One nation-One Election (एक देश-एक चुनाव)- नीति 2023-2024

एक देश-एक चुनाव (One nation-One Election) इसको लेकर आजकल बहुत चर्चा है। सरकार इसके पक्ष में खड़ी नजर आती है। वही विपक्ष इस मुद्दे को लेकर कुछ स्पष्ट नजर नही आता। मोदी सरकार ने इसमें एक कदम आगे बढ़ते हुए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक समिति गठित की है। इस समिति का काम देश की सभी विधानसभाओं और लोकसभा का चुनाव एकसाथ कराने की संभावना तलाशना है। सूत्रों के मुताबिक, समिति सभी संबंधित पक्षों से विचार-विमर्श करेंगी और इसके बाद सरकार को रिपोर्ट देंगी।

मामले के पक्षकारों में सभी राजनीतिक दल और कानूनी विशेषज्ञ शमिल है। इस रिपोर्ट के आधार पर यह तय किया जाएगा कि सरकार एक देश-एक चुनाव (One nation-One Election) की दिशा में आगे बढ़ेगी या नही। देश में 1967 से पहले तक लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एकसाथ होते थे। मौजूदा समय में हर पाँच साल बाद लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए हर 3 से 5 साल में चुनाव होते है।

An image illustrating the concept of 'One nation-One Election,' showing people casting their votes in a unified election system.
Citizens participating in a single, synchronized election process, promoting the ‘One nation-One Election’ initiative.

क्या है यह प्रकिया- What is One nation-One Election process

यह एक ऐसी प्रकिया है जिसमें लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओँ के लिए एक साथ चुनाव कराने का सुझाव दिया गया है। इसका मतलब है कि पूरे देश में चुनाव एक साथ एवं निश्चित समय के भीतर हों।

वर्ष 1967 से पहले देश में इसी अवधारणा के तहत चुनाव आयोजित किये गए, लेकिन कार्यकाल समाप्त होने से पहले विधानसभाओं और लोकसभाओं के बार-बार भंग होने के कारण यह अभ्यास धीरे-धीरे प्रचलन से बाहर हो गया।

वर्तमान में केवल कुछ राज्यों (आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, ओडिशा और सिक्किम) की विधानसभाओं के चुनाव ही लोकसभा चुनावों के साथ होते है।

क्यो जरुरी है यह व्यवस्था- Why is One nation-One Election arrangement necessary

भारत के विधि आयोग द्वारा अगस्त 2018 में एक साथ चुनावों पर जारी मसौदा रिपोर्ट के अनुसार, एक राष्ट्र एक चुनाव के कराने से सार्वजनिक धन की बचत की जा सकती है। प्रशासनिक व्यवस्था और सुरक्षा बलों पर पड़ने वाले तनाव को कम किया जा सकेगा। सरकारी नीतियों का समय पर कार्यान्वयन होगा। और सभी सरकारें चुनाव प्रचार के बजाय विकास गतिविधियों पर ध्यान केंद्रित कर सकेंगी। और विभिन्न प्रशासनिक सुधार भी समय पर कियें जा सकेंगे।

इससे चुनावों में होने वाले खर्चो में भी कमी आएगी। रिपोर्ट के अनुसार, 2019 के लोकसभा चुनावों में 60,000 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे। इस राशि में चुनाव लड़ने वाले राजनीतिक दलों द्वारा और चुनाव आयोग द्वारा चुनाव कराने में खर्च की गई राशि शामिल है। वर्ष 1951-52 में हुए चुनाव में 11 करोड़ रुपये का खर्च हुआ था। पीएम मोदी पहले ही कह चुके है कि एक देश- एक चुनाव से देश के संसाधनों की बचत होगी। इसके साथ ही विकास की गति भी धीमी नही पड़ेगी।

इससे केन्द्र और राज्य सरकारों की नीतियों और कार्यक्रमों में निरंतरता सुनिश्चित करने में भी मदद मिलेगी। वर्तमान में जब भी चुनाव होने वाले होते है तो आदर्श आचार संहिता लागू की जाती है। इससे उस अवधि के दौरान चल रहा लोक कल्याण का कोई भी काम उसमें रोक लग जाती है।

An image illustrating the concept of 'One nation-One Election,' showing people casting their votes in a unified election system.
Citizens participating in a single, synchronized election process, promoting the ‘One nation-One Election’ initiative

चुनौतियाँ क्या है- What are the challenges

एक साथ चुनाव कराने की कई चुनौतियां भी है। इसके लिए राज्य विधानसभाओँ के कार्यकाल को लोकसभा के साथ जोड़ने के लिए संवैधानिक संशोधनों की आवश्यकता होगी। इसके अलावा, लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम के साथ-साथ अन्य संसदीय प्रक्रियाओं में भी संशोधन करने की आवश्यकता होगी।

एक साथ चुनाव का विशेष डर क्षेत्रीय दलों को है, क्योकि इससे चुनाव में स्थानीय मुद्दों की जगह राष्ट्रीय मुद्दे हावी होगें। इसके अलावा वे चुनाव खर्चो में भी राष्ट्रीय दलों से पीछे रह सकते है। देश के संघवाद के लिए एक साथ चुनावों से उत्पन्न चुनौतियों की भी आशंका है।

इससे पहले कब हुए एक साथ चुनाव- When were simultaneous elections held before?

देश की स्वतंत्रता के बाद पहली बार हुए चुनाव 1952 में हुए। तब आम चुनाव पूरे देश मे लोकसभा के साथ सभी राज्यों की विधानसभाओं के लिए भी हुए। परन्तु एक साथ चुनाव का यह सिलसिला 1959 में तब टूट गया। जब केन्द्र की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने अनुच्छेद 356 का उपयोग करते हुए केरल की ईएमएस नंबूदरीपाद की कम्युनिष्ट सरकार को गिरा दिया।

इसके बाद फरवरी 1960 में केरल में फिर से विधानसभा चुनाव हुए। यह मध्यावधि चुनाव का देश में पहला मामला था। इसके बाद 1962 और 1967 में भी लोकसभा के साथ 67 प्रतिशत राज्यों के चुनाव एक साथ ही हुए।

वर्ष 1968 और 1969 में कुछ राज्य विधानसभा अपने निर्धारित कार्यकाल को पूरा नहीं कर सकीं और समय से पूर्व भंग हो गयी। 1967 के चुनाव में कांग्रेस को उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, राजस्थान और मद्रास आदि मे झटका लगा। कई जगह तो कांग्रेस बागियों ने अन्य दलों के साथ मिलकर सरकार बनाई। परन्तु वह कार्यकाल पूरा न कर पायी और गिर गई।

यहां तक की 1970 में लोकसभा भी समय से पहले भंग हो गयी। 1971 में फिर आम चुनाव हुए और इसके बाद पांचवी लोकसभा का कार्यकाल बढ़ाकर 1977 तक कर दिया गया। इसके बाद कई लोकसभा जैसे- छठी, सातवीं, नौवीं, 11वीं, 12वीं और 13वीं भी भंग हो गयी। इस प्रकार 1967 के बाद से कभी एक साथ चुनाव देश में नही हो पाये।

क्या कहता है सविधान- What does the Constitution say?

साल 2018 में भारत के पूर्व चुनाव आयुक्त रहे ओपी रावत के मुताबिक, देश में एक साथ चुनाव कराने के लिए पहले संविधान के 5 अनुच्छेदों में संशोधन करना होगा। इसमें विधानसभाओँ के कार्यकाल और राष्ट्रपति शासन लगाने के प्रावधानों को बदलना होगा।

लॉ कमीशन ने 2018 में कहा था कि वन नेशन, वन इलेक्शन के लिए संविधान संशोधन के साथ-साथ जनप्रतिनिधित्व कानून 1952 में भी संशोधन करना होगा। साथ ही लोकसभा और विधानसभा के संचालन से जुड़े रुल ऑफ प्रॉसीजर में भी बदलाव की जरुरत होगी। इसके लिए संविधान के अनुच्छेद 83 (2), 85, 172,174 और 356 के प्रावधानों में संशोधन करना होगा।

क्या है विपक्षी चुनौतियाँ- What are the opposition challenges?

इस मुद्दे पर विपक्षी को साथ लेना सरकार के लिए अलग चुनौती है। साथ ही क्षेत्रीय दल भी इसमें शामिल नही होना चाहेगें। क्योकि उनके लिए यह उनके अस्तित्व खोनें जैसा है। मोदी सरकार ने विपक्ष की आशंका बढ़ाते हुए 18 सितंबर से संसद का विशेष सत्र बुलाने कि घोषणा की है। एक साथ चुनाव कराने का तात्कालिन रास्ता राजनीतिक भी हो सकता है। इसके लिए केंद्र सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक समिति गठित की है।

इस समिति में लोकसभा में विपक्ष के नेता अधीर रंजन चौधरी सहित सात सदस्य शामिल है, लेकिन चौधरी ने समिति का हिस्सा बनने से इनकार कर दिया है, उन्होंने कहा है कि आम चुनाव के महज कुछ माह पहले संवैधानिक रुप से अव्यावहारिक विचार को राष्ट्र पर थोपने की कोशिश हो रही है। वे इसे स्वीकार नहीं कर सकतें।

कई विपक्षी नेताओं ने इस कदम को नौटंकी करार दिया। साथ ही वही राग की मोदी सरकार लोकतंत्र को खत्म करना चाहती है। विपक्ष इस मुद्दे पर इसलिए भी हमलावर है क्योकि केंद्र ने काग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे की जगह राज्यसभा में विपक्ष के पूर्व नेता ग़ुलाम नबी आजाद को कमिटी में जगह दी है। इस पर विपक्ष ने सरकार की मंशा पर सवाल उठाए है।

कई मामलों में यह क्षेत्रीय पार्टियों के लिए घातक भी है। क्योकि ये पार्टियाँ ज्यादातर क्षेत्रीय मुद्दों पर चुनाव लड़ती है, पर एक देश-एक चुनाव (One nation-One Election) होनें से इनके मुद्दों पर राष्ट्रीय हावी हो जायेगें। फिलहाल सरकार इस मुद्दे पर अपने कदम वापस खींचने के मूड में नजर नहीं आ रही है।

An image illustrating the concept of 'One nation-One Election,' showing people casting their votes in a unified election system
Citizens participating in a single, synchronized election process, promoting the ‘One nation-One Election’ initiative.

किन देशों में लागू है यह व्यवस्था- In which countries is this system applicable?

दुनिया के कई देश है जहां चुनाव एक साथ होते है।

जिनमें स्वीडन, दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील, फिलीपींस, बोलिविया, कोलंबिया, कोस्टोरिका, ग्वाटेमाला, गुयाना और होंडुरास जैसे देश प्रमुख है। स्वीडन मे हर चार साल में आम चुनाव के साथ राज्यों और जिला परिषदों के चुनाव भी होते है। दक्षिण अफ्रीका मे भी आम चुनाव के साथ राज्यों के चुनाव आयोजित होते है। कई अन्य देशों में राष्ट्रपति प्रणाली के तहत राष्ट्रपति और विधायी चुनाव एक साथ होते है।

कितना चुनावी खर्च होता है भारत में- How much election expenditure is incurred in India?

पिछले कुछ दशकों में देखें तो भारत में चुनावी खर्च लगातार बढ़ता जा रहा है। सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि साल 1999 में जब लोकसभा चुनाव हुए थे तो इस पूरी प्रक्रिया में कुल 880 करोड़ रुपये खर्च हुए थे। वही इसके बाद 2004 के चुनाव में यह खर्च बढ़कर 1200 करोड़ हो गया।

2014 और 2019 के चुनावों की बात करें तो क्रमशः खर्च 3870 करोड़ और 6500 करोड़ रुपये आया था। देश के पहले चुनाव के मुकाबले ये 370 गुना ज्यादा है। इसी तरह हर विधानसभा चुनाव में भी लाखों और करोड़ो रुपये खर्च होते है।

चुनाव आयोग की तरफ से लोगों को वोटिंग के प्रति जागरुक करने के लिए भी विज्ञापन पर भी करोड़ो खर्च किए जाते है। साथ ही चुनाव में सुरक्षा के लिए सुरक्षाबल और चुनाव में नियुक्त कर्मचरियों और बाकी चीजों पर भी खर्च होता है। 2019 को पूरे लोकसभा का चुनावी खर्च 60 हजार करोड़ आया था।

इस दौरान एक वोट पर औसतन 700 रुपये खर्च किए गए। अगर लोकसभा क्षेत्र के लिहाज से बात करें तो इस चुनाव में हर लोकसभा क्षेत्र में 100 करोड़ रुपये खर्च हुए थे।

इस मद्दे पर क्या है चुनाव आयोग की राय- What is the opinion of the Election Commission on this issue?

मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार के मुताबिक चुनाव आयोग कानूनी प्रावधानों के अनुसार चुनाव कराने के लिए हमेशा तैयार है। चुनाव कराने का समय संविधान और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम में दिया गया है। संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार आयोग निर्धारित पांच साल का समय समाप्त होने से छह महीने पहले आम चुनावों की घोषणा कर सकता है। विधानसभा के लिए भी मानदंड समान है।

एक देश-एक चुनाव की समिति- Committee of one country-one election-

इस मुद्दे पर बनी समिति ने अपना काम शुरु कर दिया है। समिति ने पहली बैठक में देशभर में लोकसभा, विधानसभा और स्थानीय निकायों के एक साथ चुनाव कराने की संभावना तलाशने के लिए बातचीत की प्रक्रिया शुरु करने की रुपरेखा तैयार की गई। साथ उन पाँच अनुच्छेदों पर भी चर्चा हुई, जिनमें संशोधन की जरुरत है।

बैठक में केन्द्रीय कानून सचिव नितेन चंद्रा व विधायी रीता वशिष्ठ ने मंत्रालय के कुछ अफसरों के साथ समिति के अध्यक्ष रामनाथ कोविंद के साथ बैठक की। इस समिति में आठ सदस्य शामिल है। काग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने इसमें शामिल होने से मना कर दिया है। समिति की बैठक अब नियमित तौर पर होगी।

आगे क्या- what next

  • अब आगे सरकार को इस मुद्दे को बड़ी गम्भींरता के साथ बढ़ाना होगा। क्योकि इस मुद्दे पर विपक्ष एकदम सरकार से उलट है। तो यह भी एक मुद्दा हो सकता है। साथ ही क्षेत्रीय दल भी इसके विऱोध में ही रहेगें।
  • सरकार को चाहिए इस मुद्दे पर जल्दबाजी से बचें और पूरी तरह आश्वस्त होकर इसको आगे बढ़ायें। एक साथ चुनाव की आवश्यकता एवं व्यवहार्यता पर सभी राजनीतिक दलों और राज्यों के बीच आम सहमति का निर्माण किया जाना चाहिये। यह विभिन्न हितधारकों के बीच संवाद, परामर्श और विचार-विमर्श के माध्यम से किया जा सकता है।
  • एक साथ चुनाव को संभव करने के लिए संविधान व जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 और लोकसभा एवं राज्य विधानसभाओं के प्रक्रिया नियम में संशोधन करना होगा। इसके लिए संसद के दोनों सदनों के दो-तिहाई बहुमत और देश के आधे राज्यों की सहमति की आवश्यकता होगी।
  • एक साथ चुनाव के लिए देश के बुनियादी ढाँचे को भी चुस्त करना होगा। जैसे- इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVMS), मतदाता सत्यापित पेपर ऑडिट ट्रेल (VVPAT) मशीन, मतदान केंद्र, सुरक्षा कर्मी आदि में निवेश करना होगा.
  • एक साथ चुनाव कराने के लाभों और चुनौतियों के बारे में देश के मतदाताओं के बीच जागरुकता पैदा करना होगा। और यह सुनिश्चित करना होगा वे बिना किसी भम्र या असुविधा के अपने मताधिकार का प्रयोग कर सकें।
  • सरकार को ऐसा विधिक ढाँचा विकसित करना होगा जिससे कि अविश्वास प्रस्ताव, विधानसभाओं का समयपूर्व विघटन, त्रिशुंक संसद आदि से निपटा जा सकें। साथ ही यह भी देखना होगा कि एक बार एक साथ चुनाव कराने के बाद हर राज्य वह हर बार आगे भी वैसे ही हो सके ना कि वापस पहले जैसा हो जाए।
  • इसके लिए सरकार यह कर सकती है पाँच साल में शुरुआत के छः महीनें सिर्फ चुनाव करा सकती है। और बाकी के बचे चार साल छः महीने देश के विकास कार्यो को दे सकती है।
  • ऐसा सिस्टम तैयार करना चाहिए कि यह व्यवस्था यदि लागू होती है, तो उस अवस्था में राष्ट्रीय मुद्दों के साथ क्षेत्रीय मुद्दों को भी बराबर तरजीह दी जाए। 

निष्कर्ष- conclusion

सरकार को एक देश- एक चुनाव पर जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए। उसे अतिरिक्त अध्ययन, डेटा के मूल्यांकन और इस अवधारणा लागू करने के तरीके पर मतदाताओं, विपक्षी दल के नेताओं एवं स्थानीय दलों से संवाद आमंत्रित करना चाहिए। इस प्रक्रिया में पूरे देश को भागीदार बनने का मौका देना चाहिए। और उन्हे तय करने का अवसर देना चाहिए कि इसकी जरुरत है या नहीं।

इस विषय पर आपकी राय अत्यंत महत्वपूर्ण है तो आप कमेंट के माध्यम से हमें अपनी राय दें।

धन्यवाद….

पहला सवाल: “एक देश-एक चुनाव” क्या है?

एक देश-एक चुनाव” एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें पूरे देश में लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ और निश्चित समय के भीतर होते हैं।

दूसरा सवाल: “एक देश-एक चुनाव” का मुख्य उद्देश्य क्या है?

एक देश-एक चुनाव” का मुख्य उद्देश्य चुनाव से जुड़े खर्चों को कम करना, प्रशासनिक व्यवस्था को सुधारना, और सरकारी नीतियों को समय पर कार्यान्वित करना है।

तीसरा सवाल: “एक देश-एक चुनाव” के विपक्षी चुनौतियाँ क्या हैं?

एक देश-एक चुनाव” के विपक्षी चुनौतियाँ में संविधान में संशोधन करना, क्षेत्रीय दलों को हावी होने की चुनौती, और राष्ट्रीय मुद्दों पर स्थानीय मुद्दों की जगह देने की आवश्यकता है।

Leave a Comment