भारत के वीर राजा पोरस: जानिए उनके शासन और महान युद्ध की अद्भुत कहानी

“राजा पोरस, एक ऐसा राजा जिसने सिकंदर जैसे शासक के भी होश उड़ा दिये। सिकंदर जिसे, महान सिकंदर की संज्ञा दी जाती हैं, उसे भारत से उल्टें पाव लौटने पर मजबूर कर दिया था, महाराज पोरस ने। जो पूरी दुनिया जीतना चाहता था, उसकी सेना ने भारत में ही दम तोड़ दिया। इतिहासकारों ने इस सिकंदर व पोरस के बीच हुए युद्ध में पोरस को हारा हुआ बताया हैं, पर क्या कोई राजा जीत कर भी अपने देश वापस लौटता हैं।

इनके बीच युद्ध से लेकर, दोस्ती तक के किस्से सुनाएं जाते है, पर यह भी एक अलग कूटनीति जान पड़ती हैं। जिस तरह के भारत को हम आज समझते हैं, वह राजा पोरस के समय अलग-अलग राज्यों में विभाजित था, और राजा पोरस उन्हीं में से एक आज के सम्पूर्ण पंजाब के क्षेत्र में शासन करते थे।”

इस ब्लांग में हम भारत के इस महान शासक की शासन व्यवस्था, युद्धनीति और भारत पर प्रभाव की चर्चा करेंगे। तो बनें रहे हमारे इस ब्लांग के साथ और जानिए पोरस के कुछ अनछुए पहलुओं को।

राजा पोरस: भारत के इतिहास में एक महान योद्धा

  1.  पोरस का प्रारंभिक जीवन और उनका साम्राज्य-

पोरस या पुरु एक प्राचीन भारतीय राजा थे। जिनका शासन क्षेत्र सम्पूर्ण पंजाब क्षेत्र में झेलम नदी (हाइडस्पेस) व चेनाब नदी के मध्य फैला हुआ था। पोरस का जितना जिक्र ग्रीक इतिहासकारों ने किया है, उतना भारतीय इतिहासकारो में कम ही मिलता हैं। ग्रीक इतिहासकारों ने सिकंदर को महान बताया है और पोरस को हारा हुआ भारतीय सम्राट।

पोरस के जन्म और प्रारंभिक जीवन के बारे में ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है, लेकिन माना जाता है कि वह पौरव राजवंश से संबंधित थे, जो भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तर-पश्चिमी हिस्से में स्थित था। उनका पालन-पोषण एक राजसी और योद्धा परिवार में हुआ था, जिससे उन्हें शासन कला और युद्धनीति की गहरी समझ मिली। पोरस का जीवन बचपन से ही वीरता, संघर्ष और आत्म-संयम से भरा रहा होगा, क्योंकि उस समय भारत के उत्तर-पश्चिमी हिस्से में ग्रीक और फारसी आक्रमणों का दबाव बना हुआ था।

  •  उनके साम्राज्य की विशेषताएं-

पोरस का साम्राज्य कृषि पर आधारित था और यहाँ की उपजाऊ भूमि लोगों के जीवनयापन का मुख्य साधन थी। इसके अलावा, उनका साम्राज्य सैन्य दृष्टिकोण से भी बहुत मजबूत था, क्योंकि उनकी सेना में घुड़सवार, पैदल सैनिक, और हाथी सैनिकों का विशेष योगदान था। हाथी सेना पोरस की सैन्य ताकत का मुख्य हिस्सा थी, जो विशेष रूप से युद्ध में दुश्मन को भयभीत करने के लिए जानी जाती थी। उनके शासन को 340 ईसा पूर्व से 315 ईसा पूर्व तक बताया जाता हैं।

राजा पोरस की शासन व्यवस्था-

राजा पोरस ने पौरव साम्राज्य पर शासन किया। वह एक दुर्जेय और बहादुर शासक के रुप में जाने जाते थे। उनकी शासन व्यवस्था व नीतियों के बारे में ज्यादा ज्ञात नहीं है। भारतीय इतिहासकारों ने पोरस के बारे में बहुत कम लिखा हैं। उनका जो भी इतिहास लिखा व पढ़ा जाता हैं, वह ज्यादातर ग्रीक इतिहासकारों द्वारा लिखा गया हैं। जितना ज्ञात है, उसके अनुसार उनका राजवंश पुरुवंश था। उनके पिता राजा बमनी और माता का नाम अनुसुइया था।

राजा पोरस के बारे बताया जाता हैं, कि वे खुद 7.5 फुट के लंबे-चौड़े कद के थे।

  1.  राजा पोरस की नीतियां-

राजा पोरस की नीतियाँ उनकी प्रजा के प्रति न्यायप्रिय और कल्याणकारी थीं। वे एक कुशल शासक के रूप में जाने जाते थे, जिनकी नीतियाँ न केवल साम्राज्य की रक्षा और विस्तार पर केंद्रित थीं, बल्कि जनता के जीवन स्तर को सुधारने के लिए भी कार्यरत थीं। उनके शासन में प्राचीन भारतीय राजनीति की महत्वपूर्ण झलकें दिखाई देती हैं, जिनमें राजा और प्रजा के बीच संबंधों पर विशेष ध्यान दिया जाता था।

राजा पोरस ने जनता की भलाई के लिए कई नीतियाँ अपनाई थीं। उनके शासन में कर प्रणाली को संतुलित रखा गया था, ताकि सामान्य जनसंख्या पर ज्यादा बोझ न पड़े और राज्य की समृद्धि भी बनी रहे। कृषि पर आधारित उनके राज्य में किसानों की रक्षा और सहायता के लिए विशेष प्रबंध किए गए थे, जिससे उनके राज्य में खाद्य सुरक्षा बनी रहती थी।

पोरस ने अपनी सैन्य शक्ति का प्रयोग सिर्फ युद्धों में ही नहीं, बल्कि आंतरिक सुरक्षा और बाहरी आक्रमणों से जनता की रक्षा के लिए भी किया। उनकी सेना मजबूत और कुशल थी, जो राज्य की सीमाओं को सुरक्षित रखने के साथ-साथ आंतरिक शांति बनाए रखने में भी सक्षम थी।

  •  प्राचीन राजनीतिक व्यवस्था-

पोरस की नीतियों में प्राचीन भारतीय राजधर्म की झलक साफ दिखाई देती है। राजधर्म के अनुसार, एक राजा का पहला कर्तव्य अपनी प्रजा के प्रति होता था। पोरस ने इस सिद्धांत का पालन करते हुए अपने राज्य में न्याय और कल्याण की स्थापना की। भारतीय परंपरा में माना जाता था कि राजा का धर्म केवल शक्ति प्रदर्शन नहीं, बल्कि जनता के हित में काम करना भी है, और यह पोरस के शासन में स्पष्ट दिखता है।

प्राचीन भारतीय राजनीति में राजा का आदर्श रूप वह था, जो न केवल एक शक्तिशाली और साहसी योद्धा हो, बल्कि अपनी प्रजा के प्रति दयालु और न्यायप्रिय भी हो। राजा पोरस इस आदर्श का सटीक उदाहरण थे। उनकी नीतियाँ यह दिखाती हैं कि कैसे उन्होंने न केवल बाहरी आक्रमणों से राज्य की रक्षा की, बल्कि प्रजा के कल्याण और सुरक्षा के लिए भी समर्पित रहे।

ईरान: साम्राज्य से इस्लामिक क्रांति तक – एक देश की बदलती पहचान और वैश्विक राजनीति में उसकी भूमिका- भाग-1

राजा पोरस की सैनिक व्यवस्था-

राजा पोरस एक कुशल प्रशासक और योद्धा थे। उनके शासन में न्याय, धर्म, सुरक्षा व प्रजा कल्याण प्रमुख था। राजा पोरस की सैन्य संरचना अत्यधिक संगठित और शक्तिशाली थी, जो प्राचीन भारतीय युद्ध कला और रणनीति की एक उत्कृष्ट मिसाल थी। उनकी सेना में पैदल सैनिक, घुड़सवार सेना, और हाथी सेना का विशेष महत्व था। इस सैन्य बल ने उन्हें न केवल स्थानीय संघर्षों में, बल्कि सिकंदर महान जैसे शक्तिशाली आक्रमणकारियों का सामना करने में भी सक्षम बनाया।

  1.  सैन्य संरचना के मुख्य बिन्दु-

पैदल सेना: पैदल सेना राजा पोरस की सेना का मुख्य स्तंभ थी। इन सैनिकों को तलवार, भाले, धनुष-बाण और ढाल जैसे हथियारों से सुसज्जित किया जाता था। इनका उद्देश्य दुश्मन के अग्रिम पंक्ति पर हमला करना और उनकी सेना को कमजोर करना होता था।

घुड़सवार सेना: घुड़सवार सेना युद्ध के दौरान तेजी से आगे बढ़ने और दुश्मन के पीछे से हमला करने के लिए महत्वपूर्ण होती थी। घुड़सवार सैनिकों को उत्कृष्ट घोड़ों पर प्रशिक्षित किया गया था, जिससे वे दुश्मन के सैनिकों को आश्चर्यचकित करके आक्रमण कर सकते थे। राजा पोरस की घुड़सवार सेना उनकी रणनीतिक शक्ति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा थी।

हाथी सेना: पोरस की सैन्य संरचना में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका उनकी विशाल हाथी सेना की थी। हाथियों का उपयोग न केवल युद्ध के दौरान, बल्कि दुश्मन को भयभीत करने के लिए भी किया जाता था। ये हाथी युद्ध में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे और दुश्मन के लिए एक चुनौतीपूर्ण बाधा साबित होते थे।

  •  पोरस की हाथी सेना-

पोरस की सैन्य संरचना में हाथी सेना का विशेष महत्व था, और यह उनकी सैन्य शक्ति का एक अद्वितीय पहलू था। हाथी सेना ने उनके राज्य की सुरक्षा में महत्वपूर्ण योगदान दिया और युद्ध में दुश्मनों पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने में भी सहायक थी।

हाथी सेना का दुश्मन पर एक गहरा मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ता था। उस समय की युद्धक तकनीक में हाथियों का सामना करना बेहद कठिन था। उनकी विशालता और शक्ति से दुश्मनों के सैनिक भयभीत हो जाते थे, जिससे उनकी लड़ने की क्षमता कमजोर हो जाती थी।

पोरस की सेना हाथियों का उपयोग रणनीतिक रूप से करती थी। हाथियों की मदद से पोरस ने दुश्मनों की अग्रिम पंक्ति को तोड़ने और उनका आत्मविश्वास कमजोर करने की कला विकसित की थी। हाथियों की त्वरित गति और शक्तिशाली शरीर से दुश्मन के पैदल सैनिक और घुड़सवार जल्दी कमजोर पड़ जाते थे।

युद्ध के दौरान हाथियों का उपयोग न केवल आक्रमण के लिए, बल्कि सेना की रक्षा और संरक्षण के लिए भी किया जाता था। हाथी सेना दुश्मन की ओर से होने वाले आक्रमणों को अवरुद्ध कर सकती थी, जिससे पीछे की सेना को एक सुरक्षित स्थिति में रखा जा सकता था। हाथी सेना को राजा पोरस की सबसे शक्तिशाली सैन्य इकाइयों में से एक माना जाता था।

राजा पोरस की सेना की हाथी इकाई की रणनीतिक उपयोगिता झेलम के प्रसिद्ध युद्ध (हाइडस्पेस की लड़ाई) में दिखी, जब उन्होंने सिकंदर की सेना का सामना किया। इस युद्ध में हाथी सेना ने अग्रिम मोर्चे पर लड़ाई लड़ी और सिकंदर की सेना को भारी क्षति पहुंचाई।

राजा पोरस का सिकंदर के साथ युद्ध-

राजा पोरस और सिकंदर के बीच का युद्ध इतिहास में झेलम का युद्ध या हाइडस्पेस की लड़ाई के नाम से प्रसिद्ध है। यह युद्ध 326 ईसा पूर्व झेलम नदी के किनारे हुआ था, जब सिकंदर ने अपने विश्व विजय के दौरान भारत पर आक्रमण किया। जहां उसने शुरुआत पोरस के राज्य पर आक्रमण करके किया। इस युद्ध में पोरस की वीरता और साहस ने सिकंदर को भी प्रभावित किया। इस युद्ध में के बारे में जितने भी ग्रीक इतिहासकार है,

उन्होंने विजय सिकंदर को बताया है, लेकिन है कितना सच हैं। इसमें संशय है। उन्होंने इस युद्ध के बहाने सिकंदर को महान बताया हैं।  और पोरस को एक हारा हुआ राजा। सिकंदर भारत में 19 महीने रहा था। इस युद्ध के बाद उसकी सेना इतनी थक चुकी थीं, कि उसने ब्यास नदी पार करने से मना कर दिया। इस युद्ध के कुछ महत्वपूर्ण बिन्दु इस प्रकार है-

बांग्लादेश में हिंदुओं पर अत्याचार: इतिहास, सांख्यिकी, और धार्मिक असहिष्णुता 2024

  1.  सिकंदर का भारत पर आक्रमण-

सिकंदर ने भारत पर आक्रमण करने से पहले फारस और मध्य एशिया के बड़े हिस्सों पर विजय प्राप्त कर ली थी। जब उन्होंने सिंधु नदी के पार पहुंचने का निर्णय किया, तो उनकी निगाहें भारत के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र पर थीं, जहाँ कई छोटे-छोटे राज्य बसे हुए थे। राजा पोरस का साम्राज्य भी इसी क्षेत्र में झेलम और चिनाब नदियों के बीच स्थित था, जिसे पंजाब का क्षेत्र कहा जाता है।

  • भारत पर आक्रमण का कारण-

सिकंदर ने भारत पर आक्रमण करने का उद्देश्य न केवल अपने साम्राज्य का विस्तार करना था, बल्कि भारतीय सभ्यता और समृद्धि से भी वह प्रेरित था। सिकंदर की महत्वाकांक्षा थी कि वह विश्व का सबसे महान सम्राट बने, और भारत उसकी विजय यात्रा का अंतिम पड़ाव माना जा रहा था। सम्पूर्ण भारतवर्ष पर कब्जा करके वह विश्व में एक नयीं छाप छोड़ना चाहता था।

  • राजा आभ्भी की भागीदारी-

सिकंदर के आक्रमण में एक महत्वपूर्ण भूमिका तक्षशिला के राजा आभ्भी की रही। आभ्भी ने सिकंदर के साथ मिलकर काम किया और उसके आक्रमण को समर्थन दिया। आभ्भी ने सिकंदर की मदद की और उसके लिए संसाधनों और सैनिकों का प्रबंध भी किया। आभ्भी और पोरस के बीच पहले से शत्रुता थी, जिसके कारण आभ्भी ने सिकंदर के साथ समझौता किया और पोरस के खिलाफ युद्ध में उसकी सहायता की। सिकंदर ने पोरस को एक संदेश भिजवाया जिसमें राजा पोरस को सिकंदर के समक्ष आत्मसमर्पण करने की बात कही गयीं। पर पोरस ने अधीनता स्वीकार नहीं की, और युद्ध करने का निर्णय लिया।

  •  सिकंदर के खिलाफ पोरस की तैयारी-

सिकंदर जब झेलम नदी के पास पहुंचा, तो उसे राजा पोरस का सामना करना पड़ा। पोरस पहले से तैयार थे और उन्हें सिकंदर की योजनाओं की जानकारी थी। झेलम नदी के पार राजा पोरस की सेना ने मोर्चा बना रखा था, और उन्होंने अपने विशाल हाथी सेना और पैदल सैनिकों को तैनात कर दिया था। पोरस की सेना की संरचना में लगभग 20,000 पैदल सैनिक, 4,000 घुड़सवार सैनिक, और 200 से ज्यादा युद्ध हाथी थे।

राजा पोरस अपने राज्य की भौगोलिक परिस्थितियों से वाकिफ थे। सिन्धु और झेलम नदियां पार करे बिना पोरस के राज्य में प्रवेश मुमकिन नहीं था। सिकंदर का बल उसके

घुड़सवार सैनिक थे।

पोरस"King Porus, the brave Indian ruler who fought against Alexander the Great – A historical tale of valor and leadership."
“Unveil the incredible story of King Porus – From his powerful reign to his legendary battle against Alexander. Learn about the courage, strategy, and leadership of one of India’s greatest historical warriors.”
  • पोरस की रणनीति-

पोरस ने हाथियों की विशाल सेना को अपनी अग्रिम पंक्ति में रखा, ताकि सिकंदर की सेना पर सीधा हमला किया जा सके। उनके हाथियों ने ग्रीक सैनिकों को पहले ही हमले में भारी नुकसान पहुंचाया। पोरस के घुड़सवार और पैदल सैनिकों ने सिकंदर की सेना से मुकाबला किया, और शुरुआती दौर में पोरस की सेना मजबूत स्थिति में दिखाई दी।

  • सिकंदर की रणनीति-

सिकंदर की सेना पोरस से बड़ी थीं। वह अपन घुड़सवारों सैनिकों और अंगरक्षकों पर बहुत निर्भर था। तक्षशिला के राजा आभ्भी का भी उसे साथ मिला था। उसके सैनिक भी उसकी सहायता कर रहे थे। उसकी सेना में 50 हजार से ज्यादा सैनिक थे। सिकंदर की घुड़सवार सेना और पैदल सेना ने तेजी से हमला किया।

युद्ध का क्या परिणाम निकला-

ग्रीक इतिहासकारों के मुताबिक इस युद्ध में पोरस की हार हुई थीं, और सिकंदर विजयी हुआ था। फिर उसने महाराज पोरस को बंदी बना लिया और उसके बाद पोरस ने को सिकंदर के सामने पेश किया गया और फिर सिकंदर ने पोरस से पूछा कि तुम्हारे साथ क्या किया जाए। इस पर पोरस ने जवाब दिया कि- ‘जो एक राजा दूसरे राजा के साथ करता हैं’। जिससे सिकंदर खुश हुआ और उसने महाराज पोरस को छोड़ दिया।

पर अगर सिकंदर इतना ही महान और तेज था, तो फिर उसने अपना अभियान इस युद्ध के बाद रोक क्यो दिया। क्यो नहीं वह सम्पूर्ण भारत को जीतने की और आगे बढ़ा। भारतीय इतिहासकारों ने इस पर कोई शोध किया नहीं हैं और ना ही कोई तथ्य प्रदर्शित किया हैं। वह सिर्फ ग्रीक इतिहासकारों के आधार पर सिकंदर को महान और पोरस को इस युद्ध में हारा हुआ बताने लगें।

इस युद्ध का क्या निर्णय था, यह सर्वाथा अज्ञात ही कहा जा सकता हैं। हां हम यह कह सकते हैं, कि इस युद्ध ने सिकंदर की सेना को बहुत क्षति पहुंचाई, जिससे उसकी सेना थक कर आगे नहीं बढ़ी। और उसे खाली हाथ वापस लौटना पड़ा।

निष्कर्ष-

राजा पोरस और सिकंदर के बीच का युद्ध केवल एक सैन्य संघर्ष नहीं था, बल्कि यह दो महान योद्धाओं की वीरता, साहस, और नेतृत्व का प्रतीक था। सिकंदर ने अपने विजय अभियान के दौरान कई देशों पर आक्रमण किया, लेकिन राजा पोरस की वीरता और रणनीति ने उसे एक कड़ा मुकाबला दिया। पोरस ने अपनी सीमित संसाधनों और सेना के बावजूद विदेशी आक्रमणकारी का सामना किया और अपनी सेना की सैन्य संरचना, विशेष रूप से हाथी सेना, के माध्यम से युद्ध की कठिनाइयों को पार किया।

यद्यपि इस युद्ध का अंत कुछ निर्णायक नहीं कहा जा सकता। पोरस की दृढ़ता और गौरव ने उन्हें सिकंदर के सामने झुकने से मना कर दिया। पोरस की वीरता ने सिकंदर को भी भयभीत कर दिया था। सिकंदर ने बाद में महाराज पोरस से संधि कर ली। इस युद्ध ने यह साबित किया कि भारतीय योद्धाओं की सैन्य क्षमता और नेतृत्व अद्वितीय था, और यह युद्ध भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय के रूप में अंकित हो गया।

यह निष्कर्ष निकालता है कि राजा पोरस ने न केवल अपनी भूमि और सम्मान की रक्षा की, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए साहस और राष्ट्रभक्ति की एक अमर मिसाल पेश की।

महाराज पोरस पर लिखे हमारे इस लेख के बारें में हमें अपनी राय कमेंट बाक्स के माध्यम से जरुर दे। धन्यवाद…

Q1: राजा पोरस का साम्राज्य कहाँ स्थित था?

A1: राजा पोरस का साम्राज्य पंजाब क्षेत्र में झेलम और चिनाब नदियों के बीच स्थित था।

Q2: सिकंदर और पोरस के बीच युद्ध किस वर्ष हुआ था?

A2: सिकंदर और पोरस के बीच झेलम का युद्ध 326 ईसा पूर्व में हुआ था।

Q3: पोरस की सैन्य ताकत में सबसे महत्वपूर्ण क्या था?

A3: पोरस की सैन्य ताकत में हाथी सेना सबसे महत्वपूर्ण थी, जो युद्ध में दुश्मनों को भयभीत करती थी।

Q4: सिकंदर ने युद्ध के बाद पोरस से क्या पूछा?

A4: युद्ध के बाद सिकंदर ने पोरस से पूछा, “तुम्हारे साथ क्या किया जाए?” पोरस ने उत्तर दिया, “जो एक राजा दूसरे राजा के साथ करता है।”

Q5: पोरस की शासन व्यवस्था का मुख्य उद्देश्य क्या था?

A5: पोरस की शासन व्यवस्था का मुख्य उद्देश्य न्यायप्रियता और प्रजा के कल्याण पर आधारित था।

Leave a Comment