“अवैध शरणार्थियों (illegal refugees) की समस्या भारत व विश्व दोनों की लिए एक मुख्य समस्या बनकर उभरी हैं। दुनिया में किसी ना किसी रुप में अवैध शरणार्थियों (illegal refugees)की सख्या बढ़ती जा रहीं हैं। यहीं हाल भारत का भी हैं। भारत में बांग्लादेशी व रोहिंग्या शरणार्थियों की बड़ी समस्या हैं। वहीं दुनिया में अरब व अफ्रीकी देशों से आये लोगों की एक बड़ी समस्या हैं। यह समस्या ज्यादातर उन क्षेत्रों में होती है जहां या तो युद्ध या गृह युद्ध जैसी समस्या होती हैं। या वो देश पूरी तरह से डिफॉल्ट कर गया होता हैं। तब इन देशों के नागरिक एक अच्छे जीवन की तलाश पर दूसरे देशों का रुख करते हैं।
लेकिन यह शरणार्थी तब उन देशों के लिए खतरा बन जाते हैं। जब यह वहीं पर आतंकी या अन्य दहशतगर्दीं मे लिप्त पाये जाते हैं। भारत में यहीं बांग्लादेशी और रोहिंग्या कई अवैध वारदातों में लिप्त पाये गये हैं। अब यह सवाल उठने लगा है कि क्या हमें इन्हे शरण देनी चाहिए या इन्हें वापस इनके देश भेज देना चाहिए।”
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अपने इस लेख में हम अवैध शरणार्थियों (illegal refugees) की वजह से दूसरे देशों को होनी वाली दिक्कतों के बारे में जानेंगे। हम यह भी बताने का प्रयास करेंगें कि क्यो यह नागरिक अपने देशों को छोड़कर दूसरे देशों की ओर भागते हैं। तो बने रहे हमारे लेख के साथ।
कौन होते हैं अवैध शरणार्थी –
अवैध शरणार्थी(illegal refugees)-
ये वो लोग होते हैं जो बिना किसी अनुमति के दूसरे देश में प्रवेश करते हैं। और वहां रहना चाहते हैं। जिनके पास उस देश की कानूनी वैधता नहीं होती हैं।
शरणार्थी और अवैध शरणार्थी में अन्तर-
शरणार्थी वे होते हैं जिन्हें अपने देश में उत्पीड़न, युद्ध या हिंसा के कारण भागने पर मजबूर होना पड़ता है और उन्हें अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा की आवश्यकता होती है। अवैध शरणार्थी वे होते हैं जो बिना कानूनी अनुमति दूसरे देश में प्रवेश करते हैं।
दुनिया और भारत के सदर्भ में-
अवैध शरणार्थी समस्या केवल भारत की ही नहीं, बल्कि यह एक वैश्विक मुद्दा है, जिसमें कई देश शामिल हैं। जो इससे जूझ रहे हैं। यूरोप तो इस समस्या का सबसे बड़ा भुक्तभोगी हैं। और भारत भीं।
अवैध शरणार्थियों के कारण-
राजनीतिक अस्थिरता और युद्ध-
राजनीतिक अस्थिरता-
जब किसी देश की सरकार में लगातार बदलाव, अनिश्चतता और स्थिरता की कमी हो तो उस देश के नागरिकों का भी भविष्य अधकारमय और अनिश्चत हो जाता हैं। इसके कुछ मुख्य कारण निम्न हैं-
- सरकार में बार-बार परिवर्तन: चुनावों में अनिश्चितता, तख्तापलट, या अस्थिर गठबंधन सरकारें।
- भ्रष्टाचार: सरकारी अधिकारियों और नेताओं द्वारा भ्रष्टाचार, जिससे जनसंख्या का सरकार पर विश्वासकम होने लगता हैं।
- सत्तावादी शासन: तानाशाही, जहां लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन होता है और सरकार अपने ही नागरिकों के खिलाफ सख्त कदम उठाती है।
- आंतरिक विद्रोह: जातीय, धार्मिक, या क्षेत्रीय समूहों के बीच संघर्ष, जिससे देश में विद्रोह और हिंसा होती है।
युद्ध-
जब दो देशों की सेनाओं के मध्य सशस्त्र सघर्ष होता हैं। वो उन देशों के विनाश का कारण बनता हैं। इसकी चपेट में ज्यादातर वो देश आते हैं। जो या तो बहुत छोटे हैं, या जहां पे सेना का शासन बहुत वर्षों तक हैं। और उस देश की राजनीति दूसरे देशों से प्रभावित हैं। इसके कुछ कारण निम्न है-
- राजनीतिक और क्षेत्रीय विवाद: सीमाओं या संसाधनों पर विवाद।
- आर्थिक कारण: संसाधनों, व्यापारिक मार्गों, या बाजारों पर नियंत्रण।
- धार्मिक और सांस्कृतिक मतभेद: धार्मिक या सांस्कृतिक असहमति, जैसे इस्राइल-फिलिस्तीन संघर्ष।
- विद्रोह: सरकार के खिलाफ आंतरिक विद्रोह या तख्तापलट, जैसे सीरिया में गृहयुद्ध।
आर्थिक कारण-
कुछ लोग ऐसे भी होते है जो आर्थिक कारणों से भी अपने देश को छोड़कर अन्य विकसित देशों का रुख करते हैं। वे लोग अच्छी नौकरी और शिक्षा की तलाश में अपना देश छोड़ते हैं। कुछ तो इसमें वैध तरीके से उस देश में प्रवेश करते हैं। लेकिन कुछ अवैध तरीके से बेहतर जीवन की तलाश में उन देशों में जाते हैं।
सामाजिक और धार्मिक उत्पीड़न-
कई देशों में लोगों का धर्म और जाति के नाम पर उत्पीड़न किया जाता हैं। इसको लेकर भी लोग अपना देश छोड़ने पर मजबूर हो जाते हैं। इसका सबसे अच्छा उदाहरण हमें पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में देखने को मिलता हैं। ये तीनों देश इस्लामिक है यहां बड़े पैमानें पर अल्पसंख्यक हिंदूओं, सिखों और ईसाईयों का धार्मिक उत्पीड़न किया गया। जिसके कारण ये भारत में शरण लेने को मजबूर हुए।
अवैध शरणार्थियों (illegal refugees) के होने वाले प्रभाव-
जिस देश में यह शरणार्थी जाते हैं उन देशों पर इसका सामाजिक, आर्थिक व सुरक्षा की दृष्टि से व्यापक प्रभाव पड़ता हैं। इसके कुछ कारण निम्न प्रकार हैं-
सामाजिक प्रभाव-
- सांस्कृतिक तनाव: अवैध शरणार्थियों(illegal refugees) के आगमन से स्थानीय समुदायों में सांस्कृतिक तनाव उत्पन्न हो जाता है। विभिन्न सांस्कृतिक पृष्ठभूमियों के लोग एक साथ रहने से आपसी समझ और समन्वय नहीं बना पाते हैं। कभी-कभी ये शरणार्थी उन देशों की संस्कृति मे मिलने की बजाय अपनी संस्कृति थोपने का प्रयास करते हैं। जैसा कि हाल के वर्षों में यूरोप के कुछ देशों में देखा गया खासकर फ्रांस में जहां शरणार्थियों की वजह से हाल के वर्षों में दंगों और आंतकी घटनाओं में वृद्धि हुई हैं।
- जनसांख्यिकी पर प्रभाव: अवैध शरणार्थियों (illegal refugees) की बड़ी सख्यासे स्थानीय जनसंख्यासंरचना में बदलाव आ सकता है, जिससे जनसांख्यिकी असंतुलन पैदा होता है। ये बदलाव इतना हो जाता हैं कि उन देशों की जनसंख्यासे ज्यादा शरणार्थियों की सख्या हो जाती हैं।
- सामाजिक सेवाओं पर दबाव: स्वास्थ्य, शिक्षा और अन्य सार्वजनिक सेवाओं पर अवैध शरणार्थियों(illegal refugees) की उपस्थिति से अतिरिक्त दबाव पड़ता है, जिससे स्थानीय नागरिकों को समस्याओं का सामना करना पड़ता है। जो संसाधन वहां के नागरिकों के लिए बनाएं गये थें। उन्हीं संसाधनों पर अवैध शरणार्थियों (illegal refugees) का कब्जा हो जाता हैं।
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आर्थिक प्रभाव-
- रोजगार के अवसर: अवैध शरणार्थियों(illegal refugees) के कारण स्थानीय लोगों के रोजगार के अवसरों में कमी हो जाती है। वे अक्सर कम वेतन पर काम करने के लिए तैयार होते हैं, जिससे स्थानीय श्रमिकों के लिए प्रतिस्पर्धा बढ़ जाती है। जिससे उस देश में बेरोजगारी की समस्या उत्पन्न होने लगती हैं। जो नौकरी और पैसा वहां के नागरिकों के लिए था उस पर ये शरणार्थी कब्जा करने लगते हैं।
- आर्थिक संसाधनों पर दबाव: सरकार को अवैध शरणार्थियों (illegal refugees) की देखभाल और पुनर्वास के लिए अतिरिक्त संसाधनों की आवश्यकता करनी पड़ती है, जिससे देश की आर्थिक स्थिति पर दबाव आता हैं। जो कि अर्थव्यवस्था पर गलत असर डालता हैं। इससे देश में महगाई की समस्य़ा भी बढ़ती हैं।
- काली अर्थव्यवस्था: अवैध शरणार्थी अक्सर अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में काम करते हैं, ये ऐसे क्षेत्रों में काम करते हैं जहां टैक्स की हेरा-फेरी की जाती हैं। इसे काली अर्थव्यवस्था कहा जा सकता हैं।
सुरक्षा पर प्रभाव-
- आतंकवाद और अपराध: कुछ मामलों में, अवैध शरणार्थियों(illegal refugees) के माध्यम से आतंकवादी और आपराधिक तत्व देश में प्रवेश कर जाते हैं, जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा के लिए खतरा पैदा हो जाता हैं। जैसा कि भारत में रोहिंग्या और बांग्लादेशी शरणार्थियों के साथ देखा गया। जो हाल कि घटनाओं में लिप्त पाये गयें। ऐसा ही कुछ फ्रांस मे भी देखा गया जहां पिछले वर्ष हुए दंगों में अवैध शरणार्थियों (illegal refugees) का ही हाथ था।
- सीमा सुरक्षा: अवैध शरणार्थियों (illegal refugees) के आगमन से सीमा सुरक्षा की चुनौतियाँ बढ़ जाती हैं, जिससे सरकार को अतिरिक्त संसाधनों को लगाने की आवश्यकता बढ़ जाती हैं।
- आंतरिक सुरक्षा: अवैध शरणार्थियों (illegal refugees) के कारण आंतरिक सुरक्षा और कानून व्यवस्था की समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं, जैसे हिंसा और सामुदायिक तनाव फैंलाने का काम करते हैं। जैसा कि भारत में पश्चिम बंगाल मे देखा गया। जहां वोट बैक की राजनीति के कारण वहां कि एक राजनीतिक पार्टी ने बांग्लादेशी मुसलमानों का हिंसा के लिए इस्तेमाल किया।
राजनीतिक अस्थिरता और युद्ध के कुछ उदाहरण-
सीरिया का गृहयुद्ध-
सीरियाई गृहयुद्ध 2011 में शुरु हुआ। यह राष्ट्रपति बशर अल असद के खिलाफ उनके वंशवादी शासन के विरुद्ध एक शांतिपूर्ण आंदोलन था जिसे सेना द्वारा कुचलने की कोशिश की गई। जिसके कारण इसने हिंसक रुप ले लिया। इस युद्ध का एक कारण शिया व सुन्नी का विवाद भी था। सीरिया में जहां सुन्नी आबादी बहुमत में हैं, वही राष्ट्रपति असद एक शिया शासक हैं। इस युद्ध में लाखों लोगों की मृत्यु हो गयीं और लाखों की सख्यामें लोग विस्थापित हो गये। इसने पूरे मध्य-पूर्व में अस्थिरता पैदा कर दी और कभी न खत्म होने वाले सिविल वॉर को जन्म दे दिया।
अफगानिस्तान-
अफगानिस्तान ये वो देश है जहां दशकों से अस्थिरता रही हैं। पहले इस देश को 80 के दशक में यूएसएसआर ने तबाह कर दिया। जिसके विरुद्ध अमेरिका ने पाकिस्तान के साथ मिलकर उसके खिलाफ अफगनिस्तान में जेहाद छिड़ावा दिया। इस देश की सबसे ज्यादा बर्बादी 2001 में अमेरिका के अफगानिस्तान पर हमले के बाद शुरु हुई। इस युद्ध में लाखो लोगों की जान ली। और लाखों अफगानीं शरणार्थी बन गयें।
यमन का गृहयुद्ध-
यमन का गृहयुद्ध 2014 में हूती विद्रोहियों द्वारा सरकार के खिलाफ विद्रोह से शुरू हुआ। शिया हूती विद्रोही और सुन्नी सरकार समर्थक बलों के बीच संघर्ष यहां भी था। हजारों लोग मारे गए और घायल हुए। लाखों लोग अपना घर छोड़ने पर मजबूर हुए।
म्यामार का रोहिंग्या संकट-
म्यांमार के राखाइन राज्य में रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ हिंसा और उत्पीड़न के कारण 2017 में बड़ी सख्यामें रोहिंग्या बांग्लादेश और अन्य देशों में शरण लेने पर मजबूर हुए। ये बोद्धो और रोहिंग्या मुसलमानों के बीच चला सत्ता सघर्ष था।
दक्षिणी सूड़ान का गृहयुद्ध-
दक्षिण सूडान का गृहयुद्ध 2013 में शुरू हुआ जब राष्ट्रपति सलवा कीर और उनके पूर्व उपराष्ट्रपति रीक मचर के बीच सत्ता संघर्ष हुआ। हजारो लोग की जान चली गयीं, कई लोगों को विस्थापन का दंश झेलना पड़ा।
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भारत में प्रमुख शरणार्थीं समूह और उनके प्रभाव-
भारत में समय-समय पर भारत के पड़ोसी देशों से उनके नागरिकों का विस्थापन होता रहा हैं। इनमें बांग्लादेश, तिब्बत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, म्यामार प्रमुख हैं। जहां कुछ देशों में इसके धार्मिक कारण हैं। तो कुछ में राजनीतिक और सामाजिक या आर्थिक।
भारत में प्रमुख शरणार्थीं समूह और उनकी संख्या-
तिब्बती शरणार्थी:
- संख्या: लगभग 1,20,000
- देश: तिब्बत
- भारत में कब से: 1959 से
- प्रभाव-
- सांस्कृतिक प्रभाव: तिब्बती शरणार्थियों ने भारत में बौद्ध धर्म और संस्कृति को बढ़ावा दिया है।
- आर्थिक प्रभाव: वे हस्तशिल्प और पर्यटन में योगदान करते हैं।
- शैक्षिक प्रभाव: तिब्बती शरणार्थियों ने धर्मशाला और अन्य स्थानों में शिक्षा संस्थानों की स्थापना की है।
बांग्लादेशी आबादी-
- संख्या: सटीक आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन लाखों में हैं
- देश: बांग्लादेश
- भारत में कब से: 1971 से, बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान और बाद में
- प्रभाव:
- सामाजिक प्रभाव: पश्चिम बंगाल और असम में सांस्कृतिक और सामाजिक तनाव वैमन्स्य फैला। बड़ा जनसख्यिकीं बदलाव आया।
- आर्थिक प्रभाव: स्थानीय स्तर पर रोजगार में प्रतिस्पर्धा बढ़ी।
- सुरक्षा प्रभाव: सीमा सुरक्षा और अवैध आव्रजन के मुद्दे।
- राजनीतिक प्रभाव- इनकी ज्यादा सख्याहोने से वोट बैक की राजनीति शुरु हुई। खासकर बंगाल व असम में बांग्लादेशी मुसलमानों की बड़ी जनसंख्या की वजह से कई राजनीतिक पार्टियों ने इन्हें वोट बैक के रुप में इस्तेमाल करना शुरु कर दिया।
3. रोहिंग्या शरणार्थी-
- संख्या: लगभग 40,000
- देश: म्यांमार
- भारत में कब से: 2012 से
- प्रभाव:
- सुरक्षा प्रभाव: आतंकवादी गतिविधियों में संलिप्तता के आरोप।
- सामाजिक प्रभाव: सांस्कृतिक और धार्मिक तनाव।
- आर्थिक प्रभाव: सीमित संसाधनों पर दबाव।
4. श्रीलंकाई तमिल शरणार्थी-
- संख्या: लगभग 1,00,000
- देश: श्रीलंका
- भारत में कब से: 1980 के दशक से
- प्रभाव:
- सांस्कृतिक प्रभाव: तमिलनाडु में तमिल संस्कृति को बढ़ावा।
- आर्थिक प्रभाव: कुछ क्षेत्रों में आर्थिक गतिविधियों में योगदान।
- सुरक्षा प्रभाव: श्रीलंका में शांति प्रक्रिया के दौरान सुरक्षा मुद्दे।
5. अफगान शरणार्थी-
- संख्या: लगभग 15,000
- देश: अफगानिस्तान
- भारत में कब से: 1980 के दशक से, सोवियत-अफगान युद्ध के दौरान और बाद में तालिबान शासन के दौरान।
- प्रभाव:
- सांस्कृतिक प्रभाव: अफगान रेस्टोरेंट्स और व्यापार में योगदान।
- आर्थिक प्रभाव: सीमित आर्थिक योगदान।
- सुरक्षा प्रभाव: कुछ मामलों में सुरक्षा चिंताएँ।
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शरणार्थियों पर क्या कहते हैं यूनाइटेड़ नेशंस के नियम-
संयुक्त राष्ट्र (यूएन) के शरणार्थियों पर कई नियम और नीतियाँ हैं जो मुख्य रूप से 1951 के शरणार्थी संधि और 1967 के प्रोटोकॉल पर आधारित हैं। ये नियम शरणार्थियों के अधिकारों की रक्षा करने और उन्हें आवश्यक सहायता प्रदान करने के लिए बनाए गए हैं। यहाँ कुछ मुख्य बिन्दुओं पर प्रकाश डाला गया हैं-
- कौन शरणार्थी है-
ऐसा व्यक्ति जो अपने देश से उत्पीड़न, हिंसा और युद्ध के कारण भागकर दूसरे देश में शरण लेता हैं। यहां उत्पीड़न में जाति, धर्म या किसी विशेष समुदाय की सदस्यता या राजनीतिक विचार शामिल किये गए हैं।
- गैर-प्रत्यावर्तन-
यह सिद्धांत कहता है कि किसी शरणार्थी को वापस ऐसे देश में नहीं भेजा जा सकता जहाँ उनकी जान को खतरा हो, या जहाँ उन्हें उत्पीड़न का सामना करना पड़े।
- उन्हे अधिकार व सुरक्षा देना-
- शरणार्थियों को सुरक्षित स्थान प्रदान करना।
- रोजगार का अधिकार और आय सृजन के अवसर।
- शरणार्थी बच्चों के लिए शिक्षा का अधिकार।
- शरणार्थियों को स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच देना।
- पहचान पत्र व यात्रा-
शरणार्थियों को पहचान पत्र और यात्रा दस्तावेज प्रदान किए जाते हैं, ताकि वे यात्रा कर सकें और कानूनी पहचान प्राप्त कर सकें।
शरणार्थियों से सम्बधिंत भारत में कानून-
इससे सम्बधिंत भारत में कोई कानून लागू नहीं हैं। इसकी विपरीत भारत में अनुच्छेद 21 में यह दिया गया हैं कि अगर कोई शरणार्थी भारत आता हैं तो उसे वापस उसके मूल देश नहीं भेजा जाएगा। सयुक्त राष्ट्र के तहत भी यह एक नियम है। इसे ‘नॉन-रिफाउलमेंट’ का अधिकार कहते हैं।
निष्कर्ष –
भारत में शरणार्थी समस्या एक जटिल और बहुआयामी चुनौती है, जिसका प्रभाव देश के सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और सुरक्षा क्षेत्रों पर व्यापक रूप से देखा जा सकता है। हम यह कह सकते हैं कि तिब्बती, श्रीलंकाई तमिल और अफगान शरणार्थियों की उपस्थिति ने भारत की सांस्कृतिक विविधता को बढ़ाने का काम किया है, लेकिन वहीं बांग्लादेशी व रोहिंग्या की बढ़ती जनसंख्या ने भारत में सिर्फ खतरा पैदा किया हैं। लेकिन साथ ही सामाजिक तनाव, आर्थिक दबाव और सुरक्षा चुनौतियाँ भी उत्पन्न हुई हैं।
शरणार्थियों के प्रबंधन और पुनर्वास के लिए संतुलित और मानवाधिकारों का सम्मान करने वाली नीतियों की आवश्यकता जरुर है। इसके लिए राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सहयोग और समन्वय आवश्यक है। ताकि शरणार्थियों को सम्मानजनक और सुरक्षित जीवन मिल सके। लेकिन इसके लिए किसी दूसरे देश में बोझ डालना यह कतई सहीं नजर नहीं आता। और भारत जैसें ज्यादा आबादी वाले देश के लिए तो यह बिल्कुल भी सहीं नहीं हैं। यह उसकी स्थिरता और विकास में एक रुकावट हैं।
सयुक्त राष्ट्र को चाहिए कि वह उन देशों में स्थिरता की सोचे जहां से ये शरणार्थी बड़ी सख्यामें दूसरे देशों में शरण लेने के लिए जाते हैं। शरणार्थियों की बढ़ती सख्या बताती है कि सयुक्त राष्ट्र अपना काम सहीं से नहीं कर पा रहा। और इसको इसमें बदलाव लाने की जरुरत हैं।
अतः, शरणार्थी समस्या का समाधान निकालने के लिए समग्र दृष्टिकोण अपनाना महत्वपूर्ण है, जो मानवीयता, सुरक्षा और विकास के बीच संतुलन बनाए रखे।
शरणार्थी समस्या एक बड़ी समस्या हैं, इस पर गहन विचार की और अध्ययन की आवश्यकता हैं। अपने दूसरे अंक में हम इस पर ओर अधिक स्पष्टता के साथ अपने विचार रखेगें। अपने इस लेख पर हमें अपना सुझाव अवश्य दे। धन्यवाद…
1. अवैध शरणार्थी कौन होते हैं?
अवैध शरणार्थी वे लोग होते हैं जो बिना किसी कानूनी अनुमति के दूसरे देश में प्रवेश करते हैं और वहां रहने की कोशिश करते हैं।
2. अवैध शरणार्थियों की समस्या क्यों बढ़ रही है?
अवैध शरणार्थियों की समस्या बढ़ रही है क्योंकि राजनीतिक अस्थिरता, युद्ध, आर्थिक कठिनाइयों, और सामाजिक या धार्मिक उत्पीड़न के कारण लोग अपने देश छोड़कर अन्य देशों का रुख करते हैं।
3. भारत में अवैध शरणार्थियों का कौन सा मुख्य समूह है?
भारत में बांग्लादेशी और रोहिंग्या शरणार्थियों की बड़ी समस्या है, जो अवैध गतिविधियों में लिप्त पाए जाते हैं।
4. अवैध शरणार्थियों का स्थानीय समुदाय पर क्या प्रभाव पड़ता है?
अवैध शरणार्थियों का स्थानीय समुदाय पर सांस्कृतिक तनाव, जनसांख्यिकी असंतुलन, और सामाजिक सेवाओं पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है।
5. अवैध शरणार्थियों का आर्थिक प्रभाव क्या होता है?
अवैध शरणार्थियों के कारण रोजगार के अवसरों में कमी, आर्थिक संसाधनों पर दबाव, और काली अर्थव्यवस्था के मुद्दे उत्पन्न होते हैं।