“महात्मा गांधी (Gandhi) दुनिया में अहिंसा का सबसे बड़ा चेहरा है। इन्होंने सिखाया की कैसे कोई व्यक्ति अहिंसा की ताकत के दम पर दुनिया के सबसे बड़े साम्राज्य को झुका सकता है। 9 जनवरी 1915 में भारत में वापसी से लेकर 15 अगस्त 1947 तक वो भारत की आजादी के लिए सघर्षरत रहें। कुछ घटनाओं के कारण उन पर दोष भी मढ़ा जाता है। उन्हें भारत का राष्ट्रपिता कहा जाता है। इस साल हम उनका 154वां जन्मदिन मना रहें है।”
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जन्म और परिवेश-Birth and environment
मोहनदास करमचंद गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को एक गुजराती परिवार में पोरबंदर में हुआ था। उनके पिता का नाम करमचंद तथा माता का नाम पुतलीबाई था। इनके पिता ब्रिटिश राज के समय काठियावाड़ की एक छोटी सी रियासत पोरबंदर के दीवान अर्थात प्रधानमंत्री थे। उनका विवाह कम आयु में कर दिया गया। मई 1883 में साढे 13 वर्ष की आयु मे इनका विवाह 14 वर्ष की कस्तूरबाई मकनजी से कर दिया गया। जिन्हें प्यार से लोग बा कहते थे। गांधी जी के चार संन्तानें हुई, जो सभी पुत्र थे। हरीलाल गांधी, मणिलाल गांन्धी, रामदास गांन्धी, देवदास गांधी उनके चार पुत्र थे।
गांन्धी जी ने मिडिल स्कूलिंग पोरंबदर से और हाईस्कूल उन्होंने राजकोट से किया। वह एक साधारण छात्र थे। हाईस्कूल की परीक्षा के बाद आगे की परीक्षा भावनगर के शामलदास कॉलेज से पास की। उनका परिवार उन्हें बैरिस्टर बनाना चाहता था।
4 सितम्बर 1888 को गांधी जी लन्दन में कानून की पढ़ाई करने और बैरिस्टर बनने के लिये इंग्लैंड चले गये। लन्दन जाते समय उन्होंने अपनी मां को यह वचन दिया कि वह वहां मांस, शराब व परायी स्त्री से दूर रहेंगे। बैरिस्टर बनने के बाद वे भारत लौटें और बम्बई में वकालत शुरु की पर वहां उन्हें कोई खास सफलता नहीं मिली। वर्ष 1893 में एक भारतीय फर्म से एक वर्ष के करार पर वह वकालत का कारोबार स्वीकार कर नेटाल, दक्षिण अफ्रीका चले गये। जो कि उस समय ब्रिटिश साम्राज्य का भाग था।
दक्षिण अफ्रीका प्रवास और नागरिक अधिकार आन्दोलन- South African migration and civil rights movement
गांधी जी 24 साल की उम्र में एक केस लड़ने के लिए 1893 में दक्षिण अफ्रीका गये थे। दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों से बहुत भेदभाव होता था। इसी भेदभाव का शिकार मोहनदास भी हुए। उस वक्त उन्होंने पहली बार वहां जातिवाद का सामना किया था। वह 7 जून 1893 को पीटरमैरिट्सबर्ग से प्रिटोरिया जा रहे थे। उन्होंने प्रथम श्रेणी का टिकट ले रखा था इसके बावजूद उन्हें रंगभेद के कारण पीटरमेरिट्जबर्ग स्टेशन पर ट्रेन से फेंक दिया गया। उन्होंने अपनी इस यात्रा में कई कठिनाइयों का सामना किया। अफ्रीका के कई होटल उनके लिए वर्जित कर दिये गए।
इसके बाद में उन्होंने अफ्रीका में हो रहे भारतीयों से भेदभाव के लिए लड़ने की ठानी। एक और घटना उनके साथ होती है जिसमें अदालत के न्यायाधीश ने उन्हे अपनी पगड़ी उतारने का आदेश दिया था जिसें गांधी जी ने मना कर दिया था। इन सारी घटनाओं ने गांधी के जीवन में बहुत व्यापक प्रभाव ड़ाला। इसके बाद दक्षिण अफ्रीका में उनका अंग्रेजों के खिलाफ व्यापक सघर्ष शुरु हुआ।
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भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में गांधी का आगमन – Gandhi’s arrival in the Indian freedom struggle
9 जनवरी, 1915 को गांधी जी राजनीति में अपने गुरू गोपाल कृष्ण गोखले के कहने पर दक्षिण अफ्रीका से 21 वर्षो के सघर्ष के बाद भारत वापस लौटे थे।
भारत आते ही उन्होंने कई तरह के आन्दोलनों में भाग लिया। जिसमें चंपारण सत्याग्रह, अहमदाबाद मिल हड़ताल और खेड़ा सत्याग्रह प्रमुख है। गांधी की पहली उपलब्धि 1918 में चंपारण और खेड़ा सत्याग्रह के रुप में मिली।
“खेड़ा सत्याग्रह वर्ष 1918 में ब्रिटिश राज के समय गुजरात के खेड़ा में, गांधी जी द्वारा शुरु किया गया सत्याग्रह आंदोलन था। उस वक्त खेड़ा के लोग फसल में हुए नुकसान और प्लेग महामारी फैंल जाने के कारण अंग्रेजों द्वारा लगाए गए उच्च करों का भुगतान करनें में असमर्थ थे। यह भारतीय स्वतंत्रता सग्राम में एक बड़ा आंदोलन था। उस समय गांधीजी ने सरदार वल्लभ भाई पटेल के साथ किसानों का समर्थन किया और उन्हे सलाह दी कि जब तक अंग्रेज उनकी बात न माने वे राजस्व का भुगतान रोक दे।”
“चंपारण सत्याग्रह वर्ष 1917 में बिहार के चम्पारण जिले में नील कृषको का ब्रिटिश राज एवं शोषक जमींदारों के अत्याचारों एवं शोषण के विरुद्ध संचालित आंदोलन था। इस आंदोलन का नेतृत्व गांधीजी ने किया था। भारत में यह गांधीजी का सत्याग्रह का पहला प्रयोग था।”
“वर्ष 1918 में अहमदाबाद की एक सूती कपड़ा मिल के मजदूरों ने 21 दिन की हड़ताल की थी। चम्पारण के बाद यह गांधीजी का दूसरा सफल सत्याग्रह परीक्षण था। मिल मजदूर उस वक्त बढ़ी हुई महंगाई के कारण इसे वापस न लेने एवं मासिक वेतन में ही जोड़ने की मांग करने लगे। यह मांग अस्वीकार होने पर मजदूर महात्मा गांधीजी के नेतृत्व में इस आन्दोलन में बैठ गये।”
इसके परिणाम स्वरुप गांधीजी की ख्याति पूरे देश में फैल गई।
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असहयोग आन्दोलन- non cooperation movement
गांधी जी ने असहयोग, अहिंसा तथा शतिपूर्ण तरीके को अंग्रेजों के खिलाफ शस्त्र के रुप में उपयोग किया। असहयोग आंदोलन 5 सितंबर 1920 को शुरु किया गया था। इसका नेतृत्व महात्मा गांधी ने किया था। इस आंदोलन को शुरु करने के पीछे कई निम्न कारण थे-
- खिलाफत का मुद्दा
- पंजाब में ब्रिटिश राज द्वारा किये गये क्रूर कृत्य के खिलाफ न्याय हासिल करना।
- स्वराज की प्राप्ति करना।
असहयोग आंदोलन 1 अगस्त 1920 में औपचारिक रुप से शुरु हुआ था, उसके बाद इसका प्रस्ताव कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में 4 सितम्बर 1920 को प्रस्ताव पारित हुआ। जिसके बाद कांग्रेस ने इसे अपनी पूर्ण स्वीकृति दे दी।
यह अंग्रेजों द्वारा प्रस्तावित अन्यायपूर्ण कानूनों और कार्यो के विरोध में देशव्यापी अंहिसक आंदोलन था। इस आंदोलन का स्पष्ट उद्देश्य स्वराज प्राप्त करना था। इस आंदोलन में कई प्रयोग अपनाये गये-
- ब्रिटिश उत्पादों के उपयोग को समाप्त करने का आह्रान किया गया।
- इस आदोंलन के तहत सभी प्रकार के सरकारी समारोह का बहिष्कार किया जाएगा और सरकारी उपाधियाँ व सम्मान वापस कर दिये जाएंगे। इसी के तहत गांधी जी ने अपनी केसर ए हिंद की उपाधि, जूलू युद्ध पदक और बोअर पदक अंग्रेजों को लौटा दिए थे।
- इसी के अंतर्गत यह भी तय हुआ कि जो भी भारतीय ब्रिटिश सरकार के अवैतनिक पदों पर काम करने वाले तथा स्थानीय निकायों में मनोनीत पदाधिकारी अपने पदों से इस्तीफा दें देंगे और इनका बहिष्कार करेंगे।
- इस आंदोलन के अंतर्गत छुआछुत का अंत करने की बात की गई तथा हिंदू मुस्लिम एकता को बढ़ावा देने का लक्ष्य रखा गया ताकि आंदोलन का जनाधार विस्तृत किया जा सके।
- इस दौरान खादी से बने वस्त्रों को बढ़ावा दिया गया तथा विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया गया, ताकि स्वदेशी कपड़ो को अधिक से अधिक प्रसारित किया जा सके।
- सारे सरकारी विघालयों और महाविघालयों का बहिष्कार किया गया तथा राष्ट्रीय विघालयों और महाविघालयों की स्थापना की गयी थी।
- विभिन्न विवादों के निपटान करने के लिए पंचायतों की स्थापना की जानी थी।
- इस आंदोलन के सदर्भ में गांधी जी ने कहा था कि यदि ये सभी कार्यक्रम सफलतापूर्वक लागू हुये तो हमें 1 वर्ष में स्वराज प्राप्त हो जाएगा।
असहयोग आंदोलन को सभी लोगों और वर्गो से अपील व सफलता मिली। जैसे ही यह आंदोलन अपने शीर्ष पर पहुंचा वैसे ही फरवरी 1922 में उत्तर प्रदेश के चौरी-चोरा में हुई घटना इसको वापस ले लिया गया। आंदोलन द्वारा हिंसा का रुख अपनाने के डर से गांधी जी ने इस पूरे आंदोलन को वापस ले लिया। इस पर यह भी विचार किया गया कि अंग्रेज इस घटना का बहाना बनाकर पूरे भारत में कत्लेआम करेंगे।
इसलिए भी इसे वापस ले लिया गया। 10 मार्च, 1922 को गांधी जी पर राजद्रोह का मुकदमा चलाकर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। जिसमें उन्हें छः साल सजा सुनाकर जेल भेज दिया गया। इसके बाद वे दो साल जेल में रहे। फिर उन्हे फरवरी 1924 में आंतो के ऑपरेशन के लिए रिहा कर दिया गया।
लाहौर अधिवेशन व नमक सत्याग्रह- Lahore session and Salt Satyagraha
1922 के बाद गांधी जी सक्रिय राजनीति से दूर रहे। वें कांग्रेस के साथ मिलकर सोशल वर्क करते रहे। इसके अतिरिक्त वे अस्पृश्यता, शराब, अज्ञानता और गरीबी के खिलाफ आंदोलन छेड़ते भी रहे। 1928 में राजनीति में वापस आये। दिसम्बर 1928 के कलकत्ता में आयोजित कांग्रेस अधिवेशन में गांधी जी ने अंग्रेजों से सत्ता भारतीयों को देने की बात कही थी।
जिसके लिए उन्होंने अंग्रेजों को एक साल का वक्त दिया। ऐसा न होने पर पूरे देश में असहयोग आंदोलन की चेतावनी भी दी। पर अंग्रेजों ने कोई जवाब नही दिया। 31 दिसम्बर 1929 को कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में तिरगा फहराया गया। और 26 जनवरी 1930 को स्वतंत्रता दिवस के रुप मे चिन्हित किया। यह सभी संगठनों द्वारा मनाया गया। लाहौर अधिवेशन में ही कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज को अपना लक्ष्य निर्धारित किया।
इसके बाद गांधी जी ने अंग्रेजों को खुली चुनौती देते हुए दांडी यात्रा शुरु की। जिसें दांडी यात्रा या नमक सत्याग्रह का नाम दिया गया। दांडी मार्च 12 मार्च, 1930 को साबरमती में महात्मा गांधी द्वारा शुरु किया गया था, और यह दांडी (नवसारी) में 5 अप्रैल, 1930 तक चला। यह अभियान ब्रिटिश नमक एकाधिकार के खिलाफ कर प्रतिरोध और अंहिसक विरोध के प्रत्यक्ष कार्रवाई अभियान के रुप में चला।
यह महात्मा गांधी के नेतृत्व में औपनिवेशिक भारत में अंहिसक सविनय अवज्ञा का एक कार्य था। इस आंदोलन की शुरुआत में 78 सत्याग्रहियों के सात दांडी कूच के लिए निकले गांधीजी के साथ दांडी पहुंचते-पहुंचते पूरा आवाम जुट गया था। यह गांधीजी के सफल आंदोलनों में से एक था, इस आदोंलन से जुड़े 80000 से अधिक लोगों अग्रेजों ने जेल में डाल दिया।
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भारत छोड़ो आंदोलन- Quit India Movement
भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत 8 अगस्त 1942 को हुई थी। इस आंदोलन का नेतृत्व महात्मा गांधी ने किया था। इसकी शुरुआत गांधी जी ने अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के मुम्बई अधिवेशन से की थी। उस समय गांधीजी ने मुंबई के गोवलिया टैंक मैदान या अगस्त क्रांति मैदान में अपना ऐतिहासिक भाषण दिया था और इस भाषण में ‘करो या मरो’ का नारा दिया था, उस समय उनके साथ कांग्रेस के कई बड़े नेता मौजूद थे।
भारत में ब्रिटिश शासन को समाप्त करने के उद्देश्य से यह आंदोलन शुरु किया गया था। इस आंदोलन के शुरु होने के कुछ मुख्य कारण थे जैसे कि, देश को बगैर सहमति के विश्व युद्ध में झोंकना, अंग्रेज यूनाइटेड किंगडम की ओर से लड़ने के लिए भारतीयों को भी घसीट रहे थे। उस समय द्वितीय विश्वयुद्ध में सम्पूर्ण भारतवर्ष के 87,000 से अधिक सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए थे। यह आंदोलन अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ काफी प्रभावशाली साबित हुआ और शासन की नीद उड़ गई थी। आंदोलन की शुरुआत के समय गांधीजी ने कहा था कि अंग्रेजों को अब तुरंत भारत छोड़ देना चाहिए।
इस आंदोलन की शुरुआत के अगले ही दिन अंग्रेजी सरकार ने सैकड़ो लोगों को गिरफ्तार कर लिया। गांधीजी को भी गिरफ्तार कर लिया गया। जिससे आंदोलन नेताविहीन हो गया। इस आंदोलन में कई लोगों की जान गई व हजारों लोगों को जेल में डाल दिया गया था। इस आदोंलन को अगस्त क्रान्ति भी कहा जाता है। इसने अंग्रेज सरकार की नींव हिलाने का काम किया था।
भारत की आजादी और विभाजन- Independence and partition of India
1946 को कैबिनेट मिशन प्लान भारत आया। उस समय मुस्लिम लीग जिसका नेतृत्व जिन्ना कर रहा था वह पूरी तरह से भारत के विभाजन के पक्ष में था और उसने विभाजन की बात न मानने पर परिणाम भुगतनें की चेतावनी भी थी। गांधी जी ऐसी किसी भी योजना के खिलाफ थे जो देश को दो भांगों में विभाजित करती हो। उस समय हिंदू- मुस्लिम दंगे बहुत बढ़ चुके थे। इसके अतिरिक्त जिन्ना व मुस्लिम लींग के कई नेताओं ने पश्चिम पंजाब, सिंध, उत्तर पश्चिम सीमांत प्रांत और पूर्वी बंगाल में व्यापक सहयोग का परिचय दिया।
कांग्रेस जानती थी कि गांधी के सहमति के बिना बंटवारे की इस योजना को सहमति नही दी जा सकती। 1948 के बीच लगभग 5000 अधिक लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया। आखिरकार बढ़ती हिंसा के बीच गांधी जी ने भी बंटवारे पर अपनी सहमति दे दी और 15 अगस्त,1 947 को भारत को आजादी मिली और भारत से टूटकर एक नया देश पैदा हुआ जो आजतक भारत का सबसे बड़ा सिरदर्द बना हुआ है ओर वो देश है ना पाक पाकिस्तान।
हत्या- the killing
गांधी जी की हत्या 30 जनवरी, 1948 को उस समय कर दी गई जब वे बिड़ला हाउस में रात मे चहलकदमी कर रहे थे। उनकी हत्या नाथूराम गौड़से ने की। उसे और उसके सहयोगी नारायण आप्टे को बाद में केस चलाकर सजा दी गई और 15 नवंबर 1949 को इन्हें फांसी दे दी गई। राजघाट, नईदिल्ली में गांधीजी का स्मारक स्थल है।
उनके सिद्धान्त- His principles
गांधी जी जीवन के मुख्य सिद्धान्त में से सत्य और अहिंसा अहम है। उन्होंने अपना जीवन सत्य को समर्पित कर दिया। उन्होंने अपनी आत्मकथा को सत्य के प्रयोग का नाम दिया।
गांधी जी सत्य और अहिंसा को जीवन का मूल आधार मानते थे। उनके अनुसार अहिंसा वो हथियार है जिसका इस्तेमाल अन्याय और उत्पीड़न के खिलाफ लड़ने के लिए किया जा सकता है। सत्य और अहिंसा ही मानव जाति के लिए एकमात्र मार्ग है।
सत्य-
सत्य एक आदर्श है, जिसे जीवन के हर पहलू में अपनाया जाना चाहिए। सत्य का अर्थ है ईमानदारी, न्याय और निष्पक्षता। गांधी जी मानते थे कि सत्य ही एकमात्र आधार है जिस पर कोई भी मजबूत समाज खड़ा हो सकता है।
अहिंसा-
अहिंसा एक शक्तिशाली हथियार है जिसका उपयोग अन्याय और उत्पीड़न के खिलाफ लड़ने के लिए किया जा सकता है। अहिंसा का अर्थ है हिंसा का विरोध बिना हिंसा के। वे मानते थे कि अहिंसा ही एकमात्र वो जरिया है जिससे दुनिया में न्याय और शांति स्थापित हो सकती है।
गांधी जी द्वारा संपादित पत्रिकाएँ- Magazines edited by Gandhiji
गांधी जी एक सफल लेखक थे। उन्होंने कई पत्रिकाओं का संपादन किया जिनमें हरिजन, इंडियन ओपिनियन, यंग इडिया आदि प्रमुख थी। जब वे भारत वापस लौटे तब उन्होंने नवजीवन नामक मासिक पत्रिका निकाली। बाद में नवजीवन का प्रकाशन हिंदी में भी हुआ।
प्रमुख पुस्तकें- Major books
मुख्य रुप से गांधी जी द्वारा चार पुस्तकें लिखी गई है- हिंद स्वराज, दक्षिण अफ्रीका के सत्याग्रह का इतिहास, सत्य के प्रयोग(आत्मकथा) तथा गीता पदार्थ कोश सहित संपूर्ण गीता की टीका। वैसे तो गांधी जी गुजराती में लिखते थे, परन्तु अपनी किताबों का हिन्दी और अंग्रेजी में भी अनुवाद करवाते थे।
“गांधी जी के बारे में बहुत कुछ लिखा गया है। दुनिया की कई महान लोगों ने उनके सिद्धातों का पालन किया है। जिनमें प्रमुख नाम है- मार्टिन लूथर किंग जूनियर, नेल्सन मंडेला और दलाई लामा। इसके अलावा भी उन्होंने कई लैटिन अमेरिका, एशिया, मध्य पूर्व तथा यूरोप को सामाजिक एवं राजनीतिक रुप से प्रभावित किया।
अल्बर्ट आइंस्टीन जैसे महान विभूतियों ने भी गांधी जी के बारे में कहा था कि भविष्य के लोगों को इस बात पर विश्वास करना मुश्किल होगा कि हाड़-मांस से बना ऐसा कोई व्यक्ति भी कभी धरती पर आया था। गांधी के विचारों ने दुनियाभर के लोगों को प्रेरित किया है। उनकी करुणा, सहिष्णुता और शांति के दृष्टिकोण ने भारत और दुनिया में बदलाव लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
हालाँकि आज ऐसा समय आ गया है जब गांधी और उनके विचारों की उपयोगिता को अप्रासंगिक बताया जा रहा है। जबकि उनके विचार ऐसे ही समय में सबसे अधिक प्रासंगिक है। जब लोग लालच, व्यापक हिंसा और भागदौड़ भरी जीवन-शैली के समाधान खोजने की कोशिश कर रहे हो।
आज के समय में ही उनके अहिंसा और सत्याग्रह की आवश्यकता है जब मात्र प्रतिशोध के नाम पर किसी की भी हत्या कर दी जाती है और अपने आलोचकों को दुश्मन से अधिक कुछ नहीं समझा जाता। उनके बाद आये कई नेताओं ने अपने-अपने देश में उनके तरीके को आजमाया और अपने देश के उत्पीड़ित समाज को गांधीवादी तरीके से न्याय की ओर ले गये। ये इस बात की गवाही है कि उनके विचार आज भी प्रासंगिक है।
आलोचना लोकतंत्र का अधिकार है, परन्तु किसी की भी आलोचना करने से पूर्व यह भी आवश्यक है कि हम उस व्यक्ति के बारे में अच्छे से पढ़े और तर्क के आधार पर उसकी आलोचना करें। न कि सिर्फ अपनी मनगढ़त कहानियों में खोयें रहे और उस व्यक्ति की आलोचना करते रहे।”
धन्यवाद….
Q1: What is the significance of Mahatma Gandhi’s return to India in 1915?
A1: Mahatma Gandhi’s return to India in 1915 marked a crucial moment in the Indian independence movement as he became a pivotal leader in the struggle for freedom.
Q2: What were the key elements of the Non-Cooperation Movement led by Gandhi?
A2: The Non-Cooperation Movement involved boycotting British goods, returning honors and awards, promoting Khadi (hand-spun cloth), and emphasizing non-violent resistance as a means to gain self-rule.
Q3: Why did Mahatma Gandhi suspend the Non-Cooperation Movement in 1922?
A3: Mahatma Gandhi suspended the Non-Cooperation Movement in 1922 due to the fear that continued protests might lead to violence and bloodshed after the Chauri Chaura incident. He was concerned about maintaining non-violence in the movement.
Q4: What were the main principles that guided Mahatma Gandhi’s life and actions?
Gandhi’s life was guided by the principles of truth (Satya) and non-violence (Ahimsa). He believed in dedicating his life to these values and referred to his autobiography as “The Story of My Experiments with Truth.”
Q5: How did the partition of India take place, and what were some of Gandhi’s core principles?
The partition of India occurred in 1947, creating India and Pakistan. It was marked by communal violence and displacement. Gandhi’s core principles included truth and non-violence, and he opposed the division, striving for communal harmony and peace even in the face of adversity.