मैडम भीकाजी कामा (Bhikaji Cama) के क्रांतिकारी प्रभाव को जानें
मैडम भीकाजी कामा (Bhikaji Cama)की प्रेरक कहानी जानिए, वह क्रांतिकारी महिला जिन्होंने अपनी निडर सक्रियता और समर्पण से इतिहास बदल दिया
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“Madam Bhikaji Cama-भारत का इतिहास क्रान्तिकारियों की वीर गाथाओं से सुसज्जित हैं। देश के अन्दर रहकर कई शूरवीरों ने अपने भारत की आजादी के लिए लड़ाई लड़ी और प्राणों की आहूति भी दी हैं। पर एक ऐसी वीरांगना भी थीं, जिन्होंने देश के बाहर रहकर आजादी की लड़ाई को बुलंद किया था। अपने इस लेंख में हम जानेंगें मैडम भीकाजी कामा (Bhikaji Cama) के बारे में जिन्होंने विदेशी धरती पर पहली बार भारतीय तिरंगे को फहराया था, और ब्रिटिश राज के काले कारनामों को विदेशों से मुहंतोड़ जवाब दिया था।”
इस लेख के माध्यम से हम मैडम भीकाजी कामा (Bhikaji Cama)के जीवन के अनेक पहलुओं को छूने का प्रयास करेंगें। हम यह भी जानेंगें कि कैसें उन्होंने विदेशी धरती से भारतीय आजादी के लिए प्रयास किए।
प्रारंभिक जीवन व पृष्ठभूमि (Bhikaji Cama)-
मैडम कामा का जन्म 24 सितम्बर,1861 को बम्बई में हुआ था। वह एक सम्पन्न पारसी परिवार से थीं। उनके पिता सोराबजी फ्रामजी पटेल एक प्रसिद्ध व्यापारी थे, और उनकी माता का नाम जैजीबाई था। उनके नौ भाई-बहन थे। बचपन से ही उनमें लोगों की मदद व सेवाभाव की भावना भरी हुई थीं। वह तीव्र बुद्धि की संवेदनशील विचारों वाली महिला थीं। भीकाजी की प्रारंभिक शिक्षा मुंबई के अलेक्जेंड्रा गर्ल्स इंग्लिश इंस्टीट्यूशन से हुई। उनकी शिक्षा और पारिवारिक पृष्ठभूमि ने उनमें एक मजबूत चरित्र और सामाजिक न्याय की भावना को विकसित किया।
मैडम कामा को कई भाषाओं का ज्ञान था। उनका मानना था कि भारत देश में कई भाषाएं बोली जाती हैं इस कारण से देश के अन्य हिस्सों में लोगों से उनका संवाद बना रहें। इसलिये उन्होंने कई भाषाओं का ज्ञान अर्जित किया था।
विवाह और प्रारंभिक राष्ट्रवादी गतिविधियाँ-
भीकाजी का विवाह सन् 1885 में रुस्तम कामा से हुआ। जो एक सफल वकील तो थे पर उनकी विचारधारा ब्रिटिश समर्थित थीं। विवाह के बाद भीकाजी को ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ अपनी सोच और कार्यों को दबाना पड़ा। दोनों के विचारों में भिन्नता थीं। जिससे उनका वैवाहिक जीवन सुखमय नहीं रहा। लेकिन उनकी देशभक्ति और स्वतंत्रता के प्रति जुनून ने उन्हें समाजसेवा और राष्ट्रवादी गतिविधियों में संलग्न रखा।
प्लेग महामारी में सेवाभाव-
1896 में, मुंबई में ब्यूबोनिक प्लेग का भयंकर प्रकोप हुआ। यह बीमारी शहर में तेजी से फैल रही थी और इससे हजारों लोग प्रभावित हो रहे थे। अपनी जान की परवाह न करते हुए भीकाजी कामा(Bhikaji Cama) ने समाजसेवा और मानवता की सेवा के लिए खुद को झोंक दिया। जब प्लेग महामारी ने मुंबई को अपनी चपेट में लिया, तो उन्होंने पीड़ितों की मदद के लिए अपनी सामाजिक और आर्थिक स्थिति का उपयोग करने का निर्णय लिया।
भीकाजी कामा (Bhikaji Cama)ने प्लेग पीड़ितों की सहायता के लिए विभिन्न राहत कार्यों का आयोजन किया। उन्होंने न केवल चिकित्सा सहायता प्रदान की, बल्कि प्लेग से प्रभावित लोगों के लिए भोजन, कपड़े और अन्य आवश्यक वस्तुएं भी जुटाईं। उन्होंने अपने निजी संसाधनों का उपयोग कर कई राहत शिविर स्थापित किए और स्वयंसेवकों की एक टीम का गठन किया।
पीड़ितों की सेवा करते हुए, भीकाजी कामा (Bhikaji Cama)स्वयं भी इस बीमारी की चपेट में आ गयीं। उनकी हालत गंभीर हो गई थीं। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। अपने दृढ़ संकल्प और साहस के साथ, उन्होंने इस गंभीर बीमारी का सामना किया और अंततः स्वस्थ हो गईं।
लेकिन उन्हें आगे के इलाज के लिए यूरोप जाने की सलाह दी गयीं। सन् 1902 में वह इसके इलाज के लिए लंदन पहुंच गयीं। इसके बाद उनकी क्रान्तिकारी गतिवधियां यूरोप से संचालित होना शुरु हो गयीं।
Bhagat Singh- Young Pride Pride
लंदन में राष्ट्रवादी गतिविधियाँ-
लंदन में, भीकाजी कामा (Bhikaji Cama)ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के लिए कई प्रमुख भारतीय राष्ट्रवादियों से संपर्क किया। उन्होंने दादाभाई नौरोजी, श्यामजी कृष्ण वर्मा और वीर सावरकर जैसे प्रमुख क्रांतिकारियों के साथ मिलकर काम किया।
वैसे 1904 में मैडम काम की देशवापसी की तैयारी हो रही थीं तभी उनकी मुलाकाल लंदन में राष्ट्रवादी भाषणों के लिए मशहूर क्रान्तिकारी श्यामजी कृष्ण वर्मा से हुई। उनके माध्यम से वे कांग्रेस समिति के ब्रिटिश अध्यक्ष दादाभाई नौरोजी से मिलीं। बाद में वे उनके लिए निजी सचिव के रुप में कार्य करने लगीं।
लंदन में उन्हें यह ज्ञात हुआ कि ब्रिटिश साम्राज्य उन्हें तब तक भारत आने की अनुमति नहीं देगा। जब तक वह राष्ट्रवादी गतिविधियों मे भाग न लेने के वादे पर हस्ताक्षर नहीं कर देतीं। इस वादे से उन्होंने इनकार कर दिया। उसी वर्ष वह पेरिस चली गयीं।
भारतीय ध्वज का निर्माण और फहराना-
- ध्वज निर्माण की पृष्ठभूमि-
भीकाजी कामा(Bhikaji Cama) का मानना था कि भारत को स्वतंत्रता संग्राम में अंतर्राष्ट्रीय समर्थन प्राप्त करने के लिए एक प्रतीक की आवश्यकता है। उन्होंने भारतीय राष्ट्रीयता और स्वतंत्रता के विचार को दुनिया के सामने प्रस्तुत करने के लिए एक ध्वज का निर्माण करने का निर्णय लिया।
- ध्वज का डिजाइन-
भीकाजी कामा(Bhikaji Cama) द्वारा डिज़ाइन किया गया ध्वज तीन रंगों से मिलकर बना था।
केसरिया रंग: ध्वज के सबसे ऊपरी हिस्से में केसरिया रंग था, जो साहस और बलिदान का प्रतीक था।
हरा रंग: ध्वज के सबसे निचले हिस्से में हरा रंग था, जो विश्वास और उर्वरता का प्रतीक था।
लाल रंग: ध्वज के मध्य में लाल रंग था, जो शक्ति और दृढ़ता का प्रतीक था।
ध्वज के बीच में आठ कमल के फूल थे, जो भारत के आठ प्रमुख प्रांतों का प्रतिनिधित्व करते थे। इसके अतिरिक्त, ध्वज के ऊपर बाएँ कोने में ‘वन्दे मातरम्’ लिखा हुआ था, जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का प्रमुख नारा था।
- अंतर्राष्ट्रीय समाजवादी सम्मेलन, स्टटगार्ट (1907)-
अगस्त 1907 में, भीकाजी कामा (Bhikaji Cama)ने जर्मनी के स्टटगार्ट में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय समाजवादी सम्मेलन में भाग लिया। इस सम्मेलन में विभिन्न देशों के समाजवादी और स्वतंत्रता सेनानी एकत्रित हुए थे। भीकाजी कामा (Bhikaji Cama) ने इस अवसर का उपयोग भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के विचार को अंतर्राष्ट्रीय मंच पर प्रस्तुत करने के लिए किया।
- ध्वज को फहराना-
मैडम कामा ने स्टटगार्ट में 22 अगस्त, 1907 को भारतीय ध्वज फहराया। इस मौके पर उन्होंने एक प्ररेणादायक वक्तव दिया। इस भाषाण के माध्याम से उन्होंने भारतीय जनता की स्वतंत्रता की आकांक्षाओं को प्रस्तुत किया और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से समर्थन की अपील की। उन्होंने कहा, “यह भारत का ध्वज है। इसे सलाम करें और यह याद रखें कि भारत की स्वतंत्रता के लिए हमें अभी बहुत संघर्ष करना है।”
- ध्वज फहराने का महत्व-
भीकाजी कामा(Bhikaji Cama) द्वारा भारतीय ध्वज का फहराना एक प्रतीकात्मक कार्य था, जिसने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को अंतर्राष्ट्रीय मंच पर पहचान दिलाई। यह ध्वज भारतीय राष्ट्रीयता और स्वतंत्रता के प्रतीक के रूप में देखा गया और भारतीय स्वतंत्रता संग्रामियों को एकजुट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- प्रभाव और विरासत-
भीकाजी कामा (Bhikaji Cama) का यह कदम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुआ। उनके इस कार्य ने न केवल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को अंतर्राष्ट्रीय समर्थन प्राप्त करने में मदद की, बल्कि भारतीय राष्ट्रवादियों को भी प्रेरित किया। यह ध्वज बाद में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा अपनाए गए ध्वज का आधार बना, जो अंततः भारत के स्वतंत्रता प्राप्त करने पर राष्ट्रीय ध्वज के रूप में स्वीकार किया गया।
पेरिस निर्वासन व क्रान्तिकारी गतिविधियां-
ब्रिटेन में उनको गिरफ्तार करने का फरमान जारी हो गया था। इस कारण से वे वर्ष 1909 में पेरिस आ गयीं। पेरिस में उन्होंने अपनी क्रान्तिकारियों गतिविधियों को जारी रखा और लगातार अन्तर्राष्ट्रीय समर्थन जुटाने का काम करती रहीं।
पेरिस में उनकी मुलाकात एसआर राणा और मंचेरशाह बुर्जोरजी गोदरेज से हुई। उनके साथ मिलकर उन्होंने पेरिस इंडियन सोसाइटी की स्थापना की। उन्होंने लोगों को प्रेरित करने के लिए क्रान्तिकारी साहित्य का लेखन किया।
मैडम कामा ने पेरिस से ‘वंदे मातरम’ और तलवार नामक समाचार पत्रों का प्रकाशन किया, जिसके माध्यम से उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के विचारों का प्रसार किया। इस पत्र के माध्यम से उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य की नीतियों की कड़ी आलोचना की और भारतीय जनता को स्वतंत्रता संग्राम के लिए प्रेरित किया।
क्रान्तिकारियों का समर्थन-
मैडम कामा ने हमेशा क्रान्तिकारियों व राष्ट्रवादियों का समर्थन किया। भीकाजी कामा(Bhikaji Cama) ने कई भारतीय क्रांतिकारियों को वित्तीय सहायता और नैतिक समर्थन प्रदान किया। उन्होंने विभिन्न क्रांतिकारी समूहों और आंदोलनों के लिए धन जुटाया और उन्हें संसाधन उपलब्ध कराए।
मैडम कामा ने क्रान्तिकारी मदन लाल ढींगरा, वीर सावरकर की हमेशा मदद की। 1909 में मदन लाल ढींगरा ने ब्रिटेन के अन्दर कर्जन वाइली को मार दिया था। जिसके बाद कई क्रान्तिकारियों को गिरफ्तार कर लिया गया। ब्रिटिश सरकार ने फ्रांस से कामा के प्रत्यर्पण की मांग की जिसे फ्रांस ने नकार दिया। पर प्रथम विश्व युद्ध के बाद स्थिति पूरी तरह बदल गयीं।
प्रथम विश्व युद्ध के बाद का जीवन-
वर्ष 1914 में दुनिया में प्रथम विश्व युद्ध छिड़ चुका था। अब दुनिया दो धुरी में बंट चुकी थीं। इस युद्ध में फ्रांस और ब्रिटेन साथ में युद्ध कर रहे थें। इस वजह से मैडम कामा पेरिस में रहना मुश्किल हो गया। सोवियत संघ के शासक लेनिन ने उन्हें सोवियत में निवास करने का न्यौता दिया। पर उन्होंने इसे मना कर दिया।
प्रथम विश्व युद्ध के दौरान भीकाजी कामा (Bhikaji Cama) की गतिविधियों पर कड़ी निगरानी रखी गई और उनकी आवाजाही पर प्रतिबंध लगा दिया गया। उन्हें अंततः पेरिस में नजरबंद कर दिया गया। 1935 तक उन्होंने यूरोप में निर्वासन का जीवन जिया।
भारत आगमन और मृत्यु-
वर्ष 1935 में उन्हें स्ट्रोक हुआ, जिसके कारण वे बहुत बीमार और लकवाग्रस्त हो गयीं। उन्होंने ब्रिटिश सरकार से भारत लौटने की अनुमंति मांगी। इसके लिए उन्हें ब्रिटिश राज की शर्तों को मानना पड़ा। वे नंवबर, 1935 में पूरे 33 वर्षों बाद भारत वापस लौंटी। अपने जीवन के अंतिम क्षण उन्होंने मुबंई(बॉम्बे) में बिताएं। 13 अगस्त, 1936 को 74 वर्ष की उम्र में उनका पारसी जनरल अस्पताल में निधन हो गया।
विरासत और स्मरण-
मैडम कामा का जीवन सभी भारतीयों के लिए प्रेरणास्त्रोत हैं। एक धन सम्पन्न परिवार होते हुए भी उन्होंने पूरी जिंदगीं भारत की स्वतंत्रता के लिए लड़ने का निर्णय किया।
भीकाजी कामा(Bhikaji Cama) का जीवन भारतीय स्वतंत्रता के प्रति उनकी निष्ठा, साहस और संघर्ष की एक प्रेरक कहानी है। उनके योगदान ने न केवल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को मजबूती दी बल्कि अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भी भारत की स्वतंत्रता की आवाज को बुलंद किया।
मैडम कामा ने न केवल भारत की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया अपितु भारत की महिलाओं के उत्थान के लिए भी कार्य किया। उन्होंने अपने आखिरी क्षण में अपनी बहुत सी संपत्ति लड़कियो के लिए दान कर दी।
उनके सम्मान में भारतीय डाक विभाग ने 26 जनवरी, 1962 में 11वें गणतंत्र के मौके पर एक स्मारक डाक टिकट जारी किया। मैडम कामा द्वारा जर्मनी के स्टटगार्ट मे फहराया गया झंडा पुणे के मराठा केसरी पुस्तकालय मे सुसज्जित हैं।
मैडम भीकाजी कामा (Bhikaji Cama) पर लिखा ये लेख आपको कैसा लगा। हमें कमेंट बाक्स के माध्यम से जरुर बतायें। और उनके संघर्षों से आपको क्या सीखनें को मिला यह भी बतायें। धन्यवाद…
1. भीकाजी कामा का जन्म कब और कहां हुआ था?
भीकाजी कामा का जन्म 24 सितंबर, 1861 को बंबई (अब मुंबई) में हुआ था।
2. मैडम भीकाजी कामा ने प्लेग महामारी के दौरान क्या किया?
भीकाजी कामा ने प्लेग पीड़ितों की मदद के लिए राहत कार्यों का आयोजन किया और अपने संसाधनों का उपयोग करके राहत शिविर स्थापित किए।
3. भीकाजी कामा ने भारतीय ध्वज का निर्माण क्यों किया?
भीकाजी कामा ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अंतर्राष्ट्रीय समर्थन प्राप्त करने के लिए एक प्रतीक के रूप में ध्वज का निर्माण किया।
4. ध्वज का डिजाइन कैसा था?
ध्वज तीन रंगों से बना था: केसरिया (साहस), हरा (विश्वास), और लाल (शक्ति)। इसके बीच में आठ कमल के फूल और ‘वन्दे मातरम्’ लिखा था।
5. मैडम भीकाजी कामा ने स्टटगार्ट सम्मेलन में क्या किया?
भीकाजी कामा ने स्टटगार्ट सम्मेलन में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का विचार अंतर्राष्ट्रीय मंच पर प्रस्तुत किया और भारतीय ध्वज फहराया।