“ईरान पश्चिम एशिया का ऐसा देश जिसकी दुश्मनी इजराइल व यूएस दोनों देशों से हैं। ईरान आज एक न्यूक्लियर पॉवर बनने की और आगे बढ़ रहा हैं। जो इजराइल व यूएस दोनों के लिए बड़ा खतरा साबित हो सकता हैं। कभी फ़ारस के नाम से विख्यात ईरान एक कच्चा तेल सम्पन्न देश हैं। यह एक इस्लामिक शिया बहुल देश हैं। कभी यहां का प्राथमिक धर्म पारसी था। पारसी ईरान का सबसे पुराना धार्मिक समुदाय हैं।
यहां मुस्लिम शासकों के आने के बाद पारसियों को अपना देश छोड़ना पड़ा था। आज इस देश पर दुनिया के कई देशों ने प्रतिबंध लगा रखे हैं। जिससे इस देश की अर्थव्यवस्था चरमरा चुकी हैं। फिर भी यह देश किसी तरह टिका हुआ हैं। ईरान मुस्लिम वर्ल्ड में एक नयी पॉवर बनना चाहता हैं।
जिससे वह सऊदी अरब को इस पद से पीछे हटा सकें। वह कई देशों के खिलाफ छद्म युद्धों को भी फंड करता हैं। लेकिन ईरान शुरुआत में ऐसा नहीं था, एक समय ऐसा था कि वह अमेरिका व पश्चिम के देशों का खास दोस्त था।”
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इस अंक में हम ईरान से जुड़े सभी तथ्यों को खगालनें का प्रयास करेगें। हम यह भी जानेंगे किस तरह से फारस देश ईरान बन गया। और कैसें अब यह कुछ देशों के लिए एक खतरा बन गया हैं।
ईरान का प्राचीन इतिहास- साम्राज्यों की विकास यात्रा
ईरान के पूर्व का नाम फारस (पर्शिया) हैं। यह दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यताओं में से एक हैं। इस देश पर कई शासकों ने अपना शासन किया हैं। साइरस महान से लेकर सिकंदर तक और पहलवी तथा सासानी साम्राज्यों का राज भी इस देश पर रहा। सातवीं शताब्दी ईस्वी में इस क्षेत्र पर अरबों का कब्जा हो गया। जिससे इस देश का इस्लामीकरण शुरु हुआ। 1953 से 1979 तक ईरान ने मो. रज़ा पहलवी का शासन देखा। उस दौर में ईरान पूरी तरह से पश्चिमी सभ्यता में रगा हुआ था। इसके बाद 1979 में यहां इस्लामी क्रांति हुई और फिर यह एक इस्लामी गणराज्य बन गया।
इसके बाद ईरान में एक नया दौर शुरु हुआ। यहां सरकार नागरिक स्वतंत्रत के हनन, विशेष रुप से महिलाओं के लिए एक व्यापक आलोचना झेलती हैं। आज का ईरान सुन्नी बहुल सउदी अरब और इजराइल का धुर विरोधी हैं। यह देश मध्य पूर्वी संघर्षों में छद्म युद्ध में शामिल हैं।
फ़ारसी ईरान की प्रमुख भाषा हैं। तेहरान, इस्फ़हान, तबरेज, मशहद ईरान के प्रमुख शहर हैं। देश की 15 फीसदी आबादी राजधानी तेहरान में रहती हैं। यहां की अर्थव्यवस्था मुख्य रुप से कच्चे तेल व प्राकृतिक गैस के निर्यात पर निर्भर रहती हैं। यहां के प्रमुख जनजातीय समूह में फ़ारसी लोगों के अलावा अज़रबैजानी, कुर्द और लुर शामिल हैं।
यहां पे हम ईरान के कुछ विशेष साम्राज्यों के बारे में बताने जा रहे हैं-
ईरान के प्रमुख साम्राज्य-
- अचेमेनिड साम्राज्य- फारस की महानता का आरंभ
अचेमेनिड साम्राज्य ईरान का पहला महान साम्राज्य था, जिसकी स्थापना साइरस महान ने की थी। यह साम्राज्य 6वीं शताब्दी ईसा पूर्व में अस्तित्व में आया और अपने समय में दुनिया का सबसे बड़ा साम्राज्य बन गया। साइरस ने 559 ई.पू. में इस साम्राज्य की स्थापना की और इसे पश्चिम में एशिया माइनर (आज का तुर्की) से लेकर पूर्व में भारत तक विस्तारित किया।
साइरस महान को उनके उदार और न्यायपूर्ण शासन के लिए याद किया जाता है। उन्होंने ईरान के विभिन्न जातीय और धार्मिक समूहों के साथ सहिष्णुता और सम्मान का व्यवहार किया। “साइरस सिलिंडर” को दुनिया के पहले मानवाधिकार घोषणापत्र के रूप में माना जाता है, जिसमें साइरस ने बाबुल के लोगों की स्वतंत्रता की घोषणा की थी। इसके बाद, दारायस प्रथम ने साम्राज्य को और अधिक संगठित किया और इसका प्रशासनिक ढांचा मजबूत किया। उन्होंने शाही सड़कें बनवाईं और साम्राज्य के विभिन्न हिस्सों को एकजुट करने के लिए एक केंद्रीकृत प्रशासनिक प्रणाली की स्थापना की।
अचेमेनिड साम्राज्य की राजधानी पर्सेपोलिस एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और राजनीतिक केंद्र थी, जहां आज भी इसके खंडहर इस साम्राज्य की महानता का बखान करते हैं। यह साम्राज्य 330 ई.पू. में सिकंदर महान द्वारा पराजित हुआ, लेकिन इसके सांस्कृतिक और प्रशासनिक मॉडल ने भविष्य की सभ्यताओं को प्रभावित किया।
- सासानी साम्राज्य- प्राचीन ईरान की शक्ति और संस्कृति
सासानी साम्राज्य (224-651 ई.) तक ईरान पर शासन किया। इस साम्राज्य ने प्राचीन ईरान की शक्ति और संस्कृति को पुनर्जीवित करने का काम शुरु किया। सासानी साम्राज्य के काल को ईरान का “स्वर्ण युग” कहा जाता है। क्योंकि इसने ईरानी पहचान, धर्म, कला और वास्तुकला को एक नई ऊंचाई पर पहुंचाया।
सासानी साम्राज्य की स्थापना अर्देशिर प्रथम ने 224 ई. में की थी। यह साम्राज्य अचेमेनिड साम्राज्य का उत्तराधिकारी माना जाता है और इसकी राजधानी तेसिफोन थी, जो आज के इराक में स्थित है। सासानी शासक पारसी धर्म के अनुयायी थे और इसे राज्य धर्म के रूप में स्थापित किया। पारसी धर्म के धार्मिक ग्रंथ अवेस्ता का संकलन और संरक्षण इसी समय में हुआ।
सासानी शासक शापुर प्रथम ने साम्राज्य की सीमाओं का विस्तार किया और रोमन साम्राज्य के साथ कई सफल युद्ध किए। उन्होंने रोम के सम्राट वैलेरियन को बंदी बना लिया था, जो सासानी सैन्य शक्ति का प्रतीक बन गया। सासानी काल में फारसी कला, वास्तुकला और साहित्य का भी बहुत विकास हुआ। इसमें आप ईरान में बनाए गए महान स्मारकों, मंदिरों और राजमहलों का उल्लेख कर सकते हैं, जो सासानी शिल्पकला की उत्कृष्टता को दर्शाते हैं।
इस साम्राज्य के दौर में मनीचीज्म और मज़्दकवाद जैसे नए धार्मिक और दार्शनिक विचारधाराओं का उदय हुआ। ये विचारधाराएँ ईरान की सांस्कृतिक विविधता और बौद्धिक प्रगति का प्रतीक थीं। सासानी काल में ही “फारसीन” भाषा का विकास हुआ, जो फारसी साहित्य और विज्ञान का आधार बनी।
- मध्यकालीन ईरान- इस्लामी विजय और सांस्कृतिक परिवर्तन
सासानी साम्राज्य का पतन 7वीं शताब्दी में अरब मुस्लिम आक्रमण के साथ हुआ। इस्लाम के प्रसार के साथ, ईरान में एक नए युग की शुरुआत हुई। इस समय, रशीदुन उमय्यद और बाद में अब्बासी खिलाफतों ने ईरान पर शासन किया। इस्लामी विजय ने न केवल राजनीतिक बदलाव लाए, बल्कि सांस्कृतिक, धार्मिक, और सामाजिक परिवर्तन भी हुए।
इस्लामी शासन के तहत, फारसी संस्कृति ने इस्लामी दुनिया को गहराई से प्रभावित किया। फारसी भाषा और साहित्य ने इस्लामी विचारधारा के साथ सामंजस्य स्थापित किया और इस्लामी सभ्यता के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। 10वीं और 11वीं शताब्दी में, फारसी भाषा में महान साहित्यिक कृतियों का निर्माण हुआ, जैसे कि फ़िरदौसी का “शाहनामा” जिसने प्राचीन ईरानी मिथकों और इतिहास को जीवित रखा।
इस्लामी काल में, ईरान में सूफीवाद का उदय हुआ, जिसने इस्लामी धर्म के आध्यात्मिक पक्ष को विकसित किया। सूफी संतों और उनके साहित्य ने न केवल ईरान, बल्कि पूरे इस्लामी दुनिया को प्रभावित किया। साथ ही, इस्लामी वास्तुकला और कला का भी इस समय में बहुत विकास हुआ, जिसके उदाहरण आज भी ईरान में देखे जा सकते हैं।
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आधुनिक ईरान की यात्रा- पश्चिमीकरण से इस्लामीक्रान्ति तक
आधुनिक ईरान की स्थापना पहलवी वंश ने रखी थीं। अपने पूर्व के शासकों के कुशासन और प्रथम विश्वयुद्ध (1914-1919) तक में ईरान पूरी तरह बर्बाद हो गया था। पूरे ईरान पर विदेशी शक्तियां खासकर रुस और ब्रिटेन वहां के प्राकृतिक संपदा के ऊपर हावी थे। उस समय तक ईरान जो कभी एक शक्ति था, वह अपनी कई शक्तियों को क्षींण कर चुका था। उसके शासक पश्चिम के गुलाम थे, और उसके तेल व गैस पर परस्पर पश्चिम का ही कब्जा था।
आधुनिक ईरान की यात्रा को समझने के लिए यह आवश्यक है कि हम पहलवी वंश के सुधारों और इस्लामिक क्रांति के कारणों और परिणामों पर विस्तार से चर्चा करें।
- पहलवी वंश और पश्चिमीकरण- ईरान का पुनर्निर्माण
20वीं शताब्दी की शुरुआत में, ईरान एक महत्वपूर्ण परिवर्तन के दौर से गुजर रहा था। 1925 में रजा शाह पहलवी ने कजर वंश को अपदस्थ कर पहलवी वंश की स्थापना की। रजा शाह ने ईरान के आधुनिकीकरण और पश्चिमीकरण का बीड़ा उठाया, जिसके तहत उन्होंने देश के राजनीतिक और आर्थिक ढांचे में व्यापक सुधार किए।
रजा पहलवी ने 1934 में फारस का नाम ईरान घोषित कर दिया था। इस वंश में दो शासक हुए, पहले शासक रजा खान पहलवी (1925-41) तक और उनके बेटे मो. रजा पहलवी (1941-1979) तक जब तक तख्तापलट नहीं हुआ।
रजा शाह का उद्देश्य एक मजबूत, स्वतंत्र और आधुनिक ईरान का निर्माण करना था। उन्होंने पश्चिमी मॉडलों को अपनाते हुए शिक्षा, सैन्य और बुनियादी ढांचे में बड़े पैमाने पर सुधार किए। स्कूलों और विश्वविद्यालयों का निर्माण, रेलवे और सड़कों का विकास, और सेना का पुनर्गठन उनके कुछ प्रमुख सुधार थे। उन्होंने पारंपरिक इस्लामी और धार्मिक कपड़ों पर प्रतिबंध लगाया और महिलाओं के लिए सार्वजनिक जीवन में अधिक भागीदारी को प्रोत्साहित किया।
यह सुधार पश्चिमी मान्यताओं को अपनाने की दिशा में एक कदम था, जिसे कई ईरानी लोग स्वीकार कर रहे थे, लेकिन कुछ परंपरावादी धार्मिक नेताओं और समाज के वर्गों में इसका विरोध भी हो रहा था। रजा शाह ने धार्मिक वर्गों (उलमा) प्रभाव को कम करने का पूरा प्रयास किया।
महिलाओं को घूंघट रखने पर प्रतिबंध लगा दिया गया। शादी के लिए न्यूनतम आयु बढ़ा दी गई और जो कानून हमेशा पुरुषों के पक्ष में थे उन्हें और न्यायसंगत बना दिया गया। धर्मनिरेपक्ष स्कूलों व कालेजों की स्थापना हुई। तेहरान विश्वविद्यालय इसी काल में 1934 में शुरु किया गया। जिसने शिक्षा में मौलानाओं के एकाधिकार को कम कर दिया।
रजा शाह के शासन में आर्थिक और सांस्कृतिक प्रगति तो हुई, लेकिन उनके निरंकुश शासन और लोकतांत्रिक संस्थानों के दमन के कारण असंतोष भी बढ़ता गया। शाह के काल में ईरान के प्राकृतिक भड़ारों पर विदेशी ताकतों का कब्जा बढ़ता जा रहा था। इससे ईरानी जनता को कोई फायदा नहीं हो रहा था। रजा शाह ने इसमें कई रियायतें दे रखीं थीं। ये रियायतें ही पहलवी वंश के पतन व हिंसक विवाद का कारण बनीं।
1941 में, द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, ब्रिटेन और सोवियत संघ ने रजा शाह को पद छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया, और उनके पुत्र मोहम्मद रजा पहलवी को शाह घोषित किया गया।
- इस्लामिक क्रांति: आधुनिक ईरान का निर्माण
ईरान की इस्लामिक क्रान्ति 1979 में शुरु हुई थीं। इसी क्रान्ति के कारण ईरान में पहलवी राजवंश का खात्मा हुआ। और शिया धार्मिक नेता अयातोल्लाह ख़ोमैनी वहां के सवोच्च प्रमुख बने।
मोहम्मद रजा शाह ने अपने पिता की नीतियों को जारी रखते हुए पश्चिमीकरण और आधुनिकीकरण की प्रक्रिया को और तेज किया। उन्होंने अमेरिका और पश्चिमी देशों के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए और “श्वेत क्रांति” के तहत आर्थिक और सामाजिक सुधारों की शुरुआत की। इन सुधारों में भूमि सुधार, महिलाओं को वोट का अधिकार, और स्वास्थ्य और शिक्षा में सुधार शामिल थे। हालांकि, शाह की ये नीतियाँ एक तरफ समाज के अमीर और उच्च वर्ग के लिए फायदेमंद साबित हो रही थीं, तो वहीं दूसरी ओर गरीब और धार्मिक वर्गों में असंतोष बढ़ रहा था।
शाह का पश्चिम के साथ घनिष्ठ संबंध, भ्रष्टाचार, आर्थिक विषमताएँ, और राजनीतिक दमन के कारण आम जनता में असंतोष फैल गया। इस बीच, अयातुल्ला रुहोल्लाह खुमैनी जो एक प्रमुख शिया धार्मिक नेता थे, शाह के खिलाफ मुखर हो गए। उन्होंने शाह की पश्चिमीकरण नीतियों और उसके निरंकुश शासन की कड़ी आलोचना की। खुमैनी का उद्देश्य ईरान में इस्लामी सिद्धांतों पर आधारित सरकार स्थापित करना था।
इसकी पृष्ठभूमि बहुत पहले ही लिखी जा चुकी थीं। जब द्वितीय विश्वयुद्ध शुरु हुआ, तब 1941 में ईरान पर रुस व ब्रिटेन का कब्जा था। आगे जाकर वहां की सरकार ने नाजियों का भी समर्थन किया।
रजा शाह भी ये सब होने दे रहे थे। ईरान एक तेल सम्पन्न देश था, इसलिए सभी देशों की इस पर निगाहें थीं। शाह एक ब्रिटिश सहायक के रुप में कार्य कर रहा था।
वहां अग्रेजों की उपस्थिति ईरानियों को खल रही थीं। 1949 में शाह को मारने का प्रयास किया गया पर वह विफल रहा। ईरान के उस वक्त के प्रधानमंत्री मोसद्दिक शाह के खिलाफ थे। और उन्हीं के साथ थे रुहोल्ला खुमैनी। खुमैनी के मन में बचपन से ही उलेमाओं के लिए आदरभाव था, जो शाह के शासन में कमजोर पड़ गये थे।
वहीं मोसद्दिक को सत्तापरिवर्तन के जुर्म में 60 के दशक में नजरबंद की सजा सुनाई गई और 1967 में फांसी पर लटका दिया गया। जिससे वहां की जनता में और आक्रोश उत्पन्न हुआ।
ब्रिटिश के बाद वहां की सरकार में अमरिकियों का वर्चस्व बढ़ने लगा। जहां ईरान के शहरों में विलासिता पूर्ण जीवन चल रहा था। वहीं ईरान के गांव भूखमरीं की चपेट में आ रहे थें। पूरा तेहरान पूरी तरह से पश्चिमी सभ्यता में डूब चुका था।
इसी दौरान खुमैनी ने शाह के खिलाफ विदेशों से ईरानी जनता को भड़काना शुरु कर दिया। वह पेरिस में सरकार द्वारा मिले निर्वासन का जीवन जी रहे थे।
खुमैनी ने पारंपरिक इस्लामिक मूल्यों को अपनाने की बात कहीं। जो लाखों ईरानी की दिल की बात थीं। सभी धार्मिक नेता उनके ईद-गिर्द जमा होने लगे थे।
1979 में यह असंतोष अपने चरम पर पहुंचा, और अंततः इस्लामिक क्रांति का उदय हुआ। लाखों लोग सड़कों पर उतरे, और शाह को देश छोड़कर भागना पड़ा।
1979 को अयातुल्ला खुमैनी निर्वासन से लौटे और ईरान में इस्लामी गणराज्य की स्थापना की। इस क्रांति ने ईरान की राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था को बदलकर रख दिया। खुमैनी को जिंदगी भर के लिए ईरान का सर्वोच्च लीड़र चुन लिया गया।
इस्लामी क्रांति के बाद, ईरान ने खुद को पश्चिमी प्रभाव से अलग कर लिया और शरिया (इस्लामी कानून) के आधार पर शासन की स्थापना की। महिलाओं के अधिकारों में कटौती हुई, धार्मिक पुलिस की स्थापना हुई, और एक कट्टर धार्मिक शासन ने सत्ता संभाली। यह क्रांति न केवल ईरान के लिए बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक महत्वपूर्ण घटना थी, जिसने मध्य पूर्व की राजनीति को गहराई से प्रभावित किया।
निष्कर्ष-
ईरान की ऐतिहासिक यात्रा उसकी सांस्कृतिक, राजनीतिक और धार्मिक धरोहरों की गहराई को दर्शाती है। प्राचीन काल में अचेमेनिड और सासानी साम्राज्यों ने ईरान को एक महान साम्राज्य के रूप में स्थापित किया, जो न केवल क्षेत्रीय ताकत था, बल्कि कला, संस्कृति, और प्रशासन में भी अग्रणी था। इन साम्राज्यों ने न केवल फारसी पहचान को मजबूत किया, बल्कि वैश्विक सभ्यताओं को भी प्रभावित किया।
हालांकि, आधुनिक युग में ईरान ने पश्चिमीकरण की दिशा में कदम बढ़ाया, जहां पहलवी वंश के तहत आधुनिकता और पश्चिमी मान्यताओं को अपनाया गया। लेकिन यह प्रक्रिया ईरानी समाज के सभी वर्गों को संतुष्ट नहीं कर सकी। पश्चिमीकरण और आधुनिकीकरण की नीतियों ने आर्थिक और सांस्कृतिक असमानताओं को जन्म दिया, जिसका परिणाम अंततः 1979 की इस्लामिक क्रांति के रूप में हुआ। इस्लामिक क्रांति ने ईरान को एक इस्लामी गणराज्य में परिवर्तित किया, जिसने पश्चिमी प्रभावों को खारिज कर अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान को प्राथमिकता दी।
आज, ईरान अपनी प्राचीन गौरवशाली विरासत और इस्लामी क्रांति के बाद के राजनीतिक बदलावों के बीच एक जटिल राष्ट्र बना हुआ है। यह यात्रा दर्शाती है कि सत्ता चाहे कोई हो जनता मे संतोष होना जरुरी हैं।
ये इस अंक का भाग-प्रथम हैं, अभी इसके दूसरे भाग का आना बाकी हैं। अभी हमे ईरान के अन्य पहलूओं की भी चर्चा करनी हैं। जो आगे के अंक में हम करेंगे। तो बने रहे हमारे ब्लांग के साथ। धन्यवाद..
ईरान का प्राचीन नाम क्या था और यह किसके लिए प्रसिद्ध था?
ईरान का प्राचीन नाम फारस (पर्शिया) था, और यह दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यताओं में से एक है, जहां कई शासकों और साम्राज्यों का उदय और पतन हुआ।
अचेमेनिड साम्राज्य की स्थापना किसने की और यह क्यों महत्वपूर्ण था?
अचेमेनिड साम्राज्य की स्थापना साइरस महान ने की थी। यह दुनिया का सबसे बड़ा साम्राज्य बन गया और इसे सहिष्णुता और न्यायपूर्ण शासन के लिए जाना जाता है।
सासानी साम्राज्य के दौर को ईरान का स्वर्ण युग क्यों कहा जाता है?
सासानी साम्राज्य ने ईरानी संस्कृति, कला, धर्म, और वास्तुकला को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया, जिससे इसे ईरान का “स्वर्ण युग” कहा जाता है।
ईरान में इस्लामी विजय के बाद कौन सा सांस्कृतिक परिवर्तन हुआ?
इस्लामी विजय के बाद, ईरान में फारसी संस्कृति और साहित्य ने इस्लामी दुनिया को गहराई से प्रभावित किया। इस समय सूफीवाद का उदय भी हुआ।
आज का ईरान किन देशों के साथ विरोधी संबंध रखता है?
आज का ईरान इजराइल और सऊदी अरब का धुर विरोधी है, और यह मध्य पूर्वी संघर्षों में छद्म युद्धों में शामिल है।