भारत में आरक्षण नीतियों के प्रभाव का अन्वेषण करें। विभिन्न क्षेत्रों में आरक्षण की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, उद्देश्य, लाभ और कमियों को समझें। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसलों, मौजूदा चुनौतियों और आरक्षण ने भारतीय राजनीति और समाज को कैसे आकार दिया है, यह जानें।
“आरक्षण (Reservation) जिसे भारत में शोषित वर्ग को उनके अधिकार देने के लिए शुरु किया गया था। आज वो सिर्फ एक चुनावी व राजनीतिक हथंकड़ा बनकर रह गयीं हैं। आरक्षण का सहारा लेकर कई पार्टियों ने अपनी राजनीति शुरु की, और कई राज्यों में इसके सहारे सरकार बनाई। कई दलित नेताओं ने इस तरह से अपने राजनीतिक कद को बढ़ाया। लेकिन उनका समाज व वर्ग आज भी वहीं बाटजोह रहा हैं।
आरक्षण(Reservation) का लाभ उस वर्ग की केवल कुछ जातियां ही ले पा रहीं हैं। बाकी जातियां सिर्फ धूलफांक रहीं हैं। इसको लेकर ही अभी 1 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में एससी-एसटी आरक्षण(Reservation) में क्रीमीलेयर की श्रेणी बनाने का फैसला सुनाया था। इसको लेकर भारत बंद तक बुलाया गया। यह बताने के लिए काफी हैं न हमारी राजनीतिज्ञ कितने परिपक्व हैं और न ही भारत का युवा वर्ग।”
हम भारत में जारी आरक्षण (Reservation)के विषय पर चर्चा करेंगे। इसका आजतक भारत को क्या फायदा मिला व क्या नुकसान रहे इस पर भी चर्चा करेंगे। बने रहे हमारे इस लेख के साथ…
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आरक्षण(Reservation) का उद्देश्य तथा परिभाषा-
आरक्षण की परिभाषा- आरक्षण (Reservation)एक ऐसी नीति है जिसके तहत समाज के सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े व शोषित वर्गों को शिक्षा, रोजगार और अन्य क्षेत्रों में विशेष अवसर दिए जाते हैं। इसका उद्देश्य उन वर्गों को मुख्य धारा में लाना है, जो ऐतिहासिक रूप से अन्याय, भेदभाव और असमानता का शिकार रहे हैं। और जो वर्षों से उत्पीड़त रहें हैं।
आरक्षण का उद्देश्य-
- सामाजिक न्याय की स्थापना- आरक्षण (Reservation)का मुख्य उद्देश्य पिछड़े व शोषित वर्गों के लिए ऐसे अवसर बनाना हैं, जिससे वह समाज में समानता व न्याय की स्थापना की जा सकें।
- ऐतिहासिक अन्याय की भरपाई- यह उन वर्गों के लिए एक उपाय हैं, इससे पूर्व में जो भी ऐतिहासिक अन्याय उनके साथ हुए हैं उसकी भरपाई की जा सकें।
- सशक्तिकरण- इस माध्यम से वंचित वर्गों को शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में अवसर प्रदान कर उन्हें सशक्त बनाना हैं।
- सामाजिक एकता- आरक्षण (Reservation)का उद्देश्य समाज में सभी वर्गों के बीच भाईचारा और सामाजिक एकता को बढ़ावा देना है, जिससे हर वर्ग के लोगों को विकास के समान अवसर मिल सकें।
भारत में आरक्षण (Reservation)का इतिहास-
- प्रारम्भ में आरक्षण(Reservation) की पृष्ठभूमि-
- भारत में जाति प्रथा शुरुआत से चली आ रही हैं। प्राचीन भारत में जाति व्यवस्था वर्ण आधारित थीं। बाद में यह धीरे-धीरे यह व्यवस्था जाति आधारित होती चली गयीं। यहीं से विभिन्न जातियों की बीच ऊंच-नीच व छुआछूत की भावना फैलनें लगीं। यह विभाजन समय के साथ कठोर होता गया और निम्न जातियों के लोग सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ते गए।
- वर्ण व्यवस्था में समाज को चार प्रमुख वर्गों में बताया गया है- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र। समय के साथ, यह वर्ण व्यवस्था कठोर जाति प्रथा में तब्दील हो गई। जिसमें शूद्रों और अन्य निम्न जातियों के साथ भेदभाव होने लगा।
- ब्रिटिश शासनकाल में, समाज सुधारक जैसे ज्योतिबा फुले, सावित्रीबाई फुले, और डॉ. भीमराव अंबेडकर ने पिछड़े और दलित वर्गों के अधिकारों के लिए आवाज उठाई। इन्हीं सुधारों के परिणामस्वरूप आरक्षण(Reservation) की अवधारणा को आगे बढ़ाया गया।
- ब्रिटिश शासनकाल में हुई आरक्षण (Reservation)की शुरुआत-
- भारत में आरक्षण की शुरुआत 1882 में हंटर आयोग के गठन के साथ उसकी सिफारिशों के आधार पर कुछ प्रांतों में शिक्षा के क्षेत्र में आरक्षण लागू किया गया।
- 1891 में त्रावणकोर में विदेशियों की भर्ती के खिलाफ सरकारी नौकरियों में मूल निवासियों के लिए आरक्षण(Reservation) मांगा गया।
- 1902 में छत्रपति शाहूजी महाराज ने कोल्हापुर राज्य में पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण(Reservation) लागू किया। यह भारत में आरक्षण (Reservation)की पहली महत्वपूर्ण पहल थी। यह अधिसूचना दलित वर्गों के कल्याण हेतु पहला सरकारी आदेश था।
- 1909 व 1919 के भारत सरकार अधिनियम में हर जाति व धर्म के लिए आरक्षण(Reservation) की व्यवस्था की गयीं।
- 1935 में गांधी जी व बीआर अम्बेडकर के बीच एक समझौते पास हुआ। जिसे पूना पैक्ट के नाम से जाना जाता हैं। जिसमें दलित वर्ग के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्र की मांग रखी गई।
- भारत सरकार अधिनियम-1935 में भी आरक्षण (Reservation)की व्यवस्था की गई थीं।
- स्वतंन्त्रता संग्राम में आरक्षण की भूमिका-
- डॉ. भीमराव अंबेडकर, जो स्वयं दलित समाज से आए थे, ने जातिगत भेदभाव के खिलाफ संघर्ष किया। वे भारतीय संविधान सभा के प्रमुख सदस्य बने और आरक्षण(Reservation) के प्रावधानों को संविधान में शामिल कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- संविधान सभा में आरक्षण के मुद्दे पर गहन चर्चा हुई। अंबेडकर ने आरक्षण (Reservation)को सामाजिक न्याय के एक उपकरण के रूप में प्रस्तुत किया, जो समाज के पिछड़े वर्गों को मुख्यधारा में लाने का एक प्रयास था।
- आजादी के बाद सविधान में आरक्षण (Reservation)का प्रावधान-
- 26 जनवरी, 1950 को भारत का संविधान लागू हुआ। इसी सविधान ने सभी नागरिकों को समान अवसर मुहैंया हो सकें। इसके लिए पिछड़े, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के लिए विशेष धाराओं के तहत आरक्षण (Reservation)का प्रंबध किया गया।
- आरक्षण(Reservation) की समयसीमा को 10 सालों के लिए तय किया गया था। जिन्हें हर दस साल में संविधान संशोधन करके बढ़ा दिया जाता हैं।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 में सरकारी नौकरियों, शैक्षिक संस्थानों और अन्य क्षेत्रों में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया।
- अनुच्छेद 330 और 332: संसद और राज्य विधानसभाओं में एससी और एसटी के लिए आरक्षित सीटों का प्रावधान किया गया, ताकि वे राजनीतिक प्रक्रिया में समान रूप से भाग ले सकें।
- मंडल आयोग और ओबीसी आरक्षण(Reservation)-
- 1979 में बी. पी. मंडल की अध्यक्षता में मंडल आयोग का गठन किया गया, जिसका उद्देश्य अन्य पिछड़ा वर्ग के सामाजिक और आर्थिक पिछड़ेपन का अध्ययन करना था।
- इस आयोग ने 1930 की जनगणना का इस्तेमाल करते हुए ओबीसी की 52 प्रतिशत आबादी का मूल्यांकन करने के बाद 1257 समुदायों का वर्गीकरण किया।
- मंडल आयोग ने ओबीसी के लिए 27% आरक्षण की सिफारिश की, जिसे विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार नें 1990 में सरकारी नौकरियों लागू कर दिया। इसके परिणामस्वरूप देश में बड़े पैमाने पर विरोध और समर्थन की लहरें उठीं।
- वर्तमान समय में आरक्षण की स्थिति-
- 2019 में केंद्र की मोदी सरकार नें आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईडब्लूएस) के लिए 10% आरक्षण (Reservation)का प्रावधान किया, जिससे वे लोग भी लाभान्वित हो सकें जो अन्य आरक्षित वर्गों में शामिल नहीं थे।
- वर्तमान में एससी, एसटी, ओबीसी, और ईडब्लूएस वर्गों के लिए विभिन्न क्षेत्रों में आरक्षण(Reservation) का प्रावधान है, जिसमें सरकारी नौकरियाँ, शैक्षिक संस्थान, और राजनीतिक प्रतिनिधित्व शामिल हैं। वर्तमान में भारत में कुल आरक्षण 49.5 प्रतिशत हैं। जिसमें ओबीसी का 27 प्रतिशत, एससी व एसटी का क्रमशः 15 व 7.5 प्रतिशत कोटा हैं। वही ईडब्लूएस को भी 10 प्रतिशत का कोटा हैं।
- आरक्षण (Reservation)की नीति को लेकर समय-समय पर विवाद होते रहे हैं। इसमें जातिगत विभाजन, आरक्षण(Reservation) की समय सीमा, और इसकी प्रभावशीलता जैसे मुद्दे शामिल हैं।
- आरक्षण की वजह से समाज के शोषित और पिछड़ा वर्ग की स्थिति में सुधार हुआ हैं। इसकी वजह से ये वर्ग मुख्यधारा में आया हैं।
- परन्तु इस आरक्षण का जो असर हैं, वे एससी व एसटी वर्ग की कुछ जातियां ही ले पायीं। सम्पूर्ण समाज को अभी इसका लाभ नहीं मिला।
- आरक्षण की नीति ने भारतीय राजनीति में भी अहम बदलाव किए हैं। विभिन्न राजनीतिक दलों ने आरक्षण के मुद्दे को अपने चुनावी एजेंडा में शामिल किया है, जिससे समाज के विभिन्न वर्गों को अपने पक्ष में करने का प्रयास किया गया है।
- इन वर्गों के माध्यम से वे सम्पूर्ण हिंदू समुदाय को बांटने का प्रयास करते नजर आते हैं। जिससे ये जातियां उनकी वोट बैंक बनी रहीं।
भारत में आरक्षण (Reservation)के क्या फायदे रहें-
भारत में आरक्षण के कई फायदे गिनायें जा सकते हैं। इस वजह से कई जातियों का उत्थान हुआ हैं। आरक्षण की नीति ने सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्रों में कई महत्वपूर्ण बदलाव किए हैं। इसके फायदे निम्नलिखित हैं-
- आरक्षण ने अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, और अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों को समाज में एक समान स्थान दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यह उन वर्गों को सशक्त बनाने का प्रयास है जो सामाजिक और आर्थिक रूप से शोषित रहे थे।
- समाज में जातिगत भेदभाव व छुआछूत की प्रथा को समाप्त करने का प्रयास किया। इसकी वजह से वंचित वर्गों के लोगों को शिक्षा, रोजगार, और राजनीतिक क्षेत्रों में अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाने का अवसर मिला।
- आरक्षण की वजह से इन वर्गों की साक्षरता दर में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। इससे उनके जीवन स्तर में सुधार आया और वे समाज की मुख्यधारा में शामिल हो सके।
- आरक्षण ने एससी, एसटी व अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए सरकारी नौकरियों में कई अवसर खोलें। इससे वे आर्थिक रूप से सशक्त हुए और समाज में उनकी स्थिति मजबूत हुई।
- संविधान में संसद और राज्य विधानसभाओं में एससी और एसटी के लिए आरक्षित सीटों का प्रावधान किया गया। इसके चलते इन वर्गों को राजनीति में प्रतिनिधित्व मिला और वे अपने समुदायों के लिए नीतियों और योजनाओं का निर्माण कर सके।
- आर्थिक स्वतंत्रता और शिक्षा के अवसर मिलने से इन वर्गों के लोग नए उद्यम स्थापित कर सके, जिससे वे न केवल अपने लिए बल्कि समाज के अन्य वर्गों के लिए भी रोजगार के अवसर उत्पन्न हो सके।
- आरक्षण ने उन्हें एक प्रकार से सामाजिक सुरक्षा प्रदान की। यह उन्हें शैक्षिक और आर्थिक क्षेत्रों में प्रतिस्पर्धा करने के लिए एक आवश्यक आधार प्रदान करता है।
10 years of Modi Raj are unmatched- मोदी राज के 10साल बेमिसाल
आरक्षण के नुकसान देश को क्या उठाने पड़े-
आरक्षण ने कई वर्गों में मतभेद भी पैदा किए। जो आरक्षण शोषित व वचित वर्ग के उत्थान के लिए शुरु किया गया था। वह आज एक राजनीतिक हथकड़ा बनकर रह गया हैं। इस नुकसान को समझना आवश्यक हैं, जिससे इसे और प्रभावी व न्यायसंगत बनाया जा सकें। इसके नुकसान विस्तार से निम्नलिखित हैं-
- इसकी वजह से कई क्षेत्रों में योग्यता की अनदेखी की गई। आरक्षण के कारण कई बार अधिक योग्य और प्रतिभाशाली उम्मीदवारों को अवसरों से वंचित रहना पड़ा। इसका नतीजा यह हुआ कि कम योग्य व्यक्ति आरक्षण के कारण उच्च शिक्षण संस्थानों व सरकारी नौकरियों में प्रवेश पा सका।
- आरक्षण की नीति के कारण समाज में जातिगत तनाव बढ़ा है। यह विशेष रूप से तब होता है जब एक वर्ग दूसरे वर्ग के आरक्षण के लाभों का विरोध करता है, जिससे समाज में अलगाव और विभाजन की स्थिति पैदा होती है।
- जाति आधारित आरक्षण ने देश में जाति आधारित राजनीति को भी मजबूत किया। इस वजह से कई राजनीतिक पार्टियों का उदय हुआ। यह पार्टियां समाज में एकता की भावना कमजोर करता हैं।
- जाति आधारित पार्टियों ने कुछ जाति के नेताओं को तो फायदा दिया। पर इससे सिर्फ इनके परिवार ही फले-फूले उन जातियों व निम्न जातियों को कोई फायदा नहीं हुआ।
- ये नीतियां कुछ ही जाति के लोगों और नेताओं तक सीमित रहीं। जो आरक्षण की आड़ में अपनी रोटियां सेकतें रहें। पर इन वर्गों को कोई फायदा न दे पायें।
- कुछ परिवारों में आरक्षण का लाभ लगातार पीढ़ी दर पीढ़ी मिलता रहा है, जिससे वास्तव में जरूरतमंद लोग इस लाभ से वंचित रह जाते हैं। इससे आरक्षण का उद्देश्य कमजोर हो जाता है।
- इसकी वजह से देश में समानता की जो भावना हैं, वह कहीं धूमिल नजर आती हैं। क्योकि एक वर्ग जिसकी पीढियां आरक्षण का लाभ ले रही हैं। और एक वर्ग ऐसा हैं जो गरीब हैं पर वह आरक्षण का लाभ नहीं ले सकता।
- आरक्षण के कारण कई बार प्रतिभाशाली व्यक्तियों को अवसर नहीं मिल पाते, जिससे देश के विकास की गति धीमी हो सकती है। विशेष रूप से तकनीकी और वैज्ञानिक क्षेत्रों में यह समस्या अधिक स्पष्ट हो सकती है।
- योग्य व सक्षम व्यक्ति इस वजह से कई अवसरो में वंचित रह जाता हैं। जिससे देश की बौद्धिक पूंजी का अपव्यय होता हैं।
- संविधान में आरक्षण की समय सीमा 10 वर्षों के लिए निर्धारित की गई थी, लेकिन इसे बार-बार बढ़ाया गया है। इससे आरक्षण की अवधि और इसकी आवश्यकता पर सवाल उठते हैं।
- कई बार आरक्षण को जाति आधारित बदलकर, आय आधारित करने की मांग की जाती हैं। जिससे समाज में भेदभाव कम हो सकें।
वर्तमान परिपेक्ष्य में आरक्षण की क्या स्थिति हैं-
आज के समय में आरक्षण भारत में एक महत्वपूर्ण और विवादास्पद मुद्दा बना हुआ है। यह न केवल सामाजिक और आर्थिक ढांचे को प्रभावित कर रहा है, बल्कि राजनीतिक क्षेत्र में भी इसका गहरा प्रभाव है। इसे निम्नलिखित तरीकें से समझते हैं-
- वर्तमान परिपेक्ष्य में एससी को 15 प्रतिशत व एसटी को 7.5 प्रतिशत व पिछड़ा वर्ग को 27 प्रतिशत और ईडब्लूएस को 10 प्रतिशत आरक्षण दिया जाता हैं।
- वर्तमान में कई अन्य जातियाँ, जैसे जाट, पाटीदार, मराठा, गुर्जर, आदि भी आरक्षण की मांग कर रही हैं। यह मांगें राज्यों में व्यापक आंदोलन और विरोध प्रदर्शन का कारण बनती हैं। अब राज्य राजनीति इन्हीं जातियों के इर्दगिर्द घूमतीं हैं।
- सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण की सीमा को 50% तक सीमित किया है, लेकिन कई राज्य इस सीमा को पार कर चुके हैं। यह एक बड़ा विवाद का मुद्दा बना हुआ है, जिसमें संवैधानिक और कानूनी चुनौतियाँ सामने आ रही हैं।
- इसका उदाहरण तमिलनाडू हैं, जहां 69 प्रतिशत तक आरक्षण लागू हैं। मध्य प्रदेश में 50 प्रतिशत आरक्षण लागू हैं।
- सुप्रीम कोर्ट नें 6-1 से बहुमत में फैंसला देते हुए राज्यों को कहा है कि वे आरक्षण में कोटा के भीतर कोटा बनाने का अधिकार हैं।
- इस कोटे से इन जातियों के लिए सब कैटेगरी बनायीं जा सकतीं हैं। जिससे सबसे जरुरतमंद को आरक्षण में प्राथमिकता मिल सकें।
- अधिकतर राजनीतिक दल आरक्षण के समर्थन में हैं, लेकिन इसके स्वरूप और विस्तार को लेकर उनकी अलग-अलग राय है। कुछ दल जातिगत आधार पर आरक्षण का समर्थन करते हैं, जबकि कुछ आर्थिक आधार पर आरक्षण का समर्थन कर रहे हैं।
आरक्षण के संभावित समाधान व उपाय क्या हो सकतें हैं-
आरक्षण नीति के फायदों और नुकसान को देखते हुए, यह स्पष्ट है कि वर्तमान आरक्षण व्यवस्था में सुधार की आवश्यकता है। पर इन व्यवस्थाओं में सुधार करने के लिए कई मतों को साथ लेना जरुरी हैं। जरुरी यह है कि हर वर्ग यह समझे कि जो आरक्षण आज से 74 वर्ष पूर्व लागू हुआ था, वह आज के समय के अनुसार सही नहीं हैं, जिसे आज के परिपेक्ष्य में आज के अनुसार फिर से नये तरीके से लागू करना चाहिए। जिसमें राजनीति की घोटालेबाजी न शामिल हो। इसके कुछ विभिन्न पहलू हो सकते हैं-
- वर्तमान जातिगत आरक्षण प्रणाली को आर्थिक आधार पर आरक्षण में परिवर्तित किया जा सकता है। इससे उन लोगों को भी लाभ मिलेगा जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं, भले ही वे किसी भी जाति से हों।
- आय व संपत्ति का मानदंड तय होना जरुरी हैं। जिससे ये सुनिश्चित हो सकें कि वे लोग जो आर्थिक रुप से पिछडे है उन्हें आरक्षण का लाभ मिलें।
- आरक्षण की अवधि के लिए एक निश्चित समय सीमा निर्धारित की जानी चाहिए। यह सुनिश्चित करेगा कि आरक्षण एक अस्थायी उपाय के रूप में लागू हो और समाज को स्थायी रूप से इस पर निर्भर न होना पड़े। और इस समय सीमा को कोई राजनीतिक दल अपने फायदे के हिसाब से आगे न बढ़ा सकें।
- जब आरक्षण अपने उद्देश्य को पूरा कर ले तो इसके संशोधन व इसे समाप्त करने पर भी विचार करना चाहिए। इसकी प्रभावशीलता की समय-समय पर समीक्षा की जा सकती हैं।
- शिक्षा में आरक्षण के बजाय वंचित और पिछड़े वर्गों के छात्रों के लिए स्कॉलरशिप और अन्य वित्तीय सहायता प्रदान की जानी चाहिए ताकि वे प्रतिस्पर्धा में सफल हो सकें। और अन्य वर्गों को भी योग्यता अनुसार समान अवसर मिल सकें।
- आरक्षण की जगह पर सरकार को शिक्षा के क्षेत्र में गुणवत्ता पर ध्यान देना चाहिए। जिससे सभी वर्गों को इसका लाभ मिल सकें। सरकारी स्कूलों और कॉलेजों की गुणवत्ता में सुधार कर इसे सभी के लिए सुलभ बनाया जा सकता हैं।
- समाज में जातिवाद को मिटाने और एकता को बढ़ावा देने के लिए जागरूकता अभियान चलाया जाना चाहिए। इससे समाज में जातिगत भेदभाव कम होगा और आरक्षण की आवश्यकता भी धीरे-धीरे कम हो सकेगी।
- पूर्व की बातों को आज के परिपेक्ष्य में घोलकर राजनीति करने वालों के लिए कठोर दंड का प्रबंध करना चाहिए। जो सभी जातियों के लिए वैमनस्य पैदा करते हैं।
- आरक्षण का लाभ केवल उन लोगों तक सीमित किया जाना चाहिए जो वास्तव में इसके हकदार हैं। उच्च आय वाले और पहले से ही इसका लाभ प्राप्त कर चुके लोगों को आरक्षण से बाहर रखा जाना चाहिए।
- आरक्षण के दुरुपयोग को रोकने के लिए सख्त मानदंड और निगरानी प्रणाली स्थापित करने की आवश्यकता हैं। यह सुनिश्चित करेगा कि आरक्षण का लाभ केवल वास्तविक जरूरतमंदों तक पहुँचे।
- सरकारी और निजी क्षेत्रों में कौशल विकास कार्यक्रम चलाए जाने पर जोर देना चाहिए। जिससे कमजोर वर्गों के लोग अपने कौशल और क्षमताओं को बढ़ा सकें और रोजगार के बेहतर अवसर अपनी कुशलता से हासिल कर सकें।
- सरकार को छोटे और मझोले उद्यमों को प्रोत्साहन देना चाहिए, जिससे वंचित वर्गों के लोग खुद का व्यवसाय शुरू करने में आसानी हो और वे आत्मनिर्भर बन सकें।
- आरक्षण के अलावा, सरकार को सभी वर्गों के विकास के लिए समग्र योजनाएँ बनाने का प्रयास करना चाहिए। जिसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और सामाजिक सुरक्षा शामिल हों।
- समाज में सहानुभूति व संवेदनशीलता की भावना विकसित करने का प्रयास करना चाहिए। जिसमें सभी जातियां एक-दूसरे के प्रति सहिष्णु बन सकें।
- यह भी ध्यान रखने की जरुरत हैं कि कोई भी जाति अपने आप को बड़ा या कोई भी जाति को खुद को छोटा न समझे। हर जाति अपनी काबिलियत और कौशल के सहारे आगे बढ़े। जिससे सम्पूर्ण सनातन धर्म एक हो सकें।
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निष्कर्ष-
आरक्षण भारत में सामाजिक न्याय और समानता को बढ़ावा देने के लिए एक महत्वपूर्ण नीति रही है। यह नीति वंचित और पिछड़े वर्गों को मुख्यधारा में लाने का प्रयास करती है। हालांकि, वर्तमान समय में इसके कुछ दुष्परिणाम भी स्पष्ट हो रहे हैं, जैसे योग्यता की अनदेखी, जातिगत विभाजन, और सामाजिक असमानता का बढ़ना। इन चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए, आरक्षण नीति में सुधार की आवश्यकता है।
आरक्षण का जो लाभ इन शोषित वर्गों को दिया जा सकता था, वह उन्हें नहीं मिल पाया। इसका सम्पूर्ण फायदा जाति आधारित राजनीति करने वालीं खानदानी पार्टियों ने उठाया। जिन्होंने अपने सम्पूर्ण कुनबे इसके आधार पर सशक्त बना लिया और अब भी लगीं हुई हैं। ये जातियां केवल इनके लिए वोटबैंक रहीं और कुछ नहीं।
आरक्षण की प्रभावशीलता की समीक्षा और पुनर्विचार अनिवार्य हो गया है। इसके लिए आर्थिक आधार पर आरक्षण, शिक्षा में सुधार, और कौशल विकास जैसे वैकल्पिक उपायों पर ध्यान देना चाहिए। इसके अलावा, समाज में समानता और समरसता को बढ़ावा देने के लिए जागरूकता अभियान और सामुदायिक विकास योजनाएँ शुरू की जानी चाहिए।
समाज को आरक्षण के साथ-साथ अन्य समग्र विकास योजनाओं की भी आवश्यकता है, ताकि सभी वर्गों को समान अवसर मिल सकें। यह समय की मांग है कि आरक्षण नीति को एक संवेदनशील और न्यायसंगत दृष्टिकोण के साथ लागू किया जाए, जिससे समाज में स्थायी और समावेशी विकास संभव हो सके।
हमारे द्वारा लिखे गए इस लेख पर आप अपने विचार कमेंट बाक्स के माध्यम से दे सकते हैं। आरक्षण के मुद्दे पर हमें अपने विचार जरुर दे। आप के अनुसार क्या इसमें संशोधन होना चाहिए कि नहीं हमें जरुर बताएं। धन्यवाद…
आरक्षण का उद्देश्य क्या है?
आरक्षण का उद्देश्य समाज के पिछड़े और शोषित वर्गों को शिक्षा, रोजगार और अन्य क्षेत्रों में विशेष अवसर प्रदान करना है, ताकि वे समाज में समानता और न्याय की स्थापना कर सकें।
भारत में आरक्षण की शुरुआत कब हुई थी?
भारत में आरक्षण की शुरुआत 1882 में हंटर आयोग की सिफारिशों के आधार पर हुई थी, और छत्रपति शाहूजी महाराज द्वारा 1902 में कोल्हापुर राज्य में पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण लागू किया गया था।
मंडल आयोग की सिफारिशें क्या थीं?
मंडल आयोग ने ओबीसी के लिए 27% आरक्षण की सिफारिश की थी, जिसे 1990 में सरकारी नौकरियों में लागू किया गया।
वर्तमान में भारत में आरक्षण का क्या प्रावधान है?
वर्तमान में भारत में एससी, एसटी, ओबीसी, और ईडब्लूएस वर्गों के लिए विभिन्न क्षेत्रों में आरक्षण का प्रावधान है, जिसमें कुल आरक्षण 49.5 प्रतिशत है।
आरक्षण के क्या नुकसान हो सकते हैं?
आरक्षण के नुकसान में योग्यता की अनदेखी, जातिगत तनाव, जाति आधारित राजनीति को बढ़ावा, और कुछ जातियों के नेताओं को लाभ शामिल हैं, जबकि वास्तव में जरूरतमंद लोग इससे वंचित रह सकते हैं।