“उत्तराखंड (Uttarakhand) की राजनीति में इस समय जो मुद्दा तेजी से आग की तरह गरमाया हुआ है वह यूसीसी है। देवभूमि के मुख्यमंत्री पुष्कर सिह धामी की सरकार राज्य में जल्द से जल्द ये कानून लाने वाली है। उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता विशेषज्ञ समिति ने ड्राफ्ट तैयार कर लिया है। इस ड्राफ्ट में पुत्री को सपत्ति में बराबर का अधिकार देने, बहुविवाह पर रोक लगाने तथा तलाक को विधि सम्मत बनाने आदि की व्यवस्था की जा सकती है।
इसके लिए कुछ दो लाख 31 हजार लिखित सुझाव मिले और 20 हजार लोगों से बातचीत की गई है। यूसीसी को लेकर समाज मे दो मत है। एक वर्ग हो जो चाहता है एक देश मे दो कानून नहीं होने चाहिए. वही दूसरे वर्ग को लग रहा है कि इससे उसकी संस्कृति पर चोट किया जा रहा है।”
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उत्तराखंड राज्य- (Uttarakhand State) –
उत्तराखंड उत्तर भारत मे स्थित एक हिंदु देवस्थलीय राज्य है। जिसका निर्माण 9 नवम्बर 2000 को उत्तर प्रेदश से पहाड़ी क्षेत्रों को अलग कर के एक नये राज्य को रुप में की गई। जो भारतीय गणराज्य के 27 राज्य को रुप मे स्थापित हुआ। सन् 2000 से 2006 तक यह उत्तरांचल के नाम से जाना जाता था, जनवरी 2007 मे इसका नाम बदलकर उत्तराखंड कर दिया गया। राज्य की भौगालिक सीमाएँ उत्तर मे तिब्बत और पूर्व मे नेपाल से लगती है।
पश्चिम मे हिमाचल प्रदेश और दक्षिण मे उत्तर प्रदेश से यह सीमा साझा करता है। राज्य में हिंन्दू धर्म से जुड़े कई तीर्थ स्थल है इसलिए इसे देवभूमि भी कहा जाता है। हिन्दू धर्म की पवित्र नदियों गंगा और युमना का उद्गम भी यही से होता है। तथा इनके तट़ों पर वैदिक संस्कृति के कई महत्वपूर्ण तीर्थस्थान है।
देहरादून इसकी राजधानी होने के साथ राज्य का सबसे बड़ा शहर भी है। गैरसैण को भविष्य की राजधानी के रुप मे प्रस्तावित किया गया है। राज्य का उच्च न्यायलय नैनीताल मे है।
उत्तराखंड अपनी खूबसूरती के लिए दुनिया भर मे जाना जाता है। यह अपने पर्यटन के लिए भी मशहूर है। उत्तराखंड मे गढ़वाल और कुमाऊँ मण्डल में विभक्त है। इसके 7 जिले गढ़वाल और 6 जिले कुमाऊँ मण्डल मे आते है। देवभूमि का अधिकांश भाग वृहद्तर हिमालय का भाग है। जो विशाल हिमालय चोटियों और हिमनदियों से ढ़का हुआ है जबकि तलहटी सघन वनों से।
जनसँख्या (Population) –
उत्तराखण्ड जब से अस्तित्व में आया है तब से अब तक कई बदलाव आये है इसमे सबसे बड़ा बदलाव जनंसख्या मे आया बदलाव है। राज्य के गठन के समय जहाँ हिन्दुओं की आबादी 96 फीसदी था वही मुसलमानों के ये प्रतिशत मात्र 1 से 2 फीसदी के बीच। पर आज जिस तरह से जनसख्या का ग्राफ वहाँ बिगड़ रहा है वह सही नही है, यहाँ तक वहाँ के हिन्दू तीर्थ नगरी मे भी आबादी का ग्राफ लगातार बिंगड़ रहा है।
आज उत्तराखंड मे दूसरे राज्यो से सटें जिलों से बाहरी लोगों का आना जारी है। राज्य के कई जिलों जैसे- हरिदार, देहरादून, नैनीताल, ऊधमसिह नगर, हदानी मे आबादी का ग्राफ तेजी से चेंज हुआ है। बाहर से भी कई शरणार्थी आकर बस गये है। इसमे कई राजनीतिक पर्टियो को भी हाथ है जिन्होने अपने वोटबैक के चक्कर में देवभूमि को गर्त मे धकेलने का काम किया है।
उत्तराखंड राज्य की कुल जनसख्या का लगभग 70 फीसदी ग्रामीण है, व 30 फीसदी लोग शहरों में वास करते है। मैदानी क्षेत्रों के जिले पर्वतीय जिलों की अपेक्षा अधिक जनसख्या घनत्व वाले है। उत्तराखंड के मूल निवासियों को कुमाऊँनी और गढ़वाली कहा जाता है। जो प्रदेश के दो मण्डलों कुमाऊँ और गढ़वाल मे रहते है। एक अन्य श्रेणी है गुज्जर , जो दक्षिण-पश्चिमी तराई क्षेत्र में रहते है। 2011 की जनगणना यह बताती है जहाँ हिन्दुओँ की आबादी जहाँ 2001 से 2011 के बीच 2 फीसदी तक घटी वही मुसलमानो की आबादी 2 फीसदी तक बढ़ी। इस प्रकार के ओर भी कई डेंमोग्राफिक चेंजस हुये है।
राज्य और उसकी राजनीति (The state and its politics)-
राज्य की स्थापना से अब तक यहाँ ग्यारह मुख्यमंत्री रह चुके है। वर्तमान मुख्यमंत्री पुष्कर सिह धामी है। नित्यानन्द स्वामी पहले मुख्यमंत्री थे। राज्य की राजनीति मे दो राष्ट्रीय पार्टी काग्रेस व भाजपा का वर्चस्व रहा है।
समान नागरिक संहिता-
परिचयः समान नागरिक संहिता पूरे देश के लिए एक समान कानून के साथ ही सभी धार्मिक समुदायों के लिये विवाह, तलाक, विरासत, गोद लेने आदि कानूनों में भी एकरुपता प्रदान करने का प्रावधान करती है।
संविधान के 5वें भाग राज्य के नीति निर्देशक तत्वों के अनुच्छेद 44 में यह लिखा गया है कि राज्य का यह दायित्व है कि भारत के सम्पूर्ण क्षेत्र में नागरिकों के लिये एक समान नागरिक कानून सुनिश्चित किया जाए।
अनुच्छेद 44, संविधान में वर्णित राज्य के नीति निदेशक तत्वों में एक है।
अनुच्छेद 37 में परिभाषित है कि राज्य के नीति निदेशक तत्व संबधी प्रावधानों को किसी भी न्यायलय द्वारा प्रवर्तित नहीं किया जा सकता है लेकिन इसमें निहित सिद्धांत शासन व्यवस्था में मौलिक प्रकृति के होंगे।
भारत में यूसीसी की स्थिति-
सिविल मामलों में भारत में अधिकांश जगह एक समान नागरिक संहिता का पालन किया जाता है। इसके कुछ प्रकार है।
- भारतीय अनुबंध अधिनियम-1972,
- नागरिक प्रक्रिया संहिता
- माल बिक्री अधिनियम,
- संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम-1882
- भागीदारी अधिनियम-1932
- साक्ष्य अधिनियम-1872
कुछ मामलों में इन सिविल कानूनों में भी भिन्नता है क्योकि राज्यों द्वारा इनमें कई बार संशोधन किये गए है। गोवा ऐसा प्रथम भारतीय राज्य था जिसने अपने यहां सबसे पहले यूसीसी को लागू किया था।
इसकी उत्पत्ति कैसे हुई-
यूसीसी की उत्पत्ति ब्रिटिश शासन के दौरान वर्ष 1835 में प्रस्तुत की गई एक रिपोर्ट में निहित है।
इस रिपोर्ट में अपराधों, सबूतों और अनुबंधों से संबधित भारतीय कानून के संहिताकरण में एकरुपता की आवश्यकता पर ज़ोर दिया गया है, विशेष रुप से यह अनुशंसा की गई है कि हिंदुओं और मुसलमानों के जो पर्सनल कानून है इसको इस संहिताकरण से दूर रखा जाए।
व्यक्तिगत मुद्दों से निपटने वाले कानून में वृद्धि हुई। इसने सरकार को वर्ष 1941 में हिंदू कानून को संहिताबद्ध करने के लिए बी.एन.राव समिति बनाने के लिए मजबूर किया।
बी.एन.राव. समिति की अनुशंसाओं के आधार पर हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (1956) को हिंदुओं, बौद्धों, जैनों और सिखों के बीच निर्वसीयत या अनिच्छा से उत्तराधिकार से संबधित कानून में सशोधन और संहिताबद्ध करने के लिये अपनाया गया था।
हालाँकि मुस्लिम, ईसाई और पारसियों के लिये अलग-अलग व्यक्तिगत कानून थे।
यूसीसी (UCC) पर उत्तराखण्ड़-
आज देश मे यूसीसी कानून की बहुत चर्चा है। इसी कड़ी मे केन्द्र सरकार मानसून सत्र मे संसद मे यूसीसी कानून ला सकती है। इससे पहले केन्द्र ये कानून लाये उत्तराखंड सरकार ने यूसीसी की तरफ एक कदम बढ़ा दिया है। राज्य में समान नागरिक संहिता को लागू करने के लिए बनाई गई समिति ने काम पूरा कर लिया है।
सुप्रीम कोर्ट की पूर्व न्यायाधीश और मसौदा तैयार करने वाली एक्सपर्ट कमेटी की प्रमुख जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई ने कहा कि कमेटी ने लैंगिक समानता के साथ ही भेदभाव को खत्म कर सभी वर्गो को समान स्तर पर लाने का प्रयास किया गया है। यूसीसी के मसौदे मे एलजीबीटीक्यू+ समुदाय के अधिकारों पर भी विचार किया गया है। पर इन्हे सिफारिश का हिस्सा नहीं बनाया गया है।
पैनल ने शादी की एक समान उम्र, लिव-इन रिलेशनशिप और ऐसे रिश्तों से पैदा होने वाले बच्चों, विवाह के पजींकरण, सेक्स के लिए सहमति की उम्र, कम उम्र में बच्चे के जन्म जैसे मुद्दों को ध्यान मे रखा गया है। महिलाओं के लिए शादी की उम्र बढ़ाने पर भी विचार किया गया है।
उन्होने बताया कि कमेटी ने उत्तराखंड के विभिन्न हिस्सों में प्रचलित विभिन्न पारंपरिक प्रथाओं को समझने की कोशिश की है। कमेटी का ध्यान लैगिग समानता सुनिशिचत करना है। कमेटी ने भेदभाव खत्म करने और सभी को एक समान स्तर पर लाने का प्रयास किया है।
इस समिति का गठन पिछले साल मई मे सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति रंजना देसाई की अध्यक्षता मे की गई थी। इस संबध में एक अधिसूचना 27 मई 2022 को जारी की गई थी। समिति ने 30 जून 2023 को रिपोर्ट सरकार को सौप दी है। अब उत्तराखंड सरकार जल्द ही देवभूमि को यूसीसी की सौगात दे देगी।
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सर्वोच्च न्यायालय का यूसीसी पर रुख-
एकरुपता लाने के लिये न्यायालयों ने अक्सर अपने निर्णय में कहा है कि सरकार को यूसीसी की ओर बढ़ना चाहिये। इस मामले में 1985 का शाह बानो केस का निर्णय सर्वविदित है।
एक अन्य मामलें में 1995 का सरला मुद्गल केस था, जो विवाह के मामलों पर मौजूद व्यक्तिगत कानूनों के बीच द्विविवाह और संघर्ष के मुद्दे का समाधान करता है। इसी के तहत 2017 का शायरा बानो केस जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने तीन तलाक की प्रथा को असंवैधानिक घोषित कर दिया था।
सर्वोच्च न्यायालय ने तीन तलाक और बहुविवाह जैसी प्रथाएँ पर यह तर्क दिया था कि यह प्रथा किसी महिला के सम्मान के साथ जीवन जीने के अधिकार को प्रतिकूल रुप से प्रभावित करती है।
यूसीसी की आवश्यकता-
- सभी नागरिकों को समान माना जाना चाहिये और सरकारी प्रायोजन, धार्मिक स्थलों, कार्यक्रमों के नियमों को संविधान में वर्जित किया जाना चाहिये।
- भारत एक विविधाताओं से भरा देश है। यहां विभिन्न धर्मों के लोग निवास करते है। यूसीसी को लागू करनें से यहां धार्मिक विभाजन को कम करने में मदद मिलेगी।
- यूसीसी कमजोर वर्गों को सुरक्षा प्रदान करेगा, कानूनों को सरलीकृत करेगा और इससे लैगिक समानता भी सुनिश्चित होगी।
- जिस वर्ग की महिलाएं समाज में अभी भी वह स्थान हासिल नहीं कर पायी उनमें भी समानता का भाव आयेगा।
- उत्तराखण्ड जैसें राज्य के लिये यूसीसी बहुत जरुरी हो जाता जब आये दिन यह देखा जाए कि कैसे आबादी का प्रतिशत घट बढ़ रहा है।
निष्कर्ष- (Conclusion)
उत्तराखंड को यूसीसी की बहुत जरुरत है क्योकि जिस प्रकार से वहाँ डेमोग्राफिक चेंजस हो रहे है वह देवभूमि को नुकसान पहुंचायेगे।
सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा यूसीसी के बारे में लोगों की अनभिज्ञता है और इस तरह की अनभिज्ञता का कारण शिक्षा की कमी, गलत समाचार, तर्कहीन धार्मिक विश्वास है। इसलिये इस विषय पर लोगों तक सही जानकारी पहुंचाना बहुत जरुरी है।
इसके बाद सरकार को लैड़ रिफार्म को भी सख्त करना चाहिए जिससे कोई भी बाहरी वहाँ की जमीन पर कब्जा न कर सकें और न ही उसकी आड़ मे किसी भी प्रकार की मजांरे बना सकें। साथ ही साथ वहाँ के लोगों को भी सजग रहना होगा और उत्तराखंड की सनातन संस्कृति को बचाकर रखना होगा।
और कई प्रकार के धर्मातरणों से भी बचना होंगा। यूसीसी इसका पहला चरण हो सकता है।
यूसीसी पर आपकी क्या राय है हमें कमेंट बाक्स में जरुर बताएं, हमें यह भी सूचित करें की यूसीसी लागू होने के क्या-क्या फायदें हो सकते है। आप के सवालों और जवाबों का हमें इतंजार रहेगा।
धन्यवाद…
1. What is the State of Uttarakhand and Uniform Civil Code Act?
1. The State of Uttarakhand and Uniform Civil Code Act is a legislation that establishes a uniform set of civil laws for all residents of Uttarakhand, regardless of their religion or community.
2. What is the purpose of the Uniform Civil Code in Uttarakhand?
2. The purpose of the Uniform Civil Code in Uttarakhand is to ensure equality and uniformity in personal laws across different religions and communities.
3. How does the Uniform Civil Code Act impact the residents of Uttarakhand?
3. The Uniform Civil Code Act impacts the residents of Uttarakhand by providing them with a common set of civil laws that govern various aspects of their personal lives.
4. What are the key provisions of the Uniform Civil Code Act in Uttarakhand?
4. The key provisions of the Uniform Civil Code Act in Uttarakhand include uniformity in matters such as marriage, divorce, inheritance, and adoption.
5. How does the Uniform Civil Code Act address issues of personal laws and religious practices in Uttarakhand?
5. The Uniform Civil Code Act addresses issues of personal laws and religious practices by prioritizing the uniform civil laws over religious laws in matters covered by the Act.