Unveiling the Shocking Azmer Incident-1992: A Gripping Tale of Resilience and Redemption- चौंकाने वाली अज़मेर घटना का अनावरण-1992: लचीलेपन और मुक्ति की एक मनोरंजक कहानी

चौंकाने वाली अजमेर (Azmer) घटना का अनावरण – 92″ ब्लॉग पोस्ट के माध्यम से एक रोमांचक यात्रा । 1992 में अज़मेर (Azmer) को झकझोर देने वाली रहस्यमयी घटनाओं की गहराई | लचीलेपन और मुक्ति की एक मनोरंजक कहानी । चौंकाने वाली परिस्थितियों के बीच उभरी गहन मानवीय भावना | शामिल लोगों के जीवन पर एक स्थायी प्रभाव । शक्ति, आशा और परिवर्तन की एक सम्मोहक कथा |

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Witness the gripping tale of resilience and redemption in the shocking Azmer Incident of 1992

“ अजमेर 92 एक ऐसी फिल्म जिसकी चर्चा फिल्मी गलियारों में गर्म है, यह फिल्म 1992 में अजमेर (Azmer)रेप काड़ पर आधारित है। यह भारत में हुए अबतक के सबसे जघन्य अपराधों में से एक है। इस कांड का खुलासा अप्रैल 1992 में हुआ था। इसे दुनिया के सामने लाने का काम पत्रकार संतोष कुमार ने किया था। इस रेप और ब्लैकमेलिंग कांड का शिकार अधिकतर स्कूल और कालेज जाने वाली लड़कियाँ थी। इस घटना ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था।

इस कांड का असल गुनाहगार काँग्रेस नेता और अजमेर (Azmer)शरीफ दरगाह का खादिम (सेवक) था। इस घटना मे गर्ल्स स्कूल की 100 से अधिक स्कूली लड़कियों की अश्लील तस्वीरों के जरिए ब्लैकमेल कर उनका यौन शोषण किया गया। यह घटना प्रशासन और सरकार की नाकामी का नतीजा थी। जिसने वोट बैक, पावर, पैसें के खातिर यह कांड होने दिया। सब पता होते हुए भी एक्शन नही लिया गया।”

अजमेर (Azmer) कांड की शुरुआत-

साल 1990 में सवित्री स्कूल से इसकी शुरुआत हुई। जब एक लड़की को उसके दोस्त ने काग्रेस पार्टी में एक पद और गैस कनेकशन के चलते नफीस और फारुक सें मिलवाया। वो पहली लड़की थी जिससे साथ नफींस ने रेप किया और उसकी ब्लैकमेंलिग भी शुरु किया। उस पर दबाव बनाया गया कि वह अपनी सहेलियों को लेकर आये। दूसरी बार रेप इशरत नामक व्यक्ति ने किया और उसकी नग्न तस्वीरें भी ली गयी। और अगले 8 महीनों तक 25 बार 9 लोगों ने उसका रेप किया।

उन तस्वीरों के दम पर कई और लड़कियों को बुलाया गया। कई स्कूली छात्रओं को पार्टी के नाम पर बुलाकर, नग्न फोटो खीचे गए, ब्लैकमेल किया गया और गैगरेप का शिकार बनाया गया। ये उनका शौक बन गया था। ज्यादातर लड़कियों की आयु 15 से 20 वर्ष के बीच रही होगी। ये एक सौ से अधिक स्कूल और कॉलेज की लड़कियों के साथ किया गया सिलसिलेवार सामूहिक बलात्कार और ब्लैकमेलिंग की घटना थी।

जहाँ फारुक और नफीस चिश्ती के नेतृत्व में युवकों एक दल 1990-92 के दौरान वे लड़कियों को दूरदराज इलाके या फार्महाउस में फुसलाकर ले जाते थे और उनका वहाँ सामूहिक रुप से यौन शोषण करते थे। और उनकी तस्वीरें खीची जाती थी ताकि उन्हे ब्लैकमेंल किया जा सकें। इस रेप कांड में अजमेर (Azmer) के एक प्रसिद्द गर्ल्स स्कूल सोफिया सीनियर सेंकडरी गर्ल्स स्कूल की सैकड़ो युवा लड़कियो को भी निशाना बनाया गया था।

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अजमेर (Azmer) कांड का खुलासा-

साल 1992 में कई नग्न तस्वीरे पूरे अजमेर (Azmer) मे वायरल हो गयी। इस खबर को सबसे पहले एक स्थानीय अखबार नवज्योति ने16 मई 1992 को प्रकाशित किया। अखबार ने एक पीड़िता की नग्न फोटो ‘देनिक नवज्योति’ के फ्रट पेंज पर छाप दिया। इस अखबार ने खुलासा किया था कि अजमेर (Azmer) के स्थानीय गिरोह के द्वारा स्कूली छात्राओ के साथ ब्लैकमेलिंग की जा रही थी।

इसके बाद पूरे राज्य को इस जघन्य रेपकांड और ब्लैकमेलिंग के बारे में जानकारी हुई। उस वक्त राज्य मे बीजेपी की सरकार थी और मुख्यमंत्री भैरोसिंह शेखावत थे। उस वक्त 6-7 लड़कियों की आत्मदह ने इस केंस को और सवेंदनशील बना दिया था।

आरोपी खादिम परिवार से थे और मुख्यरुप से काग्रेस पार्टी से जुड़े हुए थे। उस समय राजस्थान के पुलिस महानिदेशक ओंमेंद्र भारद्दाज थे। उनके अनुसार सारे आरोपी आर्थिक रुप से सक्षम और समृद्द थे। 30 मई को अजमेर (Azmer) गंज थाने में पहली एफआईआर दर्ज हुई। इस केस मे 18 आरोपियों का नाम दर्ज किया गया।

जयपुर से 31 मई को सीआईडी की क्राइमब्राच की एक टीम गठित की गई जिसका नेतृत्व एडी. एसपी धमेन्द्र यादव कर रहे थे। सब से पहली पीड़िता को एक गली में पाया गया।

सीआईडी ने 30-35 लड़कियों से पूछताछ की। जिसमें से 16 लड़कियों ने पीड़िताओं के तौर पर अपने बयान दर्ज करायें। सितम्बर 1992 में 250 पन्नों की चार्जशीट तैयार की गई, 127 गवाह और 69 सबूत लिस्ट किये गए। दोनो मुख्य आरोपी प्रसिद् मोइनुदीन चिश्ती दरगाह के खादिमों के परिवारों से थे। मुख्य आरोपी फारुक चिश्ती था तथा दो अन्य नफीस और अनवर चिश्ती अजमेर राष्ट्रीय काग्रेस पार्टी से जुड़े थे।

केस के अन्य पहलू-

1994 मे एक आरोपी पुरुषोत्तम दास ने आत्महत्या कर ली। मई 1998 में जिला कोर्ट ने 8 आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। 4 आरोपियों को राजस्थान हाईकोर्ट ने 2001 मे बरी कर दिया। साल 2003 मे सुप्रीम कोर्ट ने बाकी चार आरोपियों की सजा को उम्रकैद से दस साल में बदल दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मामले मे अपने बयान मे कहा था कि “दुर्भाग्य से गवाहों के रुप मे पेश होने वाले पीडितो मे से कईओं ने अपने बयान बदले और गवाही देने नही आएं। और सबसे आश्चर्य की बात यह है कि कोई भी व्यक्ति उनके इस कृत्य के संबध में यह नही कह सकता कि उन्होने ऐसा क्यो किया।

पीड़ित लड़कियां या उनके परिवार वाले अगर इस कानूनी कार्यवाही में आगे बढ़ते तो उन्हे इस बात का भय था कि इससे उनका नाम उजागर होगा और इससे उनके भविष्य पर प्रतिकूल असर पड़ेगा।” सुप्रीम कोर्ट के अनुसार यह मामला रॉदरहैम बाल यौन शोषण घोटाले के बराबर था।

इस बीच मुख्य आरोपी फारुक चिश्ती ने दिमागी संतुलन खोने का बहाना बनाया जिससे केस को अधिक दिनों तक लटकाया जा सकें। साल 2003 मे नफीस चिश्ती को बुर्के मे दिल्ली से पकड़ा गया। 2005 में अन्य आरोपी इकबाल भट्ट को अरेस्ट किया गया।

2007 में खुद को मेंटली अनस्टेबल बताकर ट्रायल से बचते रहे फारुक चिश्ती को जिला कोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुनाई पर 2013 मे राजस्थान हाईकोर्ट ने इसकी सजा को कम कर रिहा कर दिया।

साल 2018 मे 26 साल से फरार सोहेल घनी ने सरेंडर कर दिया। एक अहम आरोपी अलमास महाराज अभी तक फरार है और अमेरिका मे छुपा हुआ है।

अभी भी ये केस में पीड़िताओं का न्याय नही मिला है। 6 लोगों के खिलाफ अजमेर के पॉक्सो कोर्ट में ट्रायल जारी है। जिनमें प्रमुख नाम है, नफीस चिश्ती, इकबाल भट्ट, सलीम चिश्ती, जमीर हुसैन, नसीम उर्फ टार्जन और सोहेन घनी। 31 साल बाद भी यह केस ज्यो का त्यो बना हुआ है ना ही क्योर है और ना क्लोजर।

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केस मे प्रशासन का रवैया-

केस की शुरुआत से प्रशासन का रवैया बहुत ढीला रहा था। जिसके कारण यह केस आजतक लटका हुआ है।

नवज्योति के संपादक दीनबंधु चौधरी के अनुसार स्थानीय प्रशासन और अन्य अधिकारियों को इस कांड की जानकारी इसके खुलने के लगभग एक वर्ष पहले से थी। लेकिन उन्होने स्थानीय नेताओं के दबाव और प्रभाव के कारण जांच को रोके रखा। उनके अनुसार कि उन्होने कहानी को आगे बढाने का काम किया क्योकि यह स्थानीय प्रशासन को कार्रवाई मे जागृत करने का एकमात्र तरीका था।

कई दिनों तक शहर में तनाव व्याप्त रहा। लोग विरोध के लिए सड़को पर उतर आये , सांप्रदायिक तनाव का माहौल बन गया। तीन दिवसीय बंद का आह्रान किया गया और बाद मे व्यापक रुप से शोषण और ब्लैकमेलिग के खबरें आने लगी। इस सांप्रदायिक तनाव का कारण यह भी था कि आरोपियों मे ज्यादातर एक विशेष समुदाय से थे, और जो पीड़ितायें थी वे व्यापक रुप से हिन्दू समाज से थी।

इस पूरे घटनाक्रम का दुखद पहलू यह है कि कई पीड़ित युवा ल़ड़कियों ने आत्महत्या कर ली थी।

कई पीड़ित जो गवाह बनने वाले थे वह पलट गये। इसका कारण समाज का डर था, जो यह मानता है कि इसका कारण लड़कियाँ खुद होगी। पीड़िताओं की सख्या कई सौ मानी गई। कुछ ही लड़कियाँ आगे आई।

उस समय स्थिति अजमेर (Azmer) की लड़कियों के लिये बहुत खराब हो चुकी थी। जो उनसे शादी करने वाले थे, वो अखबारों के कार्यालयों में जाकर ये पता करतें कि उनकी जिससें शादी हो रही है, उनकी पत्नी इनमें से एक तो नही।

बलात्कार के बाद, अधिकांश पीड़िताओं ने उत्पीड़न और धमकियों का सामना किया। उन्हे इस सब से बाहर आने के लिए समाज व उनके घर परिवारों का भी समर्थन नही मिला। कई पीड़ितों को इन वीडियोस फोटो और स्थानीय कागजात द्वारा आगे भी ब्लैकमेल किया गया था। कई प्रकाशकों ने इसका फायदा उठाया और उनकी फोटोस के बदले उनसे पैसें की मांग की।

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अजमेर (Azmer) रेप कांड एक दाग है, हमारे देश के ऊपर जो यह बताता हम कितने लाचार हो जाते है उन लोगों के सामने जो पैसा और राजनीतिक प्रभाव रखते है। कांड होने के बाद भी हम सालों तक उन पीड़ितों को न्याय नही दे पाते। प्रशासन की नाक के नीचे सब चलता रहता है और वो तमाशबीन बना सब देखता रहता है, उस समय प्रशासन ने लड़कियों के साथ देने के बजाय उन लोगों को बचाने की कोशिश की जो इनमें दोषी थे, सिर्फ इसलिये कि राजनेताओं की सेकुलर इमेज बची रही। आज भी न्याय बाकी है और जाने कब तक बाकी रहेगा।

न्याय के मामले में एक चीज बहुत मायने रखती है कि अगर न्याय समय से मिल जाये तो ठीक वरना वह एक अभिशाप बन जाता है। पर हमारे देश की न्याय प्रणाली इस जघन्य अपराधों में भी बहुत धीरे काम करती है। ये केस एक साजिश के तहत किया गया एक विशेष समुदाय का एक समुदाय के प्रति शोषण था।

आज भी वह गुनहगार उन जगहों पर खुलेआम अपनीं नुमाइश करते है। कहते है जो देश अपने इतिहास से कुछ नहीं सीखता वह अपनी सभ्यता और अपनी पहचान खो देता है। जिस सेकुलर सिद्धात के नाम पर हमारा सविधान काम करता है। वही सेकुलर सिद्धात देश के बहुसख्यक समाज के लिए घातक साबित हुआ है। ये बात हमने आजादी से अभी तक देखी है।

इस कांड़ पर आपकी क्या राय है, हमे कमेंट बाक्स के माध्यम से जरुर बताएं।

धन्यवाद…

Q1.1992 के अजमेर बलात्कार की गहराई क्या थी?

Answer: 1992 में अजमेर के एक घिनौने बलात्कार कांड के तहत, एक भयानक रेप और ब्लैकमेलिंग कांड का सामना हुआ था। इस कांड के दौरान बहुत सी स्कूल और कॉलेज जाने वाली लड़कियाँ शिकार बनीं थीं।

Q2. इस घटना को किसने खुलासा किया और कैसे?

Answer: यह घटना अप्रैल 1992 में खुलासा हुआ था और इसे पत्रकार संतोष कुमार ने दुनिया के सामने लाने का काम किया था। उन्होंने इस भयानक बलात्कार और ब्लैकमेलिंग कांड की जानकारी संग्रहित की और इसे मीडिया के माध्यम से सार्वजनिक किया।

Q3. इस घटना के दोषियों को कैसे पकड़ा गया?

Answer: पत्रकार संतोष कुमार के द्वारा किए गए खुलासे के बाद, पुलिस और संबंधित अधिकारी गम्भीरता से मामले का संगठन करने लगे। उन्होंने पीड़ित लड़कियों की शिकायतें दर्ज की और दोषियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की गई। बाद में, साक्षात्कार और सबूतों के आधार पर दोषियों को गिरफ्तार किया गया।

Q4. इस कांड के बाद समाज में क्या परिवर्तन हुआ?

Answer: यह घटना भारतीय समाज के लिए एक चेतना का जनक साबित हुआ। लोगों ने इस घिनौने अपराध के पीड़ित लड़कियों के साथ होने वाली अन्यायिकता और सुरक्षा के मुद्दे पर गंभीरता से विचार किया। इससे समाज में महिलाओं की सुरक्षा पर ध्यान देने की बढ़ी मांग हुई और कानूनी सुधारों की मांग उठी।

Q5. कैसे समाज में इस तरह के घटनाओं को रोकने के लिए कदम उठाए जा सकते हैं?

Answer: इस तरह के घटनाओं को रोकने के लिए समाज को संवेदनशील बनने और सहयोग करने की जरूरत है। कुछ कदम निम्नलिखित हो सकते हैं:
शिक्षा और जागरूकता: शिक्षा को बढ़ावा देना और लोगों को अपनी अधिकारों और सुरक्षा के बारे में जागरूक करना महत्वपूर्ण है।
महिला सशक्तिकरण: महिलाओं को सशक्त करने के लिए समाज में उन्हें एक समान भागीदार के रूप में स्वीकार करना और उन्हें स्वतंत्रता मिलना जरूरी है।
कानूनी कार्रवाई: दोषियों के खिलाफ तीव्र और त्वरित कानूनी कार्रवाई बहुत आवश्यक है। ऐसे मामलों में, न्यायिक प्रक्रिया को तेज़ करना चाहिए और विशेष अदालतें तय करनी चाहिए।
सामुदायिक सहयोग: सामुदायिक स्तर पर जागरूकता अभियान और संघर्ष से लड़ने के लिए समाज में सहयोग और समर्थन का माहौल बनाना आवश्यक है।
मीडिया का सहयोग: मीडिया जागरूकता फैलाने का एक अहम साधन है, इसलिए उन्हें इस तरह के मामलों को उजागर करने और लोगों को संवेदनशील बनाने में मदद करनी चाहिए।
सरकारी नीतियां: सरकार को सख्त कानून और नीतियों के माध्यम से इस तरह के अपराधों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की जरूरत है।

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