदक जीता। उन्होंने 2016 रियो पैरालंपिक में शॉट पुट में रजत पदक जीता। दीपा को उनके योगदान और उपलब्धियों के लिए अर्जुन पुरस्कार और पद्म श्री से सम्मानित किया गया। वह व्हीलचेयर पर होते हुए भी एक बेहतरीन एथलीट और मोटिवेशनल स्पीकर हैं। वे मोटर रेसलिंग और तैराकी से भी जुड़ी हुई हैं।

  •  अवनी लेखारा-

अवनी लेखारा एक पैरालंपियन राइफल शूटर हैं। उन्होंने 2020 के पैरालंपिक में 10 मीटर एयर राइफल स्टैडिंग में स्वर्ण पदक अपने नाम किया था। इसी पैरालंपिक के 50 मीटर राइफल 3 पोजीशन में कांस्य पदक जीता था। वह शूटिग में गोल्ड जीतने वाली भारतीय पैरालंपिक इतिहास की पहली खिलाड़ी हैं।

पैरालंपिक खिलाड़ियों की संघर्ष यात्रा का प्रतीकात्मक चित्र
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  • दुनिया के महान पैरालंपिक एथलीट-
  •  ट्रिस्चा ज़ोर्न (अमेरिका, तैराकी)-

ट्रिस्चा ज़ोर्न दुनिया की सबसे सफल पैरालंपिक एथलीट मानी जाती हैं। वह दृष्टिहीनता से जूझते हुए भी तैराकी में 55 पैरालंपिक पदक जीत चुकी हैं, जिसमें 41 स्वर्ण पदक शामिल हैं। ज़ोर्न ने 1980 से 2004 तक पैरालंपिक खेलों में हिस्सा लिया और विभिन्न श्रेणियों में पदक जीते। उनका करियर पैरालंपिक इतिहास का सबसे प्रभावशाली करियर माना जाता है।

  •  डैनियल डियाज़ (अर्जेंटीना, तैराकी)-

डैनियल डियाज़ अर्जेंटीना के तैराक हैं जिन्होंने पैरालंपिक खेलों में 25 पदक जीते हैं, जिनमें 14 स्वर्ण पदक शामिल हैं। डियाज़ का जन्म जन्मजात विकलांगता के साथ हुआ था, लेकिन उन्होंने तैराकी में शानदार प्रदर्शन किया और उन्हें अपने देश का सबसे सफल पैरालंपिक एथलीट होने का खिताब दिलाया।

  •  तारक्विनिया तसिएरी (इटली, एथलेटिक्स)-

तारक्विनिया तसिएरी इटली की महान पैरालंपिक एथलीट थीं, जिन्होंने 1960 के पैरालंपिक खेलों में चार स्वर्ण पदक जीते। उन्होंने व्हीलचेयर दौड़ में अपनी असाधारण क्षमता का प्रदर्शन किया और इन खेलों में इटली के लिए सबसे अधिक पदक जीतने वाली एथलीट बनीं। उनका नाम पैरालंपिक इतिहास में महान एथलीटों की सूची में हमेशा के लिए दर्ज हो गया।

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  •  सारा स्टोरी (ब्रिटेन, साइकिलिंग और तैराकी)-

सारा स्टोरी ब्रिटेन की सबसे सफल पैरालंपिक एथलीटों में से एक हैं। उन्होंने तैराकी और साइकिलिंग में कुल 28 पैरालंपिक पदक जीते हैं, जिनमें 17 स्वर्ण पदक शामिल हैं। स्टोरी ने अपनी विकलांगता के बावजूद दो अलग-अलग खेलों में उत्कृष्टता हासिल की और कई विश्व रिकॉर्ड भी बनाए।

ये एथलीट न केवल अपने देश के लिए गौरव का प्रतीक बने, बल्कि उन्होंने विश्वभर में विकलांग लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनने का भी काम किया। उनके संघर्ष, समर्पण, और साहस की कहानियाँ हमें यह सिखाती हैं कि विकलांगता किसी की क्षमता को सीमित नहीं कर सकती, और इच्छाशक्ति से हर चुनौती को पार किया जा सकता है।

पैरालंपिक खेलों की विशेषताएं-

पैरालंपिक खेलों की विशेषताएँ इसे एक अनूठा और प्रेरणादायक खेल आयोजन बनाती हैं। इन खेलों में शारीरिक और मानसिक रूप से विकलांग एथलीटों को अपनी क्षमताओं का प्रदर्शन करने का अवसर मिलता है, जो किसी भी अन्य खेल प्रतियोगिता की तरह ही चुनौतीपूर्ण और रोमांचक होता है। पैरालंपिक खेलों की कुछ प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1.  विभिन्न खेल होते हैं शामिल-

इनमें ओलपिंक खेलों की तरह विभिन्न प्रकार के खेल शामिल होते हैं।  इनमें एथलेटिक्स, तैराकी, साइकिलिंग, व्हीलचेयर बास्केटबॉल, व्हीलचेयर रग्बी, वॉलीबॉल, पावरलिफ्टिंग, शॉट पुट, जैवलिन थ्रो, तीरंदाजी, और बोक्सिया जैसे खेल शामिल हैं।

  •  वर्गीकरण की प्रक्रिया-

वर्गीकरण मुख्य रूप से निम्नलिखित चार प्रकार की विकलांगताओं के आधार पर होता है-

  • शारीरिक विकलांगता- इसमें उन एथलीटों को शामिल किया जाता है जो मांसपेशियों, हड्डियों, जोड़ों, या नसों से संबंधित विकलांगताओं के साथ हैं। उदाहरण के लिए, व्हीलचेयर उपयोगकर्ता, अंग विच्छेदन वाले, और घुटने से नीचे या ऊपर कटे हुए एथलीट।
  • दृष्टिहीनता- इसमें नेत्रहीन या दृष्टि से संबंधित समस्याओं वाले एथलीट शामिल होते हैं। इन खेलों में विजुअल गाइड का उपयोग किया जाता है।
  • बौद्धिक विकलांगता- इसमें बौद्धिक क्षमताओं में कमी के साथ एथलीट शामिल होते हैं।
  • दृष्टिहीनता और शारीरिक विकलांगता का संयोजन- इसमें वे एथलीट शामिल होते हैं जिनमें दोनों प्रकार की विकलांगता हो सकती है।
  •  इन खेलों में इस्तेमाल होने वाली विशेष तकनीकें-
  • व्हीलचेयर स्पोर्ट्स- व्हीलचेयर बास्केटबॉल, टेनिस, और रग्बी जैसे खेलों में विशेष रूप से डिजाइन की गई व्हीलचेयर का उपयोग किया जाता है, जो हल्की, तेज, और सुरक्षित होती हैं। यह एथलीटों को तेज़ी से मूव करने और बेहतर प्रदर्शन करने में मदद करती हैं।
  • प्रोस्थेटिक और ऑर्थोटिक डिवाइस- विकलांग एथलीटों के लिए विशेष रूप से डिजाइन किए गए प्रोस्थेटिक (कृत्रिम अंग) और ऑर्थोटिक डिवाइस का उपयोग किया जाता है, जो उनकी क्षमताओं को बढ़ाते हैं और उन्हें खेलों में भाग लेने में सक्षम बनाते हैं।
  • सेंसरी उपकरण- दृष्टिहीन एथलीटों के लिए सेंसरी उपकरणों का उपयोग किया जाता है, जैसे कि तैराकी में उपयोग किए जाने वाले टच पैड्स, जो उन्हें यह संकेत देते हैं कि दीवार कितनी दूर है।
  • गाइड और सहायक: कुछ खेलों में जैसे दौड़ और तैराकी में, दृष्टिहीन एथलीटों के लिए गाइड या सहायक होते हैं, जो उन्हें दिशा और गति में मदद करते हैं।

इन खेलों में चुनौतियां क्या-क्या हैं-

इन खेलों में खिलाडियों के लिए कई चुनौतियां सामने आती हैं। जो एथलीटों, आयोजकों, और समाज के लिए विचारणीय हैं। इनमें कुछ चुनौतियां जैसे- वित्तीय सहायता की कमी होना, प्रशिक्षण में सुविधाओं की कमी होना, सामाजिक पूर्वाग्रह, मीडिया में कम कवरेज होना और कई प्रकार के प्रवेश बाधाएं शामिल हैं।

निष्कर्ष-

पैरालंपिक खेल केवल एक खेल आयोजन नहीं, बल्कि साहस, दृढ़ता, और अदम्य इच्छाशक्ति का जीवंत प्रतीक हैं। ये खेल विकलांगता के बावजूद एथलीटों की उत्कृष्टता को उजागर करते हैं और समाज में समानता, समावेश, और सम्मान के मूल्य स्थापित करते हैं। पैरालंपिक खेलों की यात्रा संघर्षों और चुनौतियों से भरी हुई है।लेकिन इन एथलीटों ने अपनी मेहनत और संकल्प से हर बाधा को पार करते हुए अपने लक्ष्य को हासिल किया हैं।

यह आयोजन हमें यह सिखाता है कि विकलांगता कोई कमजोरी नहीं है, बल्कि एक ऐसी ताकत है जो हमें और भी अधिक संकल्पित और सशक्त बनाती है। पैरालंपिक खेलों के एथलीट न केवल खेल जगत में बल्कि समाज में भी परिवर्तन के वाहक हैं, जो अपने साहस और संघर्ष की कहानियों से हम सभी को प्रेरित करते हैं।

हमें इन खेलों और इनके एथलीटों का समर्थन करना चाहिए ताकि समाज में विकलांगता के प्रति दृष्टिकोण में सकारात्मक बदलाव आ सके और हर व्यक्ति को अपनी क्षमताओं का प्रदर्शन करने का समान अवसर मिले।

इन खेलों के माध्यम से हम भारत को खेलों के स्तर पर तो सशक्त बना ही सकते हैं, साथ ही साथ हम अपने विकलांग खिलाडियों को भी आगे बढ़ा सकते हैं। जो उन्हें जीवन की एक नई राह दिखाने का काम करता हैं। इन खेलों में भारत का लगातार अच्छा प्रदर्शन खिलाडियों को और अच्छा करने के लिए प्रेरित करता रहेगा।

पैरालंपिक खेलों पर लिखा गया हमारा यह लेख आपको कैसा लगा। हमें कमेंट के माध्यम से जरुर बतायें। धन्यवाद…

पैरालंपिक खेल क्या हैं?

पैरालंपिक खेल शारीरिक रूप से विकलांग एथलीटों के लिए आयोजित अंतरराष्ट्रीय खेल आयोजन हैं, जो उनकी क्षमताओं, प्रतिभा, और समर्पण को प्रदर्शित करने का मंच प्रदान करते हैं।

पैरालंपिक खेलों की शुरुआत कब हुई थी?

पैरालंपिक खेलों की शुरुआत 1960 में रोम में हुई थी, जिसमें 23 देशों के लगभग 400 एथलीटों ने भाग लिया।

पैरालंपिक और ओलंपिक खेलों में क्या अंतर है?

पैरालंपिक खेलों में केवल विकलांग एथलीट भाग लेते हैं, जबकि ओलंपिक खेलों में सभी प्रकार के एथलीट हिस्सा लेते हैं। दोनों खेलों के नियम और संरचनाओं में भी कुछ अंतर होता है।

भारत ने पैरालंपिक खेलों में पहली बार कब भाग लिया?

भारत ने पहली बार 1968 में पैरालंपिक खेलों में भाग लिया था, लेकिन उस समय भारत कोई पदक नहीं जीत सका था।

पैरालंपिक खेलों में भारत के सबसे सफल एथलीट कौन हैं?

देवेंद्र झाझरिया और मुरलीकांत पेटकर भारत के सबसे सफल पैरालंपिक एथलीट हैं, जिनमें देवेंद्र ने दो स्वर्ण पदक जीते हैं और मुरलीकांत ने भारत का पहला पैरालंपिक स्वर्ण पदक जीता।

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