Increasing pollution and decreasing lives 2024 – बढ़ता प्रदूषण व घटती जिदंगियां     

“दिवाली में इस बार भी वहीं राग रहा कि पटाखे जलाने से प्रदूषण (pollution) होता है। फिर से कुछ मौसमी पर्यावरणविदों ने अपनी राय दी की दिवाली पर पटाखो को न जलाया जाए, इससे प्रदूषण होता है। पर प्रदूषण की असल समस्या क्या है यह सब जानते है, फिर भी रोक पटाखे जलाने पर रहती है। सभी जानते है कि इसका मुख्य कारण पराली जलाना, वाहन उत्सर्जन और अन्य स्थानीय प्रदूषण स्त्रोतों के साथ मौसम संबधी स्थितियां है।

पटाखे इसका एक कारण हो सकते है, पर मुख्य कारण नहीं। हर साल सर्दियों की शुरुआत से ही ये समस्या हमारे देश की राजधानी दिल्ली और उससे सटे प्रदेशों में शुरु हो जाती है पर इसका ठोस निदान न तो यहां की सरकारों व प्रशासन के पास है और न ही लोगों के पास।”

Aerial view of a city shrouded in smog and pollution, symbolizing the environmental challenges in 2023
Witness the stark reality of our times as pollution levels rise, posing a threat to lives and the environment

औघोगिक क्रान्ति और प्राकृतिक का दोहन-Industrial revolution and exploitation of natural resources

कई सभ्यताओं से होते हुए, कई शासकों के शासन द्धारा शासन किए जाने के पश्चात् हमारा भारत आज इक्सीवीं सदी के तीसरे दशक में अपनी गहरी छाप छोड़ रहा है। औघोगिक क्रान्ति (1860-1900) के बाद एक समस्या ने अपने पैर पसारे है और उस समस्या को ग्लोबल वार्मिग के नाम से जाना जाता है। कई देशों ने विकास के नाम पर अंधाधुंध पर्यावरण का क्षरण किया और अपने विकास को धार देते गये और आज विश्व उसी का परिणाम भुगत रहा है।

अमेरिका और पश्चिमी मित्र मुल्कों ने विकास के नाम पर अंधाधुंध कार्बन उर्त्सजन को बढ़ावा दिया। विकास के नाम पर अंधाधुंध पेंड़ो की कटाई की गई तथा मृदा का क्षरण भी किया गया। हमने आज कई तरह की आधुनिक चीजे विकसित कर ली है पर आघुनिकता की इस दौड़ में हमने हमारी पृथ्वी को गर्त में ड़ाल दिया है। ग्लोबल वार्मिग के कारण आज दुनिया के ग्लेशियर पिघल रहे है तथा पृथ्वी का तापमान बढ़ता जा रहा है।

समुद्र का जलस्तर भी लगातार बढ़ता जा रहा है जिसके कारण दुनिया के कई तटीय शहर अपनी जमीन खोते जा रहे है। भारत के तटीय शहरों मे भी लगातार खतरा मड़रा रहा है। इसमें सभी देशों का परस्पर सहयोग है। तटीय शहरों पर खतरें के कारण कई देशों ने अपनी राजधानियाँ शिफ्ट कर ली है। पर्यावरण के क्षरण में फाँसिल फ्यूल भी एक अहम कारण है जिससे कई देशों में बिजली उत्पन्न की जाती है।

जिससे कई हानिकारक गैसे निकलती है जो कि पर्यावरण के लिए घातक है। आज मनुष्य कई तरीके से पृथ्वी के स्रोतों का दोहन कर रहा है। भारत मे पर्यावरण को ताक पर रखकर विकास का पैमाना तय किया जा रहा है। भारत मे अवैधं खनन एक गंभीर समस्या है। छोटे स्तर पर कई बड़े अधिकारी पर्यावरण की अनदेखी कर कमीशन के जुंगाड़ मे रहते है।

विश्व मे कई देश बस पर्यावरण सरंक्षण के नाम पर ढ़ोग करते है और आज भी दुनिया के सबसे बड़े ग्रीन हाउस गैंस उर्त्सजन करने वालों में सबसे आगें है। अचानक आने वाली प्रकृति आपदायें इसका बढिया उदाहरण है। चाहे 2013 मे आयी केदारनाथ आपदा हो या 2015 मे नेपाल मे आया भूकम्प दोनो में प्रकृति ने अपने पूरा कहर बरपाया।

दिल्ली का बढ़ता प्रदूषण-Increasing pollution of Delhi

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली व उससे सटे प्रदेशों में हर साल सर्दियों की शुरुआत में प्रदूषण अपने चरम स्तर तक पहुंचने लगता है, जहां लोगों का सांस लेना भी मुश्किल हो जाता है। इस प्रदूषण का मुख्य कारण वाहन उत्सर्जन, धान-पुआल जलाने, अन्य स्थानीय स्त्रोत व कुछ हद तक पटाखे भी हो सकते है। जिससे की राष्ट्रीय राजधानी और उससे जुड़े क्षेत्रों की वायु खतरनाक स्तर तक पंहुच जाती है।

पिछले महीने मे एक दिन वायु गुणवत्ता सूचकांक 500 के स्केल पर 300 के पार चला गया, जब आसमान में धुंध की चादर छाई हुई थी और बाह्रा वातावरण में धूल एवं धुएँ की एक विशिष्ट गंध फैली हुई थी। अगले दिन पवनों की गति कुछ तेज रही और आसमान साफ़ हो गया। शहर के 2 करोड़ निवासियों के लिये यह राहत की बात रही जहाँ वायु का स्तर अत्यंत खराब से पुनः खराब की श्रेणी में आ गया।

दिल्ली का प्रदूषण हर साल लाखों लोगों को प्रभावित करता है। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद के एक अध्धयन के अनुसार, वर्ष 2019 में भारत में वायु प्रदूषण से 1.67 मिलियन मौतें हुई। दिल्ली में वायु प्रदूषण के कारण प्रति व्यक्ति मृत्यु दर देश में सर्वाधिक है।

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प्रदूषण स्तर बढ़ने के कारण-Due to increasing pollution level

  • पराली जलाना-  पंजाब और हरियाणा के किसान अगले फसल मौसम हेतु अपने खेंतों की सफाई के लिए पराली या फसल अवशेषों को जलाने का रास्ता चुनते है। पराली जलाने से बड़ी मात्रा में धुआँ और पीएम 2.5 उत्सर्जित होते है। पंजाब और हरियाणा की सीमा दिल्ली से लगने के कारण ये कण हवा के साथ बहकर दिल्ली तथा बाकी पड़ोसी राज्यों को प्रदूषित करते है।
  • पराली दहन वायुमंडल में जहरीले प्रदूषकों का उत्सर्जन करता है। जिसमें कार्बन मोनोऑक्साइड, मीथेन, कैंसर कारक पोलिसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन और वाष्पशील कार्बनिक योगिक जैसी हानिकारक गैसें शामिल होती है। वर्ष 2021 में पराली से दिल्ली में अत्यधिक प्रदूषण हुआ।  
  • पवन की दिशा- दिल्ली के प्रदूषण में पवन की दिशा एक प्रमुख भूमिका निभाती है, विशेष रुप से सर्दियों के महीनों में। मानसून के बाद दिल्ली में पवनों की दिशा मुख्यतः उत्तर पश्चिमी होती है। ये पवनें हरियाणा और पंजाब में पराली दहन से उत्पन्न धुएँ एवं धूल को दिल्ली की ओर बहाकर ले जाते है।
  • तापमान व्युत्क्रमण- एक ऐसी परिघटना है जो तब घटित होती है जब हवा का तापमान ऊँचाई या तुंगता के साथ बढ़ता जाता है। इसमें ठड़ी हवा की परत के ऊपर गर्म हवा की एक चादर बन जाती है। जो प्रदूषक तत्वों को भूमि सतह के निकट कर देती है।
  • यह शीतकाल में दिल्ली के प्रदूषण को प्रभावित करता है, जब मौसम ठड़ा और शांत होता है। पराली दहन, वाहन उत्सर्जन, औघोगिक उत्सर्जन और अन्य स्त्रोतों से निकलने वाले प्रदूषक निचले वायुमंडल में जमा हो जाते है और धुंध की एक मोटी परत का निर्माण करते है।
  • वाहन एवं औघोगिक उत्सर्जन- दिल्ली देश में एक बड़ी आबादी वाला शहर है, जहां बहुत से लोगों द्वारा वाहनो का उपयोग किया जाता है। वाहनो से कई प्रकार की गैसों का उत्सर्जन है। दिल्ली और उसके आस-पास के उघोग भी जीवाश्म ईधन और हवा में रसायनों के उत्सर्जन के रुप में प्रदूषण में योगदान देते है। पीएम 2.5 का स्तर बढ़ाने मे भी वाहनो का विशेष योगदान रहता है।
  • प्रदूषण के अन्य स्त्रोत जो इसके कारण है उसमें प्रमुख रुप से -धूल भरी आँधी, आतिशबाजी और घरेलू बायोमास को जलाना जिम्मेदार है। आईआईटी- कानपुर ने वर्ष 2015 में किये एक अध्धयन में पाया कि सर्दियों में दिल्ली में प्रदूषण का 17-26% भाग बायोमास दहन के कारण होता है।
  • हालांकि जहरीली हवा सिर्फ दिल्ली की समस्या नहीं है। इस बात पर बार-बार जोर देने की जरुरत है कि बेशक जहरीली हवा सबको प्रभावित करती है। लेकिन इसका असर हरेक व्यक्ति पर एक समान नहीं पड़ता।

अन्य राजधानियों की स्थिति-Position of other capitals

एनसीएपी (राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम) ट्रैकर ने वर्ष 2022 एवं 2023 के लिए विभिन्न राज्यों की 11 राजधानी शहरो-बंगलूरु, भोपाल, चंडीगढ़, चेन्नई, दिल्ली, गांधीनगर, हैदराबाद, लखनऊ, मुंबई और पटना का दिवाली से पहले, दिवाली के दिन और दिवाली के बाद पीएम 2.5 के आंकड़ो का अध्धयन किया। ये आंकड़े केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के सतत परिवेश वायु गुणवत्ता निगरानी स्टेशनों (सीएएक्यूएमएस) से लिए गए थे।

इस विश्लेषण में पाया गया कि इस वर्ष दिवाली से एक दिन पहले यानी 11 नवंबर को 11 में से आठ शहरों में पीएण 2.5 का स्तर वर्ष 2022 के 23 अक्टूबर ( पिछले वर्ष दिवाली से एक दिन पहले) की तुलना में कम था। हांलाकि उस दिन गांधीनगर, कोलकाता और पटना में पीएम 2.5 का स्तर वर्ष 2022 की तुलना में ज्यादा था।

इन सभी 11 शहरों में दिवाली के दिन और उसके बाद के बारह घंटों में पीएम 2.5 का स्तर केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की दैनिक औसत अच्छी सीमा यानी 30 माइक्रोग्राम प्रति धन मीटर से ऊपर था। इन 11 शहरों में से पटना में दिवाली के दिन पीएम 2.5 का स्तर सर्वाधिक 206.1 माइक्रोग्राम प्रति धन मीटर था, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन की दैनिक सुरक्षित सीमा 15 माइक्रोग्राम प्रति धन मीटर से 13 गुना ज्यादा था।

इससे साबित होता है कि दिवाली पर पटाखे चलाना ही प्रदूषण का एकमात्र कारण नहीं है। इसमें सभी कारकों का ज्यादा योगदान है, यह बस इसकों थोड़ा बढ़ाने का काम करता है। हमें उन सभी कारकों पर बात करनी चाहिए जो हवा को प्रदूषित करने का काम करते है। केवल कुछ कारणों पर बात करके कोई फायदा नही होनें वाला।

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सरकार इस पर क्या कर रही है- What is the government doing on this

दिल्ली में प्रदूषण को कम करने के लिए दिल्ली सरकार ने हाल ही में कई कदम उठाए है-

  • पराली जलाने पर रोक
  • खुले में आग जलाना रोकना
  • धूल प्रदूषण को नियंत्रित करना
  • सार्वजनिक यातायात को बढ़ावा देना

दिल्ली के पर्यावरण मंत्री के मुताबिक विंटर एक्शन प्लान के तहत प्रदूषण कम करने के लिए दिल्ली सरकार ने कई कदम उठाए है। डीजल बसों पर भी प्रतिबंध की मांग केन्द्र सरकार से की गई है। जो कि राजस्थान, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के एनसीआर क्षेत्रों में चलती है। सरकार को जांच के दौरान पता चला है कि एनसीआर में चलने वाली सभी पंजीकृत बसें बीएस-3 और बीएस-4 थीं।

बढ़ते प्रदूषण को कम करने के लिए एक उपाय ऑड-ईवन है, इस पर उन्होंने कहा कि इसकी संभावना नहीं है क्योकि इस वर्ष इसकी जरुरत नहीं पड़ेगी। उनके अनुसार सरकार हर पहलू पर विचार कर रही है, जिससे प्रदूषण को कम किया जा सकें।

क्या करना चाहिए प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए- What should be done to control pollution

  • वायु प्रदूषण को कम रखने के लिए शहरी क्षेत्रों से दूर कारखानों को लगाना चाहिए। तथा इसमें चिमनियों की ऊँचाई अधिकतम व फिल्टर की उपयोगिता अनिवार्य होनी चाहिए।
  • सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देने की जरुरत है और उसे बेहतर और सुरक्षित बनाने की भी। जिससे की एक बड़ी आबादी इसकी और आकर्षित हो सके और इसका ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल कर सके।
  • ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाने की जरुरत है, लोगों की यह बताने की जरुरत है कि पेड़-पौधें पर्यावरण के लिए कितने जरुरी है। समय-2 पर इसके लिए अवेयरनेस प्रोग्राम भी चलाये जा सकते है। खासकर बच्चों को भी इसमें शामिल किया जा सकता है। कम से कम हर एक इंसान एक पेड़ अवश्य लगायें।
  • चाहे दिल्ली हो या कोई भी बड़ा शहर उसकी आबादी को स्थिर करने की जरुरत है। एक हद से ज्यादा आबादी का दबाव किसी भी बड़े शहर पर नहीं पड़ना चाहिए। इससे शहरों पर अनावश्यक बोझ बढ़ता है, जिससे वहां के पर्यावरण का क्षरण भी होता है।
  • गाडियों एवं दुपहिया वाहनों की ट्यूनिंग की जानी आवश्यक है ताकि अधजला धुआँ बाहर आकर पर्यावरण को दूषित न करे। साथ ही सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा दिया जाना आवश्यक है। सौर ऊर्जा चलित वाहनों को प्रोत्साहित करना चाहिये। इस तकनीक को बढ़ावा देना चाहिए।
  • प्रदूषण को कम करने के लिए शहरों के लिए वर्टिकल गार्डन एक उपाय हो सकते है। ये शहरी क्षेत्रों के लिये सौंदर्य की दृष्टि से मनभावन और पर्यावरण की दृष्टि से लाभकारी है। वे न केवल शहर के दृश्य अपील को बढ़ाते है बल्कि कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करके और ऑक्सीजन निर्मुक्त कर हवा को शुद्ध करते है। इसके अलावा ये जैव विविधता को भी बनाए रखते है।
  • हम ऐसे लोगों को सम्मानित कर सकते है जो अपने-2 स्तर पर पर्यावरण के लिए कुछ सही में अच्छा कर रहे हैं। न की किसी विदेशी एनजीओ व विदेशी धन के लालच में सिर्फ पर्यावरण बचाने का ढोंग।
  • वैसे तो भारत में खेत में पराली जलाना, (आईपीसी 188) के तहत गैरकानूनी माना गया है। दोषी को 6 महीने का कारावास या 15 हजार का जुर्माना हो सकता है। फिर भी हर साल बड़े स्तर पर पराली जलायी जाती है। सरकार या प्रशासन चाहे तो इस पर बड़े आराम से रोक लग सकती है, पर वो चाहती नही है। धान की पराली आमतौर पर पशु चारे के लिए इस्तेमाल नहीं की जा सकती और किसानों के पास रबी की फसल की बुआई के लिए सिर्फ 20 दिन का समय शेष रहता है। इसलिए पराली को जल्द से जल्द खत्म करने के लिए उसको जला देते हैं।
  • सरकार इसमें किसानों की मदद कर सकती है और उनसे पराली लेकर वेस्ट रीसायकल बना सकती है। इसके लिए छोटे-2 स्तरों पर काम किया जा सकता है। पराली से कई तरह का वेस्ट रीसायकल बनाया जा सकता है , जैसे- जैविक खाद का निर्माण, जैविक ईट, आर्गेनिक डिस्पोजेबल बर्तन, कागज, कोयला, तारकोल, पराली बिक्रेट
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हम क्या कर सकते है- What can we do

इस मुद्दे पर सरकार और जनता दोनों को मिलकर काम करना होगा। इस मसले पर जनता में अवयेरनेस लाना होगा। जैसे वे सार्वजनिक यातायात का इस्तेमाल करें, किसी भी प्रकार के कूड़े-कचरे को न जलायें, हो सके तो सप्ताह में एक दिन सिर्फ साइकिल का इस्तेमाल करें, वृक्षारोपण ज्यादा से ज्यादा करें और सप्ताह में एक दिन पूरे शहर में सिर्फ सार्वजनिक यातायात ही इस्तेमाल किया जाए हर तरह का निजी वाहन बंद रहे।

आप की इस पर क्या राय है हमें कमेंट बाक्स में जरुर बतायें।

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Q1: What are the main causes of increasing pollution in Delhi and its surrounding areas?

The primary causes of rising pollution in Delhi include the burning of crop residues (parali), direction of the wind carrying pollutants from neighboring states, temperature inversions trapping pollutants, and emissions from vehicles and industrial sources.

Q2: How does the burning of crop residues contribute to Delhi’s pollution problem?

A2: The burning of crop residues, particularly in states like Punjab and Haryana, releases significant amounts of harmful pollutants such as PM2.5 into the air. This practice contributes to Delhi’s pollution woes, with approximately 25% of the city’s pollution attributed to crop residue burning.

Q3: What role do vehicular and industrial emissions play in Delhi’s pollution levels?

A3: Vehicular emissions, including the release of PM2.5, contribute to around 25% of Delhi’s pollution. Industrial emissions, along with the burning of biomass and household biofuels, also play a role in worsening air quality. The combined impact of these sources adds to the overall pollution burden in the region.

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