भारत की शिक्षा व्यवस्था- India’s education system 5000 year’s

प्रस्तावना– Preface

India’s education system-हमारा इतिहास 5,000 साल से भी ज्यादा पुराना है और कह सकते हैं कि हमारी शिक्षा व्यवस्था भी उतनी ही पुरानी है। हमारे वेद, पुराण, उपनिषदों की रचना उस समय पर की गई। दुनिया का सबसे पुराना वेद ऋग्वेद हमारे भारतवर्ष में लिखा गया था। जब दुनिया की कई सभ्यता जनम ले रही थी तब हमारे यहां वेदो, पुराणों की रचना की जा रही थी। दुनिया में ज्ञान का प्रकाश सबसे पहले हमारे भारतवर्ष से प्रकक्षित  हुआ। आज वो प्रकाश कहीं धोमिल हो गया है दुनिया में विश्वगुरु कहलाने  वाला भारत आज उसी सूर्य की और जाने का  प्रयास कर रहा है।

किसी भी चीज़ को सीखने की और उसका ज्ञान प्राप्त करने की प्रक्रिया को शिक्षा कहते है। शिक्षा लेना हमारे लिए बहुत जरूरी है, क्योंकि शिक्षा मनुष्य के सफल होने की एक शानदार कुंजी है। शिक्षा हमें नैतिकता और सदाचार सिखाती है।  इसलिए जिस देश में ज्यादा शिक्षित लोग होते है, उस देश की अर्थव्यवस्था भी काफी मजबूत होती है। इसके साथ-साथ उस देश की शिक्षा प्रणाली भी अच्छी होनी चाहिए, तभी वह देश हर तरह से शक्तिशाली बनता हैं।

India's Education System: Empowering Minds, Transforming Futures
India’s Education System: Empowering Minds, Transforming Futures

भारत की शिक्षा व्यवस्था क्या है – What is India’s education system ?

जब दुनिया की कई सभ्यता जनम ले रही थी तब हमारे यहां वेदो, पुराणों की रचना की जा रही थी। दुनिया में ज्ञान का प्रकाश सबसे पहले हमारे भारतवर्ष से प्रकाशित हुआ। आज वो प्रकाश कहीं धूमिल हो गया है दुनिया में विश्वगुरु कहलाने वाला भारत आज उसी सूर्य की और जाने का प्रयास कर रहा है।

आधुनिक युग में शिक्षा व्यवस्था- आधुनिक शिक्षा प्रणाली अंग्रेज दलाल मैकाले द्वारा शुरू की गई थी। आजादी से लेकर आज तक हमने सिर्फ क्लर्क तैयार किए है! इसका पूरा श्रेय मैकाले द्वारा दी गई शिक्षा प्रणाली को जाता है। और आजादी के बाद भी हमारे नेताओं ने गुलाम शिक्षा व्यवस्था को ही आगे बढ़ाया है। आज के समय शिक्षा एक उद्योग बन गया है।

जहां बड़े लेवल पर फाइव स्टार स्कूल ओपन हो रहे हैं। जहां हमारी लोकल लैंग्वेज को छोडकर सिर्फ अंग्रेज बनाने पर जोर हैं।आज हमारी पुरानी शिक्षा प्रणाली को लोग भूल चुके हैं। हमारे गुरुकुल अब खत्म होते जा रहे हैं। वर्तमान में शिक्षा सार्वजनिक संस्थाओ द्वारा प्रदान की जाती हैं। जिसमें नियंत्रण और वित्तपोषण तीन स्तरों से आता है। केंद्र,राज्य और स्थानीय निकाय

किसी भी चीज़ को सीखने की और उसका ज्ञान प्राप्त करने की प्रक्रिया को शिक्षा कहते है। शिक्षा लेना हमारे लिए बहुत जरूरी है, क्योंकि शिक्षा मनुष्य के सफल होने की एक शानदार कुंजी है। शिक्षा हमें नैतिकता और सदाचार सिखाती है।

किसी भी मनुष्य की आर्थिक और सामाजिक स्थिति ज़्यादातर उसकी शिक्षा पर निर्भर करती है। इसलिए जिस देश में ज्यादा शिक्षित लोग होते है, उस देश की अर्थव्यवस्था भी काफी मजबूत होती है। इसके साथ-साथ उस देश की शिक्षा प्रणाली भी अच्छी होनी चाहिए, तभी वह देश हर तरह से शक्तिशाली बनता है।

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प्राचीन भारत की शिक्षा प्रणाली– Education system of ancient India

प्राचीन भारत में शिक्षा प्रणाली गुरुकुल आधारित थी। उस काल में शिक्षा का संचालन ऋषि मुनियों द्वारा वनों में गुरुकुलों के माध्यम से सचालित किया जाता था।  भारत के  नालंदा और तक्षशिला विद्यालय भी इसी तरह के थे। भारत की शिक्षा प्रणाली उस समय इतनी अच्छी थी कि विदेशी लोग भी इन विद्यालयों में शिक्षा प्राप्त करने के लिए आते थे।

इन विद्यालयों में छात्रों को विभिन्न विषयों की शिक्षा लेने के लिए गुरु के आश्रम में जाना पड़ता था। और जब तक वह अपनी शिक्षा पूरी नहीं कर लेते, तब तक उनको अपने गुरु के साथ आश्रम में ही रहना पड़ता था। इसके साथ-साथ छात्रो को अपना काम खुद करना पड़ता था। इससे छात्रो को सबसे बड़ा फायदा यह होता था की उनके अंदर अहंकार बिल्कुल खत्म हो जाता था। इस तरह प्राचीन भारत की शिक्षा प्रणाली बहुत ही जबरदस्त थी।

ब्रिटिश काल में भारत की शिक्षा प्रणाली– India’s education system during the British period

जब भारत को अंग्रेज़ो ने गुलाम बनाया था, तब से ही उन्होंने गुरुकुल प्रणाली को मिटाना शुरू कर दिया था। थॉमस बबिंगटन माउ काउली 1830 में आधुनिक शिक्षा प्रणाली को भारत लाये थे। इसमें अंग्रेज़ो ने एक अलग ही शिक्षा प्रणाली का पालन करने वाले स्कूलों की स्थापना की। इसके अलावा उन्होने गुरुकुलों में पढ़ाए जाने वाले तत्त्वमसा, दर्शन और उपनिषद जैसे विषयों को अनावश्यक कर विज्ञान, गणित और इंग्लिश जैसे विषयों को लाया गया। यह विषय गुरुकुलों में पढ़ाए जाने वाले विषयों से काफी भिन्न थे।

इन सब की वजह से भारत की शिक्षा प्रणाली में अचानक परिवर्तन हुआ और छात्रों का ध्यान प्राचीन शिक्षा प्रणाली से हटकर अंग्रेज़ो की आधुनिक शिक्षा प्रणाली की ओर चला गया। यह हमारे लिए अच्छा बदलाव नहीं था। लेकिन अंग्रेज़ो की शिक्षा प्रणाली से एक चीज बहुत अच्छी हुई कि, इसमें लड़कियां भी शिक्षा लेने लगी और स्कूलों मे जाने लगी। लेकिन अंग्रेज़ो की आधुनिक शिक्षा प्रणाली से हमें कोई खास फायदा नहीं हुआ, क्योकि अंग्रेज़ों ने अपने लाभ के लिए इस शिक्षा प्रणाली को अपनाया था।

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भारत की वर्तमान शिक्षा प्रणाली– Current education system of India

15अगस्त, 1947 को जब भारत आजाद हुआ, तब हमारे स्वतंत्रता सेनानी का ध्यान सबसे पहले अंग्रेज़ो की आधुनिक शिक्षा प्रणाली पर गया। क्योकि अंग्रेज़ो की आधुनिक शिक्षा प्रणाली हमारे देश के लिए अनुकूल नहीं थी। इसलिए, भारत में एक नई शिक्षा प्रणाली बनाने का फैसला हुआ। जिसमें अखिल भारतीयशिक्षासमिति और बेसिकशिक्षासमिति जैसी कई समितियों का गठन किया।

इन समिति द्वारा कई विस्तृत शिक्षा आधारित योजना बनाई गई, जिसके द्वारा देश में नये स्कूल-कॉलेजों की स्थापना की गई। वर्तमान शिक्षा प्रणाली से भारत में शिक्षा का प्रचार-प्रसार बढ़ने लगा और साक्षरता दर में भी बढ़ोतरी हुई। इसमें महिलाओं की शिक्षा पर भी विशेष ध्यान दिया गया था। 2011 की जनगणना के अनुसार देश में कुल साक्षर जनसख्या 73.0 प्रतिशत थी जिसमें महिलाओं की साक्षर दर 64.6प्रतिशत थी।

इस शिक्षा प्रणाली से देश का बहुत लाभ हुआ परन्तु इसमें कुछ खामियां भी थी। जिसें समय के साथ सुधारा नहीं गया, हमारी एक बड़ी आबादी कई दशकों तक एक तरह की ही शिक्षा प्रणाली का उपभोग करती रहीं।

वर्तमान भारतीय शिक्षा प्रणाली के दोष– Demerits of current Indian education system

दुनिया में हर चीज को समय-समय पर परिवर्तन की जरूरत होती है। क्योकि जब तक किसी चीज़ में बदलाव नहीं होता, वह चीज़ एक समय पर पुरानी हो जाती है। और हमारे आस-पास की चिज़े हमसे आगे बढ़ जाती है। इसी तरह भारत की शिक्षा प्रणाली में कोई बड़ा बदलाव नहीं किया गया, जिससे आज के आधुनिक युग में हमारी शिक्षा प्रणाली काफी कमजोर मानी जाती है।

इसीलिए तो अब्दुलकलामजी ने कहा था कि, भारतीय शिक्षा प्रणाली को पूर्ण रूप से सुधार करने की आवश्यकता है। लेकिन हमने आज तक इसमें कोई बदलाव नहीं किया। विश्व के कई देश अपनी शिक्षा प्रणाली को समय के साथ-साथ बदलतें रहते है, जिससे की उनकी आनी वाली नई आबादी बदले स्वरुप को स्वीकार कर सकें।

भारत ने अपनी शिक्षानीति को समय पर न बदलकर अपनी नई आबादी को नये बदलाव से विमुख रखा। नये पाठ्यक्रम में बदलाव लाने का मतलब यह नहीं है कि हमें अपने छात्रो को इतिहास से दूर ऱखना है। परंतु पाठ्यक्रम में कुछ प्रेक्टिकल विषयो को शमिल करने से छात्रों में उपयोगिता आती है।

हमारे पाठ्यक्रम 19वीं सदी का है, और हमारी शिक्षा व्यवस्था 20वीं सदी की और छात्र 21वीं सदी के है। इस तरह पाठ्यक्रम और आधुनिक छात्रों के बीच एक बहुत बड़ा अंतर है। इसीलिए तो दुनिया के हर क्षेत्र में हमारे छात्र पिछड़ जाते है।

भारत में दो तरह की शिक्षा प्रणाली काम करती है एक जिसें सरकार चलाती हैं जो कि चलती नहीं और जिसें निजी क्षेत्र चलाता है। अगर हम बात सरकार द्वारा संचालित स्कूलों की करें तो उनकी हालत कुछ स्कूलों में तो ठीक है पर ज्यादातर हिस्सा उसका चरमराया हुआ नजर आता है। इसका मुख्य कारण यह है कि राज्य सरकार और केंद्र सरकार में दो अलग-अलग दल है। जिस वजह से इन दोनों के बीच तालमेल अच्छा नहीं होता। परंतु इससे छात्रो को नुकसान होता है।

आईआईटी, आईआईएम जैसे कुछ शीर्ष विश्वविद्यालय को छोड़कर हमारी पढ़ाने की पद्धति लगभग हर जगह बहुत पुरानी है। एक शिक्षक कक्षा में आकर पुस्तक से पढ़ाता है और वर्ष के अंत में छात्र का मूल्यांकन किया जाता है। उसी के आधार पर छात्र का भविष्य तय होता है। हमारे यहां छात्रों को व्यावहारिक ज्ञान से ज्यादा किताबी ज्ञान पर ध्यान दिलाया जाता है। छात्र का सामूहिक विकास हो ही नहीं पाता। एक छात्र का मूल्यांकन यहां सिर्फ एक पेपर के माध्यम से किया जाता है।

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वर्तमान शिक्षा प्रणाली में सुधार के तरीके– Ways to improve the current education system

दुनिया में हर चीज को समय-समय पर परिवर्तन की जरूरत होती है। क्योकि जब तक किसी चीज़ में बदलाव नहीं होता, वह चीज़ एक समय पर पुरानी हो जाती है। और हमारे आस-पास की चिज़े हमसे आगे बढ़ जाती है। इसी तरह भारत की शिक्षा प्रणाली में कोई बड़ा बदलाव नहीं किया गया, जिससे आज के आधुनिक युग में हमारी शिक्षा प्रणाली काफी कमजोर मानी जाती है।

इसीलिए तो अब्दुलकलामजी ने कहा था कि, भारतीय शिक्षा प्रणाली को पूर्ण रूप से सुधार करने की आवश्यकता है। लेकिन हमने आज तक इसमें कोई बदलाव नहीं किया। विश्व के कई देश अपनी शिक्षा प्रणाली को समय के साथ-साथ बदलतें रहते है, जिससे की उनकी आनी वाली नई आबादी बदले स्वरुप को स्वीकार कर सकें।

भारत ने अपनी शिक्षानीति को समय पर न बदलकर अपनी नई आबादी को नये बदलाव से विमुख रखा। नये पाठ्यक्रम में बदलाव लाने का मतलब यह नहीं है कि हमें अपने छात्रो को इतिहास से दूर ऱखना है। परंतु पाठ्यक्रम में कुछ प्रेक्टिकल विषयो को शमिल करने से छात्रों में उपयोगिता आती है।

हमारे पाठ्यक्रम 19वीं सदी का है, और हमारी शिक्षा व्यवस्था 20वीं सदी की और छात्र 21वीं सदी के है। इस तरह पाठ्यक्रम और आधुनिक छात्रों के बीच एक बहुत बड़ा अंतर है। इसीलिए तो दुनिया के हर क्षेत्र में हमारे छात्र पिछड़ जाते है।

भारत में दो तरह की शिक्षा प्रणाली काम करती है एक जिसें सरकार चलाती हैं जो कि चलती नहीं और जिसें निजी क्षेत्र चलाता है। अगर हम बात सरकार द्वारा संचालित स्कूलों की करें तो उनकी हालत कुछ स्कूलों में तो ठीक है पर ज्यादातर हिस्सा उसका चरमराया हुआ नजर आता है। इसका मुख्य कारण यह है कि राज्य सरकार और केंद्र सरकार में दो अलग-अलग दल है। जिस वजह से इन दोनों के बीच तालमेल अच्छा नहीं होता। परंतु इससे छात्रो को नुकसान होता है।

आईआईटी, आईआईएम जैसे कुछ शीर्ष विश्वविद्यालय को छोड़कर हमारी पढ़ाने की पद्धति लगभग हर जगह बहुत पुरानी है। एक शिक्षक कक्षा में आकर पुस्तक से पढ़ाता है और वर्ष के अंत में छात्र का मूल्यांकन किया जाता है। उसी के आधार पर छात्र का भविष्य तय होता है। हमारे यहां छात्रों को व्यावहारिक ज्ञान से ज्यादा किताबी ज्ञान पर ध्यान दिलाया जाता है। छात्र का सामूहिक विकास हो ही नहीं पाता। एक छात्र का मूल्यांकन यहां सिर्फ एक पेपर के माध्यम से किया जाता है।

वर्तमान शिक्षा प्रणाली में सुधार के तरीके

हमारे प्राचीन शिक्षा प्रणाली में छात्रों के सामूहिक विकास पर ध्यान दिया जाता था न कि उन्हें सिर्फ एक कमरें तक सीमित कर दिया जाता था। गांधी जी ने भी कहां था कि शिक्षा से बच्चों का शारीरिक, मानसिक और नैतिक विकास होना चाहिए न कि उन्हे सिर्फ किताबों तक सीमति कर देना चाहिए। लेकिन भारत की वर्तमान शिक्षा प्रणाली को देखते हुए हमें इसमें सुधार करने की बहुत आवश्यकता है। इसके लिए हमें सबसे पहले छात्रों के कौशल विकास पर ध्यान देना होगा और उनके अंकों और रैंक को महत्व देना बंद करना होगा। हमें छात्रो की संज्ञानात्मक और रचनात्मक सोच को कैसे बढ़ाए इसके बारे में सोचना होगा।

इसके अलावा हमें किसी भी विषय की गहरी समझ विकसित करने के लिए उसका व्यावहारिक ज्ञान बहुत जरूरी है। परंतु भारत की वर्तमान शिक्षा प्रणाली सैद्धांतिक ज्ञान पर केंद्रित है। हमें इसे बदलना चाहिए और व्यावहारिक ज्ञान को अपनाना चाहिए। इसके साथ-साथ हमें अपने पाठ्यक्रम को भी समय के अनुसार बदलना चाहिए, क्योकि हमारा पाठ्यक्रम दशकों से समान है। जैसे वर्तमान में कंप्यूटर का युग है, इसलिए आज के समय में कंप्यूटर विषय स्कूलों में मुख्य विषयों में से एक होना चाहिए। देश को आगे बढ़ाने के लिए अच्छे शिक्षको की भी जरूरत हैं।

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परंतु हमारे देश के कई शिक्षण संस्थान कुछ रुपये बचाने के लिए उन शिक्षकों को नियुक्त करते है, जिनके पास छात्रो को पढ़ाने का कोई खास अनुभव और कौशल नहीं है। ऐसे शिक्षक कम वेतन लेकर छात्रो का भविष्य खराब करते है। हमारी शिक्षण संस्थानो को अपने इस दृष्टिकोण को बदलना होगा। तभी हम अपनी वर्तमान शिक्षा प्रणाली में सुधार कर सकते है।

हमें भारत में छात्रों के सम्पूर्ण विकास के लिए कला व खेल आदि क्षेत्रों पर ध्यान देना होगा। मनुष्य को सफल होनें के लिए शिक्षा के साथ-साथ अन्य चीजों की भी आवश्यकता होती है। यदि हम इन सभी चीज़ों को अपना लें तो शायद वर्तमान शिक्षा प्रणाली में सुधार कर सकते है।

निष्कर्ष

अगर हमें भारत को विश्व के विकसित देशों में शामिल करना है, तो देश की शिक्षा प्रणाली में एक बड़ा बदलाव लाना ही होगा। क्योंकि एक विकसित देश अपनी शिक्षा पर बहुत ध्यान देता है। इसके लिए हम सभी भारतीयों को डिग्री के पीछे न दौड़कर शिक्षा में व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाना होगा। विश्व की बड़ी-बड़ी कंपनियां भी आज डिग्री नहीं स्किल को देखती हैं।

यूरोप के देश फिनलैंड की शिक्षा व्यवस्था को दुनिया की बेहतरीन शिक्षा व्यवस्था माना जाता हैं। इस देश की शिक्षा व्यवस्था पूरी तरह से मुफ्त हैं। यहाँ शिक्षा सभी के लिए एक समान हैं। इनका शिक्षा मॉडल 1970 से लागू हुआ था। जो पूरे देश में एक समान शिक्षा को बढ़ावा देता हैं। यहाँ बच्चों के सर्वागीण विकास पर ध्यान दिया जाता हैं। यहाँ बच्चों के लिए 9 साल की फॉर्मल एजुकेशन लेना जरूरी है। यहाँ बच्चों का दाखिला स्कूल्स में 7 साल की उम्र से कराया जाता है।

यहां शिक्षकों के लिए भी मास्टर्स की डिग्री अनिवार्य हैं। शिक्षक होना यहाँ सम्मान की बात हैं। यहाँ भारत की तरह शिक्षा एक उद्योग नहीं हैं। ब्लकि बच्चों सबल बनाने की एक प्रक्रिया हैं। यहाँ बच्चों को एक समान शिक्षा दी जाती हैं। भारत मे शिक्षको के लिए शिक्षक बनने के लिए किसी खास शिक्षा की  जरूरत नहीं होती है। भारत मे शिक्षा एक उद्योग मात्र है। हमारे देश मे शिक्षको का एक वर्ग कोचिंग के जरिए अपना एक अलग स्कूल चलाता हैं। जहां टॉपर्स के नाम पर मशीन तैयार किए जा रहे हैं। यहाँ सिर्फ़ शिक्षक बनना एक सरकारी नौकरी हैं।

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