Cycle to Moon – The ISRO Story 2023-2024 : साइकिल से चांद तक- दि इसरो स्टोरी 2023-2024

Cycle to Moon | इसरो का इतिहास | पीएसएलवी की सफलता | जीएसएलवी | आईआरएनएसएस उपग्रह नेविगेशन प्रणाली | चन्द्रयान-1 | मंगलयान- (मार्स ऑर्बिटर मिशन) | 104 उपग्रह प्रक्षेपण | चंद्रयान-2 | चंद्रयान-3

“आज भारत चांद पर पंहुच गया। ये सभी भारतीयों के लिए गर्व का विषय है, कि कैसे हमारे वैज्ञानिकों के अथक प्रयासों के दम पर हम यह कर पायेँ। पूरा भारत आज गौरवान्वित है और जोश से भरा हुआ है। पर यह आसान नही था। हमनें ये सफर बहुत मुश्किलों से तय किया है। इसरो ने भारत को कई गर्व करने लायक क्षण दियें है। हमारे पहले रॉकेट के हिस्सों को  साइकिल से लॉन्चिंग स्टेशन तक लाया गया था।

1975 को प्रथम उपग्रह आर्यभट्ट के प्रक्षेपण से लेकर आज चन्द्रयान-3 तक के प्रक्षेपण तक हमने कई उपलब्धियों को अर्जित किया है। भारत अब स्पेस विज्ञान के नए युग में प्रवेश कर चुका है जहां से भारत को और नए मुकाम हासिल करनें है।”

Image depicting the journey of ISRO's lunar mission in 2023, showcasing the spacecraft's trajectory towards the Moon
Illustration capturing ISRO’s remarkable lunar mission in 2023, symbolizing the agency’s dedication to space exploration

इसरो का इतिहास- History of ISRO

भारतीय का अंतरिक्ष कार्यक्रम डॉ विक्रम साराभाई की संकल्पना है, जिन्हें भारतीय अंन्तरिक्ष कार्यक्रम का जनक कहा जाता है। 1957 में सोवियत संघ के स्पूतनिक के प्रक्षेपण के बाद उन्होंने कृत्रिम उपग्रहों की उपयोगिता को भांपा।

1961 में परमाणु ऊर्जा विभाग की देखरेख में अंतरिक्ष अनुसंधान कार्यक्रम को शुरु किया गया। परमाणु ऊर्जा विभाग के निदेशक होमी भाभा जी थे। जो कि भारत के परमाणु कार्यक्रम के जनक है। 1962 में इनकोस्पार (इड़ियन नेशनल कमेटी फार स्पेस रिर्सच) का गठन किया गया। जिसकी जिम्मेदारी डॉ. विक्रम साराभाई को दी गई।

उस समय सिर्फ सोवियत संघ, यूएस, फ्रांस जैसे देश ही स्पेस प्रोग्राम लॉन्च कर रहे थे। पर जब भारत ने अपना स्पेस प्रोग्राम लॉन्च करने की ठानी तब पूरी दुनिया शॉक मे थी क्योकि उस समय भारत के पास कई तरह की समस्याएं थी। पर उस समय कई विजनरी लोग थे जिनको पता था कि स्पेस सांइस भारत के लिए कितना जरुरी है।

उस वक्त कुछ मदद नासा से मिली जब उसने हमारे कुछ वैज्ञानिकों को अपने यहां ट्रेनिग दी। जिनमें प्रमुख थे विक्रम साराभाई और एपीजे अब्दुल कलाम जी। और नासा ने एक रॉकेट भी दिया प्रक्षेपण के लिए जिसका नाम था नाइकी ऑपेच रॉकेट।

लॉन्च के लिए केरला के एक फिशिग विलेज को चुना गया जिसका नाम था थुंबा। इसको इसलिए चुना गया क्योकि ये पृथ्वी के चुंबकीय भूमध्य रेखा के काफी करीब था। चुंबकीय भूमध्य रेखा पृथ्वी पर वह रेखा होती है, जहां हम एक चुंबकीय सूई को लटका देगें तो वह क्षैतिज रहेगी, ऊपर या नीचे झुकेगी नही। उस समय वहां के लोगों ने यह जमीन खुशी-खुशी उनकी मदद के लिए दे दी। यह भारत के पहली लॉन्चिग साइट थी।

उस समय रॉकेट को साइकिल पर लाद कर लॉन्च साइट पर ले जाया गया और वहां उसे जोड़ कर 21 नंवबर 1963 को होमी भाभा और विक्रम साराभाई के देखरेख में यह रॉकेट लॉन्च किया गया। उस वक्त विक्रम साराभाई ने तय किया कि भारत का खुद का रॉकेट बनाना है।

1969 को इनकोस्पार का नाम बदल कर इसरो (भारतीय अंतरिक्ष अनुंसधान संगठन) किया गया। रॉकेट से पहले भारत ने अपना पहला उपग्रह आर्यभट्ट 1975 में सोवियत संघ के रॉकेट के अन्दर लॉन्च किया था।

वही इसी तरह से 1979 में एक रिमोट सेंसिग उपग्रह भास्कर-1 रशियन रॉकेट के मदद से ल़ॉच किया गया।

वही भारत ने खुद से निर्मित रॉकेट 1979 में एसएलवी-3 टेस्ट किया। ये लॉन्च नव-स्थापित द्वितीय प्रक्षेपण स्थल सतीश धवन अंतरिक्ष केन्द्र से किया गया था। कुछ कारणों की वजह से यह प्रक्षेपण सफल नही हो सका। 1980 तक इस समस्या का निवारण कर लिया गया। और देश में निर्मित कृत्रिम उपग्रह रोहिण-प्रथम प्रक्षेपित किया गया। इस उपलब्धि के साथ भारत विश्व का सांतवा देश बन गया जो अपने दम पर उपग्रह लॉन्च कर सकते है।

पीएसएलवी की सफलता- Success of PSLV

1990 में भारत ने एक और लॉन्च व्हीकल बनाया जो था पीएसएलवी। पीएसएलवी छोटे आकार के उपग्रहों को भू-स्थिर कक्षा में भी भेजने में सक्षम है। इस लॉन्च  व्हीकल के 50 से भी ज्यादा बार सफलतापूर्वक उडान किये जा चुके है। और 100 से भी ज्यादा अन्तरिक्षयान जिसमें विदेशी यान भी शमिल है को विभिन्न कक्षाओं में प्रक्षेपित किया है। इससे इसकी क्षमता व कार्य करने की दक्षता को बल मिला है।

Image depicting the journey of ISRO's lunar mission in 2023, showcasing the spacecraft's trajectory towards the Moon
Illustration capturing ISRO’s remarkable lunar mission in 2023, symbolizing the agency’s dedication to space exploration

जीएसएलवी- GSLV

जीएसएलवी(जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉंन्च व्हीकल) अंतरिक्ष में उपग्रह के प्रक्षेपण में सहायक यान है। जीएसएलवी की जरुरत जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च के लिए थी। जियोंसिंक्रोनस सैटेलाइट ऐसे सैटेलाइट होते है जो पृथ्वी का चक्कर लगाते हुए उसे 24 घंटे में पूरा करते है। जो कि पृथ्वी की गति के बराबर है। जीएसएलवी ऐसा बहुचरण रॉकेट होता है जो दो टन से अधिक भार के उपग्रह को पृथ्वी से 36000 कि.मी. की ऊंचाई पर भू-स्थिर कक्षा में स्थापित कर देता है। जो विषुवत वृत्त या भूमध्य रेखा की सीध में होता है।

Image depicting the journey of ISRO's lunar mission in 2023, showcasing the spacecraft's trajectory towards the Moon
Illustration capturing ISRO’s remarkable lunar mission in 2023, symbolizing the agency’s dedication to space exploration

आईआरएनएसएस उपग्रह नेविगेशन प्रणाली- IRNSS Satellite Navigation System

1999 में भारत-पाक के मध्य करगिल जंग के वक्त जब यूएस ने भारत को अपना जीपीएस सिस्टम इस्तेमाल करने से मना कर दिया तो उसके बाद भारत को जररुत हुई खुद के नेविगेशन सिस्टम के विकसित करने की। इसरो ने इस सिस्टम को विकसित किया और इसका नाम नाविक रखा गया। आईआरएनएसएस भारत द्वारा विकसित एक स्वतंत्र क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली है। भारत के मछुवारों को समर्पित करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसका नाम नाविक रखा है। इसका उद्देश्य देश तथा देश की सीमा से 1500 किलोमीटर की दूरी तक के हिस्से में मौजूद यूजर को सटीक जानकारी प्रदान करना है।

आजादी के लगभग 50 साल तक इसरो ने उपग्रह पृथ्वी की कक्षा मे प्रक्षेपित करने का काम किया था। हमने पृथ्वी के बाहर स्पेस में कभी वेन्चर नही किया था। 2003 के बाद ये वेन्चर होना शुरु हुआ। कई सारे प्रोजेक्ट पेश होने लगे। जैसे कि- चन्द्रयान-1, मंगलयान..

Image depicting the journey of ISRO's lunar mission in 2023, showcasing the spacecraft's trajectory towards the Moon
Illustration capturing ISRO’s remarkable lunar mission in 2023, symbolizing the agency’s dedication to space exploration.

चन्द्रयान-1- Chandrayaan-1 (Mission Moon)

हमारा पहला मिशन चांद पर जाने के लिए लॉन्च किया गया 2008 में जिसका नाम रखा गया चन्द्रयान-1। चन्द्रयान-1 रॉकेट के तहत एक सैटेलाइट पृथ्वी से चांद तक भेजा गया था, जिसका काम चद्रंमा की कक्षा में चक्कर लगाना था। इस अभियान के तहत एक मानवरहित यान को 22 अक्टूबर,2008 को चांद की कक्षा में भेजा गया और यह चांद की कक्षा में 30 अगस्त, 2009 तक सक्रिय रहा। यह पीएसएलवी से लॉन्च किया गया था।

इसे चन्द्रमा तक पहुँचने में 5 दिन लगें और चन्द्रमा की कक्षा में स्थापित करने में 15 दिनों का समय लग गया। चन्द्रयान ऑर्बिटर का मून इम्पैक्ट प्रोब 14 नवंबर 2008 को चांद की सतह पर उतरा, जिससें भारत चांद पर अपना झंड़ा लगाने वाला विश्व का चौथा देश बन गया। यह मिशन काफी सफलतापूर्वक रहा। इस मिशन का उद्देश्य चांद की सतह के विस्तृत नक्शे और पानी की तलाश व हीलियम की तलाश करना था।

ये कई कारणों से चर्चा में रहा था कुछ प्रमुख बिन्दु है-

  • इस मिशन का बजट काफी कम था। हम खर्चे में चांद तक पहुंच गये थे।
  • भारत दुनिया का ऐसा देश था जो अपने पहले प्रयास में ही चांद पर पहुंच गया था और ये मिशन सफलतापूर्वक पूरा किया था और कुछ चुनिंदा देशों में वह आ गया था जो चांद पर जा चुकें है।
  • तीसरा सबसे महत्वपूर्ण कारण यह था कि इससे जो लैंडर निकला था जिसने इम्पैंक्ट लैंड़िग की थी चांद पर उसने एक महत्वपूर्ण खोज चांद पर की। चांद पर कई सारी जगह ऐसी जहां कभी सूर्य की रोशनी पहुंची नही है जहां कई सारे क्रेटरस है।

और चांद का दक्षिणी ध्रुव एक ऐसी जगह है जहां  यह माना जाता है कि वहां पानी के होने की संभावना है। यह लैंडर भी यही गया था इसने यहां से कई फोटोस भेजी जिसमें पानी के सबूत मिलें। यह विश्व के लिए एक बहुत बड़ी खोज थी। क्योकि इससे मानव को और भी ग्रहों पर जीवन तलाशने पर बल मिलता है।

24 सितम्बर 2009 को सांइस पत्रिका ने बताया कि चंद्रयान पर चंद्रमा खनोजोग्य मैपर (एम 3) ने चंद्रमा पर पानी की बर्फ होने की पुष्टि की है।

मंगलयान- (मार्स ऑर्बिटर मिशन) Mangalyaan-(Mars Orbiter Mission)

इसरो ने अपनी सफलता की राह को आगे बढ़ाते हुए 2013 में मंगलयान को लॉन्च किया। इस पर मार्स पर एक रॉकेट भेजा गया जिसमें एक सैटेलाइट निकला जिसनें मार्स के आस-पास विचरण करना शुरु किया। इसरो ने अपने प्रयास में ही इसे सफलतापूर्वक पूरा किया।

इसका बजट उस वक्त आयी हॉलीवुड फिल्म ग्रेविटी से भी कम था। इसका मिशन की लागत 450 करोड़ रुपये थी। जो कि नासा के मंगल मिशन का दंसवा हिस्सा है। इस अभियान के पूरा होते ही भारत विश्व में चौथा और एशिया में पहला ऐसा देश बन गया जिसनें मार्स पर अपना ऑर्बिटर भेजा है।

104 उपग्रह प्रक्षेपण- 104 Satellite launch

2017 में इसरो ने एक नया आयाम स्थापित किया। इसनें एक साथ 104 उपग्रह पृथ्वी की कक्षा में स्थापित किये वह भी अपने नही विदेशी उपग्रह और ऐसा करने वाला भारत दुनिया का पहला देश बना। इसमें यूएस और सिंगापुर के उपग्रह भी शामिल थे।

प्रक्षेपण के बारे में महत्वपूर्ण बात यह है कि इतनी बड़ी सख्या में रॉकेट से उपग्रहों का प्रक्षेपण किया गया। भारत ने इससे पहले जून 2015 में एक बार में 57 उपग्रहों को प्रक्षेपण किया था। यह उसका दूसरा सफल प्रयास था।

इसके बाद इसरो दुनिया के लिए एक विश्वसनीय सस्था बन चुका था। अब सारे देश इसरो के पास आने लगे थे अपने उपग्रह लॉन्च करवाने।

चंद्रयान-2- Chandrayaan-2

इसके बाद इसरो ने चंद्रयान-2 को 2019 में लॉन्च किया। इसको जीएसएलवी मार्क 3 प्रक्षेपण यान द्वारा प्रक्षेपित किया गया। इसमें एक चंद्र ऑर्बिटर, एक रोवर और एक लैंडर शामिल था। इसको 22 जुलाई 2019 को श्रीहरिकोटा रेंज से लॉन्च किया गया।

चंद्रयान-2 का काम चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट-लैंडिग और रोबोटिक रोवर संचालन करने की क्षमता प्रदर्शित करना था। चंद्रयान-2 में लैंडर का नाम इसरो के संस्थापक विक्रम साराभाई के नाम पर रखा गया था। इसमें एक रोवर भी था जिसका नाम प्रज्ञान रखा गया। यह 6 पहियों वाला रोबोट वाहन था।

ये पृथ्वी से सफलतापूर्वक प्रक्षेपित हो गया था तथा चांद पर इसका ऑर्बिटर उसकी कक्षा में स्थापित हो गया था पर जब इसका लैंडर विक्रम चांद पर साफ्ट लैंडिग करने ही वाला था तब वह एक क्रेटर में क्रैश कर गया। इस असफलता से जरुर इसरो को झटका लगा पर उसने हार नही मानी। और फिर से चंद्रयान-3 पर काम करना शुरु किया।

चंद्रयान-3- Chandrayaan-3

चंद्रयान-3 को कई सारे अपटेड और बदलाव के बाद 2023 में लॉन्च किया गया। इसमें सिर्फ एक लैंडर और रोवर भेजा गया लेकिन इसमें ऑर्बिटर नहीं है। इसकों 14 जुलाई 2023 को सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (शार), श्रीहरिकोटा से लॉन्च किया गया। यह मिशन चंद्रयान-2 की अगली कड़ी है क्योकि उस मिशन में साफ्ट लैंडिग नही हो पायी थी।

यह यान चंद्रमा पर 23 अगस्त 2023 को भारतीय समयानुसार 06 बजकर 04 मिनट के आसपास सफलतापूर्वक उतर चुका है। इसी के साथ ही भारत चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सफलतापूर्वक अंतरिक्ष यान उतारने वाला पहला और चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिग करने वाला विश्व का चौथा देश बन गया।

इस मिशन के तीन मुख्य उद्देश्य है-

  • लैंडर की चांद की सतह पर सुरक्षित व सॉंफ्ट लैंडिग।
  • चांद की सतह पर रोवर की क्षमताओं की गणना व अवलोकन।
  • चंद्रमा की सतह पर उपलब्ध रासायनिक और प्राकृतिक तत्वों, मिट्टी, पानी आदि पर वैज्ञानिक प्रयोग करना जिससे हम चंद्रमा की संरचना को बेहतर ढंग से समझ सकें और उसके विज्ञान को समझ सकें।

इसके तीन प्रमुख हिस्से है- प्रोपल्शन मॉडयूल, विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर।

इसके प्रमुख दल को लीड़ कर रहे थे-

  • इसरो अध्यक्ष- एस. सोमनाथ
  • मिशन निदेशक- एस. मोहन कुमार
  • सहायक मिशन निदेशक- जी. नारायणन
  • परियोजना निदेशक- पी. वीरमुथुवेल
  • उप परियोजना निदेशक- कल्पना. के के
  • वाहन निदेशक- बीजू सी. थॉमस

इसकी लागत 615 करोड़ रुपयें रही। जो कि रशिया के लूना-25 से बहुत कम थी जिसकी लागत 16000 करोड़ रुपये थी।

इसरो के अपकमिंग मिशन- आदित्य L-1, मंगलयान-2, गंगनयान, निसार और शुक्रयान है।

Image depicting the journey of ISRO's lunar mission in 2023, showcasing the spacecraft's trajectory towards the Moon
Illustration capturing ISRO’s remarkable lunar mission in 2023, symbolizing the agency’s dedication to space exploration

निष्कर्ष- conclusion

ये मिशन भारत के गर्व का विषय है। ये दुनिया मे भारत के विज्ञान की ताकत को दर्शाता है। इससे और कई टेक्नोलॉजीकल खोज होगी। दूसरे देशों के लिए भारत स्पेस सेक्टर में एक भरोसेमंद पार्टनर के रुप में नजर आएगा।

इससे भारत में एक स्पेस इंडस्ट्री डेवलप होगी। जिससे कई लोगों को इस सेक्टर में रोजगार मिलेंगा। इस कारण से कई देश हमारे पास अपने उपग्रह लॉन्च करने के लिए लायेगें।

इससे भारत में स्पेस को लेकर एक नया रुझान आएगा। युवा पीढ़ी इस और आकर्षित होगी वो भी स्पेस सेक्टर में अपना करियर बनाना चाहेगी। वो भी एस सोमनाथ, के सिवन और कई महान वैज्ञानिकों की भांति भारत का नेतृत्व करना चाहेगें।

सरकार के लिए जरुरी यह है कि वह स्पेस वैज्ञानिकों को प्रोत्साहित करें। और उनको फंड़ प्रदान करें। अभी इसरो का बजट 1.5 बिलियन डॉलर है जो कि बहुत कम है फिर भी इसरो इस बजट नये कीर्तिमान स्थापित कर रहा है। ये गर्व की बात है। पर अगर बड़े मिशन करने है और इसरो को दुनिया से कम्पीट करना है तो हमें और फंड़ इसरो को देने होगें।

इस बार गर्व से कहे हम भारतीय है क्योकि ये असल में नये भारत का कीर्तिमान है। जय हिन्द, वन्दे मातरम्।

धन्यवाद….

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) का इतिहास क्या है?

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) का नामकरण डॉ. विक्रम साराभाई के नेतृत्व में हुआ और 1962 में इसका गठन हुआ। इसका उद्देश्य भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में विशेषज्ञता प्राप्त करना और उपग्रह प्रक्षेपण का काम करना था।

पीएसएलवी क्या है और इसका क्या उपयोग है?

पीएसएलवी (पोलर सेंट्रिक लॉन्च व्हीकल) एक विशेष रॉकेट है जो भू-स्थिर कक्षा में छोटे उपग्रहों को प्रक्षिप्त करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। इसका उपयोग विभिन्न उपग्रह प्रक्षेपण मिशनों में किया जाता है।

जीएसएलवी (जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉंच व्हीकल) क्या है और इसका क्या काम है?

जीएसएलवी एक रॉकेट है जिसका उपयोग जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट्स को भू-स्थिर कक्षा में प्रक्षिप्त करने में होता है। यह सैटेलाइट्स को पृथ्वी की गति के साथ 24 घंटे में पूरा करने में मदद करता है।

चंद्रयान-2 का मुख्य उद्देश्य क्या था और इसका क्या अंतर्वल था?

चंद्रयान-2 का मुख्य उद्देश्य था चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट-लैंडिंग कराना और रोबोटिक रोवर को संचालित करने की क्षमता प्रदर्शित करना। चंद्रयान-2 के अंतर्गत एक चंद्र ऑर्बिटर, एक रोवर और एक लैंडर थे।

चंद्रयान-3 मिशन क्या है ?

चंद्रयान-3 मिशन में भारत ने चंद्रमा की सतह पर लैंडर और रोवर भेजने का प्रयास किया है।

Leave a Comment