“कश्मीर के पहले भाग में हमने जम्मू-कश्मीर के प्राचीन इतिहास से लेकर भारत की आजादी तक की घटनाओं को विस्तार से जाना। अब इसके दूसरे भाग में हम जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय, इसके बाद हुए युद्धों, अनुच्छेद 370, कश्मीर घाटी में फैले आतंकवाद, कश्मीरी पंडितों के पलायन और उसके बाद के महत्वपूर्ण घटनाक्रमों पर विस्तार से चर्चा करेंगे।”
“भारत की आजादी के बाद जम्मू-कश्मीर भी स्वतंत्र हो गया। यहां के महाराजा हरि सिंह ने जम्मू-कश्मीर को एक स्वतंत्र राज्य के रूप में स्थापित करने की इच्छा जताई। वे एक स्वतंत्र सत्ता चाहते थे, लेकिन पाकिस्तान की नजर कश्मीर घाटी पर थी। इसके बाद उसने कबाइलियों का सहारा लेते हुए कश्मीर में घुसपैठ शुरू की।
इस स्थिति से घबराकर महाराजा हरि सिंह ने भारत के साथ विलय के लिए सहमति जताई। इसके बाद भारतीय सेना ने जम्मू-कश्मीर में प्रवेश किया और हमलावरों को पीछे हटाने की कार्रवाई शुरू की। परंतु, पंडित नेहरू के एक गलत निर्णय के कारण भारत पूरे कश्मीर पर नियंत्रण नहीं कर सका। इसके बाद जो हुआ, वह इतिहास बन गया।”
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जम्मू कश्मीर का भारत में विलय-
आजादी के बाद पहले जम्मू-कश्मीर एक अलग रियासत बनीं। पर पाकिस्तान के आक्रमण के कारण वहां के महाराज ने भारत के साथ विलय पर 26 अक्टूबर, 1947 को हस्ताक्षर कर दिये, जिसके साथ ही जम्मू-कश्मीर भारत का कभी एक अभिन्न अंग बन गया। लेकिन इसके बाद भी पाकिस्तान व कश्मीर के अन्दर से कई गतिविधियां होनी शुरु हो गयीं थीं। यहां जम्मू-कश्मीर के विलय व इसके बाद हुए घटनाक्रम पर चर्चा करते हैं-
- पृष्ठभूमि और स्थिति-
1947 में भारत और पाकिस्तान को ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता प्राप्त हुई। ब्रिटिश इंडिया को दो राष्ट्रों में विभाजित कर दिया गया—भारत और पाकिस्तान। साथ ही, 500 से अधिक देशी रियासतों को यह विकल्प दिया गया कि वे भारत या पाकिस्तान में विलय कर सकते हैं या अपनी स्वतंत्रता बनाए रख सकते हैं। जम्मू-कश्मीर भी ऐसी ही एक प्रमुख रियासत थी, जिसकी सीमा भारत, पाकिस्तान और चीन से लगती थी और जिसकी भू-राजनीतिक स्थिति अत्यंत महत्वपूर्ण थी।
जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन शासक महाराजा हरि सिंह ने स्वतंत्र रहने की इच्छा व्यक्त की। वे न तो भारत में विलय करना चाहते थे, न ही पाकिस्तान में। वे एक स्वतंत्र राज्य के रूप में जम्मू-कश्मीर की स्थिति को बनाए रखना चाहते थे। इस बीच, कश्मीर की जनता के भीतर भी हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच मतभेद थे, जिससे स्थिति और जटिल हो गई थी।
- पाकिस्तान की कश्मीर पर नजर-
पाकिस्तान, एक मुस्लिम बहुल राज्य होने के कारण, जम्मू-कश्मीर पर अपना अधिकार मानता था क्योंकि यह एक मुस्लिम बहुल क्षेत्र था। पाकिस्तान के लिए कश्मीर का विलय अत्यधिक महत्वपूर्ण था, इसलिए उसने कूटनीतिक और सैन्य दोनों माध्यमों से जम्मू-कश्मीर पर कब्जा करने की योजना बनाई।
अक्टूबर 1947 में, पाकिस्तान ने कश्मीर पर एक आक्रमण किया, जिसे ‘ऑपरेशन गुलमर्ग’ कहा जाता है। इसमें पाकिस्तान समर्थित कबायली लड़ाकों ने कश्मीर पर हमला किया और तेजी से कश्मीर के कई हिस्सों पर कब्जा जमा लिया। इन कबाइलियों ने लूटपाट, हिंसा और अत्याचारों का सिलसिला शुरू कर दिया, जिससे महाराजा हरि सिंह की स्थिति बेहद नाजुक हो गई।
- महाराजा हरि सिंह का भारत से सहायता की मांग-
कबायली आक्रमण से कश्मीर की सुरक्षा खतरे में आ गई थी। महाराजा हरि सिंह ने पाकिस्तान की बढ़ती आक्रामकता को देखते हुए भारत से मदद की गुहार लगाई। हालांकि, भारत ने स्पष्ट किया कि वह तभी सैन्य सहायता प्रदान करेगा, जब जम्मू-कश्मीर भारत में विलय के लिए तैयार होगा।
महाराजा हरि सिंह के पास अब कोई अन्य विकल्प नहीं बचा था। उन्होंने 26 अक्टूबर 1947 को ‘विलय पत्र’ (Instrument of Accession) पर हस्ताक्षर किए, जिसके तहत जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग बन गया। इसके बाद भारत ने जम्मू-कश्मीर की सुरक्षा के लिए अपनी सेना भेजी और पाकिस्तानी हमलावरों के खिलाफ मोर्चा संभाला।
- विलय पत्र की शर्तें और अनुच्छेद 370-
विलय पत्र के अनुसार, जम्मू-कश्मीर ने भारत के साथ रक्षा, विदेशी मामलों और संचार के मामलों में पूर्ण नियंत्रण भारत को सौंपा। बाकी के मामलों में राज्य को स्वायत्तता दी गई। इस विशेष स्थिति को बनाए रखने के लिए भारतीय संविधान में अनुच्छेद 370 जोड़ा गया, जिसने जम्मू-कश्मीर को एक विशेष दर्जा प्रदान किया।
यह अनुच्छेद जम्मू-कश्मीर को एक विशेष स्वायत्तता प्रदान करता था, जिसके तहत राज्य के नागरिकता कानून, संपत्ति के अधिकार और प्रशासनिक स्वायत्तता को भारत के अन्य राज्यों से अलग माना गया।
- भारतीय सेना का आगमन और पहला भारत-पाक युद्ध-
महाराजा हरि सिंह के भारत में विलय के बाद, भारतीय सेना ने कश्मीर में प्रवेश किया और पाकिस्तान समर्थित कबाइलियों को पीछे धकेलने की कोशिश की। इसके परिणामस्वरूप, भारत और पाकिस्तान के बीच 1947-48 का पहला युद्ध शुरू हुआ। इस युद्ध के दौरान भारतीय सेना ने आक्रमणकारियों से कश्मीर के कई हिस्सों को छुड़ाया, लेकिन पड़ित नेहरु की बड़ी गलती और यूएन के हस्तक्षेंप के कारण पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर के उत्तरी हिस्से पर कब्जा कर लिया, जिसे आज ‘पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर’ कहा जाता हैं।
- संयुक्त राष्ट्र का हस्तक्षेप और युद्धविराम-
1948 में, भारत ने कश्मीर विवाद को संयुक्त राष्ट्र (यूएन) में उठाया। संयुक्त राष्ट्र ने भारत और पाकिस्तान के बीच युद्धविराम का प्रस्ताव दिया, जो 1 जनवरी 1949 को लागू हुआ। युद्धविराम के समय तक पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर के एक बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया था, जबकि बाकी का हिस्सा भारत के नियंत्रण में रहा।
संयुक्त राष्ट्र ने कश्मीर में जनमत संग्रह कराने का प्रस्ताव दिया, ताकि पाक अधिकृत जम्मू-कश्मीर के लोग यह निर्णय कर सकें कि वे भारत में शामिल होना चाहते हैं या नहीं। हालांकि, यह जनमत संग्रह कभी नहीं हो पाया, क्योंकि पाकिस्तान ने पीओके से अपनी सेना नहीं हटाई।
अनुच्छेद 370 का विषय क्या है? और क्यो इसे कश्मीर घाटी में लगाया गया था?
अनुच्छेद 370 भारतीय संविधान का एक अस्थायी प्रावधान था, जिसे जम्मू-कश्मीर को विशेष स्वायत्तता प्रदान करने के लिए बनाया गया था। इस अनुच्छेद के तहत जम्मू-कश्मीर को अन्य भारतीय राज्यों से अलग एक विशेष दर्जा दिया गया था, जिससे वह भारतीय संघ का हिस्सा होते हुए भी अपनी कुछ आंतरिक नीतियों और कानूनों को स्वतंत्र रूप से संचालित कर सकता था। यह अनुच्छेद जम्मू-कश्मीर के संविधान और उसकी स्वायत्तता को बनाए रखने के लिए आवश्यक था। इस तरह से एक ही देश में दो विधान, दो निशान व दो संविधान चल रहे थे।
- अनुच्छेद 370 का मुख्य उद्देश्य-
- विशेष स्वायत्तता: इस अनुच्छेद के तहत जम्मू-कश्मीर को विशेष अधिकार दिए गए थे। भारतीय संसद को केवल तीन क्षेत्रों — रक्षा, विदेश मामले, और संचार — में कानून बनाने का अधिकार था। बाकी सभी मामलों में जम्मू-कश्मीर सरकार को पूर्ण स्वायत्तता थी।
- संविधान और कानून: जम्मू-कश्मीर का अपना संविधान था और भारतीय संविधान की कुछ धाराएँ और कानून इस राज्य पर सीधे लागू नहीं होते थे। भारतीय संसद द्वारा बनाए गए कानून जम्मू-कश्मीर में तभी लागू होते थे, जब राज्य की विधानसभा इसकी सहमति देती थी।
- नागरिकता और संपत्ति के अधिकार: जम्मू-कश्मीर के नागरिकता कानून भारत के अन्य राज्यों से अलग थे। भारतीय नागरिक जम्मू-कश्मीर में संपत्ति नहीं खरीद सकते थे, और केवल राज्य के स्थायी निवासी ही वहां संपत्ति खरीद सकते थे या सरकारी नौकरी कर सकते थे।
- अनुच्छेद 370 का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य-
अनुच्छेद 370 का मूल इतिहास 1947 की घटनाओं से जुड़ा है, जब जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने भारतीय संघ में विलय के लिए सहमति दी। उस समय, जम्मू-कश्मीर के विलय पत्र (Instrument of Accession) में यह स्पष्ट किया गया था कि राज्य को रक्षा, विदेशी मामले और संचार जैसे मामलों में ही भारत का हिस्सा माना जाएगा, और बाकी मामलों में राज्य को अपनी स्वायत्तता बनाए रखने का अधिकार होगा।
1949 में, संविधान सभा ने अनुच्छेद 370 को संविधान में अस्थायी प्रावधान के रूप में शामिल किया। इसका उद्देश्य था कि यह एक अस्थायी व्यवस्था होगी, जिसे समय के साथ बदला जा सकेगा। लेकिन यह अनुच्छेद लंबे समय तक लागू रहा और धीरे-धीरे इसे स्थायी रूप में देखा जाने लगा।
- अनुच्छेद 370 का कश्मीर घाटी में लागू करने का कारण-
- राजनीतिक अस्थिरता और विशेष सांस्कृतिक स्थिति: जम्मू-कश्मीर एक विशेष सांस्कृतिक और धार्मिक परिदृश्य वाला क्षेत्र था, जहां हिंदू राजा के अधीन एक मुस्लिम बहुल जनसंख्या थी। इस क्षेत्र के संवेदनशील राजनीतिक और सामाजिक वातावरण को ध्यान में रखते हुए अनुच्छेद 370 को लागू किया गया, ताकि कश्मीर की स्वायत्तता और उसकी सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखा जा सके।
- विलय के समय की स्थिति: जम्मू-कश्मीर ने भारत में पूर्ण रूप से विलय करने से पहले ही स्वायत्तता की शर्त पर भारत के साथ विलय किया था। महाराजा हरि सिंह और कश्मीर के राजनीतिक नेता शेख अब्दुल्ला ने राज्य की स्वायत्तता की सुरक्षा के लिए अनुच्छेद 370 का समर्थन किया था। यह राज्य की राजनीतिक पहचान को बनाए रखने के लिए किया गया था, ताकि स्थानीय जनता की भावनाओं का सम्मान हो सके।
- आशंकाएं और सुरक्षा: 1947 में भारत-पाकिस्तान विभाजन के बाद, जम्मू-कश्मीर की स्थिति अत्यधिक संवेदनशील थी। पाकिस्तान ने कश्मीर पर हमला किया, और भारत ने सेना भेजकर उसे बचाया। अनुच्छेद 370 का उद्देश्य कश्मीर में जनता को विश्वास दिलाना था कि भारत उनकी स्वायत्तता और संस्कृति की रक्षा करेगा। यह कश्मीर की मुस्लिम बहुल जनसंख्या के राजनीतिक और सांस्कृतिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए एक सुरक्षा कवच के रूप में देखा गया।
- अनुच्छेद 370 का प्रभाव-
- कानूनी स्वायत्तता: अनुच्छेद 370 के कारण जम्मू-कश्मीर का अपना संविधान बना और भारतीय संविधान की कई धाराएँ वहां लागू नहीं हो सकीं। इसके अलावा, भारतीय संसद के कई कानून जम्मू-कश्मीर पर बिना राज्य की सहमति के लागू नहीं हो सकते थे।
- आर्थिक और सामाजिक विभाजन: अनुच्छेद 370 के कारण जम्मू-कश्मीर में आर्थिक और सामाजिक स्तर पर कई असमानताएं बनी रहीं। बाहरी लोग राज्य में संपत्ति नहीं खरीद सकते थे, जिसके कारण राज्य के विकास में बाधाएं उत्पन्न हुईं। इसके अलावा, जम्मू-कश्मीर को मिलने वाले विशेष अधिकारों ने भारत के अन्य राज्यों के साथ असमानता का भाव पैदा किया।
- राजनीतिक संघर्ष और विवाद: अनुच्छेद 370 भारत और पाकिस्तान के बीच एक बड़ा विवादित मुद्दा बना रहा। पाकिस्तान ने हमेशा इसे कश्मीर की ‘अधूरी आजादी’ के रूप में प्रचारित किया और इसे अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर विवाद का कारण बनाया। वहीं, भारत में भी इसे लेकर राजनीतिक बहस होती रही, क्योंकि कई लोग इसे राज्य और देश के बीच विभाजनकारी तत्व मानते थे।
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इसके बाद हुए भारत व पाकिस्तान के बीच युद्ध व कश्मीर में पनपा आंतकवाद-
जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय के बाद, यह क्षेत्र भारत और पाकिस्तान के बीच लगातार तनाव और संघर्ष का केंद्र बना रहा। इस मुद्दे पर दोनों देशों के बीच कई युद्ध हुए हैं, और इसके साथ ही कश्मीर में आतंकवाद और अलगाववाद की भी गहरी जड़ें फैलीं। यह स्थिति आज भी भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा और सामाजिक ताने-बाने के लिए एक बड़ी चुनौती बनी हुई है।
- भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध-
- 1947-48 का युद्ध-
यह युद्ध भारत के स्वतंत्र होने के तुरंत बाद हुआ। पाकिस्तान ने कबायली लड़ाकों की मदद से जम्मू-कश्मीर में घुसपैठ की, जिसके परिणामस्वरूप भारतीय सेना ने क्षेत्र की रक्षा के लिए कार्रवाई की। यह युद्ध करीब एक साल तक चला, और 1949 में संयुक्त राष्ट्र के हस्तक्षेप से युद्धविराम लागू हुआ। इस युद्ध के परिणामस्वरूप कश्मीर का एक बड़ा हिस्सा पाकिस्तान के कब्जे में चला गया, जिसे आज ‘पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर’ कहा जाता है।
- 1965 का युद्ध-
यह भारत और पाकिस्तान के बीच दूसरा बड़ा युद्ध था, जिसे पाकिस्तान ने ‘ऑपरेशन जिब्राल्टर’ के नाम से शुरू किया। पाकिस्तान ने कश्मीर में घुसपैठ की कोशिश की व कुछ हिस्सों पर अधिकार करने का प्रयास नापाक प्रयास किया। भारतीय सेना ने पाकिस्तान के इस हमले का करारा जवाब दिया और कई प्रमुख इलाकों पर कब्जा किया। युद्ध अंततः संयुक्त राष्ट्र के हस्तक्षेप के बाद समाप्त हुआ और ताशकंद समझौते के तहत दोनों देशों ने अपने-अपने कब्जे वाले क्षेत्र वापस कर दिए।
- 1971 का युद्ध-
यह युद्ध मुख्य रूप से बांग्लादेश (पूर्वी पाकिस्तान) की स्वतंत्रता को लेकर हुआ था। हालांकि, इसका प्रभाव कश्मीर पर भी पड़ा। पाकिस्तान को इस युद्ध में भारी पराजय का सामना करना पड़ा, और बांग्लादेश एक स्वतंत्र राष्ट्र बना। युद्ध के बाद, 1972 में शिमला समझौता हुआ, जिसमें भारत और पाकिस्तान ने अपने कश्मीर विवाद को बातचीत के माध्यम से सुलझाने का निर्णय लिया। इस समझौते के तहत युद्धविराम रेखा (सीजफायर लाइन) को नियंत्रण रेखा (LoC) का नाम दिया गया।
- 1999 का कारगिल युद्ध-
कारगिल युद्ध भारत और पाकिस्तान के बीच एक सीमित संघर्ष था, जो पाकिस्तानी सेना और घुसपैठियों द्वारा कारगिल की ऊंचाइयों पर कब्जा करने के कारण हुआ। भारतीय सेना ने इस घुसपैठ का जोरदार जवाब दिया और ऊंचाई वाले इलाकों पर फिर से कब्जा किया। यह युद्ध दो परमाणु संपन्न देशों के बीच लड़ा गया था और इसकी वजह से दोनों देशों के बीच संबंधों में फिर से तनाव बढ़ गया। ये पाकिस्तान के नापाक मसूंबों का एक सबूत है।
- कश्मीर में आतंकवाद और अलगाववाद का फैलाव-
कश्मीर में आतंकवाद और अलगाववाद की जड़ें 1980 के दशक में गहराई से फैलीं। पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI ने कश्मीर में अस्थिरता पैदा करने के लिए स्थानीय अलगाववादी तत्वों और चरमपंथी समूहों का समर्थन करना शुरू किया। पाकिस्तान ये जान चुका था, कि सीधे लड़ाई में उसकी कायर सेना भारत से नहीं जीत सकतीं। इसलिए उसने छ्द्म युद्धों व आतंकवाद का सहारा लिया।
- 1980 के दशक में आतंकवाद की शुरुआत-
1980 के दशक के अंत में कश्मीर घाटी में आतंकवाद का उभार हुआ। इस दौरान कई स्थानीय युवाओं को पाकिस्तान में आतंकवादी प्रशिक्षण दिया गया, और उन्हें भारत के खिलाफ विद्रोह करने के लिए उकसाया गया। जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (JKLF) और हिज्ब-उल-मुजाहिदीन जैसे अलगाववादी संगठनों ने कश्मीर की आजादी या पाकिस्तान में विलय की मांग की।
- पाकिस्तान का समर्थन और घुसपैठ-
पाकिस्तान ने न केवल अलगाववादी समूहों को समर्थन दिया, बल्कि उनके लिए आर्थिक, सैन्य और कूटनीतिक सहायता भी प्रदान की। घुसपैठ के जरिए आतंकवादियों को कश्मीर घाटी में भेजा गया, और उन्होंने भारतीय सुरक्षाबलों पर हमले करना शुरू किया। पाकिस्तान ने इस मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाने का प्रयास किया और कश्मीर को विवादित क्षेत्र के रूप में प्रस्तुत किया।
- कश्मीरी पंडितों का पलायन (1990)-
1990 में, कश्मीर घाटी में हिंसा और आतंकवाद चरम पर था। इस दौरान कश्मीरी पंडितों को बड़े पैमाने पर निशाना बनाया गया, उनके घरों और मंदिरों को जलाया गया, और उनकी हत्या की गई। इस उत्पीड़न के कारण लाखों कश्मीरी पंडितों को घाटी छोड़कर भागना पड़ा। कश्मीरी पंडितों के इस पलायन ने घाटी के सामाजिक और सांस्कृतिक ताने-बाने को हमेशा के लिए बदल दिया। करीब 4 से 5 लाख कश्मीरी हिन्दुओं का अपना घर-बार छोड़कर देश के अन्य हिस्सों में शरण लेनीं पड़ी। हजारों कश्मीरी हिन्दुओं का नरंसहार कर दिया गया। और यह एक योजना के तहत किया गया। इसमें पाकिस्तान व उनकी सेना व आतंकवादी, कुछ कश्मीरी अवाम व वहां की लीड़रशिप के कुछ लोगों का विशेष हाथ था।
- आतंकवाद की गहरी जड़ें और अलगाववादी राजनीति-
1990 के बाद से, कश्मीर घाटी में आतंकवादी गतिविधियां लगातार बढ़ती गईं। हुर्रियत कांफ्रेंस जैसे अलगाववादी संगठनों ने घाटी में भारत के खिलाफ भावनाओं को उकसाया और आतंकवाद को वैध ठहराने की कोशिश की। पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी संगठनों जैसे लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद आदि ने घाटी में आत्मघाती हमले और बड़े पैमाने पर हिंसा फैलानी शुरू की।
आतंकवाद से निपटने हेतु भारत की तरफ से किये गये कार्य-
कश्मीर में आतंकवाद से निपटने के लिए भारत ने समय-समय पर कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। आतंकवाद से निपटने के लिए सरकार और सुरक्षा बलों ने व्यापक सैन्य, राजनीतिक, और कूटनीतिक रणनीतियों का उपयोग किया है। कश्मीर में आतंकवाद का प्रमुख स्रोत पाकिस्तान से आने वाली घुसपैठ और स्थानीय अलगाववादी तत्वों का समर्थन है, जिनसे निपटने के लिए भारत ने विभिन्न उपाय अपनाए।
- सैन्य अभियानों द्वारा आतंकवादियों का खात्मा-
भारतीय सेना और सुरक्षा बलों ने कश्मीर में आतंकवादियों को खत्म करने के लिए कई बड़े सैन्य अभियानों को अंजाम दिया है-
- ऑपरेशन सर्पविनाश (2003): इस अभियान का उद्देश्य आतंकवादियों को उनके ठिकानों से निकालना और सुरक्षा बलों के द्वारा कश्मीर घाटी में शांति स्थापित करना था। यह अभियान आतंकवादियों के ठिकानों पर सीधा हमला करने और उन्हें मार गिराने के लिए सफल साबित हुआ।
- ऑपरेशन ऑल आउट (2017): इस ऑपरेशन का उद्देश्य जम्मू-कश्मीर में सक्रिय आतंकवादियों को पूरी तरह से समाप्त करना था। यह विशेष रूप से कश्मीर घाटी में सक्रिय स्थानीय और विदेशी आतंकवादियों के खिलाफ चलाया गया। इसके तहत सैकड़ों आतंकवादियों को मारा गया, जिनमें कई शीर्ष कमांडर भी शामिल थे।
- घुसपैठ रोकने के लिए सीमावर्ती निगरानी: पाकिस्तान द्वारा आतंकवादियों को भारतीय सीमा में घुसपैठ कराने की कोशिशों को रोकने के लिए नियंत्रण रेखा (LoC) पर भारी सुरक्षा तैनात की गई है। उन्नत तकनीक, ड्रोन, और इन्फ्रारेड उपकरणों के माध्यम से घुसपैठ को रोका जाता है।
- कूटनीतिक दबाव और अंतरराष्ट्रीय मंच पर मुद्दा उठाना-
भारत ने पाकिस्तान पर कूटनीतिक दबाव बनाने के लिए अंतरराष्ट्रीय मंचों का उपयोग किया है। पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद के समर्थन और पनाहगाह देने के खिलाफ भारत ने संयुक्त राष्ट्र, G20, और अन्य वैश्विक मंचों पर अपनी आवाज उठाई। इसके परिणामस्वरूप पाकिस्तान को ‘फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स’ (FATF) की ग्रे लिस्ट में डाल दिया गया। इससे पाकिस्तान पर अपने आतंकवाद समर्थक नेटवर्क को समाप्त करने का दबाव बढ़ा है।
- आतंकवादियों की वित्तीय सहायता पर अंकुश-
भारत सरकार ने आतंकवादी संगठनों की आर्थिक गतिविधियों पर नकेल कसने के लिए कई कड़े कदम उठाए हैं। इसमें प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (PMLA) और अनलॉफुल एक्टिविटीज (प्रिवेंशन) एक्ट (UAPA) जैसे कड़े कानूनों का उपयोग किया गया। इन कानूनों के तहत आतंकवादियों और उनके समर्थकों की संपत्तियों को जब्त किया गया और उनकी फंडिंग के स्रोतों पर रोक लगाई गई।
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- अनुच्छेद 370 का निरसन (2019)-
5 अगस्त 2019 को भारत सरकार ने अनुच्छेद 370 को समाप्त कर दिया, जिसने जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा दिया था। इसके निरसन के बाद, जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश घोषित किया गया, और इससे वहां की स्थिति में कई बदलाव हुए। विशेष दर्जे के समाप्त होने के बाद आतंकवादियों और अलगाववादियों का मनोबल कमजोर हुआ। इसके साथ ही भारत सरकार ने घाटी में विकास कार्यों और कानून व्यवस्था को मजबूत किया, ताकि आतंकवाद को जड़ से खत्म किया जा सके।
- आतंकवादियों के समर्थकों के खिलाफ सख्त कार्रवाई-
कश्मीर घाटी में सक्रिय अलगाववादी नेताओं और उनके समर्थकों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की गई। हुर्रियत कांफ्रेंस और अन्य अलगाववादी संगठनों पर शिकंजा कसा गया, जिनके पाकिस्तान से संबंध थे और जो आतंकवाद को वैचारिक और आर्थिक सहायता प्रदान करते थे। कई अलगाववादी नेताओं को गिरफ्तार किया गया, और उनके आर्थिक स्रोतों की जांच की गई।
- युवाओं को आतंकवाद से दूर करने के लिए पहल-
कश्मीर घाटी के युवाओं को आतंकवाद और कट्टरपंथ से दूर रखने के लिए भारतीय सरकार ने कई सामाजिक और आर्थिक सुधार कार्यक्रम शुरू किए हैं-
- प्रधानमंत्री विकास पैकेज (2015): इस योजना के तहत जम्मू-कश्मीर में बुनियादी ढांचे का विकास, रोजगार के अवसर बढ़ाने, और शिक्षा के क्षेत्र में सुधार के लिए 80,000 करोड़ रुपये की घोषणा की गई।
- विकास कार्य और रोजगार: युवाओं को रोजगार के बेहतर अवसर प्रदान करने के लिए केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर में नई औद्योगिक नीति लागू की। इसके साथ ही कश्मीर घाटी में पर्यटन, कृषि, और छोटे उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठाए गए।
- शिक्षा और स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम्स: कश्मीर घाटी में बच्चों और युवाओं को मुख्यधारा की शिक्षा से जोड़ने के लिए विशेष शिक्षण कार्यक्रम और स्किल डेवलपमेंट योजनाएं चलाई गईं। आईआईटी, आईआईएम, एम्स जैसी उच्च शिक्षा संस्थानों की स्थापना से शिक्षा का स्तर उठाने के प्रयास किए जा रहे हैं।
- नए कानून और सुरक्षा तंत्र-
कश्मीर में शांति और सुरक्षा को बनाए रखने के लिए सरकार ने नए कानून लागू किए और सुरक्षा बलों की संख्या में वृद्धि की। इसके अलावा, आधुनिक हथियारों और तकनीकी उपकरणों से सुरक्षा बलों को सुसज्जित किया गया, ताकि आतंकवादियों से निपटा जा सके।
- राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (NSA) और आतंकवाद विरोधी कानून (UAPA) के तहत आतंकी गतिविधियों में संलिप्त व्यक्तियों और संगठनों पर कड़ी कार्रवाई की गई।
- सुरक्षा बलों के लिए विशेष ट्रेनिंग: जम्मू-कश्मीर में तैनात सुरक्षा बलों को विशेष रूप से आतंकवादियों से निपटने और स्थानीय चुनौतियों का सामना करने के लिए प्रशिक्षित किया गया।
- जनता का समर्थन और विश्वास-
आतंकवाद से लड़ने के लिए सबसे महत्वपूर्ण कार्य रहा है स्थानीय जनता का विश्वास और समर्थन प्राप्त करना। सुरक्षाबलों और सरकार ने जनता के साथ संवाद बढ़ाया, जिससे स्थानीय लोगों का भरोसा हासिल किया जा सके। इसके अलावा, कश्मीर घाटी में लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को मजबूत करने के लिए पंचायती राज चुनाव आयोजित किए गए, जिनमें जनता ने बड़ी संख्या में भाग लिया।
इस समय किस स्थिति में है जम्मू-कश्मीर-
इस वक्त 2024 में है जब ये लेख प्रकाशित हो रहा है, तब जम्मू-कश्मीर को एक केन्द्रशासित प्रदेश के तौर पर अपना पहला मुख्यमंत्री मिल चुका हैं। नेशनल कांफ्रेस व कांग्रेस ने मिलकर जम्मू-कश्मीर में सरकार संगठित की हैं। बीजेपी दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर सामने आयीं हैं।
जब से मोदी सरकार ने कश्मीर में 2019 में 370 को हटाया है, तब से वहां आतंकवाद व अलगाववाद में बहुत कम हो गया हैं। अवैंध तस्करी, मनीलाड्रिंग, पत्थरबाजीं में भी कमीं आयी हैं। जिससें कश्मीर में शांति स्थापित हुई हैं। इसी कारण से कश्मीर में चुनाव सपन्न हो पाये हैं।
लेकिन कांग्रेस व उसकी सहयोगी पार्टियों का मत हैं, कि 370 वापस आना चाहिए। उनके अनुसार यह संविधान का हनन हैं। जिस धारा के हटने से कश्मीर अखंड भारत का अभिन्न अंग बनकर उभरा, उसी धारा को कांग्रेस व उसके सहयोगी दल वापस लाने की बात करते हैं। जिसे खुद माननीय सुप्रीम कोर्ट भी सही ठहरा चुका हैं। कि 370 हटाना सहीं था। फिर भी कुछ अराजक पार्टियां इसके पीछे पड़ी हैं।
बात कश्मीर में रहने वाले आम-जनमानस की भी हैं। उसे क्या फबता हैं। उसी क्या चाहिए , क्या उसकी चाह है कि कश्मीर के मूल निवासी कश्मीरी पड़ित वापस आये, क्या उसे चाह है कि कश्मीर शान्त रहे और तरक्की करें। तो यह हमेशा चलता रहेगा।
भारत का जम्मू-कश्मीर, अब भारत का अभिन्न अंग बन चुका हैं। अब बात अगर होगीं तो, पाक अधिकृत कश्मीर की जिसे पाक कब्जायें बैठा हैं। इसे एक न एक दिन हम लेंगे। फिर वो चाहे युद्ध से हो यह शांति से।
निष्कर्ष:
जम्मू-कश्मीर, जो कभी भारत के भव्यतम सांस्कृतिक और भौगोलिक धरोहरों में से एक था, आज भी अपनी अस्मिता की लड़ाई लड़ रहा है। इस भूभाग ने इतिहास के हर दौर में सत्ता, संस्कृति और संघर्ष के कई रंग देखे हैं। भारत के स्वतंत्र होने के बाद से कश्मीर पर किए गए आक्रमण, युद्ध, और आतंकवाद की जड़ों ने इसे एक अघोषित युद्धभूमि में तब्दील कर दिया। परंतु, तमाम संघर्षों के बीच भी कश्मीर की आत्मा कभी नहीं मरी।
अनुच्छेद 370 के निरसन ने कश्मीर को एक नए युग की ओर बढ़ने का मार्ग दिया, जहां विकास, स्थायित्व और शांति की संभावनाएं अधिक दिखती हैं। लेकिन यह केवल कानूनी और सैन्य प्रयासों का प्रश्न नहीं है। असली चुनौती कश्मीर के दिलों और दिमागों को जीतने की है। आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई केवल हथियारों से नहीं जीती जा सकती, इसके लिए कश्मीर की जनता के भीतर पुनः विश्वास जगाने की आवश्यकता है—एक ऐसा विश्वास जो उन्हें एक साझा भविष्य की ओर ले जाए।
भारत ने कश्मीर में आतंकवाद से लड़ने के लिए हर संभव उपाय किए हैं, लेकिन इस क्षेत्र की जटिलता, धार्मिक-सांस्कृतिक भावनाओं और राजनीतिक हस्तक्षेपों ने इसे और कठिन बना दिया है। यहां की धरती पर शांति की पुनर्स्थापना केवल तभी संभव होगी, जब हम वहां के प्रत्येक नागरिक के लिए एक नई उम्मीद का द्वार खोल सकें। कश्मीर की असली जीत न तो सीमाओं पर तय होगी, न ही बंदूक की गोलियों से—यह जीत तभी संभव होगी जब कश्मीर के हर नागरिक की आंखों में शांति, विकास और भविष्य की रौशनी झलके।
कश्मीर सिर्फ जमीन का एक टुकड़ा नहीं, बल्कि भारत के उस सुनहरे सपने का प्रतीक है, जिसमें प्रत्येक राज्य, प्रत्येक नागरिक, और प्रत्येक विचारधारा का सम्मान है। यही सपना एक दिन कश्मीर को आतंकवाद से मुक्त कर सकेगा और उसे उसकी वास्तविक गरिमा और शांति लौटा सकेगा।
“इस ब्लॉग के विषय पर हमें अपने विचार अवश्य साझा करें। कश्मीर के संदर्भ में आपके क्या विचार हैं, हमें बताएं। धन्यवाद!”
प्रश्न 1: जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय कब और क्यों हुआ?
उत्तर: जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय 26 अक्टूबर 1947 को हुआ। महाराजा हरि सिंह ने पाकिस्तान के आक्रमण से बचने के लिए भारत से सहायता मांगी थी। भारत ने सहायता की शर्त पर विलय का प्रस्ताव रखा, जिसे महाराजा हरि सिंह ने स्वीकार कर लिया, और इस प्रकार जम्मू-कश्मीर भारत का हिस्सा बन गया।
प्रश्न 2: अनुच्छेद 370 क्या था और इसका उद्देश्य क्या था?
उत्तर: अनुच्छेद 370 भारतीय संविधान का एक विशेष प्रावधान था, जो जम्मू-कश्मीर को विशेष स्वायत्तता प्रदान करता था। इसके तहत राज्य को कुछ मामलों में स्वायत्तता प्राप्त थी, जैसे कि नागरिकता कानून और संपत्ति के अधिकार। भारतीय संसद केवल रक्षा, विदेश मामले, और संचार के मामलों में कानून बना सकती थी।
प्रश्न 3: पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर पर कब और कैसे आक्रमण किया?
उत्तर: पाकिस्तान ने अक्टूबर 1947 में ‘ऑपरेशन गुलमर्ग’ के तहत जम्मू-कश्मीर पर आक्रमण किया। पाकिस्तान समर्थित कबायली लड़ाकों ने कश्मीर में घुसपैठ की, जिससे महाराजा हरि सिंह ने भारत से सहायता की मांग की और भारत में विलय किया।
प्रश्न 4: कश्मीरी पंडितों का पलायन कब हुआ और क्यों?
उत्तर: कश्मीरी पंडितों का पलायन 1990 में हुआ जब आतंकवाद और हिंसा चरम पर था। आतंकवादी संगठनों और अलगाववादियों ने उन्हें निशाना बनाया, जिसके कारण लाखों कश्मीरी पंडितों को अपना घर-बार छोड़कर भागना पड़ा।
प्रश्न 5: संयुक्त राष्ट्र ने कश्मीर विवाद में क्या भूमिका निभाई?
उत्तर: 1948 में, भारत ने कश्मीर विवाद को संयुक्त राष्ट्र में उठाया। संयुक्त राष्ट्र ने युद्धविराम का प्रस्ताव दिया, जो 1 जनवरी 1949 को लागू हुआ। साथ ही, संयुक्त राष्ट्र ने कश्मीर में जनमत संग्रह की सिफारिश की, परंतु यह कभी नहीं हो पाया क्योंकि पाकिस्तान ने पीओके से अपनी सेना नहीं हटाई।