ISRO’s Polarimetry Mission-(XPoSat)-इसरो का पोलारिमेट्री मिशन- (XPoSat) 2024

ISRO’s Polarimetry Mission-(XPoSat)- “एक्स-रे पोलारिमीटर सैटेलाइट इसरो द्वारा निर्मित अंतरिक्ष वेधशाला है। जो ब्रह्रांडीय एक्स-रे के ध्रवीकरण का अध्ययन करती है। इसे 1 जनवरी 2024 को पीएसएलवी रॉकेट पर लॉन्च किया गया था। और इसका अपेक्षित परिचालन जीवनकाल कम से कम पांच साल है।”

"XPoSat - ISRO's Polarimetry Mission: A satellite in space, showcasing advanced polarimetric capabilities for scientific research."
“Experience the wonders of space exploration as ISRO’s XPoSat, a cutting-edge Polarimetry Mission, delves into the mysteries of the universe.”

परिचय –Introduction

  1. एक्सपोसैट का अर्थ एक्स-रे ध्रुवणमापी उपग्रह है।
  2. यह भारत का अग्रणी ध्रुवणमापी (पोलरिमेट्री) मिशन है। जिसका उद्देश्य विषम परिस्थितियों में खगोलीय स्त्रोतों की विभिन्न गतिशीलता का अध्ययन करना है।
  3. वर्ष 2021 में प्रमोचित नासा के इमेजिंग एक्स-रे पोलिरिमेट्री एक्सप्लोरर (आईएक्सपीई) के बाद एक्स-रे का उपयोग करने वाला यह विश्व का दूसरा पोलरिमेट्री मिशन है।
  4. एक्सपोसैट इसरो और रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट बंगलूरु, कर्नाटक के सहयोग से विकसित किया गया है।

एक्सपोसैट भेजने का मकसद क्या है- What is the purpose of sending Exposat?

एक्सपोसैट का मकसद ब्रह्रांड के 50 सबसे चमकीले स्त्रोतों की स्टडी करना है। एक्स-रे फोटॉन और उनके ध्रुवीकरण का उपयोग करके, एक्सपोसैट ब्लैक होल और न्यूट्रॉन सितारों से आ रहे विकिरण का अध्ययन करेगा।

शुरुआत- beginning

एक्सपोसैट परियोजना सितंबर 2017 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के 9 करोड़ 50 लाख के अनुदान के साथ शुरु हुई। पोलिक्स पेलोड सहित एक्सपोसेट की प्रारंभिक डिजाइन समीक्षा (पीडीआर) सिंतबर 2018 में पूरी हुई। इसके बाद पोलिक्स योग्यता मॉडल की तैयारी और इसके कुछ फ्लाइट मॉडल घटकों के निर्माण की शुरुआत हुई।

भारत का पहला ध्रुवणमापी उपग्रह- India’s first polarimeter satellite

एक्सपोसैट चरम स्थितियों में उज्जवल खगोलीय एक्स-रे स्त्रोतों की विभिन्न गतिशीलता का अध्ययन करने के लिए भारत का पहला समर्पित ध्रुवणमापी मिशन है। अंतरिक्ष यान पृथ्वी की निचली कक्षा में दो वैज्ञानिक नीतभार ले जाएगा। प्राथमिक नीतभार पोलिक्स (एक्स-रे में ध्रुवणमापी उपकरण) खगोलीय मूल के 8-30 केवी फोटॉन के मध्यम एक्स-रे ऊर्जा रेंज में ध्रुवणमापी प्राचल (ध्रुवीकरण की डिग्री और कोण) को मापेगा। एक्स. एस.पी.ई.सी.टी. (एक्स-रे स्पेक्ट्रोस्कोपी और टाइमिंग) नीतभार 0.8-15 केवी की ऊर्जा सीमा में स्पेक्ट्रोस्कोपिक जानकारी देगा।

विभिन्न खगोलीय स्त्रोतों जैसे-

  • ब्लैकहोल
  • न्यूट्रॉन तारे
  • सक्रिय आकाशगांगेय नाभिक
  • पल्सर पवन निहारिका

आदि से उत्सर्जन तंत्र जटिल भौतिक प्रक्रियाओं से पैदा होता है और इसे समझ पाना आसान नहीं हैं।

ध्रुवणमापी माप हमारी समझ में दो और आयाम जोड़ते हैं, ध्रुवीकरण का कोण और इस प्रकार खगोलीय स्त्रोतो से उत्सर्जन प्रक्रियाओं को समझने के लिए एक उत्कृष्ट निदान उपकरण है। स्पेक्ट्रोस्कोपिक मापन के साथ ध्रुवीमितीय प्रेक्षणों से खगोलीय उत्सर्जन प्रक्रियाओं के विभिन्न सैद्धांतिक म़ॉडलों के अपकर्ष को रोकने की उम्मीद है। यह भारतीय विज्ञान समुदाय द्वारा एक्सपोसैट के अनुसंधान की प्रमुख दिशा होगी।

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इसमें शामिल पेलोड- Payload included

एक्सपोसैट के दो पेलोड एक संशोधित आईएमएस-2 सैटेलाइट बस पर होस्ट किए गए है। प्राथमिक वैज्ञानिक पेलोड एक्स-रे में पोलारिमीटर उपकरण है। जो 8-30 केवी ऊर्जा रेंज में अपने मिशन के दौरान विभिन्न प्रकार के लगभग 50 सबसे चमकीले खगोलीय एक्स-रे स्त्रोतों के ध्रुवीकरण की डिग्री और कोण का अध्ययन करेगा। पोलिक्स, 125 किलोग्राम (276 पाउंड) का उपकरण है। रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट द्वारा इसे बनाया गया है।

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एक्सपोसैट नीतभार- Exposat Payload

1-पोलिक्स- Polix

पोलिक्स 8-30केवी के ऊर्जा बैंड में खगोलीय प्रेक्षणों के लिए एक एक्स-रे ध्रुवणमापी है। नीतभार को यूआरराव उपग्रह केंद्र (यू.आर.एस.पी) के सहयोग से रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट, बेंगलूरु द्वारा बनाया गया है। पोलिक्स एक समरेखक, एक प्रकीर्णक और चार एक्स-रे आनुपातिक काउंटर संसूचकों से बना है। प्रकीर्णक कम परमाणु द्रव्यमान वाली सामग्री से बना होता है। जो आने वाली ध्रुवीकृत एक्स-रे के अनिसोट्रोपिक थॉमसन बिखरने का कारण बनता है। समरेखक देखने के क्षेत्र को 3 डिग्री*3डिग्री तक सीमित करता है। ताकि अधिकांश अवलोकनों के लिए देखने के क्षेत्र में केवल एक स्त्रोत हो।

2-एक्स.एस.पी.ई.सी.टी.- X.S.P.E.C.T.

एक्स.एस.पी.ई.सी.टी एक एक्स-रे स्पेक्ट्रोस्कोपी और टाइमिंग नीतभार ऑनबोर्ड एक्सपोसैट है। जो सॉफ्ट एक्स-रे में तेज समय और अच्छा स्पेक्ट्रोस्कोपिक विभेदन प्रदान कर सकता है। एक्स-रे ध्रुवीकरण को मापने के लिए पोलिक्स द्वारा आवश्यक लंबी अवधि के अवलोकनों का लाभ उठाते हुए, एक्स.एस.पी.ई.सी.टी निरंतर उत्सर्जन में वर्णक्रमीय स्थिति परिवर्तन, सॉफ्ट एक्स-रे की एक साथ दीर्घकालिक अस्थायी निगरानी एक्स-रे ऊर्जा रेंज 0.8-15केवी में उत्सर्जन की लंबी अवधि की निगरानी प्रदान कर सकता है।

स्वेप्ट चार्ज डिवाइसेस (एस.सी.डी) की एक सरणी 6केवी पर 200ईवी से बेहतर ऊर्जा विभेदन के साथ 6केवी पर एक प्रभावी क्षेत्र 30सेमी2 प्रदान करती है। निष्क्रिय समरेखकों का उपयोग पृष्ठभूमि को कम करने के लिए एक्स.एस.पी.ई.सी.टी के दृश्यन क्षेत्र को कम करके किया जाता है। एक्स.एस.पी.ई.सी.टी. एलएमएक्सबीएस,एजीएनएस और मैग्नेटर्स मे एक्स-रे पल्सर, ब्लैकहोल बायनेरिज, लो-मैग्ननेटिक फील्ड न्यूट्रॉन स्टार (एन.एस.) जैसे कई प्रकार के स्त्रोतों का निरीक्षण करेगा।

एक्सपोसैट कितने साल का मिशन है- How many years is the mission of Exposat?

इस सैटेलाइट को 500-700 किमी की पृथ्वी की निचली कक्षा में स्थापित किया गया है। जहां रहकर यह 5 साल तक डेटा इकठ्ठा करेंगा।

एक्सपोसैट को किस रॉकेट से लॉन्च किया गया- With which rocket was the Exposat launched?

एक्सपोसैट मिशन को ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान या पीएसएलवी की 60वीं उडान की मदद से स्पेस में भेजा गया। 469 किलोग्राम के एक्सपोसैट के अलावा, 260 टन का पीएसएलवी ने उड़ान भरी।

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ब्लैक होल्स क्या है- What are black holes?

ब्लैक होल्स अनंत अंतरिक्ष में वो काला छेद है। जो दिखाई नहीं देता। अंतरिक्ष की अधेंरी दुनिया की वो जगह है। जिसका कोई अंत नहीं। ऐसा माना जाता है कि यहां प्रकाश तक आर-पार नहीं हो सकता। इसके अंदर गुरुत्वाकर्षण शक्ति काफी तेज होती है। इसका आकार धरती, सूर्य या किसी भी अन्य ग्रह या तारे से काफी ज्यादा होता है। इसके करीब आने पर यह उसे अपने अंदर समाहित कर लेता है।

यहां समय अलग हिसाब से चलता है। इसके अंदर जाने पर क्या होगा, इसका पता तब लगाया जा सकता है। जब ऐसा कोई एक्सपरीमेंट किया जाए। दुर्भाग्य से ऐसा कभी नहीं हो पाया है। ब्लैक होल्स अंतरिक्ष का ऐसा राक्षस है। जिसके बारे में इंसानों को बहुत कम मालूम है। वैज्ञानिक यह जरुर दावा करते है कि एक बार इसके अंदर जाने पर वापसी संभव नहीं हो सकती।

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कैसे बनता है ब्लैक होल्स- How are black holes formed?

ब्लैक होल्स कैसे बनतें हैं, यह खोज अभी वैज्ञानिकों से भी दूर हैं। पर जो वैज्ञानिक इसकी समझ रखते है उनके अनुसार, कोई तारा जब अपने अंतिम समय पर होता है तो वह सिकुड़ने लगता है। और फिर इसमें एक ऐसा सुपरनोवा विस्फोट होता है। जो इसे ब्लैक होल्स बना देता है। यह विस्फोट इतना शक्तिशाली होता है कि जो लाखों परमाणु बमों के फटने से जो शक्ति उत्पन्न होती है, यह उससे भी कई ज्यादा शक्तिशाली है।

एक्सपोसैट मिशन खास क्यो है- Why is Exposat mission special?

जब तारों का ईधन खत्म हो जाता है और वे मर जाते है, तो वे अपने गुरुत्वाकर्षण के कारण ढह जाते है। और अपने पीछे ब्लैक होल या न्यूट्रॉन तारे छोड़ जाते है। ब्रह्रांड में ब्लैक होल का गुरुत्वाकर्षण बल सबसे अधिक है और न्यूट्रॉन सितारों का धनत्व सबसे अधिक है।

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एक्सपोसैट मिशन की लागत क्या है- What is the cost of Exposat mission?

एक्सपोसैट मिशन के लागत की बात करें तो यह लगभग 250 करोड़ लगभग (30 मिलियन) है। जबकि नासा का आईएक्सपीई मिशन- जो 2021 मे लॉन्च हुआ था उसका खर्च 188 मिलियन आया था। नासा का आईएक्सपीई मिशन का जीवन काल महज दो साल का है वहीं भारतीय उपग्रह एक्सपोसैट के पांच साल से अधिक समय तक चलने की उम्मीद है।

कब लॉन्च किया गया- When was it launched

भारत ने इसे नए साल की शुरुआत में ही लॉन्च कर दिया। इसरो ने इसे 1 जनवरी 2024 को  सतीश धवन स्पेस सेंटर श्रीहरिकोटा से सुबह 9 बजकर 10 मिनट पर लॉन्च किया। एक्सपोसैट उपग्रह के सफल लॉन्च के साथ ही भारत, अमेरिका के बाद ब्लैक होल का अध्ययन करने के लिए वैधशाला रखने वाला दूसरा देश बन गया।

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इसरो के आने वाले मिशन- Upcoming missions of ISRO

साल 2024 की शुरुआत मे ही अपना पहला एक्सपोसैट लॉन्च करने के बाद इसरो फिर से अपने नये मिशन पर लग गया है। साल 2024 इसरो के लिए बड़ा साबित होने वाला है। इस साल दुनिया की निगाहें इसरो के कई बड़े अभियानों पर है। जिनमें गगनयान के दो चरणों के अलावा, इसरो-नासा के सयुंक्त अभियान निसार का प्रेक्षपण शामिल होगा। लोगों को मगंलयान-2 और शुक्रयान का भी इंतजार है।

  • इसरो के जिस सबसे बड़े अभियान का लोगों को इंतजार है, वह गगनयान अभियान है। नासा के आर्टिमिस अभियान के तरह ही इसके भी तीन चरण होगें। 2024 में इसके पहले दो चरण पूरे होने की उम्मीद है। यह क्रू रहित अभियान अंतरिक्ष यान के तंत्रों का परीक्षण करेगा। जबकि गगनयान-2 में एक ह्रामनॉइड को अंतरिक्ष में भेज यान की रीएंट्री और लैडिंग सिस्टम का परीक्षण किया जाएगा। इसका तीसरा चरण 2025 में पूरा होने की उम्मीद है। जिसमें तीन भारतीयों को पृथ्वी की कक्षा में भेज तीन दिनो तक वहां रखकर वापस पृथ्वी पर लाया जाएगा।
  • इसरो का 2024 का एक ओर मिशन जो नासा के साथ होने वाला है वह भी बहुत खास है। ये इसरो, नासा के सहयोग से नासा इसरो सिंथेटिक अपर्चर राडार  यानि निसार अभियान है। ये सैटेलाइट 2024 में प्रक्षेपित किया जाएगा जो रिमोट सेंसिग के जरिए पृथ्वी की प्राकृतिक प्रक्रियाओं का अवलोकन करेगा। इस 1.5 अरब डॉलर के अभियान के कारण कई प्राकृतिक आपदाओं की जानकारी पहले पता लग जाएगीं।
  • दुनिया के कई देश मंगल पर अपने कदम रखना चाहते है। इसी कड़ी मे भारत भी शामिल है। ऐसे में इसरो भी मंगल को लेकर उदासीन नहीं रहना चाहता। इसलिए वह अपने दूसरे मंगलयान की तैयारी कर रहा है। एमओएम- की सफलता के बाद अब इसरो मंगल के वायुमंडल, सतह और जलवायु के अध्ययन के लिए मंगलयान-2 भेजेगा। इसके उपकरण मार्स के मैग्नेटिक फील्ड के साथ मार्स की सतह का नक्शा बनाने का भी काम करेंगा।
  • इसरो ने अब भविष्य के अभियानों को भी गभ्भीरता से लेना शुरु कर दिया है। इसरो अब शुक्र पर भी अपने पैर जमाने जा रहा है। इसके प्रक्षेपण की तारीख अभी तय नहीं है पर उम्मीद है कि दिंसबर 2024 तक यह लॉन्च हो जाएगा। शुक्रयान इस गर्म ग्रह का चक्कर लगाकर 5 साल तक इसका अध्ययन करेगा।

आगे की अपडेट आपको समय-समय पर मिलती रहेगी.. धन्यवाद

एक्स-रे पोलारिमीटर सैटेलाइट क्या है?

एक्स-रे पोलारिमीटर सैटेलाइट एक अंतरिक्ष वेधशाला है जो ब्रह्रांडीय एक्स-रे के ध्रवीकरण का अध्ययन करती है, और इसे इसरो ने निर्मित किया है।

एक्सपोसैट का मुख्य उद्देश्य क्या है?

एक्सपोसैट का मुख्य उद्देश्य ब्रह्रांड के 50 सबसे चमकीले स्त्रोतों की ध्रुवीकरण का अध्ययन करना है, जिससे खगोलीय स्त्रोतों की गतिशीलता को समझा जा सके।

एक्सपोसैट का निर्माण कैसे हुआ है और इसका उपयोग क्या होगा?

एक्सपोसैट इसरो और रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट बंगलूरु के सहयोग से विकसित किया गया है। इसका उपयोग खगोलीय स्त्रोतों के ध्रुवीकरण का अध्ययन करने में किया जाएगा, जिससे अंतरिक्ष अनुसंधान में नए दरवाजे खुल सकते हैं।

ब्लैक होल्स क्या हैं और उनका अध्ययन क्यों महत्वपूर्ण है?

ब्लैक होल्स अंतरिक्ष में काला छेद हैं जो प्रकाश को अपने अंदर समाहित कर लेते हैं। इसका अध्ययन अंतरिक्ष के रहस्यों को समझने में मदद कर सकता है।

इसरो के आगामी मिशन और उनकी तारीखें क्या हैं?

इसरो के आने वाले मिशनों में गगनयान, नासा के साथ निसार अभियान, मंगलयान-2, और शुक्रयान शामिल हैं। इसके अलावा, शुक्रयान का लॉन्च दिसंबर 2024 तक होने की उम्मीद है।

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