“यौन शोषण: हमारी सभ्यता की चुप्पी और समाज का असली चेहरा”

“सभ्य समाज क्या है और उसके क्या मूल्य होने चाहिए? यूनिसेफ की हालिया रिपोर्ट बताती है कि वैश्विक स्तर पर 37 करोड़, यानी हर आठ में से एक लड़की, 18 वर्ष की आयु पूरी करने से पहले ही दुष्कर्म या यौन हिंसा का शिकार होती है। यह रिपोर्ट 2010 से 2022 के बीच 120 देशों और क्षेत्रों में किए गए सर्वेक्षण पर आधारित है।

इस रिपोर्ट में न केवल उन किशोर लड़कियों के यौन उत्पीड़न के विषय में बताया गया है, बल्कि यह भी उल्लेख किया गया है कि हर 11 में से एक लड़का भी यौन उत्पीड़न का शिकार होता है। बच्चों के विरुद्ध यौन हिंसा यह दर्शाती है कि सभ्य समाज कहलाने का हमारा दावा कितना खोखला है। जिस समाज को हम सभ्य मानते हैं, वह भीतर से खोखला और असंवेदनशील है।”

“इस ब्लॉग में हम बच्चों और किशोरों पर होने वाली यौन हिंसा पर चर्चा करेंगे। साथ ही, हम सभ्य समाज के असभ्य व्यवहार को भी उजागर करेंगे। तो जुड़े रहिए हमारे ब्लॉग के साथ।”

यौन शोषण केवल एक आपराधिक कृत्य नहीं है; यह हमारे समाज की नींव को हिला देने वाली गंभीर समस्या है। यह वह दर्द है जो पीड़ित के जीवन को न सिर्फ एक पल के लिए, बल्कि अक्सर पूरी उम्र के लिए बदल देता है। इस शोषण का शिकार बनने वाले बच्चों, किशोरों और वयस्कों के लिए यह अनुभव मनोवैज्ञानिक, शारीरिक और भावनात्मक रूप से अत्यधिक घातक साबित होता है।

किसी बच्चे या किशोर के लिए यौन शोषण केवल शारीरिक आघात नहीं होता, बल्कि उनकी मासूमियत को भी छलनी कर देता है। वे उस विश्वास और सुरक्षा की भावना को खो देते हैं, जो उन्हें अपने परिवार, दोस्तों या समाज से मिलनी चाहिए। शोषण के शिकार बच्चे अक्सर यह समझ नहीं पाते कि उनके साथ क्या हुआ है, और उन्हें इस बारे में बात करने से भी डर लगता है। यह दर्द तब और बढ़ जाता है जब शोषणकर्ता कोई परिचित होता है—कोई ऐसा जिसे वे अपना मानते थे। इस विश्वासघात का घाव और गहरा होता है।

सोचिए, एक बच्चा जो स्कूल जाता है, दोस्तों के साथ खेलता है, या अपने माता-पिता के साथ बैठकर खाना खाता है—अचानक उसे इस कड़वी सच्चाई का सामना करना पड़ता है कि जिस व्यक्ति पर वह सबसे ज्यादा विश्वास करता था, वही उसका शोषण कर रहा है। यह वाकई एक असहनीय त्रासदी है।

यूनिसेफ की हालिया रिपोर्ट में बताया गया है कि वैश्विक स्तर पर हर आठ में से एक लड़की और हर 11 में से एक लड़का 18 वर्ष की आयु से पहले यौन शोषण का शिकार होते हैं। यह आंकड़े हमें यह सोचने पर मजबूर कर देते हैं कि हम किस सभ्य समाज में जी रहे हैं? क्या यही वह समाज है जो अपने बच्चों को सुरक्षित नहीं रख सकता?

शोषण का यह दर्द अक्सर पीड़ितों को जीवनभर के लिए मानसिक और भावनात्मक समस्याओं में घेर लेता है। उनमें अवसाद, आत्म-सम्मान की कमी, और सामाजिक अलगाव जैसी समस्याएं पैदा हो सकती हैं। कई बार पीड़ित यह भी सोचने लगते हैं कि इसमें उनकी गलती थी, और इस अपराध का बोझ अपने ऊपर ले लेते हैं।

यहां तक कि समाज भी यौन शोषण के मुद्दे पर बहुत बार मौन रहता है। यह चुप्पी न केवल अपराधियों को बल देती है, बल्कि पीड़ितों को और भी अकेला कर देती है। हमें यह समझना होगा कि यौन शोषण किसी एक व्यक्ति की समस्या नहीं है; यह पूरी मानवता के खिलाफ एक अपराध है।

इस समस्या को समाप्त करने के लिए न केवल कानून को सख्त बनाने की जरूरत है, बल्कि समाज के प्रत्येक व्यक्ति को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। बच्चों को सुरक्षित वातावरण देना, उनके साथ खुले और स्वस्थ संवाद करना, और यौन शोषण के खिलाफ जागरूकता फैलाना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है।

हम एक सभ्य समाज का दावा तभी कर सकते हैं जब हम अपने बच्चों और किशोरों की सुरक्षा सुनिश्चित करें, और यौन शोषण के खिलाफ एकजुट होकर खड़े हों।

  • शोषण के आंकड़े और वास्तविकता-

हिंसा की अवधारणा सिर्फ एक नहीं हो सकती हैं, इसके कई रुप है जिनका इस्तेमाल अपराधी, अपराध करने के लिए अंजाम देता हैं। इसमें शमिल है, शारीरिक हिंसा, मनोवैज्ञानिक हिंसा व संरचनात्मक हिंसा। ज्यादातर मामलों में जिसमें बच्चों व किशोरो के साथ यौन हिंसा की जाती हैं, उन अपराधों में अपराधी जानने वाला ही होता हैं।

  1. कानून प्रवर्तन में रिपोर्ट किए गए यौन शोषण के मामलों में 93 प्रतिशत किशोर पीड़ित को पहचानते थे। जिसमें 59 प्रतिशत परिचित, 34 परिवार के सदस्य व केवल 7 प्रतिशत ही अजनबी थे।
  2. डब्लूएचओ (विश्व स्वास्थ्य संगठन) के अनुसार, 1.5 करोड़ से अधिक किशोर लड़कियों (15-19 वर्ष) ने अपने जीवन में कम से कम एक बार यौन हिंसा का अनुभव किया है।
  3. यूनिसेफ के मुताबिक, दुनिया भर में 4 करोड़ से अधिक बच्चे यौन शोषण के शिकार होते हैं। यह आंकड़ा यौन शोषण के उन मामलों को दर्शाता है जो रिपोर्ट किए गए हैं, लेकिन कई मामलों में शोषण रिपोर्ट नहीं होता, इसलिए वास्तविक संख्या इससे कहीं अधिक हो सकती है।
“यौन शोषण:”Sexual Abuse: The Silence of Our Civilization and the True Face of Society”
  1. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो 2022 के आंकड़ों के अनुसार, भारत में हर साल 32,000 से अधिक यौन शोषण के मामले दर्ज होते हैं। यह केवल दर्ज मामलों की संख्या है; वास्तविक संख्या इससे कहीं अधिक हो सकती है, क्योंकि कई मामले दबा दिए जाते हैं या रिपोर्ट नहीं होते।
  2. पोस्को एक्ट (Protection of Children from Sexual Offences Act, 2012) के तहत, 2021 में 1,49,404 मामले दर्ज किए गए थे, जिनमें बच्चों के साथ यौन हिंसा और शोषण शामिल है।
  3. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-4) के अनुसार, भारत में 15-49 वर्ष की आयु की 7% महिलाएं किसी न किसी रूप में यौन हिंसा का शिकार हो चुकी हैं।
  4. सेव द चिल्ड्रेन की रिपोर्ट के अनुसार, 53% भारतीय बच्चे किसी न किसी रूप में यौन शोषण का सामना करते हैं। इनमें लड़के और लड़कियां दोनों शामिल हैं, और इनमें से अधिकांश मामलों में अपराधी कोई परिचित या पारिवारिक सदस्य होते हैं।
  5. वास्तविकता-

आंकड़ों से परे, यौन शोषण की वास्तविकता बेहद दर्दनाक है। कई पीड़ित कभी खुलकर अपने अनुभवों को साझा नहीं कर पाते, जिससे वे जीवनभर इस आघात को अपने भीतर दबाए रखते हैं। यह सिर्फ शारीरिक नुकसान नहीं, बल्कि मानसिक और भावनात्मक आघात भी है जो अक्सर पीड़ितों को सामाजिक अलगाव, अवसाद और आत्म-सम्मान की कमी की ओर धकेलता है।

ये आंकड़े और वास्तविकताएं यह दर्शाती हैं कि यौन शोषण का मुद्दा केवल कानूनी समस्या नहीं है, बल्कि यह समाज की मूलभूत संरचना पर प्रश्नचिह्न लगाता है। इस समस्या का समाधान केवल कानूनों को सख्त करने से नहीं होगा, बल्कि समाज में जागरूकता बढ़ाने, बच्चों की सुरक्षा को प्राथमिकता देने, और यौन शोषण के खिलाफ कड़े कदम उठाने की आवश्यकता है।

शोषण के ये आंकड़े न केवल हमारी आंखें खोलते हैं, बल्कि हमें यह भी सोचने पर मजबूर करते हैं कि हम एक सभ्य समाज के रूप में कहां खड़े हैं।

जब हम यौन शोषण की बात करते हैं, तो अक्सर हमारा ध्यान केवल लड़कियों की ओर जाता है। यह सही है कि लड़कियां बड़े पैमाने पर यौन शोषण का सामना करती हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि लड़के भी इस क्रूरता के शिकार होते हैं? समाज में यह धारणा बनी हुई है कि लड़के इस तरह के उत्पीड़न से सुरक्षित रहते हैं, जबकि हकीकत यह है कि शोषण का दर्द लड़के और लड़कियों दोनों को समान रूप से सहना पड़ता है।

लड़कियों पर शोषण का असर लड़कियों के साथ होने वाला यौन शोषण अक्सर बचपन की मासूमियत को छीन लेता है। वे डर, अपराधबोध और शर्म के साये में जीने लगती हैं। एक छोटी सी बच्ची, जो जीवन को खुली आंखों से देखने का सपना देख रही होती है, अचानक से एक ऐसे भयानक अनुभव से गुजरती है जिसे शब्दों में बयां करना मुश्किल होता है। वह खुद को दोषी मानने लगती है, जबकि अपराधी खुला घूमता रहता है। इस डर के कारण, कई लड़कियां अपनी कहानियों को छिपाए रखती हैं और समाज में उन्हें न्याय नहीं मिल पाता।

लड़कों का दर्द: अनसुनी कहानियां दूसरी तरफ, लड़कों का दर्द अक्सर अनसुना रह जाता है। हमारे समाज में लड़कों को मजबूत, निडर और “सुरक्षित” मानने की मानसिकता ने उनके साथ हो रहे शोषण को अनदेखा कर दिया है। एक मासूम लड़का, जिसे शायद ही कभी यौन शोषण की संभावना के बारे में बताया जाता है, अचानक से उस अनुभव से गुजरता है जो उसे अंदर से तोड़ देता है। उसे सिखाया जाता है कि “लड़के रोते नहीं”, लेकिन यह कहावत उसकी पीड़ा को और बढ़ा देती है।

“भारत में सामान्य जागरूकता: नियमों की अनदेखी और जिम्मेदार नागरिकता की दिशा में कदम 2024”

शोषण का शिकार लड़के भी उसी मानसिक और भावनात्मक आघात से गुजरते हैं, जिससे लड़कियां गुजरती हैं। परंतु उनके लिए अपनी भावनाओं को व्यक्त करना और भी कठिन हो जाता है, क्योंकि समाज उन्हें सुनने को तैयार नहीं होता। ऐसे में लड़कों की कहानियां कहीं खो जाती हैं, और वे अंदर ही अंदर इस दर्द को सहते रहते हैं।

समाज का दोहरा मापदंड समाज का यह दोहरा मापदंड—जहां लड़कियों के शोषण पर तो कभी-कभी चर्चा होती है, लेकिन लड़कों के शोषण को एक “असामान्य घटना” मानकर नजरअंदाज कर दिया जाता है—हमारे सभ्य समाज की असल तस्वीर पेश करता है। शोषण चाहे किसी भी लिंग के व्यक्ति के साथ हो, उसका असर गहरे घाव की तरह होता है, जो जिंदगी भर भरने का नाम नहीं लेता।

कैसे बदलें यह सोच? हमें समझना होगा कि यौन शोषण का दर्द सिर्फ एक लिंग तक सीमित नहीं है। यह वह जहर है, जो लड़के और लड़कियों दोनों को समान रूप से निगलता है। इस दर्द को समझना, इस पर खुलकर बात करना, और पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए हमें समाज में एक नई सोच पैदा करनी होगी।

यौन शोषण की घटनाओं में सबसे दर्दनाक सच्चाई यह है कि ज्यादातर मामलों में अपराधी कोई अजनबी नहीं, बल्कि पीड़ित का जान-पहचान वाला होता है। यह कोई रिश्तेदार, दोस्त, पड़ोसी, या फिर कोई ऐसा व्यक्ति हो सकता है जिस पर पीड़ित को पूरा भरोसा हो।

जब किसी करीबी व्यक्ति द्वारा शोषण होता है, तो पीड़ित का विश्वास पूरी तरह से टूट जाता है। यह विश्वासघात न केवल शारीरिक आघात का कारण बनता है, बल्कि पीड़ित के मानसिक और भावनात्मक जीवन को भी गहरे घाव दे जाता है।

"यौन शोषण:"Sexual Abuse: The Silence of Our Civilization and the True Face of Society"
“यौन शोषण:”Sexual Abuse: The Silence of Our Civilization and the True Face of Society”

सबसे खतरनाक बात यह है कि ऐसे मामलों में पीड़ितों को अपनी कहानी बताने में बहुत मुश्किल होती है, क्योंकि उन्हें डर होता है कि समाज उन्हें दोषी मान सकता है, या फिर उनके परिवार का कोई करीबी रिश्ते में दोषी हो।

यौन शोषण में जान-पहचान वालों की भूमिका इस बात को और भी अधिक खतरनाक बना देती है, क्योंकि यह उन लोगों के प्रति हमारे भरोसे और सुरक्षा की भावना को तोड़ता है, जिनके साथ हम अपने जीवन का हिस्सा साझा करते हैं।

  • क्यों होते हैं अपने ही दोषी?

अपने ही लोग दोषी क्यों बनते हैं—यह सवाल जितना सीधा लगता है, इसकी सच्चाई उतनी ही जटिल और दुखद है। अक्सर ऐसे लोग जिन्हें पीड़ित पर पूरा विश्वास और पहुंच होती है, अपनी ताकत, भरोसे और अवसर का गलत इस्तेमाल करते हैं। वे यह जानते हैं कि पीड़ित, खासकर बच्चे और किशोर, उनके खिलाफ बोलने से कतराएंगे या समाज की शर्म से चुप रह जाएंगे।

कई बार बड़े, बच्चों द्वारा कहने पर भी नहीं समझ पाते हैं। क्योकि उन्हें लगता हैं, कि बच्चे बचपना कर रहे हैं। आजकल के अभिभावक भी बच्चों को सिर्फ पैसों के बल पर खुश रखना चाहते हैं। उन्हें समय नहीं दे पाते ये दूरियां भी कभी-कभी इन घटनाओं का कारण बनतीं हैं।   

कई बार ये दोषी लोग भावनात्मक रूप से भी पीड़ितों को बांध लेते हैं, जिससे वे डर और गिल्ट में उलझकर खुद को दोष देने लगते हैं। यह कड़वी सच्चाई हमें यह समझाती है कि शोषण केवल बाहरी खतरों से ही नहीं, बल्कि उन लोगों से भी है जिन पर हम सबसे ज्यादा भरोसा करते हैं।

यौन शोषण जैसे गंभीर मुद्दे पर चर्चा करना हमारी जिम्मेदारी है, लेकिन समाज में इस पर अक्सर चुप्पी ही छाई रहती है। हम इसे शर्म या डर से दबा देते हैं, जबकि पीड़ितों को सहारे और समझ की जरूरत होती है। सवाल यह है—कब तक हम इसे अनदेखा करेंगे? यह विषय केवल व्यक्तिगत नहीं, बल्कि सामूहिक जागरूकता और बदलाव की मांग करता है।

समाज की इस चुप्पी को तोड़ना और यौन शोषण पर खुलकर बात करना अब जरूरी हो गया है। यही सही वक्त है कि हम इसे नजरअंदाज करने की बजाय इससे जुड़े सच को उजागर करें, ताकि भविष्य में कोई और पीड़ित इस भयावह अनुभव से न गुजरे।

यौन शोषण रोकने के लिए हर व्यक्ति को अपनी भूमिका निभानी होगी। समाज के हर सदस्य—चाहे वह अभिभावक हों, शिक्षक, या मित्र—को अपने आसपास के बच्चों और युवाओं को यह सिखाना चाहिए कि वे किसी भी अनुचित स्पर्श या व्यवहार के खिलाफ आवाज उठाएं। परिवारों को बच्चों के साथ खुले संवाद की पहल करनी चाहिए, ताकि वे बिना डरे अपनी समस्याओं को साझा कर सकें। स्कूलों और संस्थानों में यौन शिक्षा को अनिवार्य बनाकर बच्चों को उनके अधिकारों और आत्म-सुरक्षा के तरीकों से अवगत कराया जा सकता है।

इसके साथ ही, समाज में जागरूकता फैलाने के लिए कार्यक्रम, वर्कशॉप और मीडिया का सहारा लिया जाना चाहिए, ताकि हर कोई समझ सके कि यौन शोषण के खिलाफ आवाज उठाना उनकी जिम्मेदारी है। यह प्रयास तब तक जारी रहना चाहिए, जब तक हम एक ऐसा माहौल न बना लें, जहां हर व्यक्ति सुरक्षित और सम्मानित महसूस कर सके।

भारत का ताज: जम्मू-कश्मीर का इतिहास, संघर्ष, और कश्मीरी पंडितों का नरसंहार”- भाग-2

  • पीड़ितों के लिए सहायता और समर्थन-

यौन शोषण के बाद पीड़ितों को तुरंत सहारे और समर्थन की आवश्यकता होती है। सबसे पहले, उनके परिवार और दोस्त यह सुनिश्चित करें कि पीड़ित अकेला महसूस न करें और उन पर किसी भी प्रकार का दोष न मढ़ा जाए। उनके अनुभवों को बिना किसी आलोचना या संकोच के सुना जाना चाहिए, ताकि वे खुलकर अपनी भावनाएं साझा कर सकें।

मनोवैज्ञानिक सहायता बेहद महत्वपूर्ण है, जो पीड़ित को आघात से उबरने और सामान्य जीवन में वापस आने में मदद करती है। कई बार पीड़ित आत्मग्लानि और अवसाद का सामना करते हैं, ऐसे में पेशेवर काउंसलिंग उनकी मानसिक और भावनात्मक स्थिति को संभालने में मददगार होती है। इसके अलावा, कानूनी सहायता उन्हें न्याय पाने के लिए आवश्यक है। समाज और संस्थाओं को मिलकर यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हर पीड़ित को सहारा मिले और वे न्याय की लड़ाई में मजबूती से खड़े हो सकें।

यौन शोषण को रोकने में शिक्षा और जागरूकता सबसे प्रभावी साधन हैं। यौन शिक्षा से बच्चों और युवाओं को सही-गलत का भेद समझ में आता है, जिससे वे किसी भी अनुचित व्यवहार के खिलाफ जागरूक हो पाते हैं। स्कूलों और घरों में खुले संवाद से बच्चों में आत्म-सुरक्षा और आत्मविश्वास बढ़ता है।

इसके अलावा, समाज में जागरूकता अभियान चलाना, जैसे कि वर्कशॉप और मीडिया में जानकारी फैलाना, सभी को यौन शोषण के खिलाफ सतर्क करता है। इससे न केवल पीड़ित बल्कि समाज का हर व्यक्ति समझ पाता है कि किसी के साथ गलत होने पर कैसे आवाज उठानी है। जागरूकता और शिक्षा ही वो रास्ता है जो हमें सुरक्षित और सम्मानजनक समाज की ओर ले जा सकता है।

भारत में यौन शोषण के खिलाफ कई कठोर कानून बनाए गए हैं, जो पीड़ितों को न्याय दिलाने और दोषियों को सजा दिलाने का कार्य करते हैं। प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस एक्ट (POCSO), 2012 बच्चों को यौन उत्पीड़न, यौन शोषण और अश्लीलता से बचाने के लिए विशेष रूप से लागू किया गया है। इसके साथ ही, भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 354 (छेड़छाड़), धारा 375 (बलात्कार), और धारा 376 (बलात्कार की सजा) में भी ऐसे अपराधों के लिए सख्त प्रावधान हैं। इसके अलावा, यौन शोषण की शिकायत दर्ज करने के लिए पुलिस को निर्देशित किया गया है कि वे संवेदनशीलता से इस तरह के मामलों को लें और पीड़ित की गोपनीयता सुनिश्चित करें।

समाज की भूमिका भी इस बदलाव में उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी कानून की। समाज को ऐसे मामलों पर चर्चा को बढ़ावा देना चाहिए, ताकि पीड़ित बिना डर के अपने अनुभव साझा कर सकें। हर नागरिक की जिम्मेदारी है कि वे यौन शोषण के किसी भी संकेत को गंभीरता से लें और पीड़ितों का मनोबल बढ़ाएं, साथ ही अपराधियों को बढ़ावा न दें।

स्कूलों, कार्यस्थलों, और सार्वजनिक स्थानों पर जागरूकता अभियान चलाकर और यौन शोषण के प्रति संवेदनशीलता बढ़ाकर समाज को एक सुरक्षित वातावरण बनाने की ओर प्रेरित किया जा सकता है। यह बदलाव तभी संभव होगा जब कानून का पालन हो और समाज भी अपनी जिम्मेदारी को समझे, ताकि हम एक सुरक्षित, जागरूक और सशक्त समाज बना सकें।

यौन शोषण जैसी भयावह समस्या हमारे समाज का कड़वा सच है, जिसे नजरअंदाज करना और उस पर चुप्पी साध लेना हमारे भविष्य के लिए खतरे की घंटी है। यह सिर्फ एक अपराध नहीं, बल्कि उन मासूम ज़िंदगियों की चीख है, जिन्हें सुनने की हिम्मत हमें करनी होगी। हम एक सभ्य समाज का दावा करते हैं, तो फिर इस दर्दनाक मुद्दे पर क्यों नहीं खुलकर बात करते?

हर बच्चे और युवा को यह विश्वास दिलाना हमारी जिम्मेदारी है कि उनकी सुरक्षा और सम्मान सर्वोपरि है। हमें अपने परिवारों, स्कूलों, और समाज में इस संवेदनशीलता को बढ़ावा देना होगा ताकि कोई भी पीड़ित अपनी आवाज़ दबाकर न जीए। आइए हम इस बदलाव की शुरुआत अपने घरों से करें, और एक ऐसा समाज बनाएं जो हर इंसान की गरिमा और सुरक्षा की कद्र करता हो।

इस ब्लॉग के माध्यम से हमने इस विषय को गहनता से उठाने का प्रयास किया है। हमें आपके विचारों का इंतजार रहेगा। धन्यवाद!

प्रश्न 1: सभ्य समाज की परिभाषा क्या है?

उत्तर: सभ्य समाज वह होता है जो नैतिकता, सहानुभूति, और संवेदनशीलता का पालन करता है। ऐसे समाज में बच्चों और महिलाओं की सुरक्षा की प्राथमिकता होती है, और हर व्यक्ति के अधिकारों का सम्मान किया जाता है।

प्रश्न 2: बच्चों पर यौन शोषण का समाज पर क्या प्रभाव पड़ता है?

उत्तर: बच्चों पर यौन शोषण समाज की असंवेदनशीलता को उजागर करता है और इस बात का संकेत है कि समाज अपनी नैतिक जिम्मेदारियों का पालन नहीं कर रहा है। यह अपराध केवल पीड़ित के जीवन को नहीं, बल्कि पूरे समाज की नींव को हिला देता है।

प्रश्न 3: बच्चों और किशोरों को यौन शोषण से कैसे बचाया जा सकता है?

उत्तर: बच्चों और किशोरों को सुरक्षित रखने के लिए खुली बातचीत, यौन शिक्षा और सतर्कता बेहद आवश्यक है। परिवार और समाज को मिलकर बच्चों में आत्म-सुरक्षा की भावना और गलत व्यवहार के खिलाफ आवाज उठाने का साहस पैदा करना चाहिए।

प्रश्न 4: यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार यौन शोषण से जुड़ी क्या स्थिति है?

उत्तर: यूनिसेफ की रिपोर्ट बताती है कि वैश्विक स्तर पर हर आठ में से एक लड़की और हर 11 में से एक लड़का 18 वर्ष की उम्र से पहले यौन शोषण का शिकार होता है। यह आंकड़े हमें सोचने पर मजबूर करते हैं कि समाज की सुरक्षा व्यवस्था कितनी कमजोर है।

प्रश्न 5: यौन शोषण के शिकार बच्चों के मनोवैज्ञानिक प्रभाव क्या हो सकते हैं?

उत्तर: यौन शोषण के शिकार बच्चों में अवसाद, आत्म-सम्मान की कमी, और समाज से अलगाव जैसी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। यह पीड़ित के मानसिक और भावनात्मक विकास पर स्थायी नकारात्मक प्रभाव डालता है, जिसे दूर करने के लिए मनोवैज्ञानिक सहारा जरूरी है।

Leave a Comment