“हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) भारत का वो हिस्सा जो अपनी प्राकृतिक सौदर्य के लिए मशहूर है। पिछले वर्षों में अपनी प्राकृतिक संबंधीं समस्याओं और चिट्टा तस्करी की समस्या से परेशान रहा। पिछले ही वर्ष वहां भारी बारिश से समस्या उत्पन्न हो गई थी। बढ़ती प्राकृतिक आपदा के लिए पहाड़ी क्षेत्रों में बढ़ती आबादी और अनियित्रिंत तरीके से चलाये जा रहे टूरिज्म के साधन जिम्मेदार है। पिछले कई दशकों में पर्यटन का केंद्र इस पहाड़ी राज्य ने विकास के मामले में मैदानी इलाकों की राह पर चलने की कोशिशें की हैं और स्पष्ट रुप से इसका नतीजा प्राकृतिक आपदाओं में दिख रहा है।”
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हिमाचल का इतिहास- Devbhoomi Himachal Pradesh
हिमाचल प्रदेश का इतिहास उतना ही पुराना हैं, जितना कि मानव अस्तित्व का अपना इतिहास है। क्षेत्र के प्राचीनतम ज्ञात जन जातीय निवासियों को दास कहा जाता था। बाद में आर्य आये और वे जनजातियों में रहने लगे। बाद की शताब्दियों में, पहाड़ी सरदारों ने मौर्य साम्राज्य, कुषाण, गुप्त और कन्नौज शासकों का अधिपत्य स्वीकार किया। 19वीं शताब्दी में महाराजा रणजीत सिंह ने बहुत से राज्यों को अपने अधीनन कर लिया। अंग्रेज जब भारत आये तो उन्होंने गोरखाओं को पराजित किया, बाद मे कुछ राजाओं के साथ उन्होंने संधियाँ की और अन्य राज्यों पर अपना कब्जा जमा लिया।
1947 ई तक स्थिति लगभग वैसी ही बनी रही। स्वतंत्रता के पश्चात क्षेत्र की 30 पहाड़ी रियासतों को एकजुट करके 15 अप्रैल 1948 को हिमाचल प्रदेश की स्थापना की गयी। 1 नवम्बर 1966 को पंजाब के अस्तित्व में आने के बाद कुछ अन्य सम्बंधित क्षेत्रों को हिमाचल में मिला लिया गया। 25 जनवरी 1971 को हिमाचल प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा प्राप्त हो गया। राज्य उत्तर में जम्मू-कश्मीर से, दक्षिण- पश्चिम में पंजाब से, दक्षिण में हरियाणा से, दक्षिण-पूर्व में उत्तराखण्ड से तथा पूर्व में तिब्बत देश की सीमाओं से घिरा है।
हिमाचल प्रदेश पश्चिमी हिमालय के मध्य में स्थित है। इसे देव भूमि भी कहते है। यहां देवी और देवताओं का निवास स्थान माना जाता है। हिमाचल में मंदिरों की समृद्ध विरासत है। समृद्ध संस्कृति विरासत और परम्पराओं ने हिमाचल को देवीय राज्य का दर्जा दिया है। यहां के विशाल पहाड़, साफ नंदियां और हरे-भरे पाइन के पेंड़ इसे और खास बनाते हैं।
वर्ष 1948 में 27,000 वर्ग किमी में फैले हिमाचल को लगभग 30 रियासतों को जोड़कर केंद्र शसित प्रदेश का दर्जा दे दिया गया। तबलासपुर को 1954 में इसमें मिलाने से इसका क्षेत्रफल बढ़कर 28,241 वर्ग किमी हो गया। सन् 1966 में इस केंद्रशासित प्रदेश में पंजाब के पहाड़ी भाग को मिलाकर इस राज्य का पुनर्गठन किया गया और इसका क्षेत्रफल बढ़कर 55,673 वर्ग किमी हो गया। इसे पूर्ण राज्य का दर्जा 25 जनवरी, 1971 को दिया गया।
भूगोल- Geography
ये हिमालय की शिवालिक श्रेणी में आता है। इस पर्वत श्रृखंला से ही घग्गर नदी का उद्गगम होता है। सतलुज और व्यास यहां की प्रमुख नंदियां है। हिमाचल हिमालय का सुदूर उत्तरी भाग लद्दाख के ठंड़े मरुस्थल का विस्ता है और लाहौल या स्पिति जिले के स्पिति उपमंडल में है।
प्रमुख नदियां- Major rivers
यहां पांच प्रमुख नदियां बहती है। इनका स्त्रोत बर्फ से ढ़की पहाड़ियां है। यहां बहने वाली पांच में से चार नंदियों का उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है। उस समय ये अन्य नामों से जानी जाती थीं जैसे अरिकरी(चिनाब), पुरुष्णी (रावी), अरिजिकिया (व्यास) तथा शतदुर्ई (सतलुज) पांचवी नदी (कालिंदी) जो युमनोत्तरी से निकलती है।
1.सतलुज नदी:
– पौराणिक महत्व: सतलुज नदी को पुराणों में “शतद्रु” नाम से जाना जाता है। यह नाम उस समय का दर्शाता है जब यह नदी सौ धाराओं से बहती थी, जिससे इसे “शतद्रु” कहा गया।
– पूर्व में का नाम: प्राचीन काल में, सतलुज नदी को “शतद्रु” या “शतद्रुप” के रूप में जाना जाता था।
2.यमुना नदी:
– पौराणिक महत्व: यमुना नदी को पुराणों में “यमुना” या “यमुनोत्री” के नाम से जाना जाता है, जो माँ यमुना की स्थानीय पूजा के लिए प्रसिद्ध है।
– पूर्व में का नाम: प्राचीन काल में, यमुना नदी को “यमुना” या “यमुनोत्री” के रूप में जाना जाता था।
3. व्यास नदी:
– पौराणिक महत्व: बियास नदी को पुराणों में “विपाशा” के नाम से भी जाना जाता है, जो भगवान विष्णु के अवतार वामन की पूजन स्थली के रूप में महत्वपूर्ण है। यह कुल्लू में व्यास कुड़ से निकलती है। व्यास कुड़ पीर पंजाल पर्वत श्रखृला में स्थित रोहतांग दर्रे में है।
– पूर्व में का नाम: प्राचीन काल में, बियास नदी को “विपाशा” नाम से जाना जाता था।
4. रावी नदी:
– पौराणिक महत्व: रावी नदी को पुराणों में “इरावती” के नाम से भी जाना जाता है, जो ज्वाला माता की स्थली मानी जाती है। रावी नदी मध्य हिमालय की धौलाधार श्रंखृला की शाखा बड़ा भंगाल से निकलती है। रावी नदी भादल और तातगिरि दो खड्डों से मिलकर बनती है। ये खड्डे बर्फ पिघलने से बनते है।
– पूर्व में का नाम: प्राचीन काल में, रावी नदी को “इरावती” नाम से जाना जाता था।
5. चिनाब नदी:
– पौराणिक महत्व: चिनाब नदी का उल्लेख महाभारत, श्रीमद्भागवत, और विष्णुपुराण जैसे पवित्र ग्रथों में मिलता है। वैदिक काल में, इसे अश्किनी या इसकमती के नाम से जानते थे। चिनाब नदी पंजाबी रीति-रिवाजों से जुड़ी हुई है। ये नदी, पंजाबी महाकाव्य हीर-रांझा और सोहनी-महिवाल की कथा में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
– पूर्व में इसे अश्किन के नाम से जानते थे।
हिमाचल का पर्यटन- Tourism of Himachal
पर्यटन उघोग को हिमाचल प्रदेश में उच्च प्राथमिकता दी गई है और हिमाचल सरकार ने इसके विकास के लिए समुचित ढांचा विकसित किया है। जिसमें जनोपयोगी सेवाएं, संचार तंत्र, हवाई अड्डे यातायात सेवाएं, जलापूर्ति और जन स्वास्थ्य सेवाएं शामिल है। राज्य पर्यटन विकास निगम राज्य की आय में 10 प्रतिशत का योगदान करता है। राज्य में तीर्थों और नृवैज्ञानिक महत्व के स्थलों का समृंद्ध भंडार है। राज्य को व्यास, पाराशर, वसिष्ठ, मार्कण्डेय और लोमश आदि ऋषियों के निवास स्थल होने का गौरव प्राप्त है। गर्म पानी के स्त्रोत, ऐतिहासिक दुर्ग, प्राकृतिक और मानव निर्मित झीलें, उन्मुक्त विचरते चरवाहे पर्यटकों के लिए असीम सुख और आनंद का स्त्रोत है।
हिमाचल के पर्यटन आर्कषण- Tourist attractions of Himachal
- चंबा घाटी-
चंबा घाटी रावी नदी के दाएं किनारे पर स्थित है। इसकी ऊंचाई 915 मी. है। यह हिमाचल के निचले हिमालय में स्थित है। यह घाटी रावी नदी के किनारे बसी है। यह घाटी प्रकृति और शांति प्रेमियों के लिए एक बेहतरीन जगह हैं। चंबा घाटी को दूध और शहद की घाटी भी कहा जाता है।
- डलहौजी-
पश्चिमी हिमाचल प्रदेश में डलहौजी नामक यह पर्वतीय स्थान पुरानी दुनिया की चीजों से भरा पड़ा है और यहां राजशाही युग की भव्यता बिखरी पड़ी है। यह लगभग 14 वर्ग किलोमीटर में फैला है। और यहां काठ लोग, पात्रे, तेहरा, बकरोटा और बलूम नामक 5 पहाडियां है। इसें 19वीं शताब्दी में ब्रिटिश गर्वनर जनरल डलहौजी के नाम पर बनाया गया था। इस कस्बे की ऊंचाई लगभग 525 मी. से 2378 मी. तक है। इसके आस-पास विविध प्रकार की वनस्पति पाइन, देवदार, ओक और फूलों से भरे हुए रोडो डेड्रॉन पाए जाते है। बर्फ से ढका हुआ धोलाधार पर्वत भी इस कस्बे से साफ दिखाई देता है।
- धर्मशाला-
धर्मशाला की ऊंचाई 1250 मी. और 2000 मी. के बीच है। प्राकृतिक सुंदरता व संस्कृति का जहां मिलन होता है, वहां, धर्मशाला जैसी जगह का जन्म होता है। दलाई लामा ने भी यहीं शरण ले रखीं है। जहां वे तिब्बत के अधिकारों के लिए लड़ते हैं।
- मनाली-
यह हिमाचल के कुल्लू जिले में स्थित एक अति सुंदर स्थान हैं। यह समुद्र तल से 2050 मी. ऊंचाई पर बसा हैं। मंदिरों से अनोखी चीजों तक, यहां से मनोरम दृश्य और रोमांचकारी गतिवधियां मनाली को हर मौसम में एक लोकप्रिय टूरिस्ट हब बनाती हैं।
- कुल्लू-
कुल्लू नाम की उत्पत्ति कुलान्त पीठ शब्द से हुई है। इसका अर्थ है रहने योग्य दुनिया का अंत। इसे देवताओं की घाटी कहा जाता हैं। इस शहर मन्दिर, सेब के बगान और दशहरा हजारों पर्यटकों को कुल्लू की ओर आकर्षित करते है। यहां के स्थानीय हस्तशिल्प कुल्लू की सबसे बड़ी विशेषता है।
- शिमला-
हिमालय प्रदेश का राजधानी क्षेत्र जो पर्वतीय स्थलों में अपनी अनोखी पहचान के लिए खड़ा है। यहां का नाम देवी श्यामला के नाम पर रखा गया है। जिन्हें मां काली का अवतार माना जाता हैं। शिमला समुद्रतल से 6890 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यहां दिसंबर से फरवरी के बीच भारी बर्फबारी होती हैं। यहां घने जंगल और टेढ़े-मेढ़े रास्ते है। जहां पर हर मोड़ पर मनोहारी दृश्य देखने को मिलते है। शिमला भारत का एक मह्त्वपूर्ण पर्यटन स्थल है। शिमला में दर्शनीय स्थलों के अलावा कई अध्ययन केंद्र भी है। जिनमें डफरिन द्वारा 1884-88 में निर्मित भारतीय उच्च अध्ययन केंद्र बहुत ही प्रसिद्ध है।
- कुफरी-
यह स्थान शिमला के पास स्थित है। हर वर्ष खेल कार्निवाल का आयोजन ठण्ड के मौसम में किया जाता है। जैसे स्काइंग और टोबोगेनिंग के साथ ऊंचाई पर चढ़ना। यह जगह ट्रेकिंग करने वालों व जिसकों रोमांच पंसद है उसके लिए सर्वश्रेष्ठ हैं। वैसे तो हिमाचल खूबसूरती से भरा पड़ा है। वहां अनेकोंनेक सुंदरता के क्षेत्र है। हर साल लाखों सैलानी देश-विदेश से यहां घूमने के लिए आते है। यहां की अर्थव्यवस्था का एक मजबूत पैमाना यहां का पर्यटन है।
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हिमाचल की कला व संस्कृति- Art and culture of Himachal
हिमाचल प्रदेश अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के लिए जाना जाता है, और इसकी पारंपरिक कला और शिल्प इसका एक अनिवार्य पहलू हैं। राज्य की कला और शिल्प में चंबा रुमाल, लघु पेंटिंग, धातु शिल्प, आभूषण और पत्थर पर नक्काशी शामिल हैं।
हिमाचल प्रदेश की कला और शिल्प के प्रसिद्ध हैं। यहां की पश्मीना शाल व रंगीन हिमाचली टोपियां भी प्रसिद्ध है। बुनाई, नक्काशी, पेंटिंग, या चीज़िंग हिमाचलीं लोगों के जीवन का अहम हिस्सा होता है। हिमाचल खास तौर पर कुल्लू ,शॉल डिजाइन करने के लिए प्रसिद्ध है।
पहाड़ी चित्रकला के मुख्य केंद्र थे गुलेर, कांगड़ा, चम्बा, मण्डी, बिलासपुर, कुल्लू. कांगड़ा कलम को लघुचित्र में सबसे उत्कृष्ट माना गया है। कांगड़ा चित्रकला यहाँ की बहुत प्रसिद्ध कला है जो काँगड़ा राजवाड़े दौर की देन है।
हिमाचल प्रदेश में लोक रंगमंच ग्रामीण जीवन का एक अभिन्न अंग है। हर त्यौहार, मेले और समारोह को नृत्य, गायन, संगीत और नाटकीयता सहित लोक प्रदर्शन के साथ मिश्रित किया जाता है।
हिमाचल प्रदेश के कारीगर सुंदर लकड़ी की वस्तुएं बनाते हैं. मंडी, चंबा, किन्नौर और शिमला जैसे स्थान पत्थर शिल्प के लिए जाने जाते हैं।
हिमाचल की राजनीति- Politics of Himachal
हिमाचल प्रदेश में दो प्रमुख पार्टी है जो कि क्रमशः सरकार बनातीं हैं। भाजपा और कांग्रेस।
हिमाचल प्रदेश की विधान सभा में वर्तमान में 68 सीटें हैं जो सीधे एकल-सीट निर्वाचन क्षेत्रों से चुनी जाती हैं। 1956 में राज्य पुनर्गठन अधिनियम के अधिनियमन के कारण 1952 के बाद 15 वर्षों तक कोई चुनाव नहीं हुआ, जिसने हिमाचल प्रदेश को भाग-सी राज्य के बजाय एक केंद्र शासित प्रदेश के रूप में नामित किया, जो राष्ट्रपति के सीधे नियंत्रण में आता था। भारत तदनुसार, विधान सभा भंग कर दी गई।
इसे बाद में 1963 में बदल दिया गया जब केंद्र शासित प्रदेश सरकार अधिनियम पारित किया गया, जिससे हिमाचल को फिर से एक विधान सभा और मुख्यमंत्री प्रदान किया गया। पंजाब पुनर्गठन अधिनियम (1966) पारित होने के बाद 1967 में पहली बार फिर से चुनाव हुए , जिसके तहत कुछ क्षेत्र हिमाचल प्रदेश को हस्तांतरित कर दिया गया। आखिरकार, 1970 में हिमाचल प्रदेश राज्य अधिनियम पारित होने के साथ हिमाचल प्रदेश एक पूर्ण विकसित राज्य (केंद्र का 18वां) बन गया।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का पूरे देश की तरह 1960 और 1970 के दशक की शुरुआत में राज्य विधानसभा पर प्रभुत्व था। राज्य के पहले मुख्यमंत्री यशवन्त सिंह परमार थे , जिन्होंने आज़ादी के बाद इस क्षेत्र के शुरुआती विकास का नेतृत्व किया। परमार को आज भी व्यापक रूप से मनाया जाता है और उन्हें “हिमाचल प्रदेश का संस्थापक” भी कहा जाता है। पार्टी नेताओं के साथ मतभेद के बाद, परमार ने अंततः 1977 में 71 वर्ष की आयु में इस्तीफा दे दिया। ठाकुर राम लाल ने उस वर्ष चुनाव होने तक दूसरे मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया।
हालाँकि, 1977 में, प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी के आपातकाल के पूरे देश में बेहद अलोकप्रिय होने के कारण, कांग्रेस को भारी चुनावी झटका लगा। राज्य पार्टी विपक्षी जनता पार्टी से भारी हार गई और शांता कुमार राज्य के तीसरे मुख्यमंत्री बने। हालाँकि, उनका मंत्रालय केवल 3 वर्षों तक ही चला, और कई पार्टियों के दलबदल के बाद, फरवरी 1980 में कांग्रेस ने सत्ता हासिल की और राम लाल ने एक बार फिर मुख्यमंत्री का पद संभाला। यह प्रशासन भी नहीं चला, और घोटालों और राजनीतिक उथल-पुथल के बाद, राम लाल को 1983 में इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा, एक साल बाद जब उन्होंने दोबारा चुनाव जीता था।
उनकी जगह साथी कांग्रेस नेता वीरभद्र सिंह ने ले ली। 1985 के बाद से, कोई भी मौजूदा पार्टी विधान सभा पर नियंत्रण बनाए रखने में कामयाब नहीं रही है, और हर कुछ वर्षों में सत्ता भाजपा और कांग्रेस के बीच बदल जाती है।
हिमाचल के मौजूदा मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू हैं। वह काग्रेस पार्टी से हैं। इससे पहले वहां बीजेपी के जयराम ठाकुर की सरकार थी।
इसरो का पोलारिमेट्री मिशन- (XPoSat) 2024
हिमाचल की मौजूदा प्राकृतिक स्थिति- Current natural condition of Himachal
वैसें तो हिमाचल प्रदेश अपनी खूबसूरती के लिए फेमस है। परन्तु कुछ वर्षों से वहां प्राकृतिक आपदायें बहुत बढ़ गयी है। इसके लिए बहुत हद तक हम इसके जिम्मेदार है। पहाड़ो पर बढ़ती आबादी और बढ़ता दबाव भी इसके लिए जिम्मेदार है। ऐसा लगता है कि प्राकृतिक आपदाओं से जूझना और इन्हें झेलना हिमाचल प्रदेश की नियति में शुमार हो गया है। प्रकृति ने अगर हिमाचल प्रदेश को अपार सौंदर्य से नवाजा है तो प्राकृतिक प्रकोप व आपदाएं भी इस पर्वतीय राज्य के लोगों को जख्म देती रही है। यहां के नैसर्गिक सौदर्य पर खरोंचे डालती रही है।
पिछले कुछ वर्षों में वहां आग की घटनाएं भी बढ़ी है। जंगल की आग की घटनाएं पहाड़ी राज्य में कई हेक्टेयर वन क्षेत्र को नष्ट कर रही है। जिससे जैव विविधता और वन पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुंच रहा है। इस खतरे को रोकने के लिए राज्य का पुलिस विभाग ने वन कर्मचारियों और गांव के लोगों के बीच आपदा प्रबंधन के कौशल को निखारने का बीड़ा उठाया है।
राज्य सरकार के आंकड़ों से पता चलता है कि वर्तमान (2023-24) वर्ष में राज्य भर में जंगल की आग की 175 घटनाएं दर्ज की गई हैं, जिससे करीब 1,890 हेक्टेयर भूमि प्रभावित हुई है। 2018-19 में, राज्य में जंगल में आग लगने की 2,544 घटनाएं देखी गईं, जबकि 2019-20 में यह आंकड़ा 1,445 था। 2020-21 में जंगल में आग लगने की 1,045 घटनाएं हुईं और 2021-22 में 1,275 आग लगने की घटनाएं सामने आईं। 2022-23 में राज्य के जंगलों में आग की 2,950 घटनाएं हुईं। हिमाचल प्रदेश का भौगोलिक क्षेत्रफल 55,673 वर्ग किमी है जिसमें से 37,033 वर्ग किमी क्षेत्र को वन के रूप में वर्गीकृत किया गया है जो राज्य के भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 66% है।
हिमाचल प्रदेश ने पिछले 50 साल के सबसे भयानक प्राकृतिक आपदा पिछले साल देखी है। साल 2023 में हिमाचल प्रदेश में बाढ़ और बारिश के कारण भारी तबाही हुई थी। 1 अप्रैल से शुरु हुए बाढ़ के दौरान कम से कम 330 लोगों की मौत हो गई। इसके अलावा, 38 लोग लापता हो गए थे और 100 से ज्यादा लोग घायल हुए थे। सरकार के अनुसार राज्य को 11 हजार से ज्यादा घरों और करोड़ों रुपये की संपत्ति को नुकसान हुआ है।
बारिश की तीव्रता को जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है। भूस्खलन के कारण हिमालयन एक्सप्रेसवे और कालका-शिमला रेलवे के खंडों सहित कई सड़कें बह गई। अतिरिक्त बाढ़ और भूस्खलन से कुल 71 लोग मारे गए। शिमला शहर में भारी भूस्खलन से सड़कें और इमारतें नष्ट हो गईं।
निष्कर्ष- conclusion
इस सब बातों से यह निष्कर्ष निकलता है कि जब भी पहाड़ी क्षेत्रों में गलत तरीकें से अतिक्रमण होगा तो प्रकृति अपना रंग दिखाई देंगी। पहाड़ो को पहाड़ ही रहने देना चाहिए मैदान नहीं बनाना चाहिए। वहां इतने ही सैलानियों को आने देना चाहिए जिससे की पहाड़ पर बोझ न पड़े। तथा इतनी आबादी ही बसानी चाहिए जितनी की पहाड़ सह सकें। सरकार या प्रशासन को जनहित को ध्यान में रखकर विकास भी करना चाहिए। जिससे कि प्रकृति भी सही रहे और राष्ट्रीय सुरक्षा भी अपनी जगह बनी रही। धन्यवाद…
प्रश्न:हिमाचल प्रदेश का इतिहास कैसा है?
उत्तर: हिमाचल प्रदेश का इतिहास मानव अस्तित्व से जुड़ा हुआ है, जिसमें प्राचीन जनजातियों से लेकर आर्यों, मौर्य साम्राज्य, गुप्त और अंग्रेजों के अधीनन होने तक कई चरण हैं।
प्रश्न: हिमाचल प्रदेश का असली नाम क्या है और इसे किसने कहा जाता है?
उत्तर: हिमाचल प्रदेश को ‘देवभूमि’ भी कहा जाता है, क्योंकि यहां देवी और देवताओं का निवास स्थान माना जाता है।
प्रश्न: हिमाचल प्रदेश की स्थापना कब हुई और कैसे?
उत्तर: हिमाचल प्रदेश की स्थापना 15 अप्रैल 1948 को हुई, जब 30 पहाड़ी रियासतें एकजुट करके इसे केंद्रशासित प्रदेश बनाया गया।
प्रश्न: कुल्लू घाटी को क्यों ‘देवताओं की घाटी’ कहा जाता है?
उत्तर: कुल्लू घाटी को ‘देवताओं की घाटी’ कहा जाता है क्योंकि यहां के मन्दिर, सेब के बगान और दशहरा उत्सव ने इसे देवताओं की अद्वितीयता के लिए प्रसिद्ध किया है।
प्रश्न: धर्मशाला का महत्व क्या है और किस व्यक्ति ने यहां अपना मुख्यालय बनाया?
उत्तर: धर्मशाला हिमाचल प्रदेश की एक महत्वपूर्ण स्थान है, जिसे दलाई लामा ने अपना मुख्यालय बनाया है।