“बांग्लादेश, एक ऐसा देश जो पाकिस्तानी आर्मी के अत्याचारों के कारण उसके पूर्वी हिस्से को तोड़ कर बनाया गया था। जिसके बनने में वहां की मुक्ति वाहिनी के लीड़र शेख मुजीबुर रहमान का जितना हाथ था, उतना ही हाथ हमारे प्यारे भारत का भी था। पर आज वो देश एक कोढ़ बन गया हैं। वह आज उसी रास्ते पर निकल पड़ा है, जहां से उसे आजाद कराया गया था। आज वह अपनी आजादी के वाहकों को भी भूल चुका हैं।
आज वहां की आबादी में भारत विरोधी जहर भर चुका हैं। वो देश अब कट्टर इस्लाम की तरफ आगे बढ़ चुका हैं। इसका खामियाजा वहां की अल्पसंख्यक आबादी, खासकर हिंदु आबादी को बहुत नुकसान उठाना पड़ा हैं। वैसें हिंदुओं पर हमले बांग्लादेश में कोई नई बात नहीं हैं।”
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हम अपने इस ब्लांग के माध्यम से बांग्लादेश में रह रहे हिंदुओं की दशा पर विस्तार से चर्चा करेंगे। हम यह भी जानेंगे कि किस प्रकार से उनको उनके धर्म से विक्षिप्त किया जा रहा हैं, उनके मंदिरों को तोड़ा जा रहा हैं। और जो आबादी बांग्लादेश के बनने पर 15 प्रतिशत थीं। वह आज सिर्फ 8 प्रतिशत रह गयीं हैं। तो बने रहे हमारे ब्लांग के साथ।
परिचय- बांग्लादेश में हिंदुओं का संघर्ष-
इस अनुभाग का उद्देश्य पाठकों को बांग्लादेश में हिंदुओं के इतिहास, उनकी वर्तमान स्थिति और उन संघर्षों से अवगत कराना है जिनका आज तक उन्होंने सामना किया है। यहां हम बांग्लादेश के निर्माण और वहां हिंदु आबादी के संघर्ष की बात करेंगे-
- बांग्लादेश का निर्माण और हिंदु अल्पसंख्यक-
बांग्लादेश का निर्माण-
- बांग्लादेश का निर्माण एक महत्वपूर्ण घटना थी, जो 1971 में पाकिस्तान से स्वतंत्रता के बाद हुई। उस समय पूर्वी पाकिस्तान (जो आज बांग्लादेश है) में बड़ी संख्या में हिंदू समुदाय के लोग निवास करते थें।
- 1947 में भारत के विभाजन के बाद यह देश दो हिस्सों में बंट गया, एक स्वंय भारत व दूसरा पाकिस्तान। उसी बंटवारें में पूर्वी बंगाल जो मुस्लिम बहुल था, पाकिस्तान का हिस्सा बना। पर उसके बनने के बाद से ही वहां उनका उत्पीड़न शुरु हो गया।
- सत्तर के दशक में यह उत्पीड़न अपने चर्मोत्कर्ष पर पंहुच गया। जहां से इसके अलग होने की शुरुआत हुई। इसका नेतृत्व बंगबधु शेख मुजीवुररहमान ने किया।
- पाकिस्तानी शासक याहया खाँ के आदेश पर पाकिस्तानी आर्मी ने बांग्लादेशी लोगों का कत्लेआम शुरु किया। इसमें 30 से 40 लाख लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया। 10 लाख से ज्यादा बांग्लादेशी शरणार्थी को भारत में शरण लेनी पड़ी।
- बांग्लादेश में मुक्ति वाहिनी सेना का गठन हुआ। इनके अनुरोध पर, तथा भारत पर पड़ रहे शरणार्थी दबाव के कारण भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध की घोषणा की।
- 13 दिन चले इस युद्ध में पाकिस्तान ने 16 दिसम्बर, 1971 को भारत के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया। इस युद्ध में पाकिस्तान के 93000 सैनिकों को युद्ध बंदी बनाया गया।
- यहां से बांग्लादेश एक स्वतंत्र राष्ट्र बना, और शेख मुजीवुर रहमान इसके प्रथम राष्ट्रपति बनाये गए।
हिंदुओं अल्पसंख्यकों की स्थिति-
- इस संघर्ष में विभिन्न धार्मिक और जातीय समुदायों ने भाग लिया, जिनमें हिंदू भी शामिल थे। वे बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम में एक महत्वपूर्ण हिस्सेदार थे, जहां उन्होंने बंगाली पहचान और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया।
- स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, हिंदू समुदाय ने मानवाधिकारों की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, लेकिन युद्ध के बाद उनकी स्थिति में भारी परिवर्तन आया।
- बांग्लादेश के स्वतंत्रता के बाद, समाज और राजनीति में उनके साथ होने वाले व्यवहार में एक नकारात्मक बदलाव देखने को मिला।
- स्वतंत्रता के बाद की सरकार ने कई नीतियाँ अपनाईं जो हिंदुओं के अधिकारों और संपत्ति पर प्रभाव डालती थीं। इस समय से ही हिंदू समुदाय ने भेदभाव, संपत्ति के हरण, और धार्मिक उत्पीड़न का सामना किया।
- बांग्लादेश के स्वतंत्र होने के बाद, वहां के हिंदुओं को लगातार धार्मिक और सामाजिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ा। उनकी आबादी में गिरावट आई और उन्हें बहुसंख्यक मुस्लिम समाज द्वारा प्रायः भेदभाव और हिंसा का सामना करना पड़ा।
- 1971 में बांग्लादेश की कुल आबादी में हिंदुओं की हिस्सेदारी करीब 13-15% थी, जो आज घटकर लगभग 8% रह गई है। यह गिरावट पलायन, सांप्रदायिक हिंसा और धार्मिक असहिष्णुता के परिणामस्वरूप हुई।
- धर्म आधारित भेदभाव, जमीनों पर कब्जा, और कानूनों का दुरुपयोग करके उनके जीवन को और कठिन बना दिया गया।
- ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और मौजूदा चुनौतियां-
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि-
- 1947 में भारत और पाकिस्तान के विभाजन के समय से ही बंगाल क्षेत्र में हिंदू और मुस्लिम समुदाय के बीच तनाव और संघर्ष जारी रहा है। विभाजन के बाद लाखों हिंदू पश्चिम बंगाल की ओर पलायन कर गए, जबकि बड़ी संख्या में हिंदू पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) में रह गए।
- 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान और उसके बाद भी, हिंदू समुदाय को पाकिस्तान समर्थक ताकतों द्वारा निशाना बनाया गया। उस समय लाखों हिंदुओं का कत्लेआम किया गया, उनके घरों को जलाया गया और उनकी संपत्तियों पर कब्जा कर लिया गया।
- बांग्लादेश की स्वतंत्रता के बाद की राजनीतिक अस्थिरता ने हिंदू समुदाय के लिए स्थिति को और भी कठिन बना दिया।
मौजूदा चुनौतियां-
- आज बांग्लादेश में हिंदुओं को धार्मिक कट्टरपंथियों और सामाजिक असहिष्णुता से निपटना पड़ता है। मंदिरों को ध्वस्त करना, हिंदुओं पर हमले करना और उनकी संपत्तियों पर अवैध कब्जा करना आम घटनाएं हैं।
- विभिन्न समयों पर, सैन्य शासन और राजनैतिक उथल-पुथल ने धार्मिक उत्पीड़न को बढ़ावा दिया। हिंदू मंदिरों का विध्वंस, धार्मिक स्थलों पर हमले, और धार्मिक परिवर्तन ने उन्हें और घाव दिये।
- बांग्लादेश की राजनीति में इस्लामी कट्टरपंथ का बढ़ता प्रभाव भी हिंदुओं की सुरक्षा को खतरे में डालता है। सरकार और सुरक्षा एजेंसियों द्वारा पर्याप्त सुरक्षा नहीं मिलने के कारण हिंदू समुदाय और अधिक असुरक्षित महसूस करता है।
- वहां की राजनीतिक पार्टी जमात-ए-इस्लामीं और बांग्लादेशी नेशनल पार्टी पूर्ण रुप से एक कट्टरपंथी पार्टी हैं। और पाकिस्तानी समर्थित हैं।
- राजनीतिक और सामाजिक दबाव के कारण, हिंदुओं का लगातार भारत की ओर पलायन हो रहा है। बांग्लादेश में हिंदुओं का संघर्ष एक महत्वपूर्ण मानवाधिकार मुद्दा है जो वैश्विक समुदाय के ध्यान में लाने योग्य है।
बाग्लादेश में हिंदुओं की संख्या में कमी-
बांग्लादेश के बनने से अबतक हिंदुओं की संख्या में बहुत कमी आयी हैं। इस खंड़ मे उस कमी के कारणों व प्रभावों पर प्रकाश डालने का प्रयास करेंगे-
- 1971 के बाद हिंदु जनसंख्या में कमी-
स्वतंत्रता के बाद की स्थिति-
- हिन्दुओं की जो स्थिति बांग्लादेश के बनने के समय थीं। वह उसके बाद परिवर्तित होती चली गयीं। यह आबादी 15 प्रतिशत के करीब थीं। वर्तमान में, बांग्लादेश में हिंदुओं की जनसंख्या लगभग 8% या उससे भी कम है। उनकी चुनौतियां स्वतंत्रता बाद बढ़ती चली गयीं।
- जमात-ए-इस्लामी जैसे आंतकवादी संगठनों ने वहां हिन्दुओं पर जमकर अत्याचार किया हैं। हिन्दुओं को आर्थिक और सामाजिक स्तर पर कमजोर किया गया हैं।
- कुछ रिपोर्ट में यह दावा किया गया हैं कि अगले तीन दशक में बांग्लादेश में हिंदुओं का वजूद पूर्णतः समाप्त हो जाएगा।
- बांग्लादेश ने अपने बनने के बाद 4 नवंबर, 1972 को अपना संविधान बनाया। जिसमें उसने खुद को एक धर्मनिरपेक्ष, समाजवादी और लोकतांत्रिक राष्ट्र घोषित किया।
- लेकिन वह ज्यादा वर्षों तक धर्मनिरपेक्ष देश नहीं रह पाया। 7 जून, 1988 को संविधान को बदलकर बांग्लादेश एक इस्लामी राष्ट्र बन गया, और इस्लामी कट्टरपंथ पर सवार हो गया।
कमी के प्रमुख कारण-
- धार्मिक उत्पीड़न- बांग्लादेश में हिंदुओं को अपने धर्म का पालन करने के लिए अक्सर उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है। धार्मिक आधार पर भेदभाव और हिंसा की घटनाएं आम हैं, जिससे हिंदुओं का जीवन कठिन हो जाता है।
- सांप्रदायिक हिंसा- बांग्लादेश में सांप्रदायिक तनाव और हिंसा के कारण कई हिंदुओं को अपनी जान बचाने के लिए देश छोड़ना पड़ा है। बड़े पैमाने पर हुए दंगों और हमलों में हिंदू समुदाय को निशाना बनाया गया, जिससे उनकी संख्या में कमी आई है।
- संपत्ति पर कब्जा- हिंदुओं की संपत्ति पर अवैध कब्जा एक आम समस्या है। पाकिस्तान से बांग्लादेश बनने के बाद भी ‘एन्क्रॉचमेंट एक्ट’ जैसी नीतियों के तहत हिंदुओं की संपत्तियों पर कब्जा किया गया, जिससे वे आर्थिक रूप से कमजोर हो गए।
- पलायन- बांग्लादेश में हिंदुओं की घटती जनसंख्या का एक बड़ा कारण उनका भारत की ओर पलायन है। धार्मिक और सामाजिक उत्पीड़न से बचने के लिए बड़ी संख्या में हिंदू भारत और अन्य देशों में पलायन कर गए हैं।
- बांग्लादेश बनने के बाद हिंदुओं के पलायन के कारण-
विभाजन का प्रभाव-
- भारत के विभाजन के बाद कई हिंदुओं ने भारत के तरफ पलायन किया। पर एक बड़ी संख्या पूर्वी बंगाल में रह गयीं। जो उस वक्त पाकिस्तान के हिस्से में था।
- विभाजन के बाद, हिंदुओं को धार्मिक असहिष्णुता और सांप्रदायिक हिंसा का सामना करना पड़ा। इसके कारण, उनमें से कई ने अपनी जान और संपत्ति की सुरक्षा के लिए भारत और अन्य देशों में शरण ली।
- 1971 में बांग्लादेश बनने के समय भी लाखों हिंदुओं ने भारत मे शरण ले रखी हैं।
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जनसंख्या में गिरावट का परिणाम-
- हिंदू जनसंख्या में गिरावट का सीधा असर बांग्लादेश की सांस्कृतिक और सामाजिक विविधता पर पड़ा है। इससे धार्मिक असहिष्णुता और कट्टरता को बढ़ावा मिला है, जिससे अल्पसंख्यकों की सुरक्षा और अधिकारों को खतरा है।
- जनसंख्या में कमी के कारण हिंदू समुदाय का राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव भी कम हुआ है। उनकी आवाज कमजोर पड़ गई है, और वे सामाजिक और आर्थिक रूप से अधिक हाशिए पर चले गए हैं।
बांग्लादेश में हिंदू मंदिरों का विध्वंस-सनातन पर आघात-
बांग्लादेश में हिंदू मंदिरों व हिंदू सांस्कृतिक धरोहरों को मिटाने की एक पूरी श्रृखला हैं। इसे विस्तार से समझने के लिए निम्नलिखित बिंदुओं पर ध्यान देना आवश्यक हैं-
- बांग्लादेश में हिंदू संस्कृति-
- बांग्लादेश में हिंदू मंदिरों का विध्वंस एक गंभीर समस्या रही है। 1971 से पहले और उसके बाद भी, सांप्रदायिक हिंसा के दौरान या उसके बाद, हजारों हिंदू मंदिरों को निशाना बनाया गया।
- बांग्लादेश में 64 जिले हैं, जिसमें से 61 जिलों में हिंदू दूसरा सबसे बड़ा धर्म हैं। इनमें से 20 जिलों की हिंदू आबादी 20 प्रतिशत के करीब हैं। फिर भी बांग्लादेश का कोई भी जिला हिंदू बहुल नहीं हैं।
- बांग्लादेश की हिंदू संस्कृति पश्चिम बंगाल से मेल खाती हैं। क्योकि एक समय यह एकीकृत बंगाल का भाग था।
- 1901 में जब यह एकीकृत बंगाल का भाग था, तब इस क्षेत्र की हिंदू आबादी करीब 33 प्रतिशत के करीब थीं। जो बांग्लादेश बनने के वक्त 14 प्रतिशत पंहुच गयीं। और अब घटकर 8 प्रतिशत रह गयीं हैं।
- बांग्लादेश में हिंदुओं के लिए अरबी शब्द मलाउन यानी शापित शब्द का प्रयोग किया जाता हैं।
- बांग्लादेश में जितने भी नरसंहार हुए जैसे- बांग्लादेश मुक्ति युद्ध, नागरिकों द्वारा किये नरसंहार में हिंदुओं का कई बार नरसंहार हुआ।
- 1971 में पाकिस्तानी फौज के आंतकियों ने चुनकर बंगाली हिंदुओं को निशाना बनाया। 3 से 4 लाख बंगाली महिलाओं से बलात्कार किया गया। जिनमें से अधिकांश हिंदू ही थे।
- बांग्लादेश में हिंदू मंदिर-
- वैसे तो पूरे बांग्लादेश में कई जगह हिंदू मंदिर मिल जाएगें। कांताजी यहां 18वीं सदी में बना एक सुंदर मंदिर हैं।
- प्रमुख मदिरों की बात करें तो राजधानी ढाका में बना ढाकेश्वरी राष्ट्रीय मंदिर हैं। यह मंदिर दुर्गा पूजा व कृष्ण जन्माष्टमी के लिए प्रसिद्ध हैं। यह 51 शक्तिपीठों में से एक हैं।
- ढाका में ही स्थित रमना काली मंदिर और धामराई में पुराने रथ को 1971 में पाकिस्तानी सेना ने ध्वस्त कर दिया। और 100 श्रद्धालुओं की हत्या बेरहमी के साथ कर दी गई।
- 2 साल पहले एक ही दिन में 14 मंदिरों पर हमला करके 27 मूर्तियों को तोड़ दिया गया।
- बांग्लादेश में जब भी कोई किसी भी प्रकार का विरोध या हिंसा होती हैं। तो उसकी आड़ में हिंदुओं व उनके मंदिरों को निशाना बनाना आमबात हैं।
- इन सब कामों में बांग्लादेश के आंतकी संगठन जमात-ए-इस्लामी और हिफाजत-ए-इस्लाम शामिल रहते हैं।
- बांग्लादेश में हिंदू मंदिरों पर हमले धार्मिक असहिष्णुता और कट्टरपंथ का परिणाम होते हैं। मंदिरों पर हमले प्रायः इस्लामिक कट्टरपंथियों द्वारा किए जाते हैं, जो धार्मिक अल्पसंख्यकों को डराने और उनकी धार्मिक गतिविधियों को बाधित करने के उद्देश्य से होते हैं।
बांग्लादेश में एंटी-इंडिया सेटीमेंट और इसके प्रभाव-
बांग्लादेश की आबादी में एंटी इंडिया सेटीमेंट लगातार बढ़ता जा रहा हैं। बांग्लादेश दक्षिण एशिया में भारत का सबसे बड़ा कारोबारी साझेदार हैं। भारत हर मौकें पर बांग्लादेश की मदद करता हैं। हर बार उसको कर्ज देता हैं। पर यह सेंटीमेट लगातार बढ़ता जा रहा हैं। अभी हाल ही में हुए वनडे और टी-20 वर्ल्ड कप के फाइनल में बांग्लादेश की नालायक जनसंख्या भारत के हराने का इंतजार कर रहीं थीं।
जिस देश ने इनको आजादी दिलाई, आज ये उसी को भूल चुके हैं। उनके ऊपर पाकिस्तानी जेहादियों की भूत चढ़ गया हैं। इसको थोड़ा और विस्तार से समझते हैं-
- भारत विरोधी होने के कारण व प्रभाव-
कारण-
- बांग्लादेश की स्वतंत्रता संग्राम के समय भारत ने बांग्लादेश की स्वतंत्रता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, जिसके लिए बांग्लादेश की जनता ने तत्कालीन समय में भारत का आभार माना। लेकिन समय के साथ-साथ कुछ राजनैतिक और सामाजिक कारणों से भारत-विरोधी भावनाएं विकसित हुईं।
- बांग्लादेश में कुछ राजनीतिक दल और समूह भारत-विरोधी भावनाओं को अपने राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल करते हैं। इन दलों द्वारा भारत को एक बाहरी शत्रु के रूप में पेश किया जाता है, जिससे उनकी राजनीतिक ताकत बढ़ाई जा सके।
- भारत और बांग्लादेश के बीच आर्थिक प्रतिस्पर्धा भी एक कारण है। कुछ वर्गों में यह धारणा है कि भारत बांग्लादेश की आर्थिक प्रगति को बाधित कर रहा है या उसे अपने अधीन रखना चाहता है।
- बांग्लादेश में इस्लामिक कट्टरपंथ के उदय ने भारत-विरोधी भावनाओं को और बढ़ावा दिया है। इन कट्टरपंथियों का मानना है कि भारत एक हिंदू राष्ट्र है और वह बांग्लादेश के मुस्लिम समुदाय के लिए खतरा है।
- कुछ शैक्षिक संस्थानों में भी भारत-विरोधी विचारधारा को बढ़ावा दिया जाता है, जिससे नई पीढ़ी में भी भारत के प्रति नकारात्मक भावनाएं उत्पन्न होती हैं।
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प्रभाव-
- भारत-विरोधी भावनाओं का सबसे अधिक प्रभाव बांग्लादेश के हिंदू समुदाय पर पड़ता है। उन्हें अक्सर भारत का समर्थक माना जाता है और इस कारण से वे निशाने पर रहते हैं। सांप्रदायिक हिंसा के दौरान उन्हें निशाना बनाया जाता है और उनके साथ भेदभाव किया जाता है।
- भारत-विरोधी भावनाएं दोनों देशों के बीच कूटनीतिक और आर्थिक संबंधों को भी प्रभावित करती हैं। इससे व्यापार, सुरक्षा, और अन्य क्षेत्रों में सहयोग में बाधाएं आती हैं।
- इन सब कारणों से बांग्लादेश टूट भी सकता हैं। इसे पृथक करके एक अलग हिंदुओं के लिए अलग देश बनाया जा सकता हैं। जिसे भारत का सैन्य और राजनीतिक संरक्षण प्राप्त हो।
बांग्लादेश में बढ़ते कट्टरपंथी इस्लाम का प्रभाव-
बांग्लादेश में कुछ मदरसों और धार्मिक संस्थानों के माध्यम से कट्टरपंथी विचारधारा का प्रचार किया जा रहा है। इसके परिणामस्वरूप, समाज के कुछ हिस्सों में असहिष्णुता और कट्टरता बढ़ी है। बांग्लादेश में आज भी पाकिस्तान समर्थित संगठन काम कर रहें हैं, जो नहीं चाहते हैं , कि बांग्लादेश के भारत के साथ अच्छे रिश्ते हो।
बांग्लादेश जब बना था, तब इसका निर्माण एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के रुप में किया गया था। और उसके कुछ ही सालों में यह देश एक इस्लामी राष्ट्र में परिवर्तित हो गया। इससे यह स्पष्ट हो जाता हैं कि इनके समाज में मजहबीं कट्टरता कहा तक बसी हुई हैं। साथ ही बीएनपी, जमात-ए-इस्लामी जैसें संगठन भी पाकिस्तान परस्त हैं, जो कट्टर इस्लाम को बढ़ावा देते हैं।
क्या हैं अमरिकी साजिश-
बांग्लादेश में शुरु हुए छात्र प्रदर्शन के बाद जिस तरह से यह आंदोलन उग्र हो गयें, और देश के अल्पसंख्यकों और देश की सरकार के खिलाफ हो गये, यह एक गहन शोध का भी विषय हैं।
क्योकि जिस आरक्षण हटाने की मांग छात्र कर रहे थे, उसे वहां की सुप्रीम कोर्ट ने हटा दिया था, फिर भी यह आंदोलन रुका नहीं। बल्कि और उग्र हो गया।
इसके कुछ दिन पहले ही बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने अमेरिका के ऊपर बांग्लादेश को अस्थिर करने का आरोप लगाया था। और इसके बाद यह हो जाता हैं, जिससे इसमें छुपी अमरिकी साजिश से इनकार नहीं किया जा सकता।
दरअसल अमेरिका बांग्लादेश से एक द्वीप चाहता हैं, जिस पर वह अपना मिलिट्री बेस बना सकें। पर शेख हसीना ने इससे इनकार कर दिया था। जिससे अमेरिका चिढ़ा हुआ था।
उसने शेख हसीना के बांग्लादेश में तख्तापलट के बाद वहां से भारत आने के बाद, जब शेख हसीना ने वहां जाने का प्रयास किया तो उन पर बैन लगा दिया हैं। इससे उसकी सहभागिता के सबूत मिलते हैं। और जिस तरह से अमरिका परस्त मो. यूनुस को बांग्लादेश का मुख्य सलाहकार नियुक्त किया गया, वह भी आश्चर्यजनक हैं। आने वाले समय इसकी और कलही खुल सकती हैं।
निष्कर्ष-
बांग्लादेश में हिंदू समुदाय के इतिहास, वर्तमान स्थिति और चुनौतियों पर एक नज़र डालने से यह स्पष्ट होता है कि यह समुदाय लगातार असुरक्षा, उत्पीड़न, और भेदभाव का सामना कर रहा है। 1971 की स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान देने के बावजूद, हिंदू समुदाय की जनसंख्या में तेजी से कमी आई है, उनके धार्मिक स्थलों पर हमले हुए हैं, और उन्हें सांप्रदायिक हिंसा का शिकार बनाया गया है।
भारत-विरोधी भावनाओं और बढ़ते इस्लामी कट्टरपंथ ने भी इस स्थिति को और जटिल बना दिया है, जिससे हिंदू समुदाय का जीवन और अधिक कठिन हो गया है। इसके साथ ही, बांग्लादेश में कट्टरपंथी इस्लाम के उदय ने सामाजिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा दिया है और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा को गंभीर खतरा उत्पन्न किया है।
यह आवश्यक है कि बांग्लादेश सरकार और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय इस स्थिति को गंभीरता से लें और हिंदू समुदाय के अधिकारों और सुरक्षा की रक्षा के लिए प्रभावी कदम उठाएं। भारत को भी हिदुओं के लिए कुछ ऐसी मुहिम शुरु करने की जरुरत हैं। जिससे कि बांग्लादेश के हिंदू सुख पूर्वक रह सके। फिर इसके लिए चाहे बांग्लादेश को तोड़कर एक अलग हिंदू राष्ट्र बनाने पर ही क्यो न विचार करना पड़े। क्योकि जिस तरह से उनका उत्पीड़न हो रहा हैं। इससे यह स्पष्ट है कि अगर जल्दी कुछ न किया गया, तो बांग्लादेश में हिंदू विलुप्त हो जाएंगे।
बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार पर हमें अपने विचार व सुझाव कमेंट बाक्स के माध्यम से जरुर बताएं। धन्यवाद…
1. Question: बांग्लादेश का निर्माण कैसे हुआ?
Answer: बांग्लादेश का निर्माण 1971 में पाकिस्तान से स्वतंत्रता के बाद हुआ। यह स्वतंत्रता संघर्ष बंगबधु शेख मुजीबुर रहमान के नेतृत्व में लड़ा गया, जिसमें भारतीय सेना ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
2. Question: बांग्लादेश में हिंदुओं की स्थिति कैसी है?
Answer: बांग्लादेश में हिंदुओं की स्थिति बहुत कठिन है। उन्हें धार्मिक उत्पीड़न, सांप्रदायिक हिंसा, और संपत्ति पर अवैध कब्जे जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जिससे उनकी आबादी में कमी आई है।
3. Question: बांग्लादेश में हिंदुओं की आबादी में कमी क्यों आई?
Answer: बांग्लादेश में हिंदुओं की आबादी में कमी का मुख्य कारण धार्मिक उत्पीड़न, सांप्रदायिक हिंसा, और संपत्ति पर अवैध कब्जा है। इसके कारण बड़ी संख्या में हिंदुओं ने भारत और अन्य देशों की ओर पलायन किया है।
4. Question: 1971 के बाद बांग्लादेश में हिंदुओं की जनसंख्या कितनी घट गई है?
Answer: 1971 में बांग्लादेश की कुल आबादी में हिंदुओं की हिस्सेदारी लगभग 13-15% थी, जो आज घटकर लगभग 8% या उससे भी कम रह गई है।
5. Question: बांग्लादेश की राजनीति में इस्लामी कट्टरपंथ का क्या प्रभाव है?
Answer: बांग्लादेश की राजनीति में इस्लामी कट्टरपंथ का बढ़ता प्रभाव हिंदुओं की सुरक्षा को खतरे में डालता है। इस्लामी कट्टरपंथियों द्वारा हिंदुओं पर हमले और उत्पीड़न की घटनाएं आम हो गई हैं।