“भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केन्द्र का सूर्य पर महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट “आदित्य एल-1” लांन्च हो गया है। यह पृथ्वी से लगभग 15 लाख किमी. दूर लैग्रेंज पॉइट 1 पर स्थित होगा। यह बिंदु बिना किसी व्यवधान के सूर्य के अध्ययन की अनुमति देता है। इस मिशन से हमे सौर गतिविधि और हमारे सौर मंडल पर इसके प्रभाव के बारे में बहुमूल्य वैज्ञानिक जानकारी मिलेगीं। चंन्द्रयान-3 के बाद यह इसरो का अगला बड़ा प्रोजेक्ट है। यह चार महीनों के बाद सूर्य के एल-1 पॉइट पर स्थित होगा। यह सूर्य की विभिन्न परतों और अंतरिक्ष पर इसके प्रभावों का भी अध्ययन करेंगा।”
क्या है आदित्य एल-1 मिशन- What is Aditya L-1 Mission-
बीते शनिवार 2 सितम्बर 2023 को इसरो ने श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से आदित्य एल-1 को सफलतापूर्वक लॉन्च कर दिया। उपग्रह को पृथ्वी की अण्डाकार कक्षा में स्थापित करने के बाद प्रक्षेपण को सफल घोषित कर दिया गया।
इस मिशन का बजट अनुमानित लागत 400 करोड़ रुपये है। यह एक प्रकार का कोरोनग्राफ यान है, जो तारे या अन्य चमकदार वस्तु से सीधे प्रकाश को रोकता है ताकि चाँद से सूरज ना छिपे और अध्ययन हो सके। जनवरी 2008 में अंतरिक्ष अनुसंधान के लिए बनायी गयी सलाहकार समिति द्वारा इसकी अवधारणा की गयी थी।
इसे पीएसएलवी-सी57 रॉकेट के द्वारा लॉन्च किया गया है। यह सूर्य का अध्ययन करने वाला पहला भारतीय मिशन है। इससे पहले तीन अन्य संगठनों ने सूर्य पर अपने मिशन भेजे है, जिनमें नासा, ईएसए और जर्मनी शामिल है। यह लैग्रेंज पॉइट एल-1 पर स्थापित होने वाला पहला भारतीय मिशन है। इसरो प्रमुख एस. सोमनाथ ने कहा है कि इस मिशन को कक्षा तक पहुंचने में 125 दिन लगेंगे। इस सफर में यह यान 15 लाख किमी की दूरी तय करेंगा।
Table of Contents
मिशन के लक्ष्य-Mission Goals
इस मिशन के निम्न लक्ष्य है-
- सूर्य के वायुमंडल और कोरोना के संरचना और गतिशीलता को समझना।
- सौर फ्लेयर्स और कोरोनाल मास इजेक्शन की उत्पत्ति और विकास को समझना।
- सौर गतिविधि और अंतरिक्ष मौसम के बीच सबंधों को समझना।
- सौर गतिविधियों के प्रभावों को पृथ्वी के वातावरण और जलवायु पर समझना।
इसरो के अनुसार, आदित्य एल-1 का मुख्य उद्देश्य कोरोनल मास इजेक्शन ( सूर्य के कोरोना से प्लाज्मा और चुंबकीय क्षेत्र का बड़े पैमाने पर निष्कासन) की उत्पत्ति गतिशीलता और प्रसार को समझने और कोरोना के अत्यधिक तापमान के रहस्य का समाधान करना है।
प्रमुख उपकरण-Major Appliances
आदित्य एल-1 मे प्रमुख 7 उपकरण लगे हुए है-
- सोलर कॉरोनल इमेजर- यह उपकरण सूर्य के कोरोना को चरम पराबैंगनी प्रकाश में छवि देगा।
- सोलर एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर- यह उपकरण सूर्य के एक्स-रे स्पेक्ट्रम को मापेगा।
- सोलर विंड प्लाज़्मा विश्लेषक – यह उपकरण सौर हवा के प्लाज़्मा को मापेगा।
- मैग्नेटोमीटर- यह उपकरण सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र को मापेगा।
- सोलर पार्टिकल मॉनिटर- यह उपकरण सौर ऊर्जा कणों को मापेगा।
- इन-सीटू सोलर स्पेक्ट्रोमीटर- यह उपकरण सौर हवा के प्लाज़्मा और ऊर्जा कणों को इन-सीटू मापेगा।
Guru Gobind Singh and 4 Sahibzades- गुरु गोबिंद सिंह और 4 साहिबजादे
अन्य जाननें योग्य तथ्य- Other facts worth knowing
- सूर्य और पृथ्वी के बीच पांच लग्रांजियन पॉइंट है। एल 1 पॉइंट प्रभामंडल कक्षा में है जहां से सूर्य पर ग्रहण का असर नही होता।
- इस पॉइंट से सौर गतिविधियां लगातार देखने का लाभ मिलेगा। यहां से सूर्य अपनी आकाशगंगा और अन्य तारों का व्यापक अध्ययन संभव है।
- पीएसएलवी के लिए ‘एक्सएल’ का इस्तेमाल हुआ है, जो ज्यादा शक्तिशाली होना दर्शाता है। 2008 में चंद्रयान-1 व 2013 में मंगल ऑर्बिटर मिशन के लिए भी ऐसा रॉकेट इस्तेमाल हुआ था।
- आदित्य एल-1 अंतरिक्ष यान को पृथ्वी की निचली कक्षा में स्थापित किया जाएगा।
- प्रोपल्शन प्रणाली के जरिये अंतरिक्ष यान को लग्रांज पॉइंट एल1 की ओर भेजा जाएगा।
- एल1 पॉइंट की तरफ बढ़ने के साथ ही यह पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण प्रभाव क्षेत्र से बाहर निकल जाएगा।
- पॉइंट एल1 पृथ्वी से 15 लाख किमी दूर है। एल1 पॉइंट अंतरिक्ष में ऐसा क्षेत्र है, यहां सूर्य और पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण का असर नहीं होता है। इसी के चलते वस्तुएं यहां रह सकती है। इसे पार्किग पॉइंट भी कहा जाता है।
- 190 किलो का विजिबल एमिशन लाइन कोरोनाग्राफ (वीईएलसी) पांच वर्षो तक सूर्य की तस्वीरें ले के पृथ्वी पर भेजेगा।
अन्य देशों के सूर्य पर मिशन- Missions to the Sun of other countries
सूर्य पर मिशन भेजने वाले देशों में यूएसए सबसे आगे है, यूएसए ने कई सारे मिशन को सूर्य तक भेजा है, उसने कई और देशों के साथ मिलकर भी कई मिशन लॉन्च किया है।
इसमें सबसे ज्यादा चर्चा में रहने वाला मिशन ‘पार्कर सोलर प्रोब’ है। जिसे नासा ने 2018 में लॉन्च किया था। इसके अलावा सूर्य पर निगरानी के लिए पिछले चार दशक में ढेरों मिशन लॉन्च किए गए है। कुछ को मिलकर लॉन्च किया गया है, जबकि कुछ नासा ने खुद ही लॉन्च किए है।
दिसंबर 1995 में अमेरिकी स्पेस एजेंसी (नासा), यूरोपियन स्पेस एजेंसी (ईएसए) और जापान की जापान एयरोस्पेस एक्सप्लोरेशन एजेंसी (जेएएक्सए) ने साथ मिलकर ‘सोलर एंड हीलियोस्फेरिक ऑब्जर्वेटरी’ (सोहो) मिशन लॉन्च किया। सोहो के जरिए सूर्य के गर्म आंतरिक हिस्से से लेकर इसकी सतह की स्टडी की जा रही है। सूर्य के तूफानी वातावरण पर भी सोहो के जरिए ही निगरानी की जाती है।
Fascinating Tales Ancient History of Bihar(बिहार का इतिहास): Unearthing the Untold Stories of Bihar
नासा ने 2018 मे ‘पार्कर सोलर प्रोब’ लॉन्च किया। 2021 में पार्कर स्पेसक्राफ्ट सूरज के ऊपरी वायुमंडल से गुजरा, नासा की ऑफिशियल वेबसाइट के मुताबिक, ये पहली बार था। जब कोई स्पेसक्राफ्ट सूरज के इतने करीब से गुजरा हो। इस मिशन के जरिए सूरज की सबसे ज्यादा करीब से निगरानी की जा रही है। सूरज से निकलने वाले सौर तूफानों और सोलर कोरोना को गर्म एवं तेज करने वाली ऊर्जा का पता लगाना ही इस मिशन का मकसद है।
जापानी मिशन- Japanese mission
जापान दुनिया का पहला देश था, जिसनें सूर्य पर मिशन लॉन्च किया था। जापान ने 1981 में पहली सोलर ऑब्जर्वेशन सैटेलाइट, हिनोटोरी (ASTRO-A) को सूर्य पर भेजा। इस मिशन के माध्यम से एक्स-रे के जरिए सोलर फ्लेयर्स की स्टडी करना था।
जापान ने फिर 1991 में योहकोह को लॉन्च किया। 1995 को नासा के साथ मिलकर ‘सोहो’ और 1998 में नासा के साथ ‘ट्रांजिएंट रिजन एंड कोरोनल एक्सप्लोरर’ (TRACE) मिशन लॉन्च किया। 2006 में हिनोडे लॉन्च किया गया, जो एक सोलर ऑब्जर्वेटरी की तरह सूर्य के चक्कर लगा रहा है। इस मिशन का मकसद सूर्य से पृथ्वी पर होने वाले प्रभाव को समझना है।
यूरोपीय मिशन- European Mission
ईएसए अपने मिशन को 1990 में “सूर्य के ध्रुवों के ऊपर और नीचे” अंतरिक्ष के वातावरण का अध्ययन करने के लिए “यूलिसिस मिशन” लॉन्च किया था। इस प्रोब-1 मिशन के जरिए जो जानकारियां हासिल हुई, उसके आधार पर उसने वर्ष 2001 में प्रोब-2 लॉन्च किया।
लैग्रेंज पॉइंट क्या है- What is Lagrange point?
लैंग्रेजियन पॉइंट को लैग्रेंज पॉइंट, लिबरेशन पॉइंट या एल-पॉइंट के रुप में भी जाना जाता है। ये बिंदु दो बड़े पिड़ो की कक्षीय व्यवस्था में स्थान है, जहां एक तीसरा छोटा पिड़, जो केवल गुरुत्वाकर्षण से प्रभावित होता है, दो बड़े पिड़ो के सापेक्ष एक स्थिर स्थिति बनाए रखने में सक्षम होता है। बलों की बातचीत संतुलन का एक बिंदु बनाती है। जहां एक अंतरिक्ष यान को अवलोकन करने के लिए पार्क किया जा सकता है।
लैग्रेंजियन बिंदुओं का नाम अठारहवीं शताब्दी के खगोलशास्त्री और गणितीय जोसेफ-लुई लैग्रेंज के नाम पर रखा गया है। जिन्होनें इसके बारे में 1772 के एक पत्र में लिखा था। लैग्रेंज ने इन बिंदुओं के बारे में पृथ्वी, चंद्रमा और सूर्य के लिए ‘तीन शरीर की समस्या’ के समाधान के रुप में लिखा था। उन्हें लैग्रेंजियन पॉइंट और लाइब्रेशन पॉइंट भी कहा जाता है।
एक प्रमुख पिंड के चारों और पाँच लैग्रेंजियन बिंदु होते है। इन पाँच बिन्दुओं में से तीन बिंदु दो बड़े पिंड़ों कों जोड़ने वाली रेखा के साथ स्थित हैं।
सूर्य-पृथ्वी प्रणाली में, पहला बिन्दु एल1 सूर्य और पृथ्वी के बीच स्थित है, दूसरा बिंदु एल2 सूर्य के विपरीत दिशा में स्थित है, एल1 और एल2 दोनों के साथ लगभग 1 मिलियन मील की दूरी पर स्थित है। तीसरा बिंदु एल3 सूर्य के पीछे पृथ्वी की कक्षा के विपरीत स्थित है। ये तीनो बिंदु अस्थिर है।
एल4 और एल5, पृथ्वी की कक्षा के साथ स्थित हैं, जिसमें से एक इससे आगे है और दूसरा इसके पीछे, 60 डिग्री के कोण पर। बिंदु एल4 और एल5, एल1, एल2 और एल3 के विपरीत, स्थिर बिंदु है।
निष्कर्ष- conclusion
सूर्य साधना के लिए इसरो का आदित्य निकल चुका है। अब यह अपने गतव्य तक 125 दिनों की यात्रा के बाद पहुंच जाएगा। प्रक्षेपण के बाद ही करीब एक घंटे बाद ही शनिवार दोपहर करीब एक बजे इसने अपनी निर्धारित कक्षा हासिल कर ली थी।
इसके बाद इसरो के कई और मिशन भी है। जैसे निसार, गगंनयान इत्यादि। चन्द्रयान3 की सफलता के बाद आदित्य एल1 हमारा अगला कदम है स्पेस में।
यह सारे मिशन दर्शाते है कि इसरो अपना काम कैसे कम बजट में भी बेहतरीन तरीकें से कर रहा है। पर अगर हमें भविष्य में और भी बेहतरीन मिशनों को अंजाम देना है, तो हमें इसरों की फड़िग बढ़ानी होगी। कम से कम इसरो का बजट 15 से 20 बिलियन डॉलर तक करना ही होगा।
साथ ही साथ हमें इसरो के वैज्ञानिकों की सुरक्षा पर भी विशेष ध्यान देने की जरुरत है। वह हमारे देश के लिए अमूल्य धरोंहर है। किसी भी प्रकार का विदेशी या देशी षडयंत्र उनके साथ नही होना चाहिए। कई विदेशी सुरक्षा ऐजसियां इस फिराक में रहती है। कि किस तरीकें से हमारे देश को नुकसान पहुंचाया जाय। ये पहले भी हो चुका है, पर भविष्य में इससे सतर्क रहने की जरुरत है।
धन्यवाद….
Q1: What is the Aditya L-1 mission?
A1: The Aditya L-1 mission is a significant project by ISRO (Indian Space Research Organisation) aimed at studying the Sun. It involves placing a spacecraft approximately 1.5 million kilometers away from Earth at the L1 Lagrange point, allowing continuous observation of the Sun without any interruptions.
Q2: When was the Aditya L-1 mission launched?
A2: The Aditya L-1 mission was successfully launched on Saturday, September 2, 2023, from the Satish Dhawan Space Centre in Sriharikota, India.
Q3: What is the budget of the Aditya L-1 mission?
A3: The estimated budget for the Aditya L-1 mission is around 400 crore rupees.
Q4: What is the purpose of the Aditya L-1 mission?
A4: The Aditya L-1 mission aims to achieve several objectives, including understanding the structure and dynamics of the Sun’s outermost layer (corona), studying solar flares and coronal mass ejections, investigating solar activity and its impact on space weather, and analyzing the effects of solar activity on Earth’s environment and climate.