क्रांतिकारी करतार सिंह सराभा: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक की अद्भुत कहानी

इस ब्लांग में करतार सिंह सराभा के जीवन से जुड़ी सभी पहलूओं को छुने का प्रयास करेंगे। तो बने रहे हमारे ब्लांग के साथ…

करतार सिंह kartar singh sarabha
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करतार सिंह सराभा: स्वतंत्रता संग्राम के युवा नायक-

भारत के स्वतंत्रता संग्राम में कई नायक उभरे, जिन्होंने अपने जीवन को देश के लिए समर्पित कर दिया। उन महान नायकों में से एक थे करतार सिंह सराभा, जिन्होंने बहुत ही कम उम्र में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ विद्रोह कर देश की आजादी के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। उनका जीवन आज भी कई युवाओं के लिए प्ररेणास्त्रोत हैं।

  1.  प्रारंभिक जीवन व पारिवारिक पृष्ठभूमि-

करतार सिंह सराभा का जन्म 24 मई 1896 को पंजाब के लुधियाना के सराभा गाँव में हुआ था। उनके पिता व माता का मंगल सिंह और साहिब कौर था। जब करतार सिंह केवल नौ साल के थे, तब उनके पिता का स्वर्गवास हो गया था। करतार सिंह की एक छोटी बहन धन्न कौर भी थीं। उनका व  उनकी बहन की परवरिश उनके दादा, बदन सिंह ने की, जो एक प्रगतिशील और देशभक्त व्यक्ति थे। उनके दादा ने ही उन्हें देशप्रेम और स्वतंत्रता की भावना से परिचित कराया। करतार सिंह की तीन अन्य चाचा बड़े सरकारी ओहदे पर काम करते थें।

करतार सिंह ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गाँव के स्कूल में प्राप्त की। वे बचपन से ही चतुर और साहसी थे। उनकी शिक्षा और सोच में उनके परिवार की देशभक्तिपूर्ण संस्कृति का गहरा प्रभाव था।

अपनी प्रारंभिक शिक्षा लुधियाना में करने के बाद, आगे की शिक्षा के लिए वे उड़ीसा, अपने चाचा के पास चले गये। उड़ीसा उस वक्त बंगाल प्रांत में आता था। उनके परिवार ने उनकी दसवीं में पास होने के बाद उन्हें उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका भेजने का निर्णय लिया था।

  •  उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका प्रवास-

प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद, करतार सिंह ने आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका का रुख किया। 1911 में, उन्होंने कैलिफ़ोर्निया की बर्कले यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया, जहाँ वे विज्ञान की पढ़ाई कर रहे थे। अमेरिका में रहते हुए, उन्हें वहाँ के स्वतंत्र विचार और भारतीय प्रवासियों के संघर्ष ने प्रभावित किया। शुरुआती दिनों में वे अमेरिका में अपने गांव के एक शख्स रुलिया सिंह के पास रहें। राष्ट्रीय चेतना व आजादी क्या होती हैं, ये उन्हें अमेरिका में समझ आने लगा था।

उस वक्त अमेरिका व कनाडा में रहने वाले गोरों से भारतीयों को अनादर झेलना पड़ता था। अमेरिका में उन्होंने महसूस किया कि भारत को आज़ाद कराने के लिए एक क्रांतिकारी आंदोलन की ज़रूरत है। इसी दौरान उनकी मुलाकात ग़दर पार्टी के प्रमुख नेताओं से हुई, जिसने उनकी सोच और विचारधारा को क्रांतिकारी रूप में ढाला।

ग़दर आंदोलन में करतार सिंह सराभा की ऐतिहासिक भूमिका-

यह वह समय था जब विदेश में बसे भारतीयों ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ विद्रोह का बीड़ा उठाया था, और ग़दर पार्टी की स्थापना की थी। ग़दर पार्टी का मुख्य उद्देश्य था, सशस्त्र संघर्ष के जरिए भारत को ब्रिटिश शासन से मुक्त कराना। बर्कले यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के दौरान, करतार सिंह का ग़दर पार्टी के नेताओं, खासकर लाला हरदयाल से संपर्क हुआ, जिन्होंने उन्हें देश की आजादी के लिए लड़ने के लिए प्रेरित किया। उस समय इस यूनिवर्सिटी में अधिकतर छात्र पंजाबी और बंगाली थे। लाला हरदयाल व भाई परमानंद ने भारतीय छात्रों के दिलों में ब्रिटिश शासन के खिलाफ भावनाएं पैदा की, जो आगे चलकर ब्रिटिश शासन के लिए काल बनीं।

करतार सिंह kartar singh sarabha
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ग़दर पार्टी के संपर्क में आने के बाद, करतार सिंह ने अपनी पढ़ाई छोड़कर पूरी तरह से क्रांतिकारी गतिविधियों में हिस्सा लेना शुरू कर दिया। वे ‘ग़दर’ नामक अख़बार के संपादक बने और इस अख़बार को पंजाबी में अनुवादित कर भारतीयों तक पहुँचाया। इस अख़बार के जरिए उन्होंने भारतीय युवाओं को ब्रिटिश शासन के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह करने के लिए प्रेरित किया।

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भारत लौटकर स्वतंत्रता संग्राम में सक्रियता-

अमेरिका में ग़दर पार्टी से जुड़ने और क्रांतिकारी विचारधारा अपनाने के बाद, करतार सिंह ने यह समझ लिया था कि ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेंकने के लिए केवल विद्रोह ही एकमात्र रास्ता है। भारत को आज़ाद करने के लिए उन्हें अब देश लौटकर सशस्त्र संघर्ष करना था।

  1.  भारत लौटने का निर्णय

1914 में करतार सिंह सराभा ने भारत लौटने का फैसला किया। जब वह अमेरिका में थे, तब ग़दर पार्टी के क्रांतिकारी नेताओं ने यह महसूस किया कि केवल बाहर से समर्थन देने से ब्रिटिश शासन को चुनौती नहीं दी जा सकती। इसीलिए ग़दर पार्टी के प्रमुख नेताओं ने भारतीय युवाओं को स्वदेश लौटकर वहां के हालात को बदलने का आह्वान किया। करतार सिंह सराभा ने इस आह्वान को गंभीरता से लिया और कई अन्य साथियों के साथ भारत लौटने की तैयारी की। उनका मुख्य उद्देश्य था कि वे ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक सशस्त्र क्रांति का नेतृत्व करें।

  •  ग़दर पार्टी की योजना

भारत पहुँचने के बाद, करतार सिंह सराभा ने ग़दर पार्टी के विचारों और उद्देश्यों को भारतीय युवाओं और किसानों के बीच फैलाना शुरू किया। उनका मानना था कि भारत के लोगों को ब्रिटिश शासन के अत्याचारों के खिलाफ उठ खड़ा होना चाहिए। इसके लिए उन्होंने कई स्थानों पर गुप्त बैठकें कीं और क्रांतिकारी गतिविधियों की योजना बनाई। उनका उद्देश्य था कि ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक बड़े पैमाने पर विद्रोह किया जाए, जो देश को आज़ादी दिलाने में सक्षम हो।

ग़दर पार्टी के साथ मिलकर, करतार सिंह ने यह योजना बनाई कि भारतीय सैनिकों को ब्रिटिश सेना में बगावत के लिए तैयार किया जाए। उनका मानना था कि यदि भारतीय सैनिक ब्रिटिश सेना के खिलाफ खड़े हो जाते हैं, तो ब्रिटिश हुकूमत कमजोर पड़ जाएगी और आजादी की राह आसान हो जाएगी। उन्होंने कई जगहों पर हथियारों का भंडारण किया और सशस्त्र संघर्ष की तैयारी शुरू की।

  •  संघर्ष की योजना और विफलता

करतार सिंह सराभा और उनके साथियों ने 21 फरवरी 1915 को एक बड़े विद्रोह की योजना बनाई। इसका उद्देश्य ब्रिटिश सरकार के खिलाफ देशव्यापी बगावत करना था। यह योजना देशभर में ब्रिटिश शासन को खत्म करने की दिशा में एक बड़ा कदम था। विद्रोह की इस योजना में भारतीय सैनिकों को शामिल करने की पूरी रणनीति तैयार की गई थी।

हालांकि, ब्रिटिश खुफिया एजेंसियों को इस विद्रोह की भनक लग गई। ग़दर पार्टी के कई सदस्य गिरफ्तार कर लिए गए, और उनकी योजनाओं को विफल कर दिया गया। ब्रिटिश सरकार ने विद्रोह को कुचलने के लिए पूरी ताकत झोंक दी, और बड़ी संख्या में क्रांतिकारी नेताओं को पकड़ा गया। इस दौरान करतार सिंह और उनके साथियों को भी गिरफ्तार कर लिया गया।

करतार सिंह सराभा की गिरफ्तारी के बाद, ब्रिटिश सरकार ने उन पर और उनके साथियों पर देशद्रोह और सशस्त्र विद्रोह का मुकदमा चलाया गया। यह मुकदमा ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह करने वालों के लिए एक उदाहरण के रूप में पेश किया गया, ताकि अन्य क्रांतिकारियों को डराया जा सके।

करतार सिंह सराभा ने अपने मुकदमे के दौरान कोई पछतावा नहीं दिखाया। उन्होंने अदालत में गर्व के साथ कहा कि उन्होंने जो किया, वह अपने देश की आज़ादी के लिए किया। उनके मन में देशप्रेम और आज़ादी की जो ललक थी, उसने उन्हें किसी भी सजा से भयभीत नहीं किया। उन्होंने अपने कृत्य को कभी गलत नहीं माना, बल्कि गर्व महसूस किया कि वे अपने देश के लिए कुछ कर पाए।

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वीरगाति और स्वतंत्रता संग्राम में योगदान-

करतार सिंह सराभा का बलिदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण अध्याय के रूप में अंकित है। 16 नवंबर 1915 को, लाहौर सेंट्रल जेल में उन्हें फांसी दी गई। उस समय उनकी उम्र मात्र साढ़े 19 वर्ष थी। इतनी कम उम्र में उन्होंने जिस साहस, देशभक्ति और निडरता का परिचय दिया, वह आज भी भारतीय युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

फांसी के समय उन्होंने बिना किसी भय के हंसते हुए अपने जीवन का बलिदान दिया। उनका मानना था कि भारत की स्वतंत्रता के लिए उनका बलिदान केवल एक शुरुआत है, और भविष्य में यह बलिदान कई और युवाओं को प्रेरित करेगा। उनका यह विचार सही साबित हुआ, क्योंकि उनके बलिदान के बाद ग़दर आंदोलन और भी तेज़ हुआ और आने वाली पीढ़ियों ने स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

करतार सिंह सराभा का जीवन और बलिदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है। उनका साहस और निस्वार्थ देशभक्ति आज भी हर भारतीय के दिल में जिंदा है। उनकी शहादत ने न केवल ग़दर आंदोलन को मजबूती दी, बल्कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के कई अन्य नायकों को प्रेरित किया।

भगत सिंह, जो खुद एक महान क्रांतिकारी थे, ने करतार सिंह सराभा को अपना आदर्श माना। भगत सिंह के लिए सराभा एक ऐसे नायक थे, जिन्होंने उन्हें देश के लिए अपने प्राणों की आहुति देने के लिए प्रेरित किया। भगत सिंह ने सराभा की तस्वीर हमेशा अपने पास रखी और उन्हें हमेशा याद किया।

सराभा की विरासत आज भी भारतीय युवाओं के लिए प्रेरणा है। वे यह संदेश छोड़ गए कि उम्र कोई बाधा नहीं होती, जब उद्देश्य देश की आजादी हो। उनका बलिदान स्वतंत्रता संग्राम के हर उस युवा के लिए एक मिसाल है, जिसने भारत को एक स्वतंत्र राष्ट्र बनाने के लिए अपने जीवन का त्याग किया।

करतार सिंह सराभा का जीवन देशभक्ति, निस्वार्थ सेवा और साहस का प्रतीक है। उन्होंने न केवल ग़दर आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, बल्कि अपनी शहादत से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा दी। आज भी उनकी विरासत हमें यह सिखाती है कि जब देश के लिए कुछ करने का समय हो, तो उम्र, परिस्थितियाँ या कठिनाइयाँ मायने नहीं रखतीं। करतार सिंह सराभा जैसे क्रांतिकारी नायक भारतीय इतिहास के अमर पात्र हैं, जिन्होंने अपने बलिदान से देश को आज़ादी की राह पर अग्रसर किया।

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