नया संसद भवन (New Parliament) – गरीब की कुटिया
’11 जुलाई 2022′ को निर्माणाधीन नये संसद भवन (New Parliament)की छत पर बनकर तैयार हुआ 6.5 मी. ऊँचा “अशोक स्तम्भ” का ‘उद्घाटन’ प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी जी द्वारा होने के बाद “नये संसद भवन” को बनाने में जुटे “मजदूरों” से “नरेंद्र मोदी” जी ने बातचीत की थी!
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“जहाँ एक मजदूर/श्रमिक ने नये संसद भवन को ‘कुटिया’ की संज्ञा देते हुए ‘शबरी माँ’ से और उस कुटिया में “PM नरेंद्र मोदी” जी के आगमन को “भगवान श्री राम जी” से तुलना कर दी थी”
इस बात पर प्रधानमंत्री जी ने कहा था कि नई संसद हर गरीब का घर है।
’26 मई 2014′ को नरेंद्र दामोदर दास मोदी जी ने प्रधानमंत्री के रूप में ‘शपथ’ ग्रहण की थी। और ’26 मई 2023′ को ‘9वीं वर्षगांठ’ पूर्ण होने पर ‘28 मई 2023′ को होने जा रहा “नये संसद भवन” का ‘उद्घाटन’ उन मजदूर या श्रमिकों से कराया जाये जो नये संसद भवन को बनाने में जुटे थे! जिन्हें प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने “नये संसद” भवन निर्माण में शामिल ‘श्रमजीवी’ के प्रयासों पर गर्व एवं देश में उनके योगदान की सराहना की थी !
PM साहेब ने जैसा कहा था कि “हर गरीब को लगना चाहिये कि यह उनकी कुटिया है ” और हमारे देश में उनके योगदान को हमेशा याद रखा जायेगा! लेकिन 28 मई 2023 को होने जा रहा नये संसद भवन का उद्घाटन को कई राजनैतिक विपक्ष पार्टियों ने विरोध करते हुए नये संसद भवन के उद्घाटन समारोह के बहिष्कार का भी ऐलान कर दिया हैं!
ऐसे में इन सभी विपक्ष पार्टियों के बहिष्कार को डाउन करने व विपक्ष की बोलती बंद एवं विपक्ष के विरोध को मात देने के लिये उन्हीं “मजदूर/श्रमिकों” से नये संसद भवन का उद्घाटन करा दिया जाए जो नये संसद भवन निर्माण में जुटे थे!
एक कहावत है कि – सांप भी मर जायेगा और लाठी भी नहीं टूटेगी!
लेकिन क्या प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ऐसा करेंगे या क्या अपने वक्तव्य पर अटल रहते है? यदि ऐसा होता है तो श्रमिकों को भी पूर्ण सम्मान मिलेगा साथ ही प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी का भी वर्चस्व पूर्ण रूप से कायम रहेगा!
यदि नये संसद भवन की बात करें तो 28 महीने में बनकर तैयार हुई बिल्डिंग प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने 10 दिसंबर 2020 को नए संसद भवन के निर्माण कार्य का शिलान्यास किया था. इस नयी संसद (New Parliament) के बनाने को लेकर 5 अगस्त, 2019 को दोनों सदनों ने मांग की थी. नयी संसद (New Parliament) का टेंडर साल 2020 में ‘टाटा प्रोजेक्ट’ को दिया गया था. इसकी लागत 861 करोड़ रुपये मानी गई थी. कुछ कामों के चलते बाद में यह कीमत 1200 करोड़ हो गयी।
चार मंजिला संसद भवन में सदस्यों के लिए लाउंज, पुस्तकालय, समिति कक्ष के साथ ही पार्किंग के लिए भी पर्याप्त जगह है. वर्तमान में लोकसभा में 550 और राज्यसभा में 250 सदस्यों के बैठनें की व्यवस्था है. लेकिन नयी संसद (New Parliament) भवन में सदस्यों के बैठनें के लिए लोकसभा में 888 और राज्यसभा में 384 सीटों की व्यवस्था की गई है।
Bhagat Singh- Young Pride Pride |भगत सिंह- युवा गौरव अभिमान
अलग बनाए गए ऑफिस-
नए बने संसद भवन में कई मुख्य कामों के लिए अलग-2 ऑफिस बने हुए है। जिसमें सभी आधुनिक सुविधाएं प्रदान की गई है। तमाम तरह के आधुनिक सुविधाओं से कैफे, डाइनिंग एरिया को लैंस किया गया है। कॉमन रुम्स, महिलाओं के लिए लाउंज और वीआईपी लाउंज की भी व्यवस्था की गई है।
सविधान हॉल-
सविधान हाल नये भवन के बीचोबीच बनाया गया है। इसी के शीर्ष पर अशोकस्तंभ को लगाया गया है। इसी हाल में सविधान की कॉपी रखी जाएगी। हाल में सुभाषचन्द्र बोस, महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरु व देश के प्रधानमंत्रियों की बड़ी तस्वीरं भी लगाई गई है।
निर्माण के लिए कहां से मगाई गई सामग्री-
नये भवन के निर्माण में लगा बलुआ पत्थर राजस्थान से, सागौन की लकड़ी महाराष्ट्र से मंगाई गई है। कार्पेट उत्तर प्रदेश से लाए गए हैं। त्रिपुरा की राजधानी अगरतला से बांस की लकड़ी की फ्लोरिंग मंगवाई गई है। स्टोन जाली वर्क्स राजस्थान के राजनगर और उत्तर प्रदेश के नोएडा से लिए गए है। अशोक प्रतीक को महाराष्ट्र से और राजस्थान से लाया गया है। अशोक चक्र मध्य प्रदेश के से मगांया गया है। राजस्थान के जैसलमेर से लाल लाख लाया गया है।
राजस्थान के शहर अंबाजी से ही सफेद संगमरमर पत्थर खरीदे गए है। केसरिया ग्रीन स्टोन उदयपुर से मंगवाया गया है। एम-सैंड को हरियाणा के चकरी दादरी, फ्लाई ऐश ब्रिक्स को एनसीआर हरियाणा और उत्तर प्रदेश से आया था। अहमदाबाद से ब्रास वर्क और प्री-कास्ट ट्रेंच आए थे। केंद्रशासित प्रदेश दमन और दीव से फाल्स सीलिंग स्टील संरचना आयी थीं।
सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट का है हिस्सा-
नये भवन को एक रिकार्ड समय में बनाकर तैयार किया गया है। यह सरकार के सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट का हिस्सा है। इसको बनाने की शुरुआत 15 जनवरी 2021 से की गई थी। इसे बनाने का टेंडर टाटा प्रोजेक्ट को साल 2020 के सितंबर मे दिया गया था। नए संसद भवन के आर्किटेक्ट बिमल पटेल है। नया संसद भवन पूरी तरह से भूंकपरोधी है।
नयी संसद की जरुरत क्यों पड़ी-
- अधिक जगह की आवश्यकता-
- सरकारी डेटा के अनुसार वर्ष 1927 में निर्मित मौजूदा संसद भवन को एक पूर्ण लोकतंत्र के लिए द्विसदनीय विधायिका को समायोजित करने हेतु डिजाइन नहीं किया गया था।
- वर्तमान संसद की संख्या वर्ष 1971 की जनगणना के परिसीमन के आधार पर तय की गई थी। पुरानी संसद में बैठनें की व्यवस्था बहुत तंग हो गई थी।
- सयुक्त सत्रों के दौरान बैठने की सीमित क्षमता समस्या को बढ़ा देती थी। इसके अलावा, आवागमन के लिये जगह की कमी उल्लेखनीय सुरक्षा जोखिम उत्पन्न करती थी। वर्ष 2026 के बाद समस्या में व्यापक वृद्धि होने की संभावना थी क्योंकि सीटों की कुल संख्या पर रोक वर्ष 2026 तक के लिये ही लागू है।
- विरासत का विस्तार-
- वर्ष 1927 में कमीशन किया गया मौजूदा संसद भवन लगभग एक शताब्दी पुरानी विरासत है जो हेरिटेज ग्रेड-1 इमारत है। गुजरते वर्षो में संसदीय गतिविधियों और उपयोगकर्ताओं में पर्याप्त वृद्धि के साथ इस भवन की आयु और सीमित अवसंरचना अब जगह, सुविधाओं एवं प्रौघोगिकी के संदर्भ में वर्तमान आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर पाती है।
- हेरिटेज ग्रेड-1 में राष्ट्रीय या ऐतिहासिक मह्त्व के ऐसे भवन और परिसर शामिल है जो स्थापत्य शैली, डिज़ाइन, प्रौघोगिकी एवं भौतिक उपयोग और सौंदर्य में उत्कृष्टता रखते है। जो इस भूभाग के प्रमुख ऐतिहासिक स्थल या लैंडमार्क रहे है। सभी प्राकृतिक स्थल भी ग्रेड-1 के अंतर्गत शामिल होते है।
- अवसंरचना संबंधी संकट-
- तदर्थ निर्माण और संशोधनों ने संसद भवन के बुनियादी ढ़ाँचे पर दबाव बढ़ाया है। जल आपूर्ति, एयर कंडीशनिंग और सीसीटीवी कैमरों जैसी आवश्यक सेवाओं को जोड़े जाने से रिसाव की समस्या हुई है। जिसने भवन के सौदर्य को प्रभावित किया है।
- इसके अलावा, पुरानी पड़ चुकी संचार संरचनाएँ और अपर्याप्त अग्नि सुरक्षा उपाय उपस्थित लोगों की सुरक्षा के बारे में चिताएँ उत्पन्न करते है।
- संरचनात्मक सुरक्षा संबधी चिंताएँ-
- पुरानी संसद भवन का निर्माण तब हुआ था जब नई दिल्ली भूकंपीय क्षेत्र-द्वितीय में शामिल थी, लेकिन अब दिल्ली भूंकपीय क्षेत्र-चुतुर्थ में शामिल है।
- इस उल्लेखनीय संरचनात्मक सुरक्षा संबंधी चिंताओं को जन्म दिया था और आधुनिक भूंकपीय मानकों को पूरा करने वाले एक नए भवन के निर्माण की आवश्यकता महसूस हो रही थी।
- अपर्याप्त कार्यालय स्थान-
- पुराने संसद में पर्याप्त जगह नहीं रह गयीं थी। कई नये कार्यालय उस भवन में स्थापित हो रहे थे। लेकिन जगह उतनी ही थीं। जिससे उसकी गुणवत्ता पर असर पड़ रहा था। इससे कर्मियों की सेहत पर प्रतिकूल असर पड़ रहा था।
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नई संसद भवन का आकार त्रिभुजाकार क्यों है-
संसद भवन की वास्तुकला निर्मित करने वाले बिमल पटेल ने बताया कि नया संसद भवन त्रिकोणीय आकार में डिजाइन किया गया है। पिछला संसद भवन गोलाकार था। नई संसद भवन के तिकौना आकार का संबध वैदिक संस्कृति और तंत्रशास्त्र से है।
सबसे पहली बात यह एक त्रिकोणीय भूखंड पर स्थित है और इसके तीन प्रमुख हिस्से है- लोकसभा, राज्यसभा और एक सेंट्रल लाउंज। इसके अलावा, त्रिकोण आकार देश के विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों में पवित्र ज्यामिति का प्रतीक है।
धार्मिक महत्व-
वास्तुकार विमल पटेल ने पीटीआई को आगे बताया कि इसका धार्मिक महत्व भी है। इस तिकौने आकार में सभी तरह का धार्मिक समायोजन है। हमारे कई पवित्र धर्मों में त्रिभुज आकार का महत्व है। श्रीयंत भी त्रिभुजाकार है। तीन देवता या त्रिदेव (ब्रह्रा, विष्णु और महेश) भी त्रिभुज का प्रतीक है। इसीलिए त्रिभुज आकार का नई संसद बेहद पवित्र और शुभ है।
सेंगोल का क्या महत्व है-
सेंगोल शब्द तमिल के सेम्मई शब्द से लिया गया है। जिसका अर्थ नीतिपरायणता होता है। इसे तमिलनाडू के एक प्रमुख धार्मिक मठ मुख्य आधीनम यानि पुरोहितों का आशीर्वाद मिला हुआ है। भारतीय इतिहास में सेंगोल का बहुत महत्व है। पंडित जवाहर लाल नेहरु ने जब भारतीय गणराज्य के प्रथम प्रधानमंत्री के रुप में अपना पदभार ग्रहण किया, तब उन्हे यह सौंपा गया था।
किसने किया था सेंगोल का निर्माण-
सेंगोल का निर्माण चेन्नई के एक सुनार वुमुदी बंगारु चेट्टी द्वारा किया गया था, जिसके बाद इसे माउंटबैटन द्वारा 15 अगस्त, 1947 को पंडित जवाहरलाल नेहरु को सौंपा गया था, तब से यह प्रथा बनी हुई है।
क्या होता है आकार-
सेंगोल आकार में एक पांच फीट लंबी छड़ी के आकार की होती है, जिसके शीर्ष पर भगवान शिव के अन्नय भक्त और उनके वाहन नंदी जी विराजमान हैं। सेंगोल में नंदी न्याय और निष्पक्षता को परिभाषित करते है।
क्या दर्शाता है सेंगोल-
दरअसल, सेंगोल ब्रिटिश सरकार से भारतीयों के हाथों में ली गई सत्ता की शक्ति को दर्शाता है। इसका जनक सी. राजगोपालचारी को कहा जाता है, जो कि चोला साम्राज्य से काफी प्रेरित थे। चोला साम्राज्य में जब भी एक राजा से दूसरे राजा के पास सत्ता का हस्तांतरण होता था, तब सत्ता हस्तांतरण के रुप में पहला राजा, दूसरे राजा को सेगोंल प्रदान करता था।
आशा है कि आपकों नयी संसद (New Parliament) के विषय में दी गयी जानकारी रोचक लगीं होगी। नयी संसद (New Parliament) नये भारत का गौरव है और सभी भारतीयों का स्वाभिमान है। ये बताता है कि नया भारत गुलामी की जजीरों को तोड़ना शुरु कर चुका है। कमेंट बाक्स में हमें अपने सुझाव जरुर प्रस्तुत करें।
पहला प्रश्न: नए संसद भवन के निर्माण में कौन-कौन सी सामग्रीयाँ उपयोग की गई और वह कहां से मगाई गईं?
उत्तर: नए संसद भवन के निर्माण के लिए बलुआ पत्थर, सागौन लकड़ी, कार्पेट, बांस की लकड़ी, संगमरमर, स्टोन जाली वर्क्स, अशोक प्रतीक, ब्रास वर्क, और अन्य सामग्रियाँ राजस्थान, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, त्रिपुरा, गुजरात, हरियाणा, और मध्य प्रदेश से मगाई गईं।
दूसरा प्रश्न: नए संसद भवन के त्रिकोणीय आकार का महत्व क्या है और इसका धार्मिक संदेश क्या है?
उत्तर: नए संसद भवन का त्रिकोणीय आकार भारतीय धार्मिक संस्कृति के साथ जुड़ा हुआ है। त्रिभुज को तीन देवताओं का प्रतीक माना जाता है और यह धार्मिक समायोजन को दर्शाता है, जो भारतीय समाज में महत्वपूर्ण है।
तीसरा प्रश्न: सेंगोल का क्या महत्व है और किसने किया था इसका निर्माण?
उत्तर: सेंगोल भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखता है, जो भारतीयों के हाथों में ली गई सत्ता की शक्ति को दर्शाता है। इसे चेन्नई के सुनार वुमुदी बंगारु चेट्टी ने निर्मित किया था, और पंडित जवाहरलाल नेहरु को 15 अगस्त, 1947 को सौंपा गया था।