“दुनिया का सबसे पुराना और प्राचीन धर्म सनातन (SANATAN) धर्म है। कहते है कि इसकी छत्रछाया में सारे सम्प्रदायों ने सांस लेना शुरु किया। कोई नही जानता इसकी शुरुआत कहा सी हुई। इसके कई पौराणिक साक्ष्य है। कोई नही जानता ये कब, कहाँ और कैसे शुरु हुआं। कुछ साक्ष्यों के अनुसार आर्यन् ने इसे भारत में शुरु किया। पौराणिक ग्नन्थों महाभारत ओर रामायण में इसके साक्ष्य मौजूद है। सनातन् जहाँ कोई पैंगंबर या गाँड नही है।
जहाँ संसार के प्राणी मे ईश्वर का वास माना जाता है। सनातन (SANATAN)जीवन जीने का तरीका सीखता है। इसी सनातन (SANATAN)धर्म को आगे चलकर हिंन्दू धर्म कहा गया। जिसने दुनिया को पहला वैद ऋग्वैद दिया। बाद के वर्षो मे सनातन (SANATAN)में कई कुरीतियों ने जन्म ले लिया। जिससे इसमे टूटकर कई और सम्प्रदायों ने जन्म लिया जैसे बौद्ध, जैन, सिक्ख।
यह सब भी हिन्दू धर्म के अर्न्तगत चिन्हित किये जाते है। हिन्दू धर्म के टूटने कई कारण रहे जैसे- छुआछूत,जात-पात, ढोंग आड़्बर जिसके कारण हिन्दू धर्म मे दारार आयी। पहले के काल मे सनातन(SANATAN) मे जाति काम के आधार पर तय की जाती थी पर धीरे-धीरे यह कुल मे जन्म के अनुसार तय की जानी लगी। धीरे-धीरे यह हमारी सभ्यता का हिस्सा बनता चला गया।
हिन्दू धर्म पर बाहर से भी कई आक्रमण हुए वैसे पूर्व मे विदेशी आक्रमण का इस पर कोई खास असर नही पड़ा। भारत मे प्रथम मुस्लिम आक्रमण 700 ईसवी. मे हुआ उसके बाद से ही भारत मे हिन्दू धर्म मे आघात शुरु हो गया। भारत मे टूटती एकता और बिखरती राजनैतिक व्यवस्था के बीच देश मे हिन्दू सस्कृति कमजोर पड़ती गयी। लगातार हो रहे बाहरी आक्रमण तथा बिखरती राजनैतिक के बीच हिन्दू धर्म अपनी ज़डे खोता गया।
भारत मे कई मंदिर तबाह कर दिये गये। कई हिन्दू लिटेचंर को भी तबाह कर दिया गया। कई मुस्लिम आक्रताओं ने भारत में अपनी जड़े जमा ली। तथा मदिरों को तोड़कर मस्जिदों का निर्माण शुरु किया। हिन्दुओं के त्योहारों पर रोक लगा दी गयी तथा बड़े स्तर पर लोगों को मुस्लिम धर्म अपनाने को मजबूर किया गया। हिन्दूओं पर जजियांकर भी लगाया गया।
उसके बाद 18 शताब्दी मे अग्रजों के भारत आगमन से ईसाईयत का प्रचार भारत मे बढ़ गया। इनके द्धारा ईसाई मशीनरीज का आगमन् भारत मे हुआ। जिसने भारत मे बड़े स्तर पर ईसाई धर्म मे परिवर्तन शुरु हुआ। उससे पहले भी 16 वी शताब्दी मे पुर्तगालियों के आगमन् से भारत के एक हिस्से मे गोवा मे ईसाईकरण शुरु हो चुका था। अग्रजों ने भी मशीनरीज को प्रमोट किया ओर भारत मे गुरुकुल शिक्षा पद्धति को समाप्त कर भारत मे अग्रेंजी शिक्षा को प्रमोट किया।”
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सनातन का इतिहास- History of Sanatan
सनातन(SANATAN) धर्म जिसे हिन्दू धर्म या वैदिक धर्म भी कहा जाता है। भारत की पुरातन सभ्यता सिन्धु घाटी सभ्यता में हिन्दू धर्म के कई साक्ष्य मिलते है। कई इतिहासकारों के अनुसार सिन्धु घाटी के निवासी ही आर्य थे।
प्राचीन भारत में सनातन (SANATAN)धर्म में गाणपत्य, शैवदेव, कोटी वैष्णव, शाक्त और सौर नाम के पाँच सम्प्रदाय होते थे। गाणपत्य गणेशकी, वैष्णव विष्णु जी के, शैवदेव भगवान शिव की, शाक्त माता शक्ति की और सौर भगवान सूर्य की किया करते थे। मान्यता यह थी सब एक ही सत्य की व्याख्या है। यह ऋग्वेद, रामायण और महाभारत जैसे लोकप्रिय ग्रन्थों मे भी स्पष्ट रुप में कहा गया है। प्रत्येक सम्प्रदाय के लोग अपने देवता को दूसरे सम्प्रदाय से बड़ा मानते थे। बाद में धर्मगुरुओं ने लोगों को यह शिक्षा देना आरम्भ किया कि सभी देवता समान है और सभी देवता परस्पर एक-दूसरे के ही भक्त है। जिसके बाद सनातन(SANATAN) धर्म की उत्पत्ति हुई।
सनातन (SANATAN)का सम्पूर्ण साहित्य और इतिहास हमारे वेदों, पुराणों, श्रुति, स्मृतियों, उपनिषदों, रामायण, महाभारत, गीता आदि में निहित है।
मध्य भारत में मुस्लिम शासन होने के कारण संस्कृत भाषा को बहुत नुकसान हुआ तथा सनातन (SANATAN)की दुर्गति होना शुरु हो गयी। उस समय में भी संत गोस्वामी तुलसीदास जी, मीरा आदि सनातन(SANATAN) के सतों व भक्तों ने सनातन धर्म के महत्व को अपनी रचनाओं और गीतों से सजोंए रखा।
जब भारत में औपनिवेशिक ब्रिटिश शासन था तब भी सनातन(SANATAN) में बहुत वैमनस्य फैलाया गया। बाद में सनातन (SANATAN)शब्द से अपरिचित होने के कारण व भारत के पुरातन लोगों की सभ्यता जो कि सिन्धु घाटी में पनपी थी तो उन लोगों को हिन्दू कहा जाने लगा।
सनातन का स्वरुप- form of eternal
सनातन का स्वरुप बहुत विशाल है। सनातन (SANATAN)की छाया विश्व की सभी प्राचीन सभ्यताओं में देखनें को मिलती है। सनातन (SANATAN)धर्म में ईश्वर सच्चिदानंद है। अर्थात सत, चित्त और आनंद स्वरुप है। सनातन (SANATAN)शाश्वत है, अर्थात जिसका न आरंभ है और न ही अंत।
इसे ‘इसे वैदिक सनातन वर्णाश्रम धर्म’ भी कहते है जिसका अर्थ है कि इसकी उत्पत्ति मानव की उत्पत्ति से भी पहले से है। विद्वान लोग हिन्दू धर्म को भारत की विभिन्न संस्कृतियों एवं परम्पराओं का सम्मिश्रण मानते है जिसका कोई संस्थापक नही है।
वास्तव में हिन्दू शब्द सभी भारतीयों के लिए प्रयोग में लिया जाता है। हिन्दू शब्द सिन्धु से बना माना जाता है। हिन्दू उस समय धर्म नहीं एक राष्ट्रीयता थीं। उस वक्त भारतवर्ष में रहना वाला हर नागरिक हिन्दू ही था।
ईरानियों ने सिन्धु नदी के पूर्व में रहने वाले लोगों को हिन्दू नाम दिया। जब अरब से मुस्लिम आक्रांता भारत आए, तो उन लोगों ने भारत के मूल धर्मावलम्बियों को हिन्दू कहना शुरु कर दिया। हमारे चारो वेंदों में, पुराणों में, महाभारत में, स्मृतियों में इस धर्म को हिन्दू धर्म नही कहा है, बल्कि वैदिक सनातन वर्णाश्रम धर्म कहा है।
Bose- “The God Father of India” (बोस- “द गॉड फादर ऑफ भारत”) – नजरिया 2023
सनातन के सिद्धान्त- Principles of Sanatan
सनातन में कोई एक सिद्धान्त नही है, जिसमें सभी का मानना जरुरी हो। ये धर्म से बढ़कर जीवन जीने का एक मार्ग है। हिन्दूओं का कोई केन्द्रीय चर्च या धर्मसंगठन नही है और न ही कोई पोप।
इसमें कई मत और सम्प्रदाय है, और सभी को बराबर मान्यता दी जाती है। हिन्दू धर्म के अनुसार संसार के सभी प्राणियों में आत्मा होती है। हिन्दू धर्म में कर्मा में विश्वास किया जाता है। और इसी के अनुसार व्यक्ति को स्वर्ग या नरक मिलता है। हिन्दू धर्म मे पुनः जन्म में भी विश्वास किया जाता है।
प्रमुख सिद्धान्त से जुड़े कुछ मुख्य बिन्दू-
- ईश्वर एक नाम अनेक.
- ब्रह्रा या परम तत्व सर्वव्यापी है।
- ईश्वर से डरने की नहीं बल्कि प्रेंम करने व प्ररेणा लेने की जरुरत है।
- धर्म रक्षा हेतु ईश्वर अनेक बार जन्म लेते है।
- हिन्दुत्व का वास हिन्दू के मन, संस्कार और परम्पराओं में.
- पर्यावरण की रक्षा को उच्च प्राथमिकता.
- हिन्दू दृष्टि समतावादी एवं समन्वयवादी.
- आत्मा अजर-अमर है।
- सबसे बड़ा मंत्र गायत्री मंत्र.
- हिन्दुत्व एकत्व का दर्शन है।
- पुरुषार्थ हिन्दुत्व की पहचान है, और मध्य मार्ग सर्वोत्तम माना गया है।
ब्रह्रा- Brahm
हिन्दू धर्मग्रन्थ उपनिषदों के अनुसार ब्रह्रा ही परम तत्व है। इसका तात्पर्य सृष्टि के रचयिता ब्रह्रामा जी से नही है। इसका तात्पर्य है एक ब्रह्रा जिसमें सब समाहित है। वो ही जगत का सार है, जगत की आत्मा है। वो विश्व का आधार है। उसी से विश्व की उत्पत्ति हुई हुई है, और नष्ट होनें पर उसी में समाहित हो जायेगा। वही परम सत्य, सर्वशक्तिमान और सर्वज्ञ है। वो कालातीत, नित्य और शाश्वत है। वही परम ज्ञान है। ब्रह्रा के दो रुप है- परब्रह्रा और अपरब्रह्रा। परब्रह्रा असीम, अनन्त और शरीर विहीन है। वो सभी गुणों से परे है, पर उसमें अनन्त सत्य, अनन्त चित् और अनन्त आनन्द है।
प्रणव ऊँ (ओम्) ब्रह्रावाक्य है, जिसे सभी हिन्दू परम पवित्र शब्द मानते है। हिन्दू यह मानते है कि ओम् की ध्वनि पूरे ब्रह्राण्ड में गूंज रही है। ध्यान की गहराई में उतरने पर यह महसूस किया जा सकता है। ब्रह्रा की परिकल्पना वेदान्त का केन्द्रीय स्तम्भ है। यह हिन्दू धर्म की विश्व को सर्वोत्तम देन है।
Aditya L-1- Now it’s his turn to be friends with the sun (आदित्य L-1- अब की बारी सूरज से यारी
ईश्वर- God
ईश्वर के मामले में हिन्दू दर्शनों की सोच अलग-अलग है। ईश्वर एक और केवल एक है। वो विश्वव्यापी और विश्वातीत दोनो है। बेशक, ईश्वर सगुण है। वो स्वयंभू और विश्व का सृष्टा है। ईश्वर राग-द्वेष से परे है। वो अपने भक्तों से प्रेम करता है और उनपर कृपा करता है। उसकी इच्छा के बिना इस संसार में एक पत्ता भी हिल नही सकता। वो विश्व की नैतिक व्यवस्था को कायम करते है। श्रीमद्धगवद्गीता के अनुसार विश्व में नैतिक पतन होने पर वो समय-समय पर धरती के उद्धार के लिए अवतार लेते है।
ईश्वर के अन्य नाम- परमेश्वर, परमात्मा, विधाता, भगवान है। इसी को मुसलमान अरबी में अल्लाह और फ़ारसी में खुदा,ईसाई अंग्रेज़ी में गॉड और यहूदी हिब्रू में याह्वेह कहते है।
देवी और देवता- Gods and Goddesses
हिन्दू धर्म में कई देवी-देवता है, ये देवता कौन है, इस बारे में तीन मत है-
- अद्वैत वेदान्त– भगवद गीता, उपनिषद् आदि के मुताबिक सभी देवी-देवता एक ही परमेश्वर के विभिन्न रुप है। परमेश्वर की भक्ति करने के लिए भक्त अपने मन में भगवान को किसी प्रिय रुप में देखता है। ऋग्वेद के अनुसार- “एकं सत विप्रा बसुधा वदन्ति”, अर्थात एक ही परमसत्य को विद्वान कई नामों से बुलाते है।
- योग, न्याय वैशेषिक– अधिकांश शैव और वैष्णव मतों के अनुसार देवगण वो परालौकिक शक्तियां है जो ईश्वर के अधीन हैं मगर मानवों के भीतर मन पर शासन करती है। योग दर्शन के अनुसार ईश्वर ही प्रजापति और इन्द्र जैसे देवताओं के पिता और गुरु है।
- मीमांसा– सभी देवी-देवता स्वतन्त्र सत्ता रखते है। इच्छित कर्म करने के लिये इनमें से एक या कई देवताओं को कर्मकाण्ड और पूजा द्वारा प्रसन्न करना जरुरी है।
ये सभी हिन्दू संस्कृति के अभिन्न अंग है। ये सभी देवता पुराणों में उल्लिखित है और उनकी कुल संख्या 33 कोटि है। ब्रह्रमा, विष्णु और शिव त्रिमूर्ति है। हिन्दू धर्म में गाय को भी माता का दर्जा दिया गया है। यह माना जाता है कि गाय मे 33 कोटि देवी-देवता वास करते है। यहां कोटि का अर्थ प्रकार से है ना कि करोड़ (संख्या) से है।
पांच प्रमुख देव- Five main gods
यह पांचो प्रमुख देवता पूजनीय है। यह एक ही ईश्वर के स्वरुप है।
- सूर्य- स्वास्थ्य, प्रतिष्ठा व सफलता।
- विष्णु- शांति व वैभव।
- शिव- ज्ञान व विघा।
- शक्ति- शक्ति व सुरक्षा।
- गणेश- बुद्धि व विवेक।
धर्मग्रन्थ- religious scriptures
हिन्दू धर्म के पवित्र ग्रन्थों को दो भागों में बाँटा है- श्रुति और स्मृति। श्रुति के अन्तर्गत वेद- ऋग्वेद, सामवेद, युजर्वेद और अथर्ववेद ब्रह्रा सूत्र व उपनिषद् आते है। हर वेद में चार भाग हैं- संहिता-मन्त्र भाग, ब्राह्राण-ग्रन्थ-गघ भाग, जिसमें कर्मकाण्ड समझाये गये है, आरण्यक-इनमें अन्य गूढ बातें समझायी गयी है। उपनिषद्-इनमें ब्रह्रा, आत्मा और इनके सम्बन्ध के बारे में विवेचना की गयी है। स्मृति में वे ग्रन्थ आते है जो पीढ़ी दर पीढ़ी याद किया और बाद में लिखा गया। ये वेदों की अपेक्षा ज़्यादा आसान है। स्मृति ग्रन्थ है-
- रामायण
- महाभारत
- भगवदगीता
- पुराण-18
- मनुस्मृति
- धर्मशास्त्र
- धर्मसूत्र
- आगम शास्त्र।
भारतीय दर्शन के 6 प्रमुख अंग है-
- सांख्य दर्शन
- योग दर्शन
- न्याय
- वैशेषिक
- मीमांसा
- वेदान्त।
हिन्दू तीर्थ- Hindu pilgrimage
भारत को जानने और समझने के लिए जरुरी है कि जीवन में एक बार सम्पूर्ण भारत की यात्रा की जाये। क्योकि भारत की महानता और विविधता इतनी विशाल है कि ये सिर्फ बातों से नही समझी सकती इसके लिए इसें देखना जरुरी है।
आज से 1200 वर्ष पूर्व आदिगुरु शंकराचार्य जी ने सनातन धर्म को पुनः जाग्रत करनें के लिए एक बहुत महत्वपूर्ण कार्य किया। उन्होनें चारों दिशाओं में भारत के छोरों पर, चार पीठ (मठ) स्थापित किये। उत्तर में बदरीनाथ के निकट ज्योतिपीठ, दक्षिण में रामेश्वरम् के निकट श्रंगेरी पीठ, पूर्व में जगन्नाथपुरी में गोवर्धन पीठ और पश्चिम में द्वारिकापीठ। सभी तीर्थों के प्रति हमारें देशवासियों में बड़ी भक्ति भावना है।
इसलिए शंकराचार्य जी ने इन पीठो की स्थापना करके देशवासियों को पूरे भारत के दर्शन करने का सहज अवसर दे दिया। ये चारों तीर्थ चार धाम कहलायें। हिन्दू धर्म में इन चारों धाम की यात्रा को बहुत पवित्र माना गया है। जो भी इस यात्रा को पूरा कर लेता है, उसका जीवन धन्य हो जाता है।
इन चारों पीठों के शंकराचार्यो को हिन्दू धर्म के सर्वोच्च धर्मगुरु माना जाता है।
वर्ण व्यवस्था- Character system
प्राचीन हिन्दू व्यवस्था में वर्ण व्यवस्था का मह्त्व था जिसमें कि चार प्रमुख वर्ण थे- ब्राह्राण,क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र। पहले यह व्यवस्था कर्म प्रधान थी। अगर कोई सेना में काम करता था तो वह क्षत्रिय कहलाता था, चाहे उसका जन्म किसी भी जाति में हुआ हो। लेकिन मध्यकाल में जब भारत कई राज्यों में क्षींण था और उस वह किसी एक सूत्र में नही बंधा था तब कई विदेंशी आक्रमण उस पर हुये जिस कारण वर्ण व्यवस्था का स्वरुप विदेशी आचार-व्यवहार एवं राज्य नियमों के तहत जाति व्यवस्था में बदल गया।
विदेशी आक्रमणकारियों का शासन स्थापित होने से भारतीय जनमानस में भी उन्ही का प्रभाव पड़ा। इन लोगों ने निर्बल भारतीयों का शोषण किया। उन्हे अपनी विस्ठा और मैला ढोने में लगाया। धीरें- धीरें यह व्यवस्था उनके काम से हटकर उनकी जाति से जोड़ दी गयी। अंग्रेजो नें इस व्यवस्था को और विकृत किया एवं जनजातियों को भी शमिल कर दिया।
सन्दर्भ- references
यह एक छोटी सी पहल है हिन्दू या सनातन धर्म को समझने के लिए। आजकल कई नेता सनातन को लेकर भाम्रक राजनीति करते रहते है। कोई इसे मिटानें की बात करता है तो कोई इसकी तुलना कुष्ट रोग और एचआईवी से करता है। पर यह सब बातें उनकी तुच्छ मानसिकता का नतीजा है और यह दिखता है कि सनातन को लेकर उनके अन्दर कितना बवासीर भरा हुआ है। सनातन को लेकर सच्चे हिन्दू धर्मगुरुओं और लोगों के बीच से आवाज उठनी जरुरी है। तभी इस तरीकें के तुच्छ मानसिकता वाले लोगों के दिमाग ठिकानें आएगें। साथ ही अपनें आपकों मजबूत करनें की भी जरुरत है ताकि कोई भी सनातन को हल्कें में न ले सकें।
जिस तरह से जाति व्यवस्था का सहारा लेकर सनातन को टारगेट किया जाता है उसमें भी सुधार करना जरुरी है। क्योकि इसी व्यवस्था का फायदा उठाकर कई मिशनरी निचले जाति के हिन्दू समुदाय को चंद पैसों का लालच देकर धर्म बदलवाने का प्रयास करते है। और कई जगह उसमें सफल भी रहे है। जरुरी यह है कि सनातन का अर्थ स्पष्ट किया जाये। इससे परिपक्व और लोकंतात्रिक धर्म और कोई नही है।
इसी सनातन से कई और सम्प्रदाय भी निकले है- जैसे- सिक्ख, जैन, बौद्ध। सनातन ने बाहर से आयें देशों से भी धर्मो को अपनाया है। चाहे वो पारसी हो,यहूदी हो, ईसाई हो या मुस्लिम धर्म हो। इसने हर किसी को उसकी संस्कृति के साथ अपनाया है। और यही इसकी खूबसूरती है।
सनातन ही सत्य है और सनातन ही शाश्वत है।
धन्यवाद…
सनातन धर्म की शुरुआत कहाँ से हुई थी?
सनातन धर्म की शुरुआत के बारे में कोई निश्चित जानकारी नहीं है, लेकिन कुछ पौराणिक साक्ष्य इसे आर्यों द्वारा भारत में शुरु किया गया बताते हैं।
सनातन धर्म का मुख्य सिद्धान्त क्या है?
सनातन धर्म के मुख्य सिद्धान्त में ईश्वर, कर्म, पुनर्जन्म, और सम्प्रदायों के साथ जीवन का एकत्व और सामंजस्य होने की महत्वपूर्ण भूमिका है।
सनातन धर्म का सबसे प्राचीन ग्रंथ कौन सा है?
सनातन धर्म का सबसे प्राचीन ग्रंथ वेद है, और उनमें से ऋग्वेद प्रमुख है।
What is the significance of the four major pilgrimage sites in Hinduism known as the Char Dham?
The Char Dham, consisting of Badrinath, Rameswaram, Jagannath Puri, and Dwarka, are revered pilgrimage sites in Hinduism. They hold great spiritual importance, and a journey to these places is believed to bring blessings and spiritual purification.
How does the concept of Brahma relate to Hinduism, and what are its two aspects?
In Hinduism, Brahma represents the ultimate reality, often described as the all-encompassing, universal consciousness. There are two aspects of Brahma: Parabrahma, which is formless, infinite, and beyond attributes, and Aparabrahma, which embodies infinite truth, knowledge, and bliss.
What is the Varna system in ancient Hindu society, and how did it evolve over time?
The Varna system was an ancient social hierarchy in Hindu society, comprising four main classes: Brahmins (priests and scholars), Kshatriyas (warriors and rulers), Vaishyas (merchants and farmers), and Shudras (laborers and servants). Over time, this system underwent changes, and external influences led to its transformation into the more rigid caste system.
You are very good writter
🚩Jai sanatan dharma 🚩
good knowledge and Showed mirror to Indians