Savarkar’s Legacy explores how one revolutionary changed the course of history, impacting India’s independence movement and inspiring future generations.
“विनायक दामोदर सावरकर (Savarkar) यह वो नाम जो समय-समय पर भारतीय राजनीति में किसी न किसी परिपेक्ष्य में छाया रहता हैं। जो राष्ट्रवादी पार्टियाँ है उनके लिए सावरकर एक क्रांतिकारी हैं। जो पार्टियां कांग्रेस, गांधीवादी सोच या वामपंथी सोच से उपजी उनके लिए सावरकर एक माफींवीर हैं। पर सावरकर बने हुए हैं। यह महत्वपूर्ण हैं। सावरकर बनना भीं आसान नहीं हैं। जिस 1857 के स्वतंत्रता सग्राम को अंग्रेज सिर्फ एक सिपाही विद्रोह कहते थे, उसे सबसे पहले वीर सावरकर ने ही भारत का पहला स्वतंत्रता सग्राम बताया था।”
अपने इस लेंख के माध्यम से हम सावरकर(Savarkar) के जीवन में प्रकाश डालने का प्रयास करेगें। हम यह भी जानेंगे कि उन्होंने किस प्रकार से आजादी की लड़ाई में अपना योगदान दिया।
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विनायक सावरकर(Savarkar) का जीवन परिचय-
विनायक दामोदर सावरकर या कहें वीर सावरकर(Savarkar) जो लेखक, क्रान्तिकारी और राजनीतिज्ञ सभी थें। इनका जन्म 28 मई , 1883 को महाराष्ट्र को नासिक के पास भागूर गांव में हुआ था। वे पहले ऐसे भारत के व्यक्ति थे जिन्होंने पहली बार 1857 के स्वतंत्रता सग्रांम को भारत की पहली आजादी की लड़ाई कहा था। वे एक विचारक, चिंतक व इतिहासकार के रुप में भी विख्यात थें। उन्होंने भारत में कई क्रान्तिकारियों को प्रभावित किया।
विनायक सावरकर(Savarkar)का परिवार-
सावरकर (Savarkar)साहब का जन्म एक चितपावन ब्राह्राण हिंदू परिवार में हुआ था। इनका पिताजी का नाम दामोदर व माता जी का नाम राधाबाई सावरकर था। इनके परिवार में बडें भाई गणेश व छोटे भाई नारायण और एक बहन मैनाबाई थीं। सावरकर जब नौ वर्ष के थे तब उनकी माता जी का देहांत हो गया था। इसके 7 वर्ष बाद इनके पिता जी का भी देहांत हो गया।
सावरकर (Savarkar)की शिक्षा-दीक्षा-
सावरकर(Savarkar) बचपन से ही क्रान्तिकारी स्वभाव के बालक थे। वे अपने बड़े भाई गणेश से प्रभावित थे। सावरकर (Savarkar)साहब की प्रारभिंक शिक्षा छत्रपति शिवाजी महाराज विघालय, नासिक से हुई थीं। इसके बाद उन्होंने 1902 में फर्ग्यूसन कॉलेज में प्रवेश लिया।
इसके बाद वह अपनी उच्च शिक्षा के लिए 1906 लंदन चले गये। सावरकर(Savarkar) जी ने 1900 में ‘मित्र मेला’ नामक संगठन की स्थापना की थी। जिसका उद्देश्य लोगों में चेतना जागाना था। तथा भारत के महान लोगों के फेस्टिवल को मनाने के काम करते थे।
क्रांतिकारी गतिविधियाँ–
सावरकर (Savarkar)ने उस समय देश के लोगों के बीच फैलीं हीनभावना को हटाने का काम किया। उन्होंने 1904 में अभिनव भारत की स्थापना की थीं।
उन्होंने बंगाल के विभाजन के बाद हुए 1905 के स्वदेशी आन्दोंलनों में बड़चढ़कर हिस्सा लिया। उन्होंने पूर्ण स्वराज को अपना लक्ष्य बनाया। सावरकर (Savarkar)ब्रिटिश शासन से भारत की स्वतंत्रता के प्रबल समर्थक थे।
भारत में स्नातक करने के बाद में वे कानून का अध्ययन करने लंदन चले गए। वहां उन्होंने इतिहास का गहन अध्ययन किया। उन्होंने 1857 के विद्रोह को पूरा अध्ययन करने के बाद 1909 में एक पुस्तक लिखीं “द फर्स्ट वॉर ऑफ इंडियन इंडिपेंडेंस” इस पुस्तक में 1857 के विद्रोह को जिसे अंग्रेज सिर्फ सिपाही विद्रोह कहते थे। उसे इसमें भारत का पहला स्वतंत्रता सग्राम कहा गया। इस पुस्तक से कई क्रान्तिकारियों ने प्ररेणा हासिल की थीं। यह पुस्तक मराठी में लिखी गई थीं। इस पुस्तक में अंग्रेजी साम्राज्य ने बंद कर दिया था।
इसकी एक प्रति फ्रांस में मैंडम भीकाजी कामा के पास भी सावरकर (Savarkar)साहब ने भेजी थीं। जिसे भीकाजी कामा नें छपवा दिया और अन्य तरीकों से लोगों के बीच पहुंचने लगीं।
लंदन में वह कई क्रान्तिकारियों के संपर्क में आये थे। वहां वह श्याम जी वर्मा और लाला हरदयाल से भी मिलें।
1909 मे क्रान्तिकारी मदन लाल डींगरा नें जो कि लंदन में इड़िया हाउस के मेंम्बर भी थें, नासिक के कलेक्टर विलियम हंट कर्जन वाइली को गोली मार दीं। इस केस के बाद वीर सावरकर (Savarkar)को भी गिरफ्तार कर लिया जाता हैं। उसके बाद इन्हें भारत लाकर केस चलाया जाता हैं। जिसके बाद इन्हें अड़मान की सेलुलर जेल भेज दिया जाता हैं। जहां इन्हे 50 वर्ष की आजीवन कारावास की सजा सुनाई जाती हैं।
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अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में कारावास–
1911 में, सावरकर (Savarkar)को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई और अंडमान और निकोबार द्वीप समूह की सेलुलर जेल में भेज दिया गया। कठोर परिस्थितियों के बावजूद, उन्होंने लिखना जारी रखा और साथी कैदियों को प्रेरित किया। इस अवधि के उनके पत्र और कविताएँ स्वतंत्रता के प्रति उनकी दृढ़ भावना और समर्पण को दर्शाते हैं।
सेलुलर जेंल की हालत बद से बदतर थीं। वहां सिर्फ क्रान्तिकारियों को रखा जाता था। जो अंग्रेजीं साम्राज्य के खिलाफ बगावत करते थे। वीर सावरकर (Savarkar)को इस जेल में बहुत पीड़ा दी जातीं थीं।
इस जेल की बदतर हालत के चलते हुए सावरकर(Savarkar) साहब ने अंग्रेजीं सरकार को तीन बार रिहाई के लिए याचिका की थीं। 1911 में पहली याचिका, 1913 में दूसरी याचिका सावरकर साहब की ओर से जातीं हैं। 1917 में जब वे तीसरी बार याचिका करते है तब जाकर अंग्रेज सरकार उस पर ध्यान देती हैं। जेल के अन्दर इन्होंने अपने नाखूनों से वीर रस की कविताएं वहां की दीवारों पर अंकित की थीं।
2 मई, 1921 को वीर सावरकर (Savarkar)को सेलुलर जेल से रत्नागिरीं की येरवडा जेल में शिफ्ट कर दिया जाता हैं। बाद में इन्हे 6 जनवरी,1924 को जेल से रिलीज कर दिया जाता हैं। पर इनकी गतिविधियों पर रोक लगा दी जाती हैं। इन पर किसी भी प्रकार की राजनीतिक गतिविधि करने की रोक लगा दी जाती हैं। और रत्नागिरी से बाहर जाने पर भी रोक लगा दी जाती हैं। फिर भी वे अपने साहित्य को लिखना जारी रखते हैं।
विचारधारा और हिंदुत्व–
1935 में भारत सरकार अधिनियम-1935 आता हैं। इसके बाद देश में चुनाव आयोजित करायें जाते है। जिसमें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस सूपड़ा साफ कर देती हैं। इसके बाद कांग्रेस और जिन्ना के बीच तकरार देखने को मिलतीं हैं। यहां से टू नेशन थ्योरीं को बल मिलना शुरु हो जाता हैं। सावरकर अब बाम्बें आ जाते हैं। 1937 में उन्हें हिंदू महासभा का अध्यक्ष चुना जाता हैं। वो इस पद पर 1943 तक रहते हैं। सावरकर समझ चुके थे कि हिंदू व मुस्लिम की विचारधारा भिन्न हैं। पर वो देशों के बंटवारे से सहमत नहीं थे।
सावरकर को हिंदुत्व की अवधारणा विकसित करने के लिए जाना जाता है, उन्होंने वर्ष 1923 में प्रकाशित अपनी पुस्तक “हिंदुत्व: हिंदू कौन है?” में इसके बारे में विस्तार से उल्लेख किया हैं। उन्होंने इस पुस्तक में हिंदू समुदाय की एकता और गौरव पर जोर दिया हैं। उन्होंने हिंदुत्व को भारतीय सांस्कृतिक और राष्ट्रीय पहचान के रूप में परिभाषित किया हैं। इस पुस्तक में उन्होंने लिखा था कि कैसा हिंदू राष्ट्र होना चाहिए।
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वीर सावरकर का हिंदू राष्ट्र तीन चीजों पर केंद्रित था।
- भू राजनीतिक रुप से भारत एक हो। भारत को भाषा के आधार पर या भूगोल के हिसाब से नहीं बांटा जाना चाहिए। सिर्फ एक भारत बनाना चाहिए। जिससे किसी में कोई हीनभावना न हो।
- जातीय गुण के हिसाब से भी भारत एक हो। कोई भी जातीय के आधार पर न बंटा हो।
- सांस्कृतिक रुप से भी भारत एक हो। पूरे देश मे सिर्फ एक भाषा होनी चाहिए। या तो संस्कृत या हिंदी वो कोई भी भाषा हो सकतीं हैं।
साहित्य में योगदान–
सावरकर एक विपुल लेखक थे, जिन्होंने कविता, नाटक और ऐतिहासिक विश्लेषण सहित भारतीय साहित्य में योगदान दिया। उनकी आत्मकथा, “माई ट्रांसपोर्टेशन फॉर लाइफ” में सेलुलर जेल में उनके अनुभवों का विवरण दिया गया है। अन्य उल्लेखनीय कार्यों में “भारतीय स्वतंत्रता के प्रथम युद्ध का इतिहास,” “हिंदुत्व” और कई लेख और निबंध शामिल हैं जिनका भारतीय सामाजिक-राजनीतिक विचार पर स्थायी प्रभाव पड़ा है।
अपनी पुस्तक ‘हिंदू कौन है?’ में उन्होंने जैन धर्म, बौद्ध धर्म और सिख धर्म व हिंदू धर्म सभी को एक बताया हैं। उनके अनुसार ये सभी धर्म एक ही हैं। इनकी पद्धतियां अलग हो सकती है। पर उनका मूल एक ही हैं। वे हमेशा अखंड भारत की बात करते थे।
वीर सावरकर की प्रमुख पुस्तकों में- 1857 का स्वतंत्रता समर, हिंदूपदपतशाही, हिंदुत्व, माज़ी जन्मथेप , काले पानी, विज्ञान निष्ठा निबन्ध,हिंदूराष्ट्र दर्शन, कमला, सावरकरंच्य कविता आदि प्रमुख हैं।
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भूमिका–
1924 में जेल से रिहा होने के बाद, सावरकर स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल रहे, हालाँकि उनके तरीके और विचारधाराएँ अक्सर महात्मा गांधी जैसे मुख्यधारा के नेताओं से भिन्न थीं। वह भारत में हिंदुओं के अधिकारों की वकालत करने वाले संगठन हिंदू महासभा से जुड़े थे। उग्र राष्ट्रवाद पर उनके विचार और गांधी के तरीकों की आलोचना ने उन्हें भारतीय राजनीति में एक विवादास्पद व्यक्ति जरुर बनाया हैं। पर अगर हर क्रान्तिकारी को गांधी के विचार से तय किया जाएगा तो कईयों की विचारधारा उनसे भिन्न थीं। और देश की आजादी में सभी क्रान्तिकारियों का महत्वपूर्ण योगदान था।
विरासत और विवाद–
सावरकर की विरासत (Savarkar’s Legacy) बहुआयामी और विवादास्पद है। जहां कई लोग उन्हें एक बहादुर स्वतंत्रता सेनानी और हिंदू राष्ट्रवाद के अग्रदूत के रूप में मनाते हैं, वहीं अन्य लोग धार्मिक विशिष्टता को बढ़ावा देने के लिए उनकी विचारधारा की आलोचना करते हैं। 1949 में महात्मा गांधी की हत्या की साजिश में उन्हें गिरफ्तार किया जाता हैं। हालांकि उन्हें बरी कर दिया जाता हैं। यह उनकी विरासत की जटिलता को बढ़ाता जरुर हैं पर उन्हें कहीं भी दोषी साबित नहीं करता।
मृत्यु और स्मृतियाँ–
वर्ष 1965 के सितम्बर माह में सावरकर साहब को तेज बुखार आ गया। जिस कारण से उनका स्वास्थ्य धीरे-धीरे गिरने लगा। मृत्यु से पूर्व वे उपवास पर चले गये। इसके बाद 26 फरवरी, 1966 को उनका स्वर्गवास हो गया। भारत की स्वतंत्रता में वैसे तो उनके योगदान को विभिन्न तरीकों से याद किया जाता हैं। परन्तु जिस तरह का सम्मान उन्हें दिया जाना चाहिए था। वह सम्मान उस समय सरकारों ने उन्हें नहीं दिया था। शायद उनकी हिंदूवादी छवि के कारण उन्हें वह सम्मान हासिल नहीं हुआ। उनकी मृत्यु के उपंरात उनके नाम से डाक टिकट भी जारी किये गए थे।
निष्कर्ष–
विनायक दामोदर सावरकर के जीवन और कार्य पर तीखी प्रतिक्रियाएँ और बहस जारी होती रहती हैं। स्वतंत्रता आंदोलन में उनका योगदान, उनके साहित्यिक कार्य और हिंदुत्व विचारधारा का विकास उन्हें भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति के रुप में स्थापित करता हैं। अगर वे भी अन्य नेताओं की तरह ध्रुवीयकरण में शामिल होते तो उन्हें भी वह पद दिया जाता। पर उन्होंने हिंदुत्व के लिए लड़ने का निर्णय लिया, जिस कारण से उन्हें यह सब सहना पड़ा।
कई राजनीतिक पार्टियां उन्हीं मांफीवीर कहकर संबोधित करतीं हैं। पर जिन परिस्थितियों में उन्होंने ये सब सहा वह भी कम नहीं था। 10 से ज्यादा वर्षों तक उन्होंने अड़मान की उस खतरनाक जेल में अपना जीवन बिताया था। कह सकते है कि उस समय किसी भी अन्य लीडिंग पार्टी के नेताओं को इस सजा को नहीं भुगतना पड़ा था।
देश को सभी क्रान्तिकारियों ने मिलकर आजादी दिलाई हैं। किसी भी एक पार्टी के लिए यह बूते के बाहर की बात थीं।
सावरकर में लिखें इस लेख के बारे में हमें अपने विचार जरुर बतायें। हमें यह भी बतायें आप उन्हें क्या मानते है। क्या आप भी सिर्फ एक विचार से ग्रसित हैं। या सभी पक्षों को समझना जानते हैं। हमें आपके विचारों की प्रतीक्षा रहेगीं। धन्यवाद…
विनायक दामोदर सावरकर कौन थे?
विनायक दामोदर सावरकर एक क्रांतिकारी, लेखक, और राजनीतिज्ञ थे जिनका जन्म 28 मई, 1883 को महाराष्ट्र के नासिक के पास भागूर गांव में हुआ था।
सावरकर का परिवार और प्रारंभिक जीवन कैसा था?
सावरकर का जन्म एक चितपावन ब्राह्मण हिंदू परिवार में हुआ था। उनके पिताजी का नाम दामोदर और माता जी का नाम राधाबाई सावरकर था। उनके परिवार में बड़े भाई गणेश, छोटे भाई नारायण और एक बहन मैनाबाई थीं। सावरकर नौ वर्ष की उम्र में अपनी माता और सोलह वर्ष की उम्र में अपने पिता को खो चुके थे।
सावरकर की शिक्षा-दीक्षा कहाँ हुई?
सावरकर की प्रारंभिक शिक्षा छत्रपति शिवाजी महाराज विद्यालय, नासिक में हुई। 1902 में उन्होंने फर्ग्यूसन कॉलेज में प्रवेश लिया और 1906 में उच्च शिक्षा के लिए लंदन चले गए।
सावरकर की प्रमुख क्रांतिकारी गतिविधियाँ कौन सी थीं?
सावरकर ने ‘मित्र मेला’ और ‘अभिनव भारत’ जैसी संगठनों की स्थापना की। उन्होंने 1905 के स्वदेशी आंदोलनों में भाग लिया और पूर्ण स्वराज को अपना लक्ष्य बनाया। उनकी पुस्तक “द फर्स्ट वॉर ऑफ इंडियन इंडिपेंडेंस” ने कई क्रांतिकारियों को प्रेरित किया।